Class 10 SST
Chapter 8
दो विश्व युद्धों के बीच रूसी क्रांति और महामंदी
Russian Revolution and the Great Depression between the two world wars
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प्रश्न 01. युद्ध का पुराने साम्राज्यों पर क्या प्रभाव पड़ा होगा? क्या उनमें लोकतांत्रिक क्रांतियाँ सफल हुई?
उत्तर- जैसे – जैसे प्रथम विश्व युद्ध समाप्त होने लगी, वैसे-वैसे पूरे यूरोप में एक क्रांतिकारी लहर उठी जिसने पुराने राजघरानों और तानाशाही राज व्यवस्था को उखाड़ फेका। इसकी शुरुआत मार्च 1917 में रूस की क्रांति से हुई जब वहाँ के सम्राट जार निकोलस को अपनी गद्दी त्यागनी पड़ती । धीरे – धीरे यह लहर जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी, बुल्गारिया तुर्की आदि के राजघरानों को धराशायी कर गई ।
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प्रश्न 02. लोकतंत्र में सार्वभौमिक मताधिकार का क्या महत्व है?
उत्तर- लोकतंत्र में सार्वभौमिक मताधिकार के माध्यम से नागरिकों को समान अवसर प्रदान करना, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, बीमारों और वृद्धों की देखभाल आदि राज्य के कार्यों में समाहित हो जाता है।
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प्रश्न 03. भारत में राजा-महाराजाओं का शासन कब और कैसे समाप्त हुआ?
उत्तर- भारत में 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के बाद स्वतंत्र भारत की सरकार ने भारत की लगभग 600 रियासतों के राजाओं से अनुरोध किया कि वे भारतीय संघ में शामिल हो जाए, सरकार के प्रयासों से 1947-48 में देश की सभी रियासतों के राजाओं ने इस पर अपनी सहमति दी । इस तरह भारत में राजा महाराजाओं का शासन समाप्त हो गया ।
Page no.101 प्रश्न 04. गुलामों और अर्द्ध दासों की दशा में क्या समानता और अंतर थे? कक्षा में चर्चा करें।
उत्तर- युद्ध में विजयी पक्ष हारे हुए पक्ष के सैनिकों को गुलाम बनाकर रखते थे । गुलामों का पूरा जीवन उनके मालिकों की दया पर निर्भर करता था अर्द्ध दास प्रथा रूस में थी जिसमें किसानों को जमीन के मालिक अर्धदास बनाकर रखते थे। वे जमीन से बंधे थे और भू- स्वामी की आज्ञा के बिना दूसरे काम धंधे नहीं कर सकते थे या गांव छोड़कर नहीं जा सकते था। दोनों में अंतर यह था कि गुलामों को बिक्री भी की जाती थी । अर्धदास भू- स्वामी के साथ हस्तांतरित हो जाते थे ।
Page no.101 प्रश्न 05. सन् 1861 में अर्द्ध दासता समाप्त करने पर वास्तव में किसे लाभ पहुंचा होगा ?
