Class 10 SST
Chapter 12
भारत के संविधान का निर्माण
Making of the Constitution of India
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प्रश्न 1.रिक्त स्थानों की पूर्ति करें:-
a.भारत के संविधान का निर्माण ………… सभा द्वारा किया गया ।
( संसद / विधान सभा / संविधान सभा)
b.भारत का संविधान दिनांक ………… से लागू हुआ।
(15 अगस्त 1947/26 जनवरी 1950 / 30 जनवरी 1948)
c.हमारे संविधान के अनुसार भारत एक …….. देश है।
(लोकतांत्रिक / राजशाही / सैन्यशासित)
उत्तर- a. संविधान सभा, b. 26 जनवरी 1950, c. लोकतांत्रिक
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प्रश्न 2.अगर आपको अपनी शाला के लिए एक संविधान बनाना हो तो किस प्रक्रिया से बनाएँगे?
उत्तर- संविधान का उद्देश्य किसी भी देश, परिषद, संस्था के लिए स्वयं और उस क्षेत्र से जुड़े सभी वर्ग का हित, स्वतंत्रता, उनको समान अधिकार तथा प्रत्येक व्यक्ति को समान अवसर उपलब्ध कराना ही मूल उद्देश्य है। किसी विद्यालय के संविधान के निर्माण में सभी वर्गों के प्रतिनिधियों जैसे विद्यार्थी वर्ग, स्कूल के कर्मचारी वर्ग, स्कूल के शिक्षक वर्ग, और स्कूल के प्रबंधक आदि सभी वर्गो का प्रतिनिधित्व करने वाली सभा का गठन करके और सभी वर्गों के हितों, स्वतंत्रता और सभी के मौलिक अधिकारों की रक्षा करते हुए एक आदर्श संविधान का निर्माण किया जा सकता है I हमारे स्कूल के संविधान का उद्देश्य सभी विद्यार्थी वर्ग को समान अवसर उपलब्ध करना और आर्थिक रूप से या शारीरिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों को विशेष सहायता प्रदान कर उन्हें प्रोत्साहित करना तथा स्कूल के महिला शिक्षिकाओं और छात्राओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करना तथा स्कूल के कर्मचारियों और प्रबंधन कमेटीयों के लिए एक उचित माहौल तैयार करना जिसमें वे सुचारू रूप से कार्यों का निष्पादन स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से कर सकें।
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प्रश्न 3.स्वतंत्र भारत के संविधान और 1935 के अधिनियमों में किस तरह के अंतर थे? ये अंतर क्यों थे?
उत्तर- सन् 1935 में ब्रिटिश संसद ने भारत शासन अधिनियम 1935 पारित किया जिसमें भारत में एक सीमित हद तक चुने गए सदनों व उत्तरदायी मंत्रिमंडल द्वारा शासन का प्रावधान था। इसमें
कई प्रावधान ऐसे थे जो बाद में स्वतंत्र भारत के संविधान में समाविष्ट हुए। उदाहरण के लिए – केन्द्रीय सरकार और प्रांतीय सरकारों के बीच अधिकारों का बंटवारा, विधायिका में बहुमतदल द्वारा मंत्रिमंडल का गठन और सदन के प्रति उत्तरदायी सरकार दलितों के लिए सीटों का आरक्षण आदि। लेकिन कुछ बातों में सन् 1935 के अधिनियम से स्वतंत्र भारत के संविधान में बहुत फर्क था। सन् 1935 में मताधिकार भारत की एक बहुत सीमित आबादी केवल 10% को ही प्राप्त था I कुछ सीट केवल विशेष धर्म के लोगों के लिए आरक्षित थी जहाँ केवल उस धर्म के लोग जैसे – मुसलमान, सिख या ईसाई ही वोट डाल सकते थे। सन् 1935 में भारत को पूरी स्वतंत्रता नहीं दी गई थी। ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त वायसराय या गर्वनर के पास कई महत्वपूर्ण अधिकार थे और वे चुनी गई विधायिका व सरकारों को भंग कर सकते थे या उनके द्वारा पारित कानूनों को अमान्य कर सकते थे।
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प्रश्न 4.क्या आपको लगता है कि सार्वभौमिक मताधिकार व प्रत्यक्ष रूप से न चुना गया एक सदन भारत के विविध प्रकार के लोगों की ज़रूरतों व आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व कर सकता था?
उत्तर- द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद 1946 में ब्रिटिश सरकार ने लार्ड पेथिक लारेंस की अध्यक्षता में एक समिति यह पता करने के लिए भारत भेजी कि स्वतंत्र भारत में शासन व्यवस्था कैसी होगी और नए संविधान निर्माण की प्रक्रिया क्या होगी? एक प्रबल सुझाव यह था कि सभी वयस्कों के मताधिकार द्वारा संविधान सभा का गठन हो लेकिन बहुत से लोगो को लगा कि इसमें समय अधिक लगेगा और संविधान सभा के गठन को टाला नहीं जा सकता है I समिति ने व्यापक विचार विमर्श करके सुझाया कि 1935 के नियमों के आधार पर चुनी गई प्रांतीय विधान सभाओं का उपयोग निर्वाचक मण्डल के रूप में किया जाए अर्थात सीधे नए चुनाव न कराकर पहले से चुनी गई प्रांतीय सभाओं ने प्रतिनिधि चुनकर संविधान सभा का गठन किया। प्रति 10 लाख की जनसंख्या पर 1 प्रतिनिधि ही विधानसभा द्वारा चुना गया I इसमें 11 प्रांतों से 292 प्रतिनिधि थे I रजवाड़ों ने 93 तथा दिल्ली, अजमेर – मारवाड़ कूर्ग व बलूचिस्तान के संभाग से एक – एक प्रतिनिधि सहित सभा के लिए कुल 389 सदस्य अप्रत्यक्ष मतदान प्रणाली से जुलाई 1946 तक चुन लिए गए I
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प्रश्न 5.सभी तरह के लोगों की राय लेने के लिए ऐसे सदन को फिर किस तरह के प्रयास करने पड़ते?
