Class 10 SST
Chapter 10
उपनिवेशों का खात्मा और शीत युद्ध
Decolonization and the cold war
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प्रश्न 1. एक उपनिवेश और स्वतंत्र देश के बीच क्या-क्या अंतर होंगे – कक्षा में चर्चा करें।
उत्तर- उपनिवेश – एक साम्राज्यवादी शक्तिशाली देश दूसरे देश पर अपना अधिकार जमा कर उसका राजनीतिक,आर्थिक,सामाजिक शोषण करेतो वह उस साम्राज्यवादी देश का उपनिवेश होगा।
स्वतंत्र देश – स्वतंत्र देश किसी बाह्य नियंत्रण से पूरी तरह मुक्त होता है। देश के संसाधनों पर देश की सरकार और जनता का नियंत्रण होता है। स्वतंत्र देश सरकार अपनी आंतरिक एवं बाह्य नीतियां बनाने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र होती है।
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प्रश्न 2. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन और फ्रांस की स्थिति में क्या समानता और अंतर थे?
उत्तर- समानताएं –
1. द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक आते – आते फांस और ब्रिटेन साम्राज्यवादी देश युद्ध के प्रभाव से आर्थिक रूप से कमजोर हो गये थे और संयुक्त राज्य अमेरिका की आर्थिक सहायता पर निर्भर थे।
2. ब्रिटेन और फ्रांस दोनों देशों पर दबाव डाला जा रहा था कि अपने उपनिवेशों को स्वतंत्र करें ।
3. ब्रिटेन एवं फ्रांस दोनो ही जर्मनी के विरूद्ध युद्ध में शामिल हुए थे ।
4. युद्ध के बाद दोनों देशों के उपनिवेशों में स्वतंत्रता संघर्ष तेज हो गये थे ।
असमानताएं –
1. युद्ध के दौरान ब्रिटेन ने अपने भारतीय उपनिवेश से बड़ी मात्रा में कर्ज लिया था युद्ध के बाद ब्रिटेन को यह कर्ज चुकाना पड़ रहा था उसे बहुत महंगा पड़ रहा था ।
2. फांस ने अधिकांश कर्ज अमेरिका से लिया था उपनिवेशों से उसे कर्ज प्राप्त नहीं हुआ था ।
3. ब्रिटिश सेनाओं में बड़ी मात्रा में भारतीय सम्मिलित थे जबकि फ्रांसीसी उपनिवेशों के साथ ऐसा नहीं था ।
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प्रश्न 3. ब्रिटेन और फ्रांस के अर्थशास्त्री गणना करके कहने लगे कि उपनिवेशों के होने से उनके देश को घाटा ही हो रहा है। आपके विचार में इसके क्या कारण रहे होंगे? क्या द्वितीय विश्व युद्ध से पहले भी यही परिस्थिति रही होगी?
उत्तर- अर्थशास्त्रियों का यह आंदोलन सही था कि उपनिवेश होने से उनके देश का घाटा ही हो रहा है इसके निम्नलिखित कारण थे-
1. द्वितीय विश्व युद्ध से इतना अधिक नुकसान हुआ कि युद्ध के बाद ये साम्राज्यवाद देश अपने उपनिवेशों पर सत्ता बनाए रखने में सक्षम नहीं थे ।
2. युद्ध से पूर्व ब्रिटेन और फ्रांस को उपनिवेशों से बड़ी मात्रा में आर्थिक लाभ था । उसी लाभ का कुछ अंश उपनिवेश देश अपने उपनिवेशों के शासन पर खर्च कर देते थे ।
3. युद्ध से पूर्व उपनिवेशों से साम्राज्यवादी देशों को लाभ ही लाभ हो रहा था क्योंकि इन देशों से कच्चा माल खरीदते थे और अपने देशों में उसी माल से सामान बनाकर महँगे दामों पर वापस उपनिवेशों में लाकर बेच देते थे ।
4. द्वितीय विश्व युद्ध के समय इन देशों को बड़े – बड़े कर्ज लेकर युद्ध में खर्च करना पड़ा
था । अब युद्ध के बाद उन्हें यह कर्ज चुकाना मुश्किल पड़ रहा था । ब्रिटेन ने तो भारत से ही बड़ा कर्जा लिया था अतः युद्ध के बाद अब उसे जितना यहाँ से मिल सकता था उससे अधिक उसे चुकाना था अतः विश्व युद्ध के बाद स्थिति पूरी तरह से बदल चुकी थी ।
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प्रश्न 4. उपनिवेशों के प्रति सोवियत संघ और अमेरिका की नीतियों में क्या अंतर और समानताएं थीं?