उत्तर- 1861 ई. अर्द्ध दासता समाप्त करने पर भूस्वामी को ही लाभ पहुँचा, किसान कानूनी रूप से आजाद तो हुए मगर आर्थिक रूप से और बुरे हालातों में फंस गए । अर्द्ध दासता की समाप्ति से किसानों को तो मुक्ति मिली मगर जमीन भू- स्वामी के पास ही थी और किसानों को यह जमीन ऊँचे किराए पर मिलती थी । भूस्वामी कुछ जमीन किसानों को दी मगर उसके लिए किसानों को बहुत बड़ी रकम चुकानी पड़ी । शासन की ओर से यह रकम भूस्वामियों को चुकाई गई और किसानों को इसे किश्तों में पटाना था। जब तक वे इसे पटा नहीं देते उन्हें गांव छोड़कर जाने की अनुमति नहीं थी । सन् 1917 तक कई पीढ़ियों बीतने पर भी किसान ऋण चुका रहे थे कुल मिलाकर 1861 के सुधारों से भू-स्वामी लाभान्वित हुए।
Page no.101 प्रश्न 06.जर्मनी के औद्योगीकरण और रूस के औद्योगीकरण में क्या समानताएं व अंतर थे? उत्तर- 1. दोनो ही देशों में औद्योगीकरण के परिणाम स्वरूप बड़े उद्योगों की स्थापना हुई ।
2. बढ़ते औधोगीकरण के साथ- साथ दोनों ही देशों में शहरीकरण भी हुआ ।
3. दोनों ही देशों में औद्योगीकरण के प्रकिया राज्य नियंत्रण है ।
4. दोनों देशों के औद्योगीकरण से आधुनिक हथियार व रेल मार्ग का निर्माण हुआ ।
असमानताएं- 1. जर्मनी के मध्यम वर्ग और धनी व्यापारियों आदि ने उद्योग लगाए जब की रूस में विदेशी निवेशकों को बड़े कारखाने लगाने के लिए आमंत्रित किया गया ।
2. औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप जर्मनी में एक शक्तिशाली पूंजीपति वर्ग का विकास हुआ जबकि रूस में ऐसा नहीं हुआ।
3. जर्मनी में औद्योगीकरण के साथ ही मजदूर संगठनों को समाप्त किया गया जबकि रूस में औद्योगीकरण के बाद ही मजदूर संगठन बने ।
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प्रश्न 07. अगर किसी देश का मध्यम वर्ग कमज़ोर रहता तो वहाँ की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता? कक्षा में चर्चा करें।
उत्तर- अगर किसी देश का मध्यम वर्ग कमजोर होता है तो तानाशाही बढ़ती है मध्यम वर्ग के शासन के कार्यों में भाग न ले सकने से शासन निरंकुश हो जाते है ।
Page no.101 प्रश्न 08. किस तरह के कारखानों में मज़दूरों के संगठन अधिक प्रभावशाली होंगे छोटे कारखानों में या बड़े कारखानों में? कारण सहित चर्चा करें।
उत्तर- मजदूर के संगठन बड़े कारखानों में अधिक प्रभावशाली होंगे क्योंकि बड़े कारखाने में बड़ी संख्या में मजदूर होते है जिससे हजारों मजदूर एक साथ काम करते है । इस कारण मजदूरों में आपस में संगठन बनाने और अपनी मांगों के लिए एक साथ लड़ने की क्षमता बनी रहती है । छोटे कारखाने में मजदूर संगठन अधिक प्रभावशाली नहीं होंगे, क्योंकि कम संख्या में मजदूर है । और विरोध करने पर उन्हें हटाकर नए मजदूरों की व्यवस्था आसानी से की जा सकती है।
Page no.101 प्रश्न 09. गाँव और किसानों से संबंध होने से मज़दूरों पर क्या प्रभाव पड़ा होगा? क्या आप इसके उदाहरण अपने आसपास देख सकते हैं?
उत्तर- गांव और किसानों के संबंध होने से मजदूर ग्रामीण लोगों से जुड़े रहते है इससे मजदूरों को ग्रामीण लोगों की सहायता और समर्थन मिलता रहता है तथा मजदूर संगठन को मजबूती मिलती है। ज्यादातर मजदूर गांव के किसान परिवारों से होते है इस कारण गाँव की समस्याओं से गहरे रूप से जुड़े हुए है। इस प्रकार के उदाहरण हमारे आस- पास भी मौजूद है। गाँव के कई परिवारों के लाग शहरी उद्योग में काम करते है । जो एक ग्रामीण एवं किसान परिवार से होता है ।
Page no.102 प्रश्न 10. 1905 के डूमा को क्या आप वास्तविक लोकतांत्रिक संसद मानेंगे? कारण सहित
चर्चा करें।
उत्तर- सन् 1905 की डूमा को वास्तविक लोकतांत्रिक संसद नहीं कहा जा सकता ।
कारण- 1. क्योंकि चुनाव एक जटिल अप्रत्यक्ष तरीके से होता था ।
2. डूमा में अधिकतम संपत्ति वाले ही पहुंचे ।
3. डूमा के प्रस्ताव जार अमान्य कर सकता था I
3. डूमा का अधिवेशन भी जार अपनी सुविधानुसार बुलाता था । उपरोक्त कारणों से डूमा को लोकतंत्र का प्रतिनिधि नहीं मान सकते फिर लोकतांत्रिक संसद कैसे मान सकते है ।
Page no.103 प्रश्न 11. चित्र 5 और 6 को ध्यान से देखें और बताएं कि क्या इन बैठकों में मजदूरों गंभीरता से भाग ले रहे हैं या उदासीन दिख रहे हैं? इसका वहाँ की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता ?