उत्तर- 17 मार्च 1947 को संविधान की मुख्य विशेषताओं के संबंध में “प्रश्नावली” सभी प्रांतीय विधान सभाओं, विधान मंडल, केन्द्रीय विधानमंडल के सदस्यों को उनकी राय लेने के लिए भेजी गई।अल्पसंख्यक और मौलिक अधिकार परामर्श समिति की प्रश्नावली पारदर्शिता के साथ समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के माध्यम से जनता तक चर्चा के लिए संचारित होती थी। समाचार पत्रों तथा आम सभाओं के माध्यम से इन प्रश्नों व विभिन्न प्रस्तावों पर चर्चा और विचार-विमर्श होता था और पत्रो के माध्यम से इनके सुझाव और प्रस्तावों को संविधान समितियों तक पहुंचाया जाता था। इस तरह संविधान सभा के कार्य में आम जनता अपनी सहभागिता सुनिश्चित करती थी।
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प्रश्न 6.भारत के संविधान का निर्माण भारत के लोगों की ओर से किया गया था लेकिन भारत के लोगों ने संविधान सभा का चुनाव नहीं किया फिर भी इस संविधान को भारत के अधिकांश लोगों ने सहर्ष स्वीकार किया । यह कैसे संभव हुआ होगा?
उत्तर- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अधिकांश देशों में लोकतांत्रिक सरकारो के समर्थन में मांग उठने लगी तब अंग्रेजों ने समझ लिया कि अब ज्यादा समय तक भारत को गुलाम नहीं रख सकते हैं। इसी कारण 1946 में ब्रिटिश सरकार ने एक समिति का गठन कर उसे भारत दौरे पर भेजा जिसका उद्देश्य यह पता करना था कि आजादी के बाद भारत की शासन व्यवस्था कैसी होगी, किस प्रकार से संविधान का निर्माण आदि होगा कैसे समितियों का गठन होगा आदि । उस समय एक प्रबल मत था कि समितियों, सभाओं का गठन आम चुनावों के माध्यम से किया जाए किन्तु उस समय भारत की तत्कालीन स्थिति और परिस्थितियों को देखकर यह फैसला लिया गया कि 1935 के नियमों के आधार पर चुनी गई प्रांतीय विधान सभाओं का उपयोग निर्वाचक मण्डल के रूप में किया जाए यानी सीधे चुनाव न कराकर पहले से चुनी गई प्रांतीय सभाओं ने प्रतिनिधि चुनकर संविधान सभा का गठन किया । जो कि एक आम लोगों द्वारा ही निर्वाचित लोग थे। चूँकि संविधान सभा में चुने गये सदस्य भारतीय समाज तथा लोगों से बहुत ही निकट और लोकप्रिय थे जिससे आम जन सदैव अपने आप को उनके निकट और जुड़ा हुआ पाता था । और समय-समय पर समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के माध्यम से संविधान सभा के द्वारा विभिन्न बिंदुओं पर सलाह और सुझाव आमंत्रित किये जाते थे। इन्ही सभी कारणों से भारतीय जनमानस अपने आप को संविधान से जुड़ा हुआ पाता है और इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया I
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प्रश्न 7.संविधान निर्माण की चर्चा समाचार पत्र-पत्रिकाओं में तथा आम सभाओं में होती रही और लोग संविधान सभा को ज्ञापन देते रहे लेकिन उन दिनों भारत में केवल 27 प्रतिशत पुरुष और 9 प्रतिशत महिलाएं साक्षर थीं। निरक्षर महिलाओं व पुरुषों के विचार संविधान निर्माताओं तक कैसे और किस हद तक पहुंचे होंगे?
उत्तर- संविधान निर्माण का समय बहुत ही कठिन समय था। एक तरफ भारत में बटवारे की बात (पाकिस्तान बनाने की प्रक्रिया) चल रही थी और दूसरी तरफ स्वतंत्र राजाओं रजवाड़ों और नवाबों को भारत संघ में विलय का दौर चल रहा था। उस समय भारत आम चुनाव कराने की स्थिति में भी नहीं था। हम यह कह सकते है कि उस समय साक्षरता का प्रतिशत भले ही कम था किन्तु उस समय के लोग जागरूक और अपने देश के प्रति अपने कर्तव्यों को लेकर संवेदनशील थे। आम सभाओं और लोगों में जन भागीदारी बढ़ चढ़ के होती थी। सभी वर्ग और समुदाय के लोग, शिक्षित हो या अशिक्षित चर्चा में बढ़-चढ़ के हिस्सा लेते और अपने विचारों को रखते थे और प्रबुद्ध तथा आम सभा के सभापतियों द्वारा उनके विचार और सुझावों को संविधान सभा तक पहुंचाया जाता था।किन्तु यह भी सही है कि जनमानस के अशिक्षित होने से संविधान के निर्माण में रचनात्मक
सहभागिता से जिस तरह से होनी चाहिए वह नहीं हुई। क्योंकि भारत की अधिकतर आबादी अशिक्षित थी।
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प्रश्न 8.संविधान सभा का चुनाव सार्वभौमिक मताधिकार के आधार पर नहीं हुआ था और उसे आबादी के केवल दस प्रतिशत लोगों द्वारा चुनी गई विधायकों ने चुना था। तो क्या आपको यह कथन कि ‘हम भारत के लोग इस संविधान को बना रहे हैं उचित लगता है? संविधान सभा ने किन तरीकों से यह सुनिश्चित किया कि भारत के सभी लोग संविधान निर्माण में सम्मिलित हों?
