Class 10 SST
Chapter 13
संविधान, शासन व्यवस्था और सामाजिक सरोकार
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प्रश्न 1. अगर हर राजनैतिक निर्णय केंद्र सरकार ही करें तो आम लोगों को किस तरह की परेशानियां होंगी?
उत्तर- जब सत्ता का केन्द्रीकरण होता है तो वह आम लोगों की पहुँच से दूर हो जाता है और उनकी जरूरतों व आकांक्षाओं को प्राथमिकता नहीं मिल पाती है। वास्तव में लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए जरूरी है कि सत्ता का विकेन्द्रीकरण हो और मोहल्ला, ग्राम/ शहर, जनपद जिला और राज्य स्तर पर लोगों द्वारा चुने गए ढाँचे और उनके पास निर्णय लेने के अधिकार है। गाँधीजी के स्वराज की कल्पना में अधिकतम अधिकार ग्राम पंचायतों को दिया जाना था। इस संदर्भ में यदि हर निर्णय केंद्र सरकार करे तो वह सत्ता का केन्द्रीकरण हो जायेगा अर्थात प्रत्येक आवश्यक से आवश्यक निर्णय में विलंब होगा और सरकार जनता की पहुँच से दूर हो जायेगी ।
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प्रश्न 2. यदि सारे राजनैतिक निर्णय पंचायत स्तर पर हो तो उसका क्या प्रभाव होगा- कक्षा में विचार करें।
उत्तर- यदि सारे राजनीतिक निर्णय पंचायत स्तर पर हो तो उसका दुष्परिणाम संपूर्ण देश को महत्वहीन कर देगा। अर्थात राज्य सरकार तथा केन्द्र सरकार के अस्तित्व का महत्व ही समाप्त हो जायेगा राज्य या शासन के पास जो शक्तियां है वे तीन प्रकार की होती है कानून बनाने, उसे लागू करने तथा उसके अनुसार न्याय करने की । किन्तु यदि ये तीनों शक्तियां एक ही संस्था या व्यक्ति में केन्द्रित हो जाएँ तो वह निरंकुश शासक हो सकता है। राजनीतिक निर्णय स्थानीय, प्रांतीय या राष्ट्रीय स्तर जो भी हो उसी के अनुरूप उसके अधिकार उस स्तर की शासन व्यवस्था को मिलना आवश्यक है।लोकतंत्र में सत्ता का विकेंद्रीकरण होना आवश्यक है न कि सत्ता का बंदर बाँट होना।
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प्रश्न 3. हमारी संसद के दो सदनों के नाम क्या है?
उत्तर- हमारी संसद के दो सदनों के नाम है –
1. लोकसभा 2. राज्यसभा
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प्रश्न 4. इनमें से किस सदन के सदस्यों को भारत के सभी वयस्क व्यक्ति वोट देकर चुनतेहैं?
उत्तर- लोकसभा के सदस्य पूरे देश के सभी वयस्क लोगों द्वारा चुने जाते है जबकि राज्यसभा के सदस्य मुख्य रूप से विभिन्न प्रांतों की विधायिका द्वारा चुने जाते है ।
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प्रश्न 5. संसद में कानून किस प्रकार बनाए जाते हैं?
उत्तर- कानून बनाना संसद का प्रमुख काम माना जाता है। इसके लिए पहल अधिकांशतया तथा कार्यपालिका द्वारा की जाती है। सरकार विधायी प्रस्ताव पेश करती है । उस पर चर्चा तथा वाद-विवाद के पश्चात संसद उस पर अनुमोदन की अपनी मुहर लगाती है । अर्थात् लोकसभा और राज्यसभा दोनों की संयुक्त सहमति के बाद जब राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो जाते हैं तभी संसद में कानून बनाये जाते है ।
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प्रश्न 6. विद्यार्थी गण स्वयं करें ?
उत्तर-
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प्रश्न 7. क्या कारण है कि पर्याप्त संख्या में महिलाएं चुनाव लड़कर लोकसभा में नहीं पहुंच पाती है?
उत्तर- संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अपेक्षा से बहुत कम है।इस कारण वर्षों से एक संविधान संशोधन विचाराधीन है जिसके अनुसार संसद में महिलाओं को कम से कम 33% आरक्षण मिलने की बात कही गई है। क्योंकि हमारे समाज में प्राचीन काल से ही यह परंपरा रही है कि महिलाओं को घरेलू कार्यों तक सीमित रखा जाता था और सार्वजनिक जीवन से जुड़े हुए कार्य पुरुषों के हिस्से में आ गए।हमारा देश एक पुरुष प्रधान देश है। जहाँ पुरुषों को महिलाओं से ज्यादा अधिकार प्राप्त है |परन्तु आजादी के बाद से अब तक महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपना लोहा सिद्ध किया है । स्वतंत्रता के बाद दोनों को ही अधिकार बराबरी से दिये गये परन्तु सामाजिक मान्यताओं और परम्पराओं के कारण सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी नहीं बढ़ी। स्वतंत्रता से अब तक लोकसभा में कभी भी महिलाओं की संख्या 10% से अधिक नहीं रही है। स्थानीय निकायों में महिलाओं को 33% आरक्षण दिया गया है, लेकिन राज्य एवं केंद्र के निर्वाचन में महिलाओं को आरक्षण नहीं दिया गया है I इस कारण अभी भी अधिक महिलाएं चुनाव लड़कर लोकसभा में नहीं पहुंच पाती है।
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प्रश्न 8. क्या दो सदन होने से कोई नुकसान या समस्या भी हो सकती हैं ? अपने विचार रखें।
उत्तर- भारतीय संसदीय प्रणाली को मुख्य तौर पर तीन भागों में बांटा गया है। पहला राज्यसभा, दूसरा लोकसभा और तीसरा राष्ट्रपति । लोकसभा को आम जनता का सदन भी कहा जाता है। अतः हम कह सकते है कि दोनों सदन होने से जल्दबाजी या त्रुटिपूर्ण कामों बचाव हो जाता है इसमें नुकसान कुछ नहीं अपितु कार्य सोच समझकर और सही तरीके से हो जाते है।
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प्रश्न 9. भारत के अधिकांश प्रांतों में एक ही सदन है। क्या प्रांतों में दो सदन जरूरी नहीं हैं? यदि हाँ, तो क्यों? राज्यसभा के कामों पर समाचार पत्रों में जो खबरें छपी हैं उन्हें इकट्ठा कर चर्चा करें |
उत्तर- भारतीय गणराज्य में अधिकतर राज्यों में केवल एक ही सदन है। केवल कुछ राज्यों में ही दो सदन है।भारतीय संविधान में राज्यों को यह अधिकार दिया गया है कि यदि वह ( राज्य ) आवश्यक समझे तो अपने राज्य में एक और सदन की व्यवस्था को लागू कर सकते है । यह राज्य पर निर्भर करता है कि वह दूसरे सदन की आवश्यकता की जरूरत समझता है या नही।
राज्यसभा के काम की चर्चा विद्यार्थी गण स्वयं करें |
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प्रश्न 10. किस सभा के सदस्यों के चुनाव के लिए व्यापक प्रचार प्रसार और हर मोहल्ले में मतदान होता है | उत्तर- लोकसभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से मतदाताओं द्वारा किया जाता है, अतः इस सदन के सदस्यों के चुनाव के लिए व्यापक प्रचार- प्रसार और हर मोहल्ले में मतदान होता है।
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प्रश्न 11. पीछे दी गई तालिका के आधार पर इन प्रश्नों के उत्तर दें :-
लोकसभा और राज्यसभा में सदस्य बनने के लिए कम से कम कितनी उम्र हीनी चाहिए?