उत्तर- इन दोनों ही चित्रों में मजदूर गंभीरता और सक्रियता से भाग लेते दिख रहे है इनकी सक्रियता का ही प्रभाव था कि रूसी राजनीति में इतना परिवर्तन हुआ । मजदूर कारखानों का संचालन अपने हाथ में ले लिया। गांव और किसानों के संगठनों ने लूटपाट मचा कर जारशाही की सत्ता को समाप्त कर दिया । पुराने शासन का अंत हो गया और लोगों ने अपने- अपने तरीके से सत्ता अपने हाथ में ले ली ।
Page no.103 प्रश्न 12. क्या आप इन दो चित्रों में किसी महिला को पहचान पा रहे हैं? अगर इनमें अधिक महिलाएं होती तो घटनाक्रम में क्या अंतर आता ?
उत्तर- इन दोनों चित्रों में महिलाओं की संख्या बहुत कम नजर आ रही है अगर इनमें अधिक महिलाएँ होती तो इस आंदोलन में संपूर्ण समाज की भागीदारी होती और राजनीति में भागीदारी तथा महिला -अधिकारों की ओर भी कदम बढ़ाए जाते जो काफी समय बाद हुआ ।
Page no.103 प्रश्न 13. सोवियत और संसद में आप क्या अन्तर कर सकते हैं?
उत्तर- सोवियत – सोवियत साम्यवाद से जुड़ा हुआ शब्द है सोवियत किसानों और मजदूरों की सभाएं होती थी। जो अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही थी । उन्हें सोवियत के माध्यम से रूस में साम्यवादी क्रांति संभव हुई ।
संसद – यह एक लोकतांत्रिक संस्था है जिसमें जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि शामिल होते है । यदि संसद कोई गलत निर्णय लेती है तो जनता इसका विरोध करती है।
Page no.105 प्रश्न 14. रूसी क्रांति तीन प्रमुख मांगों को लेकर शुरू हुई थी। क्या आपको लगता है कि सन् 1918 तक ये पूरी हो पाईं? अगर हाँ, तो किस हद तक ?
उत्तर- रूसी क्रांति का उद्देश्य प्रमुख तीन मांगों को लेकर शुरू हुई थी। रूस को युद्ध से अलग किया जाये उद्योग एवं बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाए तथा भूमि किसानों में बाँट दी जाये अक्टूबर 1917 को बोल्शेविक पार्टी के नेतृत्व में पेट्रोग्राड सोवियत ने अस्थाई सरकार को हटाकर क्रांतिकारी सरकार का गठन किया अगले दिन पूरे रूस के सोवियत की सभा में लेनिन ने जर्मनी से समझौता करके रूस का विश्व युद्ध से अलग किया। इस प्रकार पहली दो मांगे लेनिन ने 1918 तक पूरी कर दी थी भूमि संबंधी सुधार लागू किये गए लेकिन वे 1918 तक पूर्ण नहीं हो सके उसके लिए काफी समय लगा ।
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प्रश्न 15. ब्रिटेन में औद्योगीकरण के लिए धन कहाँ से मिला था? क्या औद्योगीकरण के लिए अन्य किसी स्रोत से पूंजी मिल सकती थी?
उत्तर- ब्रिटेन एक साम्राज्यवादी देश था तथा उसके उपनिवेश पूरे विश्व में फैले हुए थे इन सभी उपनिवेश में व्यापार के साथ साथ ब्रिटेन को करो से भी बहुत बड़ी आय प्राप्त होती थी । विकसित व्यापार एवं उपनिवेशों के कारण ब्रिटेन के पूंजीपतियों के पास विशाल पूंजी थी और लंदन इस पूंजी का केन्द्र था।
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प्रश्न 16. कृषि के विकास के लिए क्या बड़े जोतों की आवश्यकता है? अगर छोटे जोत हों तो उनमें मशीनीकरण में क्या समस्याएं आती?