उत्तर- भारतीय संविधान के निर्माण की तैयारी और इसके निर्माण का समय बहुत ही विषम और कठिन था। क्योंकि उस समय हमारे पास साधन सीमित और समय भी कम था और अत्यंत कठिन था। यह कथन सत्य है कि संविधान सभा का चुनाव सार्वभौमिक मताधिकार के आधार पर नहीं हुआ और केवल दस प्रतिशत लोगों द्वारा चुनी गई विधायकों ने चुना था। किन्तु यह समय की मांग थी क्योंकि हमारे पास साधन और समय दोनों का ही अभाव था। फिर भी ज्यादा से ज्यादा प्रतिनिधियों का चुनाव किया गया । 1946 तक रजबाड़ों से 93 और प्रान्तों से 389 सदस्य चुने गये I11दिसम्बर1946 को डा०राजेन्द्र प्रसाद को सविधान सभा का स्थाई अध्यक्ष चुने गये। फरवरी 1947 में बंटवारे के बाद प्रांत के सदस्यों की संख्या 235 और रजवाड़ो की संख्या 89 हो गई।
संविधान के निर्माण में भारत में निवास करने वाले सभी पंथ, धर्म और वर्ग का ध्यान रखा गया। सभी धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं को ध्यान में रख कर उसे संविधान में उचित जगह दी गईI25 फरवरी 1948 को संविधान का प्रारूप तैयार किया गया। इसे मुद्रित कर सभी समाचार पत्र और पत्रिकाओं में प्रकाशित किया गया | इसमें जन भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए लोगो से टिप्पणियां, सुझाव और आलोचनायें आमंत्रित की गयी।इन आमंत्रित टिप्पणी, आलोचनाओं पर विशेष समिति विचार करती है और समस्त निष्कर्ष प्रतिवेदनों के रूप में फिर से प्रकाशित किये जाते थे।
किसी देश के संविधान मुख्य रूप से दो चीजों पर ही आधारित होता है जो है मूल्य और आदर्श I भारतीय संविधान को जन मानस से जोड़ने के लिए भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन, स्वदेशी आन्दोलन, मजदूरों किसानों के आंदोलन, आजाद हिन्द फौज के आंदोलनों, सामाजिक और राजनैतिक मूल्यों की प्रमुखता, विश्व बन्धुत्व की भावना आदि को ही आधार बनाया गया है। इसलिए भारतीय संविधान का मूल है कि हम भारतीय संविधान के द्वारा भारत के लोगों के लिए लोकतंत्र की स्थापना करते है। लोकतंत्र और संविधान की अंतिम सम्प्रभुत्व शक्ति भारत की जनता में निहित है I
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प्रश्न 9.इनमें से किसके पास संप्रभुता है, कारण सहित बताएँ –
संसद, सर्वोच्च न्यायालय, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, भारत के लोग, छत्तीसगढ़ की विधानसभा, मुख्यमंत्री ।
उत्तर- किसी भी राज्य में संप्रभुता उस व्यक्ति, निकाय या संस्था को सौंपी जाती है जिसके पास कानून स्थापित करने या मौजूदा कानून बदलने के लिए अन्य लोगों पर अंतिम अधिकार होता है। राजनीतिक सिद्धांत में संप्रभुता एक वास्तविक शब्द है जो किसी राज्य व्यवस्था पर सर्वोच्च वैध अधिकार को निर्दिष्ट करता है। इसलिए संसद, सर्वोच्च न्यायालय, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, भारत के लोग, छ. ग. की विधान सभा, तथा मुख्यमंत्री सभी सम्प्रभु है I
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प्रश्न 10.इनमें से समाजवाद के निकट क्या है और क्या नहीं –
भारतीय रेल, कल्लू लाल एंड चम्पालाल उत्खनन कंपनी, मनरेगा, सरकारी अस्पताल, ग्लोब इंटरनेशनल स्कूल, रेशम उत्पादक सहकारी समिति, महिला व पुरुष को समान वेतन |
उत्तर- समाजवाद एक आर्थिक – सामाजिक दर्शन है। समाजवादी व्यवस्था में धन – संपत्ति का स्वामित्व और वितरण समाज या किसी ऐसी संस्था जिसका निर्माण लोकतांत्रिक रूप से किया गया हो उसके नियंत्रण के अधीन रहते हैं। आर्थिक, सामाजिक और वैधानिक प्रत्यय के तौर पर समाजवाद निजी सम्पत्ति पर आधारित अधिकारों का विरोध करता है। इसलिए भारतीय रेल, मनरेगा, सरकारी अस्पताल, रेशम उत्पादक सहकारी समिति आदि समाजवाद के निकट है तथा कल्लू लाल एंड चम्पालाल उत्खनन कम्पनी तथा ग्लोब इन्टर नेसल स्कूल, समाजवाद के निकट नहीं है।
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प्रश्न 11.आप इनमें से किसको पंथनिरपेक्ष नहीं मानेंगे –
सरकारी दफ्तर में पूजा पाठ का आयोजन, सती प्रथा व अस्पृश्यता उन्मूलन कानून बनाना, राष्ट्रपति किसी धर्म विशेष का ही हो ऐसा कानून बनाना, शहर में धार्मिक जुलूसों पर पाबंदी लगाना, सरकारी नौकरियों में सभी धर्म के लोगों को समान अवसर देना, सरकारी दफ्तरों में सर्वधर्म प्रार्थना का आयोजन, सभी धर्मों का अध्ययन करना, किसी धर्म विशेष के लोगों को अपना घर किराए पर न देना, यह माना कि मेरा धर्म ही सबसे अच्छा है, अपने धर्म का विधिवत पालन करना, विभिन्न धर्म के लोगों से दोस्ती करना ।