उत्तर- लोकसभा में सदस्य बनने के लिए कम से कम 25 वर्ष की आयु होनी चाहिए। राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए कम से कम 30 वर्ष की आयु होनी चाहिए | लोकसभा एवं राज्यसभा में अंतर दोनों सदनों के बीच अंतर इसलिए रखा गया है। क्योंकि लोकसभा में तो प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित प्रतिनिधि जनता के बीच में आते है, लेकिन केंद्र में राज्यों को प्रतिनिधित्व देने के लिए राज्यसभा का गठन किया जाता है। अतः राज्यसभा में अनुभवी लोगों को स्थान देने के उद्देश्य से यह अंतर रखा गया है ।
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प्रश्न 12. किस सदन में सदस्यों की संख्या अधिक है | यह अन्तर किस कारण रखा होगा?
उत्तर- लोकसभा में सदस्यों की संख्या सबसे अधिक ( 552 ) है । जबकि राज्यसभा में सदस्यों की संख्या 250 ही है । यह अंतर इसलिए रखा गया है क्योंकि लोकसभा के अंतर्गत पूरे देश में से प्रत्यक्ष रूप से प्रतिनिधि चुने जाते है । अतः लोकसभा सबसे अधिक शक्तिशाली सदन होती है । जबकि राज्यसभा में राज्यों के ही प्रतिनिधि होते है। अतः राज्यसभा में राज्यों को प्रतिनिधित्व दिया गया है। अतः लोकसभा का शक्तिशाली होना स्वाभाविक है ।
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प्रश्न13. कानून बनाने की प्रकिया में संसद कार्यपालिका पर किस प्रकार निर्भर है?इस बात का प्रभाव कानून पर सकारात्मक होगा या नकारात्मक ?
उत्तर- संसद के दोनों सदनों में विधेयक स्वीकृति मिलने के पश्चात अंत में राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होने के बाद कार्यपालिका कानून लागू करता है। अगर मंत्री परिषद के पास संसद की बहुमत है तो वह कानून पारित हो जाती है। इस प्रकार संसद कार्यपालिका पर निर्भर होती है।
इसका प्रभाव पूर्ण रूप से सकारात्मक होता है क्योंकि संसद के दोनों सदनों में किसी कानून पर गहन वाद-विवाद के पश्चात उसे कार्यपालिका लागू करती है । और लोकसभा के सदस्य जनता द्वारा ही चुने जाते है । अतः कानून बनाने में कहीं न कहीं पूरे देश की भागीदारी होती है, इसमें सभी लोगों की मंजूरी होती है।
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प्रश्न 14. लोकतंत्र की रक्षा का लिए इनमें से कौन – सा कार्य आपको सबसे महत्वपूर्ण लगा?
उत्तर- लोकतंत्र की रक्षा के लिए संविधान संशोधन संबंधी कार्य सबसे महत्वपूर्ण है । संसद के पास संविधान में संशोधन करने की शक्ति है। संसद के दोनों सदनों की संवैधानिक संवैधानिक शक्तियां एक समान है | प्रत्येक संवैधानिक संशोधन का संसद के दोनों सदनों के द्वारा एक विशेष बहुमत से पारित होना जरूरी है।
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प्रश्न 15. यदि संसद बजट न पारित करे तो क्या होगा?
उत्तर- यदि संसद में बजट पारित न करे तो सम्पूर्ण देश की अर्थव्यवस्था औंधे मुंह गिर जाएगी । अर्थात देश में वर्षभर के खर्च और आय-व्यय का ब्यौरा बनाना कठिन हो जाएगा ।
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प्रश्न 16 . लोकसभा और राज्यसभा के वर्तमान अध्यक्ष व उपाध्यक्ष कौन हैं?
उत्तर- लोकसभा के वर्तमान अध्यक्ष श्री ओम बिरला है जो कोटा के सांसद भी है।भारत के वर्तमान लोकसभा उपाध्यक्ष का पद रिक्त है।भारत के उपराष्ट्रपति (वर्तमान में जगदीप धनखड़) राज्य सभा के सभापति होते है।राज्यसभा में वर्तमान उपाध्यक्ष के पद पर हरिवंश नारायण सिंह है ।
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प्रश्न 17. छत्तीसगढ़ में लोकसभा की कितनी सीटें हैं? शिक्षक की सहायता से क्षेत्रवार सूची बनाइए ।
उत्तर- छत्तीसगढ़ में लोकसभा की कुल 11 सीटे है । क्षेत्रवार सूची इस प्रकार है-
क्षेत्र लोकसभा सदस्य के नाम
1. कांकेर मोहन मंडावी (BJP)
2. कोरबा ज्योत्सना चरणदास महंत (कांग्रेस)
3. जांजगीर चांपा गुहाराम अजगले(BJP)
4. दुर्ग विजय बघेल (BJP)
5. बस्तर दीपक बैज (कांग्रेस)
6. बिलासपुर अरुण साव (BJP)
7. महासमुंद चुन्नीलाल साहू (BJP)
8. राजनांदगांव संतोष पांडे (BJP)
9. रायगढ़ गोमती साई (BJP)
10. रायपुर सुनील कुमार सोनी (BJP)
11. सरगुजा रेणुका सिंह सरुता (BJP)
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प्रश्न 18. छत्तीसगढ़ में राज्यसभा की कितनी सीटें हैं? शिक्षक की सहायता से पता करें I
उत्तर- छत्तीसगढ़ में राज्य सभी की कुल 5 सीटें है ।
नाम (सदस्यों के)
राजीव शुक्ला कांग्रेस
रंजीत रंजन कांग्रेस
फूलोदेवी नेताम कांग्रेस
केटीएस तुलसी कांग्रेस
सरोज पांडेय BJP
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प्रश्न 19. औपचारिक रूप से सर्वोच्च होने पर भी राष्ट्रपति को व्यवहार में बहुत कम शक्तियां क्यों दी गई होगी ?