उत्तर-उपनिवेशों केप्रति सोवियत रूस और अमेरिका की नीतियों में निम्न अंतर और समानताएंथीI
समानताएँ – 1. अमेरिका व सोवियत संघ दोनो ही अपने प्रभावों को बढ़ाना चाहते थे युद्ध के बाद दोनों ही साम्राज्यवाद या उपनिवेश का विरोध कर रहे थे ।
2. दोनों ही देश इस प्रयास में थे कि अधिकांश देश उनकी नीतियों, पूँजीवादी व्यवस्था या साम्यवादी व्यवस्था को अपनाएं I
3. अमेरिका पूंजीवादी देशों की ताकत बढ़ाना चाहता था, सोवियत संघ साम्यवादी देशों की ताकत बढ़ाना चाहता था ।
4. दोनों ही देश अप्रत्यक्ष रूप से विश्व को नियंत्रित करना चाहते थे ।
असमानताएँ – 1. अमेरिका उपनिवेशों को स्वतंत्र करना चाहता था, लेकिन उन पर अपना प्रभाव बनाए रखना चाहता था ।
2. रूस उपनिवेशों को पूरी तरह से स्वतंत्रता देने के पक्ष में था तथा उपनिवेशों को यथा संभव आर्थिक सहायता देने के पक्ष में था ।
3. रूस चाहता था कि साम्यवाद का विश्व में प्रसार हो अधिकांश उपनिवेश स्वतंत्रता के बाद साम्यवाद अपनाया जबकि अमेरिका चाहता था कि सभी स्वतंत्र होने वाले उपनिवेशों में पूंजीवाद व्यवस्था विकसित हो ।
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प्रश्न 5. राजनीति शास्त्र के अध्याय में आपने गुटनिरपेक्षता के बारे में पढ़ा होगा। 1945 के बाद के विउपनिवेशीकरण में इसका क्या महत्व रहा होगा ?
उत्तर- सन 1945 के बाद के विउपनिवेशेकरण से विश्व के सभी स्वतंत्रत होने वाले देश गुटनिरपेक्ष,
आंदोलन के सक्रिय सदस्य बनें सन 1955 में बाणडग इंडोनेशिया में गुटनिरपेक्ष देशों का सम्मलेन हुआ इसमें उपनिवेशवाद का विरोध किया गया और आपसी मित्रता स्थापित करने के लिए कुछ बुनियादी सिधान्त बनाये गये |
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प्रश्न 6. 1905 से 1945 के बीच भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख चरण क्या- क्या थे? याद करके उनके बारे में कक्षा में चर्चा करें।
उत्तर-1905 से 1945 के बीच भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख चरण निम्न हैं –
1. 1905 के बाद क्रांतिकारी गतिविधियाँ ।
2. 1916 होमरूल लीग आंदोलन |
3. रोल एक्ट जलियांवाला बाग हत्याकांड |
4. विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार आंदोलन |
5. स्वदेशी आंदोलन |
6. भारत छोड़ो आंदोलन।
7. 1935 का भारत शासन अधिनियम 1937 के प्रांतीय विधानसभा चुनाव, क्रिप्स मिशन ।
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प्रश्न 7. उपनिवेश को समाप्त करके स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए किस प्रकार की भावना होने की ज़रूरत है?
उत्तर- स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए सामूहिक एकता, आधुनिकता, शिक्षा और संस्थाओं की मदद ने नए विचारों को फैलाते हुए राष्ट्रवादी भावनाओं का विकास करना और पुरानी परम्पराओं व धर्मों के आधार पर लोगों में साझा विकसित करने की जरूरत है ।
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प्रश्न 8. विविध भाषा और धर्म के मानने वाले लोग क्या एक राष्ट्र बना सकते हैं? अगर उसमें किसी एक धर्म या भाषा हावी हो तो क्या होगा?