उत्तर- पंथनिरपेक्ष-भारत का राज्य किसी विशेष धर्म या पंथ के अनुसार नहीं चलेगा, न ही उसका झुकाव किसी धर्म या पंथ के प्रति होगा और न ही वह धर्म के आधार पर किसी से भेदभाव करेगा| भारत के लोग विभिन्न धर्म व पंथों में आस्था रखते हैं व कई लोग ऐसे भी होते हैं जो किसी धर्म को नहीं मानतें हैं या नास्तिक होतें हैं| राज्य इन सभी के साथ एक साथ व्यवहार करेगा और सभी को अपना धर्म मानने या ना मानने की स्वतंत्रता रहेगी|राज्य सामान्यतया किसी धर्म के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देगा मगर जहां सार्वजनिक शक्ति व्यवस्था या नैतिकता या स्वास्थ्य प्रभावित होता हैवहां राज्य हस्तक्षेप भी कर सकता है |अतः निम्नलिखित पंथनिरपेक्ष केअंतर्गत नहीं आ सकते-
1. सरकारी दफ्तर में पूजा पाठ का आयोजन |
2. राष्ट्रपति किसी धर्म विशेष का ही हो ऐसा कानून बनाना |
3.शहर में धार्मिक जुलूस ओं पर पाबंदी लगाना |
4. किसी धर्म विशेष को अपना घर किराए पर ना देना |
5. यह मानना कि मेरा धर्म सबसे अच्छा है |
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प्रश्न 12.म्यांमार में एक लंबे समय तक सेना प्रमुख ही राष्ट्रपति बनते थे। क्या वह लोकतांत्रिक था? क्या वह गणराज्य था ?
उत्तर- म्यांमार में लम्बे समय तक सेना प्रमुख ही राष्ट्रपति बनते थे न तो वहाँ लोकतंत्र था न ही गणराज्य था क्योंकि लोकतंत्र में राष्ट्रपति का चुनाव होता है I भारत व पाकिस्तान के राष्ट्रपति चुनाव से बनते है जबकि ब्रिटेन, जापान जैसे अनेक देशों में शासन प्रमुख वंशानुगत राजपरिवार का मुखिया होता है। अतः वहाँ लोकतंत्र और संविधान है मगर गणराज्य नहीं। वे संवैधानिक राजशाही है जबकि राजशाही में राजा का स्थान विशेष होता है I अर्थात म्यांमार न तो लोकतान्त्रिक था और न ही वह गणराज्य था I
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प्रश्न 13.मुन्ना एक आदिवासी लड़का है जो पायलट बनना चाहता है लेकिन उसके क्षेत्र में इसके लिए जरूरी शिक्षा की व्यवस्था नहीं है। उसे दूर किसी महानगर में जाकर इसकी शिक्षा हासिल करनी होगी। मगर मुन्ना के पास इसके लिए आवश्यक धन नहीं है। क्या यह एक न्यायपूर्ण स्थिति है ?
उत्तर- न्याय से तात्पर्य है कि जिसका हक या अधिकार है वह उसे मिले और अगर कोई व्यक्ति या शासन उसका उल्लंघन करता है तो वह दण्डित होना चाहिए । अगर मुन्ना को उसकी गरीबी, राजनीतिक विचार, जाति, धर्म या लिंग के कारण अपने अधिकारों से वंचित रहना पड़ता है तो यह गणराज्य का दायित्व है कि उसके अधिकार उसको दिलवाए और परिस्थितियां निर्मित करे ताकि इन कारणों से कोई अपना अधिकार न खो पाए । न्याय गहरे रूप में समानता और समान अवसर की अवधारणाओं से जुड़ा हुआ है । अतः यहाँ केवल न्यायालय में मिलने वाले कानूनी न्याय की बात नहीं की गई है।वास्तव में न्याय एक दार्शनिक अवधारणा है जिसे परिभाषित करना कठिन है।
मुन्ना पायलट बनना चाहता है । परन्तु यदि वह धन के अभाव में महानगर में शिक्षा ग्रहण करने नहीं जा सकता तो यह एक न्यायपूर्ण स्थिति न होगी। सरकार का कर्तव्य है कि वह मेधावी छात्रों को शिक्षा तक पहुँचने का अधिकार सुनिश्चित करें, जिससे धन के अभाव के कारण कोई मेधावी या सामान्य छात्र भी शिक्षा से वंचित न रह जाए | लोकतांत्रिक सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि धन का अभाव शिक्षा पर भारी न पड़ सके । सरकार निम्न समुदाय आदिवासियों एवं अनुसूचित जाती के बच्चों के लिए विशेष उपाय करती है। ताकि इस वर्ग के गरीब लोग किसी प्रकार से वंचित न हो।मुन्ना धन अभाव के कारण शिक्षा ग्रहण नहीं कर पा रहा है तो यह न्यायसंगत स्थिति नही है ।
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प्रश्न 14.प्रमिला और उसके पति दोनों एक कंप्यूटर कंपनी में बड़े पद पर काम करते हैं। जब उनकी बच्ची हुई तो परिवार वालों ने प्रमिला पर दबाव डाला कि वह अपनी नौकरी छोड़ दे ताकि बच्ची की देखभाल ठीक से हो सके । क्या यह एक न्यायपूर्ण स्थिति है?