उत्तर- भारत के संविधान में औपचारिक रूप से संघ की कार्यपालिका शक्तियां राष्ट्रपति को ही दी गई है |राष्ट्रपति ही तीनों सेनाओं (जल, थल एवं वायु) का प्रधान प्रथम नागरिक एवं संवैधानिक अध्यक्ष होता है । सभी महत्वपूर्ण नियुक्तियां उसी के द्वारा की जाती है। राष्ट्रपति संसद के अधिवेशनों को बुलाता है अंतरराष्ट्रीय संधियां, समझौते, युद्ध और आपातकाल की घोषणा राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। राष्ट्रपति वास्तव में प्रधानमंत्री के नेतृत्व में बनी मंत्रिपरिषद के माध्यम से इन शक्तियों का प्रयोग करता है । संविधान के अनुच्छेद 74 में यह स्पष्ट किया गया है कि राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होगा राष्ट्रपति अपने कृत्यों का प्रयोग करने में इनके सलाह के अनुसार कार्य करेगा | इनका आशय यह है कि सर्वोपरि होते हुए भी राष्ट्रपति से अपेक्षा है कि वह लोगों द्वारा सीधे न चुने जाने के कारण और संसद के प्रति जवाबदेह न होने के कारण अपने अधिकांश अधिकारों का अपने विवेक से प्रयोग नहीं करेगा और वह मंत्रिपरिषद की सलाह से ही करेगा। इस प्रकार सरकार का वास्तविक प्रधान, प्रधानमंत्री होता है ।
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प्रश्न 20. इनमें से कौन सा कथन सही है- कारण सहित चर्चा करें :-
क. हमेशा सबसे बड़े दल का नेता ही प्रधानमंत्री बनता है।
ख. हमेशा जिस व्यक्ति को लोकसभा के आधे-से-अधिक सदस्य समर्थन देंगे वही प्रधानमंत्री बन सकता है।
ग. हमेशा वही व्यक्ति प्रधानमंत्री बनेगा जिसे लोकसभा के सारे दल समर्थन करेंगे।
उत्तर- क. हमेशा सबसे बड़े दल का नेता ही प्रधानमंत्री बनता है। (✓)
ख. हमेशा जिस व्यक्ति को लोकसभा के आधे-से-अधिक सदस्य समर्थन देंगे वही प्रधानमंत्री बन सकता है। (✓)
ग. हमेशा वही व्यक्ति प्रधानमंत्री बनेगा जिसे लोकसभा के सारे दल समर्थन करेंगे। (x)
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प्रश्न 21. न्यायपालिका कई स्तरों में होने से क्या फायदे हो सकते हैं?
उत्तर- न्यायपालिका, संप्रभुता सम्पन्न राज्य की तरफ से कानून का सही अर्थ निकालती है एवं कानून के अनुसार न चलने वालों को दंडित करती है। इस प्रकार न्यायपालिका विवादों को सुलझाने एवं अपराध कम करने का काम करती है जो अप्रत्यक्ष रूप से समाज के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है । न्यायपालिका कई स्तर में होने के निम्न फायदे है-
1.स्थानीय वाद-विवाद अधीनस्थ न्यायालयों में देखा जाता है।यह न्यायालय की प्रथमइकाई होतीहै।
2.जिला न्यायालय जिले में दायर मुकदमों की सुनवाई करता है । तथा गंभीर आपराधिक मामलों पर फैसला करती है। अधीनस्थ अदालतों के फैसले पर की गई अपील की सुनवाई करती है ।
3.उच्च न्यायालय निचली अदालतों के फैसले पर की गई अपील की सुनवाई कर सकता है।
4.उच्च न्यायालय ही मौलिक अधिकारों को बहाल करने के लिए रिट जारी कर सकता है।
5.उच्च न्यायालय ही राज्य के क्षेत्राधिकार में आने वाले मुकदमों का निपटारा कर सकता है ।
6.भारत के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले सभी अदालतों को मानने होते है ।
7.सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश का तबादला कर सकता है।
8.सर्वोच्च न्यायालय किसी आदालत का मुकदमा अपने पास मंगवा सकता है।
9.सर्वोच्च न्यायालय ही किसी उच्च न्यायालय में चल रहे मुकदमे को दूसरे उच्च न्यायालय में भिजवा सकता है।
इस प्रकार हम देख सकते है कि नागरिकों में लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करने में कानून की सर्वोच्चता बनाए रखने में तथा राज्य के क्रियाकलापों को संविधान के मर्यादाओं के अंदर बनाए रखने में संपूर्ण न्यायतंत्र और विशेषकर सर्वोच्च न्यायालय की अति महत्वपूर्ण भूमिका है।
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प्रश्न 22. विधायिका और कार्यपालिका के प्रभाव से न्यायपालिका को स्वतंत्र रखना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर- न्यायपालिका का प्रमुख कार्य नागरिकों की रक्षा करना है, यह देखना कि विधायिका द्वारा कोई कानून संविधान के विरुद्ध तो नहीं बनाया गया है । और कार्यपालिका द्वारा किए जाने वाले कार्य की कानूनी वैधता की जांच करना भी है । अर्थात् न्यायपालिका की प्रमुख भूमिका यह है कि वह कानून के शासन की रक्षा और कानून की सर्वोच्चता सुनिश्चित करें । न्यायपालिका व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करती है, विवादों को कानून के अनुसार हल करती है और यह सुनिश्चित करती है कि लोकतंत्र की जगह किसी एक व्यक्ति या समूह की तानाशाही न ले ले। इसके लिए जरूरी है कि न्यायपालिका किसी भी राजनीतिक दबाव से मुक्त हो।
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प्रश्न 23. न्यायाधीशों की नियुक्ति में मंत्रिपरिषद तथा विधायिका की भूमिका को किस तरह सीमित रखा गया है?