उत्तर- विविध भाषा और धर्म वाले लोग यदि लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाकर आगे बढ़े तो निश्चित रूप से एक राष्ट्र बन सकते है। भारत ने लोकतांत्रिक मार्ग अपनाकर ही विविध भाषाओं एवं धर्मों को समाहित कर एक लोकतांत्रिक राष्ट्र का निर्माण किया है । लोकतंत्र ऐसी व्यवस्था है जिसमें सभी को साथ लेकर चलने एवं विरोध में भी सामंजस्य बनाकर आगे बढ़ने की क्षमता होती है । आज दुनिया के लगभग सभी देश बहुभाषी और बहु धर्म वाले हो चुके है। अगर किसी देश में यदि एक भाषा या धर्म हावी हो तो उसे भी राष्ट्र को लोकतांत्रिक तरीके से समाधान निकालना चाहिए। जैसे भारत में बहुसंख्यक लोग हिन्दू धर्मावलम्बी एवं हिन्दी भाषा है लेकिन भारत में सभी धर्मों को समान एवं सभी भाषाओं को समान महत्व दिया गया है। इस तरह से धर्म और भाषा संबंधी समस्याओं के समाधान लोकतांत्रिक तरीके से निकाले जाने चाहिए।
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प्रश्न 9. राष्ट्रहित क्या किसान, मजदूर, व्यापारी, उद्योगपति, जमींदार, पुरुष, महिला आदि के हितों के आपसी सामंजस्य से बनता है या इन सबके हितों से हटकर होता है? उदाहरण सहित चर्चा करें ।
उत्तर- कोई भी राष्ट्र लोगो से मिलकर बनता है और किसान, मजदूर व्यापारी, उद्योगपति, जमीदार पुरुष, महिला ये सभी के ही संगठन है अतः इन सभी में सर्वोच्च राष्ट्र ही होना चाहिए । अतः राष्ट्रहित वही है जिसमें सबका हित हो राष्ट्रहित के लिए हमें अपने व्यक्तिगत एवं समूह के हित को छोड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए । उदाहरण के लिए आपको याद होगा कि भारत में गांधी जी, जवाहरलाल नेहरू और वल्लभ भाई पटेल जैसे कांग्रेस के नेता संभ्रांत वर्ग के होते हुए भी गरीब किसानों, मजदूरों व जनजातियों के आंदोलन में सम्मिलित हुए थे और उनके हितों को राष्ट्रवादी आंदोलन में समाहित करने का प्रयास किया। इन्हीं प्रयासों के कारण इन समूहों के लोग राष्ट्रवादी आंदोलन में शामिल हुए। लेकिन अन्य देशों में ऐसा नहीं हो पाया और गरीब तबके के लोग कर रहे आंदोलन असफल हो गया।
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प्रश्न 10.उपनिवेशों में मज़बूत लोकतांत्रिक परंपराओं के न होने से उसके विउपनिवेशीकरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर- उपनिवेशों में मजबूत लोकतांत्रिक परंपराओं के न होने से इन देशों में उपनिवेश के विकल्प में लोकतंत्र नहीं बल्कि तानाशाही या सैनिक शासन विकसित हुआ लेकिन श्रीलंका को छोड़कर अन्य देशों में इस तरह की लोकतांत्रिक संस्थाओं और अनुभवों का अभाव था।
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प्रश्न 11. इंडोनेशिया की स्वतंत्रता में जापान की क्या भूमिका थी?