उत्तर- प्रमिला के लिए तो यह एक न्यायपूर्ण स्थिति नहीं है हमारा समाज एक पुरुष प्रधान समाज है जहाँ सबके अधिकारों को समानता नहीं दी जाती अर्थात स्त्री- पुरुष दोनों को समान अधिकार नहीं है यदि प्रमिला काम करना चाहती है तो ये उसका जन्मसिद्ध अधिकार होना चाहिए । उसे घरेलू कार्य के लिए नौकरी छोड़ने का दबाव डालना न्यायसंगत नहीं है। बच्चे की देखभाल की जितनी जिम्मेदारी प्रमिला की है उतनी ही उसके पति की भी होनी चाहिए। क्या हमारा समाज पति पर दबाव डाल कर उसे नौकरी छोड़ने पर मजबूर करेगा या नहीं? यदि नहीं तो प्रमिला पर भी इस कार्य हेतु नौकरी छोड़ने का दबाव डालना न्यायसंगत स्थिति नही होगा ।
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प्रश्न 15.हनीफ का विचार है कि लोगों को विदेशी सामान उपयोग नहीं करना चाहिए और केवल स्वदेशी चीजों को खरीदना चाहिए और वह इस विचार को लेखों व भाषणों के माध्यम से लोगों तक पहुँचाता है। लेकिन जब भी वह नौकरी के लिए आवेदन करता है उसे यह कहकर लौटा दिया जाता है कि आपके विचार अतिवादी हैं।क्या यह एक न्यायपूर्ण स्थिति है?
उत्तर- किसी का अधिकार क्या हो, यह किस आधार पर निर्धारित करें इन पर कई मत हो सकते है और नए विचार उभर सकते है। इस कारण समय – समय पर न्याय की अवधारणा पर पुनर्विचार करके नीति बनाना भी गणराज्य से अपेक्षित है। अतः हम कह सकते है कि हनीफ जब अपने विचारों से लोगों को अवगत करता है I हनीफ अपने विचारों को लोगों तक पहुंचाने लिए लेखों व भाषणों का प्रयोग करता है जो कि कानून के दायरे के अंतर्गत ही आता है प्रत्येक व्यक्ति को अपनी विचारधारा को समाज में अंकित करने का अधिकार है। परन्तु हनीफ जब नौकरी के लिए आवेदन करता है तो उसके विचारों को अतिवादी कहकर उसे नौकरी न देना एक न्यायपूर्ण स्थिति नहीं है। क्योंकि हनीफ ने कानून का तो कही भी उल्लंघन नहीं किया है। ये सब उसके व्यक्तिगत विचारधारा के अंतर्गत ही आता है और नौकरी तो उसे उसकी योग्यता के आधार पर मिलनी चाहिए ना की विचारधारा को देखकर ।
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प्रश्न 16.छत्तीसगढ़ की 40 प्रतिशत महिलाएं निरक्षर हैं। इससे उनकी स्वतंत्रता किस तरह प्रभावित होगी?
उत्तर- एक पुरुष को पढ़ाने से एक व्यक्ति शिक्षित होता है जबकि अगर एक स्त्री को शिक्षा दी जाए तो पूरा परिवार शिक्षित होता है। स्त्री ही परिवार की धुरी होती है वह माँ होती है। एक शिक्षित माँ अपने बच्चों में शिक्षा और संस्कार तो देती है। उनके स्वास्थ्य का भी बेहतर ध्यान रखती है । जबकि निरक्षर महिलाओं में कानून की जानकारी का अभाव देखने को मिलता है । वे अपने स्वतंत्रता का पूर्ण उपयोग नहीं कर पाती है उनकी घर के प्रमुख निर्णयों पर सहभागिता भी नही रहती है। वह अपने साथ होने वाले अत्याचारों के खिलाफ भी पूर्ण रूप से खड़ी नहीं हो पाती है । संपत्ति पर अपना दावा अर्थात् अधिकार भी प्रस्तुत नहीं कर सकती है। पुलिस व कानून की सहायता भी लेने में डरती है। वह अपनी जिन्दगी स्वतंत्र हो कर नहीं जी पाती चाहे वह उसका मायका है, ससुराल हो या समाज हो, वे सभी से डरती रहती है और अपनी खुशियाँ भी कुर्बान कर
देती है। अपने अधिकारों से अनभिज्ञ होने के कारण वे शोषण का शिकार हो जाती है। अशिक्षा का दुष्परिणाम उनके जीवन को काल के गाल में समाहित कर देता है।
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प्रश्न 17.लोक रक्षा पार्टी के लोग रात को शहर में एक आम सभा करना चाहते हैं और वे यह भी चाहते हैं कि सारे सड़कों पर लाउडस्पीकर लगाएं शहर के थानेदार ने उन्हें अनुमति नहीं दी क्या या उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है| क्या यह संवैधानिक मूल्य के विरुद्ध है? विचार कीजिए ।