उत्तर- सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सलाह पर राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुरूप उच्चतम व उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को नियुक्त करता है। पिछले कई दशकों से यह परंपरा बनी है कि मुख्य न्यायाधीश की सलाह के अनुरूप ही राष्ट्रपति न्यायाधीशों की नियुक्ति करे । मुख्य न्यायाधीश की राय केवल उसकी व्यक्तिगत राय न हो और वह सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों के विचारों को भी प्रतिबिंबित करें इसके लिए ‘कॉलेजियम’ की व्यवस्था की गई है। इसके अनुसार सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश अन्य चार विशिष्टितम् न्यायाधीशों की सलाह से कुछ नाम प्रस्तावित करेगा और इसी के से राष्ट्रपति नियुक्ति करेगा। इस कारण न्यायाधीश दलगत राजनीति व अन्य दबावों से मुक्त होकर अपना काम कर सकते है ।
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प्रश्न 24. न्यायाधीशों की नियुक्ति में कोई एक व्यक्ति हावी नहीं हो इसके लिए क्या परम्पराएँ बनाई गई है?
उत्तर- राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश की सलाह से ही न्यायाधीशों की नियुक्ति करें, पिछले कई दशकों से यह परंपरा बनी है कि मुख्य न्यायाधीश की सलाह के अनुरूप ही राष्ट्रपति न्यायाधीशों की नियुक्ति करे। मुख्य न्यायाधीश की राय केवल उसकी व्यक्तिगत राय न हो और वह सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों के विचारों को भी प्रतिबिंबित करें इसके लिए ‘कॉलेजियम’ की व्यवस्था की गई है। इसके अनुसार सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश अन्य चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों की सलाह से कुछ नाम प्रस्तावित करेगा और इसी में से राष्ट्रपति नियुक्ति करेगा । वर्तमान में इस व्यवस्था के गुण- दोषों की विवेचना की जा रही है और इसमें सुधार लाने के प्रयास चल रहे हैं।
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प्रश्न 25. नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए हम किन-किन न्यायालयों में जा सकते हैं?
उत्तर- व्यक्ति के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए याचिका सुनकर आदेश जारी करना सर्वोच्च न्यायालय का कार्य है । इस प्रकार हम देख सकते है कि नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करने में कानून की सर्वोच्चता बनाए रखने में तथा राज्य के क्रियाकलापों को संविधान के मर्यादाओं के अंदर बनाए रखने में संपूर्ण न्याय तंत्र और विशेषकर सर्वोच्च -न्यायालय की अंतिम महत्वपूर्ण भूमिका है I
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प्रश्न 26. पोलावरम बांध परियोजना में छत्तीसगढ़, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच पानी के उपयोग को लेकर विवाद पर निर्णय कौन दे सकता है?
उत्तर- चूंकि यह मामला एक से अधिक राज्यों के बीच विवाद का है इसलिए इस विवाद पर निर्णय केवल सर्वोच्च न्यायालय ही दे सकता है I
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प्रश्न 27. शिक्षा से संबंधित कानून को लेकर केन्द्र सरकार और किसी राज्य सरकार के बीच
विवाद है – इसकी सुनवाई किस न्यायालय में होगी?
उत्तर- शिक्षा से संबंधित कानून को लेकर केंद्र सरकार और किसी राज्य सरकार के बीच विवाद है तो इनकी सुनवाई केवल सर्वोच्च न्यायालय ही कर सकता है।
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प्रश्न 28. अगर समाज में आर्थिक असमानता नहीं मिटाई गई तो राष्ट्रीय एकता पर उसका किस तरह का प्रभाव पड़ेगा।
उत्तर- संविधान को संविधान सभा में प्रस्तुत करते हुए डा. अम्बेडकर ने इस संविधान के समक्ष से दायरो की ओर इशारा किया था पहला सामाजिक असमानता दूसरा जातिवाद I अतः हम यह कह सकते है कि यदि सामाजिक असमानता अर्थात गरीबी और अमीरी समाज में इसी तरह से बढ़ती रही तो हमारा आर्थीक और सामाजिक जीवन असमानताओं से भर जायेगा। इसे हमें शीघ्र ही समाप्त करना होगा वरना हमारे लोकतंत्र का ढांचा चरमरा जाएगा और यह हमारे राष्ट्र और समाज के लिए घातक सिद्ध होगा।
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प्रश्न 29. पिछले 60 वर्षों में हमारे देश में सामाजिक असमानता किस हद तक घटी है या बढ़ी है? इसका हमारे लोकतंत्र पर क्या असर होगा?
उत्तर- सामाजिक समानता या असमानता को हम किसी एक या दो मापदण्डों पर परख नहीं सकते हैं भारत एक बहुत विशाल देश है। यहाँ पर हर क्षेत्र की सामाजिक व्यवस्थायें अलग-अलग है। किन्तु हमें अपनी सामाजिक समानता को सुधारने के लिए सतत भगीरथ प्रयास करने होंगे क्योंकि आजादी के बाद सतत इस क्षेत्र में कार्य किये गये किन्तु सामाजिक समानता के क्षेत्र में अभी हम अन्य विकसित देशों की तुलना में बहुत ही कम प्रगति कर सकें हैं। हमारे देश की सरकारी और गैर सरकारी संगठनों को इस क्षेत्र में और कार्य करने की आवश्यकता है| जिससे भारत की आम जनमानस कम से कम स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन और रोजगार जैसी मूलभूत और मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। जिससे हमारा लोकतंत्र और भी मजबूत बन सके।
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प्रश्न 30. आपके क्षेत्र में प्रचलित गोटिया प्रथा के बारे में पता करें। इसे किस तरह समाप्त किया गया? क्या इसके कुछ अंश आज भी मौजूद हैं?
उत्तर- गोटिया प्रथा एक प्रकार से मराठों द्वारा लागू किया गया जमींदारी प्रथा का ही एक स्वरूप था जो कि छत्तीसगढ़ मे प्रभावी थी। इसका भी समापन जमींदारी उन्मूलन कानून के आने पर
हुआ। गोटिया (जमींदारों) से जमीन लेकर भूमिहीन किसानों में वितरित किया गया। किन्तु इसे पूर्ण रूप से समाप्त नहीं किया जा सका है।
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प्रश्न 31. संपत्ति के अधिकार और सरकार द्वारा भूमि अर्जन का मामला फिर से चर्चा में रहा है। इससे संबंधित समाचारों को इकट्ठा करें और कक्षा में उनका सारांश प्रस्तुत कर चर्चा करें। 1950-1980 में जो भूमि अर्जन हो रहा था और आजकल जो भूमि अर्जन हो रहा है इसमें आपको क्या समानताएं व अंतर दिखाई देते हैं?