उत्तर- कृषि के विकास के लिए बड़े जोतों की आवश्यकता है, इसके तहत किसानों से कहा गया कि अपने – अपने खेतों को मिलाकर विशाल सामूहिक फार्म बनाए ताकि बड़े पैमाने से खेती की जा सके और खेतों में मशीनों व अन्य आधुनिक तरीकों का उपयोग किया जा सके। छोटे जोतों में मशीनीकरण संभव नहीं होता जिसमें कृषि का विकास नहीं हो पाता ।
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प्रश्न 17. रूस के बड़े किसानों ने सामूहिक फार्म का विरोध क्यों किया होगा ?
उत्तर- रूस के बड़े किसानों ने सामूहिक फार्म का विरोध किया क्योंकि यह सरकारी घोषणा थी इससे निजी खेती समाप्त हो जाती और सन् 1936 तक वही हुआ कृषि भूमि सरकारी हो गई ।
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प्रश्न 18. क्या सामूहीकरण किसानों की सहमति से धीरे-धीरे किया जा सकता था ?
उत्तर- सरकार ने समूहीकरण हेतु बड़े किसान पर दबाव डाला तथा उन्हें जमीन छोड़ने पर मजबूर कर दिया। यह कार्य धीरे धीरे किसानों की सहमति से किया जा सकता था। सरकार पहले प्रायोगिक तौर पर कुछ क्षेत्रों में बड़े खेत तैयार करती जहाँ आधुनिक पद्धति से कृषि की जाती और बड़े किसानों को इसके लाभ से अवगत कराया जाता ।
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प्रश्न 19. अगर आपके अपने गाँव या शहर के गरीबों के हितों की व्यवस्था करनी है तो क्या-क्या करना होगा?
उत्तर- अपने गाँव या शहर के गरीबों के हितों की व्यवस्था करने के लिए निम्नलिखित कार्य करने होंगे –
1. शिक्षण संस्थाओं की स्थापना करनी होगी जहाँ निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था होगी जिससे गरीब परिवार के बच्चे शिक्षा ग्रहण कर सके ।
2. गरीब वर्ग के लोगों को उनकी मूल आवश्यकता को जानना होगा ।
3. गाँव के आस- पास पैदा होने वाली चीजों से जुड़े हुए छोटे- मोटे उद्योग गाँव में लगाने होंगे जिससे गरीबो को उनके लाभ मिल सके ।
4. हित लाभ प्रत्येक को मिले इसका ध्यान रखना होगा ।
5. सभी शासकीय योजनाओं का उचित लाभ गरीबों के लिए सुनिश्चित कराना ।
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प्रश्न 20. आपने लोकतंत्र में दलों की भूमिका के बारे में पढ़ा है। क्या आपको लगता है बहुदलीय प्रणाली लोकतंत्र के लिए ज़रूरी है? कारण सहित चर्चा करें।
उत्तर- बहुदलीय प्रणाली लोकतंत्र के लिए जरूरी है ।
1. लोकतंत्र शासन व्यवस्था में यह अनिवार्य है कि मतदाता के समक्ष विकल्प उपलब्ध हो। यदि एक दलीय व्यवस्था होगी तो मतदाता के समक्ष विकल्प नहीं होगा अतः ऐसी व्यवस्था को हम लोकतंत्र नहीं कह सकते ।
2. बहुदलीय प्रणाली में राजनीतिक दलों को एक दूसरे की आलोचना करने का अधिकार होता है । इससे विरोधी दल सत्ताधारी दलों पर अंकुश लगाते है ।
3. बहुदलीय प्रणाली की व्यवस्था में सत्ताधारी दल को सदैव सजग रहना पड़ता है ।
4. बहुदलीय प्रणाली में सभी नागरिकों को राजनीतिक क्षेत्र में आगे बढ़ने के समान अवसर प्राप्त होते है । अतः लोकतंत्र के लिए बहुदलीय प्रणाली सबसे अच्छी व्यवस्था है।
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प्रश्न 21. क्या स्वतंत्र अभिव्यक्ति और अपने विचार रखने का अधिकार न हो तो किसी भी लोकतंत्र पर उसका क्या असर होगा?