उत्तर- इण्डोनेशिया होलैण्ड का उपनिवेशक था द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने हालैण्ड को हराकर अपने साम्राज्य में मिला लिया था और इंडोनेशिया पर जर्मनी के सहयोगी जापान का कब्जा हो गया था । जापान ने इंडोनेशिया की स्वतंत्रता की बात तो की मगर वास्तव में इंडोनेशिया को अपना उपनिवेशक बनाना चाहा जापान के सेना ने बर्बरता से इंडोनेशिया के जंगलों को काटने, खनिज संपदा पर कब्जा करने और व्यापारिक फसलों को जापान भेजने का काम प्रारंभ कर दिया । और स्थानीय लोगो से जबरदस्ती काम करवाने लगा लेकिन उन्होंने कुछ हालैण्ड विरोधी इंडोनेशियाई राष्ट्रवादियों को खुलकर राजनैतिक काम करने दिया। इससे इण्डोनेशिया में राष्ट्रवादी आंदोलन विकसित होता रहा सुकर्णो जिन्हें डच सरकार ने कई सालों से जेल में बंद रखा था उन्हें भी रिहा कर दिया I जापानी सरकार इंडोनेशिया की स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहित किया । इस प्रकार जापान की नीतियों के कारण 1939 से 1945 तक इण्डोनेशिया में राजनैतिक गतिविधियों तेज हुई । द्वितीय विश्व युद्ध में जैसे ही जापान की पराजय तय हुई 17 अगस्त 1945
को सुकर्णो ने जापान की सहमति से इण्डोनेशिया की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। लेकिन इसके बाद यहाँ ब्रिटेन का हस्तक्षेप आरंभ हुआ। ब्रिटेन, इण्डोनेशिया को कई टुकड़ो में बाँटना चाहता था अतः अब इण्डोनेशिया का संघर्ष ब्रिटेन के विरूध था। ब्रिटेन इंडोनेशिया को वापस डचों को सौपना चाहता था, अमेरिका ने भी ब्रिटेन का साथ दिया ।
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प्रश्न 12. उपनिवेशी शासकों का प्रयास था कि इंडोनेशिया कई छोटे स्वतंत्र राज्यों में बंट जाए जबकि वहाँ के राष्ट्रवादियों ने इसका विरोध किया। दोनों की नीतियों में यह अंतर क्यों रहा होगा?
उत्तर- उपनिवेशी शासक हालैण्ड ब्रिटेन चाहते थे कि इण्डोनेशिया कई छोटे-छोटे राज्यों में बट जाए उनका सोचना था कि संगठित बड़े राष्ट्र पर नियंत्रण करने में उन्हें कठिनाई होगी यदि वहां राष्ट्र छोटे- छोटे टुकड़ो में बंट जाएँ तो उसके लिए उन पर नियंत्रण बनाए रखना संभव था । राष्ट्रवादी इंडोनेशिया को एक सम्पूर्ण राष्ट्र बनाने के पक्ष में थे।इसलिए दोनों की नीतियों में अंतरथा।
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प्रश्न 13. इंडोनेशिया में 1998 तक लोकतंत्र क्यों स्थापित नहीं हो पाया?
उत्तर- क्योकि 1955 में हुए चुनावो में किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला और वहाँ मजबूत सरकार नहीं बनी। इस दौर में इंडोनेशिया की साम्यवादी दल का तेजी से फैलाव हुआ और उसने सुकर्णो सरकार को अपना समर्थन दिया और साम्यवादियों का प्रभाव यहाँ बढ़ने लगा । साम्यवाद के बढ़ते प्रभाव से अमेरिका को शंका हो गई। साम्यवाद के बढ़ते प्रभाव के कारण सेना ने हस्तक्षेप किया, इसमें अमेरिका का हाथ था इस प्रकार यहाँ साम्यवाद के उदय एवं अमेरिका हस्तक्षेप के कारण अस्थिरता बनी रही अंततः 1998 में इण्डोनेशिया में लोकतंत्र स्थापित हुआ ।
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प्रश्न 14. डच और ब्रिटिश कंपनियों का राष्ट्रीयकरण इंडोनेशिया की स्वतंत्रता के लिए किस प्रकार ज़रूरी रहा होगा?
उत्तर- डच और ब्रिटिश कंपनियों के राष्ट्रीयकरण के बाद वे अपनी सरकार के नियंत्रण में आ गयी।उनकी सरकार औपनिवेशिक स्वतंत्रता के पक्ष में थी । इसलिए उन्हें इंडोनेशिया को स्वतंत्र घोषित करना पड़ा जबकि इंडोनेशिया के विकास के लिए यह आवश्यक था कि यहाँ की धन संपदा का प्रयोग यहाँ आधारभूत ढाँचा विकसित किया जाए इसलिए यह स्वतंत्रता को बनाए रखना जरूरी था ।
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प्रश्न 15. भारत और वियतनाम के राष्ट्रीय आंदोलनों में आप क्या समानता व अंतर देख पाते हैं?