उत्तर- संविधान के बुनियादी अधिकारों में संपत्ति का अधिकार स्पष्ट रूप से सम्मिलित है अतः किसी की संपत्ति को छीनना व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन है। इन दावों को देखते हुए सन् 1976 में एक महत्वपूर्ण संशोधन (44 संविधान – संशोधन) के माध्यम से मौलिक अधिकारों की सूची से संपत्ति के अधिकार को हटा दिया गया। अतः अब भू अर्जन कानून में सतत सुधार करते हुए इसे प्रभावी और न्यायोचित बनाया गया है। पहले भू-अर्जन पर पीड़ीत पक्ष को केवल जमीन की मालीयत के आधार पर मुआवजा दिया जाता था और मुआवजा देने की कोई समय सीमा निर्धारित नही थी परन्तु नये भू-अर्जन या भूमि अधिग्रहण कानून के आने से ग्रामीण क्षेत्र में बाजार मूल्य से चार गुना ज्यादा और शहरी क्षेत्रों मे बाजार मूल्य से दो गुना ज्यादा मुआवजा देने का प्रावधान किया गया है तथा विशेष परिस्थितियों में विस्थापितो के पुनर्वास आदि की भी सुविधाये राज्यो द्वारा प्रदान कराने का प्रावधान दिया गया है I
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प्रश्न 32. शिक्षा के अधिकार की नीति निदेशक तत्व की जगह मौलिक अधिकारों में सम्मिलित करने से क्या अंतर पड़ता? यह सामाजिक परिवर्तन को किस तरह मदद करता?
उत्तर- संविधान के नीति निदेशक तत्वों में 14 वर्ष के आयु तक सभी बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराना शामिल था। लेकिन स्वतंत्रता के 70 साल होने पर हम बच्चों को निःशुल्क और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध नहीं करा सके। 1993 में एक महत्वपूर्ण फैसले के द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 14 वर्ष की आयु तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा को मौलिक अधिकार माना। इस फैसले को देखते हुए संसद ने 2002 में 86 वें संविधान संशोधन के माध्यम से 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चो को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा को मौलिक अधिकारों की सूची में शामिल किया।
सभी बच्चे यदि साक्षर और पढ़े लिखे होंगे तो वे आज के इस आधुनिक समाज में कंधे से कंधा मिलाकर चल सकेंगे और एक बेहतर समाज की रचना करने में अपना योगदान कर सकते है I
अभ्यास :-
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प्रश्न 1. लोकतंत्र में शक्ति का विकेंद्रीकरण और शक्ति विभाजन का क्या महत्व है ? भारत में शक्ति का विकेंद्रीकरण कितने स्तरों पर किया गया हैं ?
उत्तर- आज विश्व स्तर पर विकेन्द्रीकरण की सोच को विशेष महत्व दिया जा रहा है। प्रशासन एवं अभिशासन में आम जन की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए विकेन्द्रीकरण की व्यवस्था को अपनाना वर्तमान समय की बहुत बड़ी आवश्यकता है I भारत के संदर्भ में विकेन्द्रीकरण की व्यवस्था सम्पूर्ण शासन प्रणाली के समुचित संचालन के लिए बहुत जरूरी है। भारत जैसे घनी आबादी वाले बेड़े देश को जिसकी अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, एक ही केंद्र से शासित करना अत्यंत कठिन है I अतः भारत जैसे विशाल देश में शासन प्रशासन के सफल संचालन के लिए विकेन्द्रीकरण शासन व्यवस्था को अपनाया गया है I वास्तव में लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए जरुरी है कि सत्ता का विकेंद्रीकरण हो और मोहल्ला ग्राम/ शहर, जनपद , जिला और राज्य स्तर पर लोगों द्वारा चुने गए ढांचे और उनके पास निर्णय लेने के अधिकार हों। गाँधी जी के स्वराज की कल्पना में अधिकतम अधिकार ग्राम पंचायतों का दिया जाना था । भारत को प्रांतो का समावेश या संघ माना गया। अतः देश में दो स्तर पर सत्ता का वितरण हुआ, संघीय या केन्द्र स्तर पर चुने गए प्रतिनिधियों का निर्णय का अधिकार दिया गया। 1992 में 73वें संविधान द्वारा पंचायतों के तीसरे स्तर तक सत्ता का विकेन्द्रीकरण किया गया।
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प्रश्न 2. संसद का न्यायिक काम क्या है ? इस काम को उच्चतम न्यायालय को न देकर संसद को क्यों दिया गया होगा?
उत्तर- संसद का न्यायिक कार्य है नये कानून बनाना तथा पुराने कानून में आवश्यकता अनुसार संशोधन करना अर्थात विधि निर्माण करना हैं । यह कार्य उच्चतम न्यायालय को न देकर संसद को इसलिए दिया गया है क्योंकि संसद में जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि नीतिगत मुद्दों तथा कानूनों से संबंधित प्रस्तावों को पारित करते हैं। लोकतंत्र में जनता को ही नीतिगत निर्णय लेने का अधिकार है, इसलिए यह अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को न देकर संसद को दिया गया है। उच्चतम न्यायालय को यह अधिकार इसलिए नहीं दिया गया क्योंकि यह शक्ति पृथक्करण सिद्धांत के विरुद्ध हो जाता, कानून बनाना और न्याय करना दोनों शक्तियां एक ही संस्था को नहीं दी जा सकती हैं ।
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प्रश्न 3. आलोक मानता है कि किसी देश को कारगर सरकार की जरूरत होती है जो जनता की भलाई करें। अतः यदि हम सीधे-सीधे अपना प्रधानमंत्री और मंत्रिगण चुन लें और शासन का काम उन पर छोड़ दें, तो हमें विधायिका की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। क्या आप इससे सहमत हैं? अपने उत्तर का कारण बताएं ।
उत्तर- यह आलोक का अपना व्यक्तिगत विचार है मै इस विचार का खंडन करती हूँ । अर्थात किसी भी देश में शासन और व्यवस्था सिर्फ प्रधानमंत्री या उनका मंत्रीमण्डल ही नहीं संभाल सकता इससे सत्ता का केन्द्रीकरण होगा जो जनता के हित में नहीं हो सकता है। क्योंकि हमारे यहाँ लोकतंत्र है। लोकतंत्र में सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है ।और सरकार की बड़ी से बड़ी इकाई तथा छोटी से छोटी इकाई सभी वर्गों का कार्य विभाजित है ।