उत्तर- भारत के हर नागरिक को खुद अपने विचार बनाने उनके अनरूप जीने तथा उन्हें खुलकर दूसरों को बताने की स्वतंत्रता है। उन्हें किसी की बात मानने या न मानने, किसी भी धर्म को मानने या न मानने तथा किसी भी तरीके से उपासना करने या न करने का अधिकार होगा । नागरिक कैसे किस तरह अपने विचारों को अभिव्यक्त करें और सोचें, अपने विचारों पर किस तरह अमल करें,इस पर कोई अनुचित पाबंदी नहीं है। इसकी केवल एक शर्त है कि दूसरे नागरिकों की स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन न हो यानी किसी अन्य व्यक्ति को बाध्य करने का प्रयास न करें।अतः जब लोकरक्षा पार्टी के लोग रात को शहर में एक आमसभा करना चाहते हैं और वे यह भी चाहते है कि सारे सड़कों पर लाउडस्पीकर लगाएं तो इससे शहर के तथा उस मोहल्ले के लोगों की स्वतंत्रता का हनन होगा न की लोकरक्षा पार्टी के लोगों की । अर्थात तेज ध्वनि से रात के समय में सोने वाले लोगों तथा पढ़ने वाले बच्चों दोनो की ही स्वतंत्रता का हनन होगा । यह कृत लोकरक्षा पार्टी के अभिव्यक्ति का हनन कदापि नहीं है ।
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प्रश्न 18.मीना गाँव की सबसे अधिक पढ़ी-लिखी महिला है और इस कारण गाँव में उसकी सबसे ऊँची प्रतिष्ठा है।
उत्तर- मीना गाँव की सबसे पढ़ी लिखी महिला है और इस कारण गांव में उसकी सबसे ऊँची प्रतिष्ठा है। यह संवैधानिक मूल्यों के विरुद्ध नहीं है। यह इस बात को दर्शाता है कि शिक्षा तथा ज्ञान का महत्व सभी को आकर्षित करता है । मीना भी शिक्षा ग्रहण करके सभी लोगों में अपनी अलग पहचान बना ली है अतः तभी सब लोग उसका सम्मान करते है। इससे हमारे समाज में शिक्षा का प्रचार प्रसार होगा और लोग मीना को देखकर प्रोत्साहित होंगे। अतः पढ़े लिखे व्यक्ति की प्रतिष्ठा होना संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप है ।
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प्रश्न 19.गाँव वालों ने तय किया कि महेश जी गांव के गौटिया परिवार के हैं और इस कारण वे ही शाला समिति के अध्यक्ष बनेंगे।
उत्तर- न्याय और स्वतंत्रता की तरह समता भी एक दार्शनिक अवधारणा है। हर इंसान को चाहे वह स्त्री हो या पुरुष अमीर हो या गरीब, शारीरिक रूप से पूर्ण हो या सक्षम, बच्चा हो या वृद्ध किसी भी धर्म जाति या क्षेत्र का हो उसे एक व्यक्ति के रूप में समान आदर और सम्मान मिले और
अपनी मर्जी अनुसार जीवन जीने के अवसर मिले। संविधान में हर तरह की समता (खासकर आर्थिक समानता) और अवसर की समानता की बात की गई है।
हाँ यह संवैधानिक मूल्यों के विरुद्ध है क्योंकि किसी भी पद पर नियुक्ति जातीय आधार पर नहीं बल्कि योग्यता के ही आधार पर होना अनिवार्य होता है।अतः गाँव वालों ने जो तय किया वह न्यायसंगत और संविधान दोनों की ही खिलाफत करता है। कोई भी नागरिक भारत के किसी भी सार्वजनिक पद को हासिल कर सकता है एवं सार्वजनिक सुविधाओं का उपयोग भी कर सकताहै।
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प्रश्न 20.सानिया देख नहीं सकती है मगर बहुत प्रयास करके बी. एड. उत्तीर्ण हो गई। लेकिन कोई स्कूल उसे शिक्षिका की नौकरी देने के लिए तैयार नहीं है क्योंकि वह दृष्टि बाधित है ।
उत्तर- संविधान सबको अवसर की समानता दिये जाने की बात करता है इसका तात्पर्य यह है कि समाज में किसी भी अवस्था को प्राप्त करने के लिए सबको न केवल समान अधिकार रहेगा बल्कि उसे प्राप्त करने के लिए समान अवसर भी मिलेगा। परंतु सानिया का न देख पाना संवैधानिक मूल्यों के विरूद्ध नहीं है और यह न्याय संगत भी नहीं होगा। क्योंकि हमारा संविधान सभी को योग्यता के अनुसार पद प्राप्त करने का अधिकार सुनिश्चित करता है किसी भी प्रकार की विकलांगता इसमें बाधक नहीं होनी चाहिए।
अभ्यास :-
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प्रश्न 1. संविधान में मुख्य रूप से किन विषयों को सम्मिलित किया जाता है?
उत्तर- संविधान में मुख्य रूप से दो विषयों को शामिल किया गया –
1. समाज में निर्णय लेने की शक्ति किसके पास हो?
2. सरकार कैसे निर्मित हो तथा उसका स्वरूप कैसा हो?