उत्तर- भारत और वियतनाम के राष्ट्रीय आंदोलन में निम्नलिखित समानता व अंतर था –
1. भारत भी विदेशी शोषण का शिकार था। वह ब्रिटिश उपनिवेश था। वियतनाम भी विदेशी शोषण का शिकार था । वह फ्रांस का उपनिवेश था।
2. भारत किसानों का देश था और ब्रिटेन जैसे शक्तिशाली देश से उसका स्वतंत्रता के लिए संघर्ष था। वियतनाम गरीब किसानों का देश था और उसने विश्व के सबसे शक्तिशाली देशों से अत्यंत भयावह युद्ध लड़कर स्वतंत्रता हासिल की थी ।
3. ब्रिटेन भारत को अनाज और कच्चे माल के रूप में देखा था फ्रांस वियतनाम में यहीं चीजें प्राप्त करता था ।
4. 1929 की आर्थिक मंदी का जो प्रभाव वियतनाम के किसानों पर पड़ा, वहीं भारत के किसानों पर भी पड़ा।
अंतर- 1. भारत ब्रिटिश उपनिवेश था वियतनाम फ्रांसीसी उपनिवेश था ।
2. वियतनाम पर द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान ने कब्जा कर लिया भारत पर ब्रिटेन का ही कब्जा है।
3. वियतनाम में आगे चलकर सोवियत संघ एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के हस्तक्षेप के कारण वह दो भागो में बाँट दिया गया, भारत में ऐसा कोई हस्तक्षेप नहीं हुआ फिर भी अंग्रेजों ने उसे दो हिस्सों में बांट दिया ।
4. भारत लंबे संघर्ष के बाद स्वतंत्र हुआ और विभाजित हुआ वियतनाम लंबे संघर्ष के बाद अमेरिका हस्तक्षेप से स्वतंत्र हुआ और विभाजित हुआ, वियतनाम लंबे संघर्ष के बाद अमेरिका हस्तक्षेप से स्वतंत्र हुआ और एकीकृत हुआ ।
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प्रश्न 16. अमेरिका और सोवियत संघ की आपसी स्पर्धा का वियतनाम पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर- उत्तरी वियतनाम पर साम्यवादियों (रूस) का प्रभाव था अतः फ्रांस के हटने के बाद अमेरिका ने दक्षिण वियतनाम पर अपना प्रभाव स्थापित कर वहाँ एक कठपुतली शासक बिठा दिया इस प्रकार पूंजीवादी और साम्यवादी पूंजीवादी और साम्यवादी प्रतिस्पर्धा के कारण वियतनाम दो हिस्सों में बंट गया, उत्तरी वियतनाम पर सोवियत संघ का प्रभाव था और दक्षिणी वियतनाम पर संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रभाव था । अमेरिका ने दक्षिण वियतनाम को बचाने के बहाने वहां अपनी सुनाई उतार दी। उधर उत्तरी वियतनाम में साम्यवादी सुधार किये गये। इस प्रकार अमेरिका और सोवियत रूस के बीच की स्पर्धा में वियतनाम एक मोहरा बन गया । अंतिम लम्बे संघर्ष के बाद 1974 में अमेरिका ने अपनी सेना वियतनाम से वापस बुला ली और दक्षिणी वियतनाम अमेरिकी सहायता के बिना टिक नहीं सका और 1975 में उत्तरी दक्षिणी वियतनाम का विलय हो गया ।
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प्रश्न 17. वियतनाम के स्वतंत्रता आंदोलन में भूमि सुधार का क्या महत्व था?
उत्तर- उत्तर वियतनाम में जहाँ साम्यवादी वियतनाम का नियंत्रण था विस्तृत भूमि सुधार कार्यक्रम अपनाया गया। इसके तहत जहां जमींदारी प्रथा समाप्त करके जोतने वाले किसानों को जमीन का मालिक बनाया गया और हर किसान कितनी जमीन रख सकता है इसकी सीमा बांध दी गई इस कानून का क्रियान्वयन करते समय हजारों जमीदार मारे गए और उनकी संपत्ति जब्त की गई। इसका कुल नतीजा यह हुआ कि सदियों बाद वियतनाम के गरीब किसान और भूमिहीन मजदूर जमीन के मालिक हो गये। ये किसान अब वियतनाम के सबसे मजबूत समर्थन बन गए ।
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प्रश्न 18. अफ्रीका में मध्यम वर्ग के कमजोर होने तथा कबीलाई मुखिया के प्रशासन से वहाँ के राष्ट्रवाद पर क्या प्रभाव पड़ा होगा?