अतः केवल प्रधानमंत्री और मंत्री चुन लेने से लोकतंत्र नहीं चलता है, क्योंकि लोकतंत्र में केवल शासन चलाने का लाभ नहीं होता । यह आवश्यक है कि सरकार के कार्यों में पूरे देश की जनता
अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से शामिल हो। एक अच्छे लोकतंत्र में अंतिम शक्ति जनता के हाथ में ही होनी चाहिए, अतः जनता को सरकार एवं प्रतिनिधि चुनने का अधिकार एक निश्चित अंतराल के बाद मिलते रहना चाहिए ।
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प्रश्न 4. द्विसदनीय प्रणाली के गुण-दोषों के संदर्भ में इन तर्कों को पढ़िए और इनसे अपनी सहमति – असहमति के कारण बताइए ।
क. द्विसदनीय प्रणाली से कोई उद्देश्य नहीं सधता ।
ख. राज्यसभा में विशेषज्ञों का मनोनयन होना चाहिए ।
ग. यदि कोई देश संघीय नहीं है तो फिर दूसरे सदन की ज़रूरत नहीं रह जाती।
उत्तर- (क) द्विसदनीय प्रणाली से कोई उद्देश्य नहीं सधता – “मैं इस कथन से पूर्ण रूप से असहमत हूँ”। क्योंकि दोनों सदन मिलकर ही सुचारू रूप से कार्य कर सकते हैं। यदि किसी कारणवश एक सदन में कोई त्रुटि हो जाये तो उसे अगले सदन में सुधारा जा सकता है। अतः इसके अलावा दूसरे सदन में विषय विशेषज्ञों की राय भी मिल जाती है ।
(ख) राज्यसभा में विशेषज्ञों का मनोनयन होना चाहिए– “मैं पूरी तरह से सहमत हूँ”| क्योंकि लोकसभा में राजनीतिक क्षेत्र विशेषज्ञ रहते हैं अतः राज्य सभा में शिक्षा, साहित्य, खेल व कला क्षेत्र के विशेषज्ञों के होने से समाज को इन विशेषज्ञों का लाभ विधायिका को मिलता रहता है ।
(ग) यदि कोई देश संघीय नहीं है तो फिर दूसरे सदन की ज़रूरत नहीं रह जाती- मैं इस कथन से असहमत हूँ क्योंकि यदि देश में संघीय व्यवस्था नहीं है तो वहाँ दूसरे सदन की उपयोगिता समाप्त नहीं होती क्योंकि दूसरे सदन में विशेषज्ञ लोग होते है तथा पहले सदन की गलतियाँ दूसरे सदन में सुधारने की गुंजाइश रहती है।
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प्रश्न 5. लोकसभा कार्यपालिका पर कारगर ढंग से नियंत्रण रखने की नहीं बल्कि जन भावनाओं और जनता की अपेक्षाओं की अभिव्यक्ति का मंच है। क्या आप इससे सहमत हैं? कारण बताएं ।
उत्तर-लोकसभा कार्यपालिका पर कारगर ढंग से नियंत्रण रखने की नहीं बल्कि जन भावनाओं और जनता की अपेक्षाओं की अभिव्यक्ति का मंच है- “मैं इस कथन से असहमत हूँ”,कि लोकसभा केवल जनभावनाओं और लोगों की अपेक्षाओं की अभिव्यक्ति का एक मंच है।इसके निम्न कारणहै-
1. विधायिका के सदस्य अपने विचार व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र है और सदन के अन्दर कही गई किसी भी बात के लिए किसी भी सदस्य के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती है I
2. इस संसदीय विशेषाधिकार का मुख्य उद्देश्य सदनों को लोगों के लिए प्रभावी ढंग से काम करने के साथ-साथ कार्यपालिका को नियंत्रित करने में सक्षम बनाना है I
3. जबकि लोकसभा निर्वाचित प्रतिनिधियों को अपने घटकों की अपेक्षाओं को व्यक्त करने का अवसर प्रदान करती है, इसकी शक्तियाँ कही अधिक व्यापक है I
4. लोकसभा अपने फैसलों के लिए केन्द्रीय मंत्रिमंडल को जवाबदेह ठहराती है इसके पास कानून बनाने, वित्त को नियंत्रित करने और संविधान में संशोधन करने की शक्ति है I
5. मंत्रिपरिषद तब तक अपने पद पर बनी रहती है जब तक उसे लोकसभा का विश्वास प्राप्त है I
6. इसलिए लोकसभा कार्यपालिका के प्रभावी नियंत्रण के रूप में कार्य करती है।
इसका आशय यह है कि लोकसभा कार्यपालिका पर कारगर ढंग से नियंत्रण रखने की नहीं बल्कि जन भावनाओं और जनता की अपेक्षाओं की अभिव्यक्ति का मंच है। क्योंकि लोकसभा में जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि शामिल होते हैं तथा उनके द्वारा जो विषय उठाए जाते हैं वे जनता की भावनाओं के अनुरूप होते है। लोकसभा के सदस्यों का कार्य जनता की शिकायतों को सरकार तक पहुंचाना है ।
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प्रश्न 6. नीचे संसद को ज्यादा कारगर बनाने के कुछ प्रस्ताव लिखे जा रहे हैं। इनमें से प्रत्येक के साथ अपनी सहमति या असहमति का उल्लेख करें। यह भी बताएं कि इन सुझावों को मानने के क्या प्रभाव होंगे?
क. संसद को अपेक्षाकृत ज्यादा समय तक काम करना चाहिए।
ख. संसद के सदस्यों की सदन में मौजूदगी अनिवार्य कर दी जानी चाहिए । ग. अध्यक्ष को यह अधिकार होना चाहिए कि सदन की कार्यवाही में बाधा पैदा करने पर सदस्य को दंडित कर सके।
उत्तर-
(क) संसद को अपेक्षाकृत ज्यादा समय तक काम करना चाहिए- हम इससे पूर्ण सहमत है। जबकि सदन की बैठक 4 घंटे से कम चले तो सदस्यों को उस दिन का भत्ता न दिया जाए । सांझ को बिना काम-काज के भत्ता दिया जाना उचित नहीं है I यह आम-आदमी की जेब पर डाका है I यदि संसद अपेक्षाकृत अधिक समय तक काम करेगी तो देश के विकास कार्य नियत समय पर पूर्ण हो सकेंगे I
(ख)संसद के सदस्यों की सदन में मौजूदगी अनिवार्य कर दी जानी चाहिए – हम इससे पूर्ण सहमत है। अधिकांश सांसद सदन में अनुपस्थित रहते है जिससे सदन में महत्वपूर्ण विषयों पर आवश्यक विचार-विमर्श नहीं हो पाता। इसलिए ऐसा नियम बनाया जाए कि संसद के सदस्य सदन में अनिवार्य रूप से उपस्थित हो ।
(ग)अध्यक्ष को यह अधिकार होना चाहिए कि सदन की कार्यवाही में बाधा पैदा करने पर सदस्य को दंडित कर सके- हम इससे पूर्ण सहमत हैं। ऐसा होने पर सदन में जो सदस्य उद्दंडता का व्यवहार करते हैं उन पर अंकुश लगेगा और सदन की कार्यवाही निर्बाध रूप से चलती रहेगी ।
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प्रश्न 7. अगर मंत्री ही अधिकांश महत्वपूर्ण विधेयक प्रस्तुत करते हैं और बहुसंख्यक दल आमतौर पर सरकारी विधेयक को पारित कर देता है, तो फिर कानून बनाने की प्रक्रिया में संसद की भूमिका क्या है?