व्यापक अर्थ में संविधान किसी राष्ट्र के उद्देश्यों व आधारभूत मूल्यों को निरूपित करता है। समाज के लोग मिलकर क्या करना चाहते है और उनके द्वारा बनाए गए राज्य को किन मूल्यों को लेकर चलना है यह सब संविधान में अंकित होता है। उदाहरण के लिए भारत के संविधान की उद्देशिका में कहा गया है कि हमारा लक्ष्य सबके लिए समता, न्याय स्वतंत्रता और भाईचारा सुनिश्चित करना है इसके लिए हमने ऐसे राज्य का गठन किया है जो लोकतांत्रिक हो, धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी हो और किसी प्रकार के निर्णय लेने के लिए किसी बाहरी ताकत पर निर्भर न हो।
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प्रश्न 2. किसी देश के लिए कानून कौन बनाएगा और कैसे, इसे संविधान में दर्ज करना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर- प्रत्येक देश का अपना एक संविधान होता है जो उस देश की शासन व्यवस्था के आधारभूत नियमों और सिद्धांतों का एक संग्रह होता है । संविधान मूलभूत नियमों या प्रावधानों का एक ऐसा समूह है जो राज्य गठन और उसके तहत शासन प्रणाली को निर्धारित करता है। एक लोकतांत्रिक
व्यवस्था में माना जाता है कि समाज के लोग मिलकर अपने हितों के लिए राज्य निर्माण करते है और वे अपने जीवन को संचालित करने के कुछ अधिकारों को राज्य को सौंप देते है ताकि सामूहिक जीवन सुचारू रूप से चल सके । राज्य को गठित करते समय वे उसे कुछ नियमों में बाँधते है ताकि वह लोगों के अधिकारों का हनन न करे और उनके हितों में काम करें। इन्हीं नियमों को हम संविधान कहते है । संविधान के माध्यम से यह तय किया जाता है कि समाज में निर्णय लेने की शक्ति किसके पास हो और सरकार कैसे गठित हो उसका स्वरूप कैसा हो? संविधान का कार्य है सरकार द्वारा नागरिकों पर लागू किए जाने वाले अधिनियमों या कानूनों की सीमा निश्चित करना। ये सीमाएँ ऐसी होती है कि सरकार भी उनका उल्लंघन न करे, जैसे मौलिक अधिकार । संविधान परिवर्तनशील है बदला जा सकता है किन्तु संविधान में परिवर्तन की प्रक्रिया और परिवर्तन की सीमा भी निर्धारित होती है। वह शासन को ऐसी क्षमता प्रदान करता है जिससे वह जनता की विभिन्न आकांक्षाओं को पूर्ण कर सके और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना हेतु उचित परिस्थितियाँ वातावरण आदि का विकास कर सके । ये सभी चीजें संविधान में दर्ज की जाती है ताकि कानून बनाने वाला भी अपनी सीमा के बाहर न जा सके ।
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प्रश्न 3. भारत और नेपाल के संविधान निर्माण के संदर्भ में क्या अंतर और समानता है?
उत्तर- भारत व नेपाल के संविधान निर्माण में अंतर –
1.भारतीय संविधान का निर्माण विदेशी शासन से मुक्त होने के बाद किया गया जिसे संविधान सभा के द्वारा निर्माण किया गया। जबकि नेपाल के संविधान का निर्माण राजशाही के विरुद्ध हुए आंदोलन के परिणाम स्वरूप हुआ था ।
2.भारत के संविधान निर्माण में देश के सभी क्षेत्रों के प्रतिनिधि शामिल थे। जबकि नेपाल में संविधान का निर्माण सात राजनीतिक दलों ने मिलकर किया था जिसमें इन सातों दलों की अपनी सहमति थी ।
3.भारत में संविधान निर्माण से विदेशी शासन से मुक्ति मिली थी । जबकि नेपाल में राजशाही शासन का अंत हुआ था ।
समानता-
1.भारत व नेपाल में दोनो ही संविधान सभाओं का उद्देश्य एक लोकतांत्रिक संविधान का निर्माण करना था ।
2.दोनों ही देशों में संविधान निर्माण में राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि थे।
3.दोनो ही संविधान सभाओं का उद्देश्य एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना करना था।
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प्रश्न 4. संविधान सभा का गठन किस सीमा तक लोकतांत्रिक था?
उत्तर- 1946 में ब्रिटिश सरकार ने लार्ड पेथिक लारेंस की अध्यक्षता में एक समिति यह पता करने के लिए भारत भेजी की स्वतंत्र भारत में शासन व्यवस्था कैसी होगी और नए संविधान निर्माण की प्रक्रिया क्या होगी। एक प्रबल सुझाव यह था कि सभी वयस्कों के मताधिकार द्वारा संविधान सभा का गठन हो लेकिन बहुत से लोगों को लगा कि इसमें समय अधिक लगेगा और संविधान सभा के
गठन को टाला नहीं जा सकता है। समिति ने व्यापक विचार विमर्श करके सुझाया कि 1935 के नियमों के आधार पर चुनी गई प्रांतीय विधान सभाओं का उपयोग निर्वाचक मण्डल के रूप में किया जाए। यानी सीधे नए चुनाव ना करा कर पहले से चुनी गई प्रांतीय सभाओं ने प्रतिनिधि चुनकर संविधान सभा का गठन किया। भारतीय संविधान सभा में कुलसदस्य संख्या 324 थी जिसमें 235 प्रांतो के व 89 रजवाड़ो के प्रतिनिधि शामिल थें । 17 मार्च 1947 को संविधान की मुख्य विशेषताओं के संबंध में प्रश्नावली सभी प्रांतीय विधान सभा, विधानमंडल और केन्द्रीय विधान मंडल के सदस्यों को उनकी राय लेने के लिए भेजी गई । अल्पसंख्यक एवं मौलिक अधिकार परामर्श समिति की प्रश्नावली पारदर्शिता के साथ समाचार पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से जनता तक चर्चा के लिए संचारित होती थी । समाचार पत्रों तथा आम सभाओं में इन प्रश्नों व विभिन्न प्रस्तावों पर चर्चा और विचार-विमर्श होता था और पत्रों के माध्यम से समितियों तक पहुँचाता था । इस तरह संविधान सभा के कार्य जन चर्चा के विषय बनते थे । अतः समय एवं परिस्थितियों को देखते हुए संविधान सभा का गठन पूर्णतः लोकतांत्रिक आधार पर हुआ था ।
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प्रश्न 5. संविधान सभा ने संविधान निर्माण में लोगों की भागीदारी को बढ़ाने के लिए क्या कदम उठाए ?