उत्तर- अफ्रीका के अंदरूनी भागों पर स्थानीय व कबीलाई मुख्याओं की नियुक्ति उपनिवेशी शासन करता था । उपनिवेशी सरकार की अफ्रीका शिक्षा के प्रसार के प्रति कोई दिलचस्पी नही थी इस कारण अफ्रीका में आधुनिक नौकरशाही या शिक्षित मध्यम वर्ग का विकास नहीं हो पाया I शिक्षित मध्यम वर्ग के अभाव में यहाँ राष्ट्रवादी भावनाओं का विकास बहुत देर से हुआ जिस कारण उपनिवेशी देश आगे लंबे समय तक अफ्रीका पर नियंत्रण बनाए रखने में सफल रहें। इस प्रकार कबीलाई मुखियाओं के प्रशासन के कारण अफ्रीका में राष्ट्रवाद का उदय बहुत देर से हुआ ।
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प्रश्न 19. अफ्रीका में मज़दूरों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ा? उससे राष्ट्रवादी भावना कैसे बनी होगी?
उत्तर- अफ्रीका में लोगों को खदानों, रेल्वे और बंदरगाहों में मजदूरी करने के लिए मजबूर किया जाता था इन मजदूरों के कल्याण के लिए उपनिवेश सरकार कोई काम नहीं करती थी । उनका आर्थिक और दैहिक शोषण किया जाता था। धीरे – धीरे इन्हीं अत्याचारों के विरुद्ध अफ्रीका में एक प्रबल और संगठित मजदूर वर्ग का विकास हुआ। यह वर्ग मुख्य रूप से रेलवे, खदान और बंदरगाहों में कार्यरत था। 1945 के बाद यह वर्ग अपने अधिकारों तथा अफ्रीकी व गोरे मजदूरों के बीच समानता की मांगों को लेकर संघर्ष करने लगे। यह वर्ग पूरे अफ्रीका में फैला था, अतः उनका आंदोलन सम्पूर्ण अफ्रीका के आंदोलन का स्वरूप ले रहा था। इसके चलते पूरे अफ्रीका महाद्वीप के लोगों में एकता और आपसी भाईचारे और साम्राज्यवाद विरोध की भावना उत्पन्न हुई ।
अभ्यास :-
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प्रश्न 1. रिक्त स्थान भरें :
क. इंडोनेशिया के राष्ट्रवादी और प्रथम राष्ट्रपति ……..थे ।
ख. वियतनाम के क्रांतिकारी नेता और प्रथम राष्ट्रपति ………थे ।
ग. नाइजीरिया के राष्ट्रवादी और प्रथम राष्ट्रपति ………. थे ।
घ. इंडोनेशिया की स्वतंत्रता का संघर्ष …………देश के विरुद्ध था।
च. वियतनाम की स्वतंत्रता का संघर्ष……… और……… देशों के विरुद्ध था ।
उत्तर- 1 . सुकनों , 2 . होचि मिन्ह , 3 . नामदी आजकिले , 4 . हालैण्ड , 5 . सयुक्त राज्य अमेरिका , 6 . सोवियत संघ
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प्रश्न 2. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और अफ्रीका के स्वतंत्रता आंदोलन में क्या समानताएं और अंतर है?
उत्तर- भारतीय स्वतंत्रता और अफ्रीका के स्वतंत्रता आंदोलन के निम्न समानताएँ है –
1. दोनों ही देशों में स्वतंत्रता आंदोलन का साम्राज्यवाद संघर्ष के रूप में हुआ था ।
2. दोनो ही देशों के स्वतंत्रता आंदोलन में जनता ने अपने बलबूते पर विदेशी शक्ति का विरोध किया। इसमें उन्हें दूसरे देशों से सहयोग नहीं मिला ।
3. दोनों ही देशों के स्वतंत्रता आंदोलन का मुख्य कारण आर्थिक शोषण औपनिवेशिक देशों का अत्याचार एवं शोषण था ।
4. दोनों ही देशों के स्वतंत्रता आंदोलन के समय शांतिपूर्वक आंदोलन चलाने के प्रयास किये गए ।
अंतर –
1. भारत में केवल अंग्रेजों का शासन था जबकि अफ्रीका में अलग – अलग क्षेत्रों पर अलग -अलग देशों का उपनिवेश शासन था ।
2. भारत में आंदोलन का नेतृत्व मध्यम वर्ग एवं शिक्षित वर्ग ने किया जबकि अफ्रीका में स्वतंत्रता संघर्ष का नेतृत्व श्रमिकों व मजदूरों में संगठित होकर किया ।
3. भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में अलग-अलग जातियों, क्षेत्रो व भाषाओं के लोगों ने मिलकर भाग लिया जबकि अफ्रीका के स्वतंत्रता संघर्ष में अफ्रीकियों ने अलग – अलग देशो से संघर्ष किया था ।