उत्तर- संसद कानून बनाने की प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण घटक है भले ही अधिकांश महत्वपूर्ण विधेयक मंत्रियों द्वारा प्रस्तावित किए जाते है। ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रस्तावित कानून के प्रावधानों पर बहस की आवश्यकता है और ये बहस केवल संसद में ही आयोजित की जा सकती है। संसद
सदस्यों की विभिन्न समितियां इन विधेयकों का अध्ययन करती है और अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करती हैं । विपक्ष भी परिवर्तनों का सुक्षाव देकर कानून बनाने में भाग लेता है । और इस प्रकार संसद में विधायी प्रक्रिया का होना आवश्यक है।प्रस्तावित विधेयकों पर राज्यसभा और लोकसभा के बीच मतभेदों को संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक के माध्यम से ही सुलझाया जाता है ।
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प्रश्न 8. भारतीय कार्यपालिका और संसद के बीच का क्या रिश्ता है- इनमें से चुनें :-
क. दोनों एक-दूसरे से बिल्कुल स्वतंत्र हैं।
ख. कार्यपालिका संसद द्वारा निर्वाचित है।
ग. संसद कार्यपालिका के रूप में काम करती है। घ. कार्यपालिका संसद के बहुमत के समर्थन पर निर्भर है।
उत्तर- (घ) कार्यपालिका संसद के बहुमत के समर्थन पर निर्भर है I
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प्रश्न 9. निम्नलिखित संवाद पढ़ें और बताएँ आप किस तर्क से सहमत हैं और क्यों? अमित : संविधान के प्रावधानों को देखने से लगता है कि राष्ट्रपति का काम सिर्फ ठप्पा मारना है।
रमा : राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है। इस कारण उसे प्रधानमंत्री को हटाने का भी अधिकार होना चाहिए ।
राजेश : हमें राष्ट्रपति की ज़रूरत नहीं। चुनाव के बाद, संसद बैठक बुलाकर एक नेता चुन सकती है जो प्रधानमंत्री बने ।
उत्तर- अमित – संविधान के प्रावधानों को देखने से लगता है कि राष्ट्रपति का काम सिर्फ ठप्पा मारना है| हाँ, क्योंकि संसद की स्वीकृति के बाद राष्ट्रपति को विधेयक पर हस्ताक्षर करना ही पड़ता है ।
रमा – राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है। इस कारण उसे प्रधानमंत्री को हटाने का भी अधिकार होना चाहिए| नहीं मैं इससे सहमत नहीं हूँ । क्योंकि प्रधानमंत्री बहुमत दल का नेता होता है तो यह निर्णय बहुमत दल का ही होना चाहिए कि क्या निर्णय लेना है ।
राजेश : हमें राष्ट्रपति की ज़रूरत नहीं। चुनाव के बाद, संसद बैठक बुलाकर एक नेता चुन सकती है जो प्रधानमंत्री बने|नहीं मैं इस कथन से असहमत हूं कि कार्यपालिका के बिना विधायिका का गठन नहीं हो सकता है अतः राष्ट्रपति का होना आवश्यक है|
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प्रश्न 10. दो ऐसी परिस्थितियों के बारे में पता करें जब भारत के राष्ट्रपति ने संसद के किसी विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटाया हो। उनके बारे में पता करें कि राष्ट्रपति ने क्यों लौटाया तथा अंत में क्या हुआ?
उत्तर- भारत के राष्ट्रपति ने संसद के किसी विधेयक को प्रथम बार आपातकाल के समय पुनर्विचार के लिए लौटाया था तथा दूसरी आपातकाल के बाद गठित सरकार के समय की है देश
की शांती व्यवस्था को देखते हुए यह किया गया और आपातकाल की घोषणा करना पड़ा दूसरी परिस्थिति में सरकार को भंग करना पड़ा |
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प्रश्न 11. भारतीय लोकतंत्र में प्रधानमंत्री एक धुरी के रूप में काम करता है। वह मनमानी नहीं करे और तानाशाह न बने इसको किन-किन तरीकों से सुनिश्चित किया गया है ?