उत्तर- संविधान सभा ने संविधान निर्माण में लोगों की भागीदारी को बढ़ाने के लिए 17 मार्च 1947 को संविधान की मुख्य विशेषताओं के संबंध में प्रश्नावली सभी प्रांतीय विधान सभा, विधान मंडल और केन्द्रीय विधान मंडल के सदस्यों को उनकी राय लेने के लिए भेजी गई । अल्पसंख्यक एवं मौलिक अधिकार परामर्श समिति की प्रश्नावली पारदर्शिता के साथ समाचार पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से जनता तक चर्चा के लिए संचारित होती थी । समाचार पत्रों तथा आम सभाओं में इन प्रश्नों व विभिन्न प्रस्तावों पर चर्चा और विचार विमर्श होता था और पत्रों के माध्यम से समितियों तक पहुँचता था । इस तरह संविधान सभा के कार्य जन चर्चा के विषय बनते थे। सभी की सहभागिता को महत्व दिया गया तथा व्यापक परिचर्चा के बाद आम सहमति बनाई गई।
अतः इस प्रकार से विभिन्न तरीकों से संविधान निर्माण में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित की गई है।
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प्रश्न 6. संविधान की उद्देशिका का हमारे जीवन में क्या महत्व है ?
उत्तर- संविधान की उद्देशिका का हमारे जीवन में निम्न महत्व है-
1.संविधान की उद्देशिका में जो मूल्य व आदर्श अंकित है उसके आधार पर ही देश का संचालन होता है ।
2.इन सिद्धांतों को देश का हर नागरिक अपने जीवन में निभाता है।
3.उद्देशिका हमारे अंदर यह भाव जाग्रत करती है कि हम पूर्ण रूप से देश के अंदर व बाहर स्वतंत्र है।
4.यह हमारे समाजवादी व धर्मनिरपेक्ष के उद्देश्य को भी स्पष्ट करती है ।
5.यह हमें एहसास कराती है कि हम ऐसे लोकतंत्रात्मक गणराज्य में रहते है जहाँ सभी को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्राप्त होगा ।
6.उद्देशिका में लोगों को विचारों की अभिव्यक्ति, धर्म, उपासना की स्वतंत्रता व प्रतिष्ठा और अवसर की समानता का वचन देती है।
7.उद्देशिका लोगों को स्वतंत्रता व समानता प्रदान करते हुए बंधुत्व की भावना पर भी बल देता है ।
8.उद्देशिका राष्ट्र या राज्य को अखण्ड राज्य बनाने पर लोगों को जागृत करता है, इसके लिए सामूहिकता की भावना पर बल देता है ।
देशी ही सर्वोपरि है व्यक्ति को अपने देश की अखंडता व एकता को बनाए रखने को सर्वोपरि महत्व देने पर बल दिया गया है |
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प्रश्न 7. आपको संविधान के मूल सिद्धांतों में से कौन सा सबसे महत्वपूर्ण लगा? कारण सहित समझाइए ।
उत्तर- संविधान के मूल ढांचे की अवधारणा का आशय यह है कि संविधान की कुछ व्यवस्थाओं की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण हैं, वे संविधान के मूल ढांचे के समान हैं और समस्त संवैधानिक व्यवस्था उन पर आधारित है ।
संविधान के मूल ढांचे की अवधारणा से सहमति रखने वाले सभी व्यक्ति ऐसा मानते हैं कि संविधान के मूल ढांचे में निम्नलिखित बातें अवश्य आनी चाहिए I
1 . संविधान का लोकतांत्रिक स्वरूप |
2 . संविधान का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप |
3 . नागरिकों के मूल अधिकार व स्वतंत्रताए |
4 . लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के व्यस्क मताधिकार पर आधारित स्वतंत्र चुनाव |
5 . न्यायपालिका की स्वतंत्रता |
भारतीय संविधान में आम आदमी को जो भी मौलिक अधिकार दिये गये है वो ही सबसे महत्वपूर्ण है | क्योकिं मौलिक अधिकार देशमें सभी नागरिकों को लोकतांत्रिक अधिकारों की गारंटी समानता के आधार पर देते है | मौलिक अधिकार बिना किसी भेदभाव के समानता की स्थापना करने में सहायक है| यह सभी नागरिकों को जातीय, धार्मिक एवं रोजगार की स्वतंत्रता की गारंटी देते है | मूल अधिकार देश में सही अर्थो में मानवाअधिकारों की स्थापना करते है | इस कारण से ये संविधान के सिद्धांतों मे सबसे महत्वपूर्ण है |