4. भारत जहाँ 1947 में स्वतंत्र हो गया। वहीं अफ्रीका देश इसके काफी बाद स्वतंत्र हुआ ।
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प्रश्न 3. एशिया के तीनों देशों भारत, वियतनाम और इंडोनेशिया में स्वतंत्रता के बाद भूमि सुधार हुए। इन तीनों की आपस में तुलना करें।
उत्तर- भारत – भारत में स्वतंत्रता के बाद जो भूमि सुधार हुए, इन पर वियतनाम या इंडोनेशिया की तरह साम्यवाद का प्रभाव था। बल्कि भारत में लोकतांत्रिक तरीके से भूमि सुधार लागू किए गए। जमींदारी प्रथा समाप्त की गई, किसानों को उनके शोषण से मुक्त किया गया, चकबंदी प्रणाली द्वारा भूमि का सामूहिकीकरण किया गया। यहाँ जमींदारी प्रथा समाप्त की गई लेकिन जमींदारों के साथ हिंसा या दुर्व्यवहार नहीं किया जबकि वियतनाम में जमींदारों को मारा गया था ।
वियतनाम- वियतनाम में जमींदारी प्रथा समाप्त करके कृषि कार्य करने वाले किसानों को जमीन का मालिक बनाया गया और हर किसान कितनी जमीन रख सकता है इसकी सीमा बांध दी गई। जमींदारों की संपत्ति जब्त कर ली गई, सदियों बाद वियतनाम के गरीब किसान और भूमिहीन मजदूर जमीन के मालिक हो गये ।
इंडोनेशिया – इंडोनेशिया में साम्यवादी प्रभाव के कारण भूमि सुधार कानून पारित किए गए जिनके तहत गरीब किसानों को जमीन वितरित की गई ।
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प्रश्न 4. इंडोनेशिया और नाइजीरिया में लोकतंत्र स्थापित होने में क्या समस्याएं थीं? भारत में इन समस्याओं का समाधान कैसे निकाला गया?
उत्तर- इंडोनेशिया – इंडोनेशिया में लोकतंत्र की स्थापना के मार्ग में वहाँ की राजनीतिक अस्थिरता सबसे बड़ी बाधा थी। 1955 के चुनावों के बाद कोई भी दल राष्ट्रीय सरकार नहीं बना सका जिस कारण वहाँ साम्यवादियों का प्रभाव बढ़ने लगा साम्यवादियों के बढ़ते प्रभाव के कारण यहाँ अमेरिका ने हस्तक्षेप किया। इस प्रकार इस हस्तक्षेप के कारण यहाँ अस्थिरता बनी रही अन्ततः यहाँ 1998 में लोकतंत्र स्थापित हुआ ।
नाइजीरिया – नाइजीरिया 1963 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र हुआ लेकिन नाइजीरिया गृह युद्ध और सैन्य शासन में फँस गया 1966 में यहाँ सैनिक शासन स्थापित हुआ और आजीविका और उनके कई सहयोगियों को मार डाला गया। सैन्य शासन के दौर में नाइजीरिया की राजनीति में उत्तर का वर्चस्व स्थापित हुआ । नागरिक और प्रजातांत्रिक सरकार को स्थापित करने के कई प्रयास किये गये लेकिन यह बार- बार असफल हुआ। सैन्य शासन व्यवस्था और बहुराष्ट्रीय तेल कॉरपोरेशन ने साथ मिलकर काम किया। उन्होंने नाइजीरिया में भ्रष्टाचार और मानवाधिकारों के दमन को बढ़ावा दिया। सैन्य तानाशाही के लंबे अंतराल के बाद नाइजीरिया ने 1919 में प्रजातांत्रिक सरकार का चयन किया । भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संविधान निर्माण का कार्य संपन्न किया गया । संविधान में लोकतांत्रिक मूल्यों को सर्वसम्मति में महत्व दिया गया। इस लोकतांत्रिक संविधान को 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया । संविधान के अनुसार 1951 में पहले लोकतांत्रिक निर्वाचन हुए, जिसमें कांग्रेस को स्पष्ट रूप से भारी बहुमत प्राप्त हुआ और राष्ट्रीय सरकार का गठन हुआ तब से अब तक भारत में लोकतंत्र कायम है ।
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प्रश्न 5. शीत युद्ध में परमाणु शस्त्रों की क्या भूमिका थी?