उत्तर- भारत के प्रधानमंत्री सरकार के मुखिया है I भारत के प्रधानमंत्री का पद भारत के शासन प्रमुख का पद है। संविधान के अनुसार वह भारत सरकार के मुखिया, भारत के राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार, मंत्रिपरिषद का मुखिया तथा लोकसभा में बहुमत वाले दल का नेता होता है वह भारत सरकार के कार्यपालिका का नेतृत्व करता है Iभारत की राजनीतिक प्रणाली में प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल का वरिष्ठ सदस्य होता है । प्रधानमंत्री मनमानी न करे इस कारण संसद को उस पर नियंत्रण रखने को अधिकार दिया गया है। संसद निम्न तरीकों से प्रधानमंत्री को नियंत्रित करती है-
1. बिल पर बहस – किसी बिल पर जब संसद में बहस होती है तो संसद के सदस्य प्रश्न पूछते हैं, उनके जवाब प्रधानमंत्री को देने होते है । इस प्रकार बहस के बाद ही कोई बिल राज्य तथा लोकसभा में पास होती है।
2. शून्यकाल – यदि कोई संसद सदस्य बिना किसी पूर्व सूचना के या बहुत कम समय में दी गई सूचना के आधार पर कोई मुद्दा उठाना चाहता है तो वह संसद में शून्यकाल में बोलने का विकल्प चुन सकता है| शून्यकाल में उठाए गए मुद्दे सार्वजनिक रूप से महत्वपूर्ण होते हैं| इस इस उपकरण को संसद के सदन के नियमों और प्रक्रियाओं के तहत मान्यता प्राप्त नहीं है| यहां ध्यान देने वाली एक महत्वपूर्ण बात यह है कि मंत्री शून्यकाल में उठाए गए मुद्दों का जवाब देने के लिए उत्तरदाई नहीं हैं| शून्यकाल संसद में प्रतिदिन होता है इसमें तत्कालीन समस्या पर संसद सदस्य प्रश्न पूछते हैं जिनके जवाब में प्रधान जिनके जवाब प्रधानमंत्री को देने पड़ते हैं |
3. काम रोको प्रस्ताव – लोकसभा में विपक्ष यह प्रस्ताव लाता है यह एक अद्वितीय प्रस्ताव है। जिससे सदन की समस्त कार्यवाही रोककर तत्कालीन जन महत्व के किसी एक मुद्दे को उठाया जाता है। प्रस्ताव पारित होने पर सरकार पर निंदा प्रस्ताव के समान प्रभाव छोड़ता है। यह प्रस्ताव के पारित हो जाने पर सरकार को त्यागपत्र देना पड़ सकता है ।
4. अविश्वास प्रस्ताव – संसद के सदस्य अविश्वास प्रस्ताव संसद में रखकर मतदान की माँग कर सकते है । भारत के संविधान में अविश्वास प्रस्ताव का उल्लेख नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 118 के तहत संसद के प्रत्येक सदन को यह शक्ति दी गयी है कि वह अपनी प्रक्रिया और अपने कार्य संचालन के विनिमय के लिए नियम बना सकेगा ।
अतः लोकसभा ने अपने नियम 198 के तहत मंत्रियों के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया के लिए प्रावधान बनाया है। अविश्वास प्रस्ताव केवल लोकसभा की कार्यवाही के साथ ही जुड़ा हुआ है। इसे लोकसभा में विपक्षी दल या विपक्षी दलों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। इस प्रस्ताव के द्वारा मंत्रिपरिषद में अविश्वास प्रकट किया जाता है। और यदि वह प्रस्ताव पारित हो जाता है तो मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र भी देना पड़ सकता है।
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प्रश्न12. प्रशासनिक कार्यपालिका किसके प्रति जवाबदेह है- राजनीतिक कार्यपालिका के प्रति या संसद के प्रति?
उत्तर- राजनीतिक कार्यपालिका संसद के प्रति जवाबदेह होती है और प्रशासनिक कार्यपालिका राजनीतिक कार्यपालिका के प्रति जवाबदेह होती है।
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प्रश्न 13. न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के विभिन्न तरीके कौन-कौन से हैं? निम्नलिखित में जो बेमेल हो उसे छाँटें ।
क. सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से सलाह ली जाती है।
ख. न्यायाधीशों को अमूमन अवकाश प्राप्ति की आयु से पहले नहीं हटाया जाता।
ग. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का तबादला दूसरे उच्च न्यायालय में नहीं किया जा सकता।
घ. न्यायाधीशों की नियुक्ति में संसद की दखल नहीं है।
उत्तर- ग. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का तबादला दूसरे उच्च न्यायालय में नहीं किया जा सकता।
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प्रश्न 14. क्या न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ यह है कि न्यायपालिका किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है? अपना उत्तर अधिकतम 100 शब्दों में लिखें।
उत्तर- न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि न्यायपालिका किसी के प्रति जवाबदेह नही है । न्यायपालिका को संविधान में लिखे कानूनों के अनुसार काम करना पड़ता है। न्यायाधीशों के किसी भी प्रकार के दुर्व्यवहार और अक्षमता के कारण उन्हें पद से हटाया जा सकता है। न्यायाधीशों को अदालत में किए गए अपने फैसले के आधार को लिखना और समझना है । वे एक ही मामले में आज और विपरीत कल एक तरह से शासन नहीं कर सकते। न्यायपालिका विधायिका कार्यपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। प्रणाली को संविधान के प्रति जवाबदेही के साथ स्वतंत्र रूप से कार्य करना होता है । यदि न्यायपालिका कार्यपालिका के अधीन कार्य करेगी तो न्यायधीश नागरिकों के अधिकारों तथा स्वतंत्रताओं की रक्षा नहीं कर सकेंगे ।
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प्रश्न 15. न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए संविधान के विभिन्न प्रावधान कौन-कौन से हैं?
उत्तर- न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए संविधान के विभिन्न प्रावधान निम्न है:
1.न्यायाधीशों की नियुक्ति- सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति अपनी इच्छा से नही करता बल्कि उसे सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श के अनुसार ही कार्य करना पड़ता है ।
2.न्यायाधीशों की योग्यताएँ – संविधान में सर्वोच्च न्यायालय तथा अन्य न्यायालयों के न्यायाधीशों की योग्यताओं का वर्णन किया गया है। राष्ट्रपति उन्हीं व्यक्तियों को न्यायाधीश नियुक्त कर सकता है जिनके पास निश्चित योग्यता है ।
3.लंबा कार्यकाल – न्यायाधीशों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के लिए लंबी सेवा अवधि का होना। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष तक अपने पद पर रह सकते है|
4.पद की सुरक्षा- भारत में न्यायाधीशों के पद की सुरक्षा के लिए समुचित व्यवस्था की गई है। उन्हें पद से हटाने की विधि को अत्यंत कठिन बनाया गया है।
5.अच्छा वेतन- सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की वेतन काफी अच्छा दिया जाता है और उनके कार्यकाल में वेतन में कटौती नहीं की जा सकती ।
6.पेंशन- सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को रिटायर होने के बाद पेंशन दी जाती है ।
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प्रश्न 16. सामाजिक बदलाव लाने के लिए संविधान में भारतीय राज्य को बहुत-सी शक्तियां दी गई हैं।क्या आपको लगता है कि इन शक्तियों का उचित उपयोग किया गया है?क्या यह वंचित और गरीब तबकों हित में किया गया है या प्रभावशाली तबकों के पक्षमें किया गयाहै?
उत्तर – संविधान में दी गई शक्तियों का राज्य ने उचित उपयोग करते हुए वंचित एवं गरीब सबके हित में अनेक कानून बनाए है। यह निम्न तथ्यों से स्पष्ट है-
1. सर्वप्रथम अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई। इसे संसद में उनकी आबादी के अनुपात में स्थान आरक्षित किये गये, शासकीय सेवाओं में जनजातियों को आरक्षण प्रदान किया गया।
2. पिछड़ा वर्ग को शासकीय सेवाओं में 27%आरक्षण प्रदान किया गया।
3. जमींदारी प्रथा को समाप्त कर गरीबों को कृषि भूमि दी गई ।
4. महिलाओं को स्थानीय निकायों में 33% आरक्षण प्रदान किया गया।
5. 2002 में 86वें संविधान में संशोधन के द्वारा 6 से 14 वर्ष की आयु तक सभी बच्चों को निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाया गया ।