उत्तर- द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में पहली बार अमेरिका ने जापान पर परमाणु शस्त्रों का प्रयोग किया था युद्ध को खत्म कर दिया। इसके पश्चात अमेरिका और सोवियत संघ में परमाणु शस्त्र जमा करने की प्रतिस्पर्धा छिड़ गई दोनों ही देशों को पता था कि वह एक दूसरे से युद्ध नहीं जीत सकते, फिर भी वो अधिक से अधिक मात्रा में परमाणु शस्त्र जमा करने लगे उन्होंने विश्व भर में अपने सैन्य ठिकानों पर उन्हें तैनात कर दिया सम्पूर्ण विश्व के देश उस समय इन शस्त्रों के निशाने पर थे। यही नहीं दोनों देश लगातार यह धमकी देते रहे कि वे किसी भी समय एक दूसरे के विरुद्ध हथियार का प्रयोग कर सकते है एक और बड़ी समस्या थी अगर किसी तकनीकी गलती से न चाहते हुए भी अगर किसी के कारण कोई परमाणु अस्त्र का उपयोग किया तो भी दुनिया का विनाश हो सकता है। इस तरह 1975 से 1989 तक परमाणु हथियारों की होड़ ने शीत युद्ध को चरम पर पहुंचा दिया था ।
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प्रश्न 6. परमाणु निरस्त्रीकरण कैसे संभव हुआ ?
उत्तर- उस सम्पूर्ण विश्व परमाणु युद्ध की कगार पर खड़ा था उस समय अमेरिका व यूरोप में इसके विरोध प्रदर्शन व शांति आंदोलन शुरू हुए इनमें स्त्रियों पुरुषों व बच्चों ने बड़ी संख्या में भाग लिया था। अपनी अपनी सरकार से मांग की कि वह अपनी परमाणु हथियार नष्ट कर दे तथा किसी अन्य देश को अपने यहां हथियार रखने की आज्ञा न दे । सोवियत संघ में लोकतांत्रिक के अधिकार से सीमित थे इस कारण यह वहाँ पर सफल न हो सका, परन्तु वहाँ के बुद्धिजीवियों ने काफी समर्थन दिया। इन आंदोलन के कारण अमेरिका तथा रूस के नेताओं को विचार आया कि परमाणु हथियार खत्म करना चाहिए । इसलिए दोनों देशों के बीच बातचीत शुरू हुई तो काफी सफलता के बाद 1998 में आइसलैंड के राजधानी रिक्जेविक अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन पूरी हुई निः शस्त्रीकरण की इस महत्वपूर्ण संधि पर अमेरिका और सोवियत रूस के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और मिखइला गोर्वाच्चोब ने हस्ताक्षर किये जिसके तहत दोनो देशों ने परमाणु हथियार कम करने और उसके प्रयोग की संभावना को नगण्य बनाने का निर्णय लिया ।
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प्रश्न 7. वर्तमान में आप शीत युद्ध का क्या प्रभाव देखते हैं?उत्तर- वर्तमान में शीत युद्ध का एक प्रभाव को आज भी विश्व झेल रहा है। जब सोवियत संघ ने अरब देशों पर अपने प्रभाव डाला और अमेरिका व इस्त्राईल के विरुद्ध उनको तैयार किया तो अमेरिका उन दोनों देशों में यह भावना फैलाई कि साम्यवादी सोवियत संघ से इस्लाम धर्म को खतरा है। इसी तरह जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर आक्रमण करके उस पर नियंत्रण जमाया तो अमेरिका ने इस्लामी धार्मिक समूहों को उकसा कर उन्हें सोवियत संघ लड़ने के लिए घातक शस्त्र दिये। इसी तरह प्रायः विश्व के अन्य भागों में भी छापामार युद्ध करने के लिए सोवियत संघ और अमेरिका ने गुटों को तैयार किया। सोवियत संघ के विघटन के बाद से ये समूह आज आतंकवाद फैला रहे है । वर्तमान युग की आतंकवाद समस्या का आरंभ युद्ध से ही होता है।