उत्तर- स्वतंत्र अभिव्यक्ति या अपने विचार का अधिकार न हो तो लोकतंत्र, लोकतंत्र नहीं रह जायेगा ।
इसके स्थान पर तानाशाही का जन्म हो। ऐसे लोकतंत्र में जो प्रभाव होंगे वे इस प्रकार है-
1. जनता प्रशासन से खुश नहीं होगी ।
2. जनहित या समाज के कार्यों में कमी होगी ।
3. अभिव्यक्ति के अभाव में जनता व शासन के बीच दूरी आयेगी ।
4. समाचार पत्र भी प्रतिबंधित हो जाएगी। इससे लोकतंत्र की सफलता खतरे में पड़ जाएगी|
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प्रश्न 22. क्या शासन की नीतियों की आलोचना करने वालों को गिरफ्तार करना या मार डालना जरूरी या उचित हो सकता है?
उत्तर- शासन की नीतियों की आलोचना करने वालों को गिरफ्तार करना या मार डालना उचित नहीं है । उनकी आलोचनाओं का अधिकार विपक्ष तथा जनता का होता है। इससे शासन अपने कार्यों या नीतियों में सुधार करती है व जनमत से कार्य करती है।
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प्रश्न 23.किसी देश में आम जनता की माल खरीदने की क्षमता किस बात से निर्धारित होतीहै?
उत्तर- किसी भी देश में आम जनता का माल खरीदने की क्षमता उनके जीवन स्तर से निर्धारित होती है अगर लोगों की आय निर्धारित होती है, लोग रोजगार में लगे है, तथा उनकी आय पर्याप्त है तो क्रय क्षमता अधिक होगी और वे बाजार में माल खरीदते है। लेकिन यदि लोगो की आय नियमित नहीं होगी या आय कम होगी तो लोग बाजार से माल खरीदना बंद कर देते है । अतः आम जनता माल खरीदने की क्षमता उनकी आय पर निर्भर करता है ।
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प्रश्न 24. मज़दूरों के वेतन बढ़ने से अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव होगा? फिर भी कारखानों के मालिक उन्हें कम वेतन क्यों देना चाहते होंगे?
उत्तर- मजदूरों के वेतन बढ़ने से बाजार में तेजी आएगी, मजदूरों की क्रय क्षमता बढ़ेगी जिससे बाजार बढ़ने से उत्पादन बढ़ेगा वेतन बढ़ने से बाजार में तेजी आएगी और उत्पादन भी बढ़ेगा। फिर भी कारखाने के मालिक मजदूरों को कम वेतन इसलिए देना चाहते है क्योंकि स्वयं अधिक मुनाफा कमाना चाहते है । कारखानों के मालिक यदि मजदूरों को वेतन कम देंगे तो उत्पादन लागत घट जायेगी जिससे कारखाने को अधिक लाभ होगा।
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प्रश्न 25. मंदी का किसानों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर- मंदी के दौर में बेरोजगारी के कारण कृषि उपज की मांग और कीमत गिरने लगी। किसानों को लागत से भी कम कीमत पर अपनी अनाज बेचनी पड़ी और किसानों को आर्थिक हानि हुई जिससे किसान बर्बाद हो गये। बाजार में कीमत गिरने के कारण बहुत से किसान इस उम्मीद से अधिक उत्पादन किया कि वे अधिक अनाज बेचकर घाटे की भरपाई करेंगे लेकिन अनाज खरीदने वाला कोई नहीं था अतः किसान बर्बाद हो गया ।
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प्रश्न 26. अमेरिका में आया संकट पूरे विश्व को कैसे प्रभावित किया ?
उत्तर- उस समय अमेरिका विश्व का सबसे बड़ा व्यापारिक देश था । वह दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश था और ब्रिटेन के बाद सबसे बड़ा आयातक भी था वह युद्ध से उभर रहे यूरोप का सबसे बड़ा कर्जदाता और निवेशक था । फलस्वरूप पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था का ताना बाना अमेरिका पर निर्भर था। अमेरिका के शेयर बाजार में भारी गिरावट के कारण अमेरिका ने जर्मनी ब्रिटेन आदि देशों को उधार देना बंद कर दिया। और दूसरे देशों से आयात बन्द कर दिया जिसके कारण अमेरिका का यह संकट पूरे विश्व में फैल गई ।
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प्रश्न 27. इस भीषण मंदी का प्रभाव जर्मनी पर इतना अधिक क्यों पड़ा? क्या आप कोई कारण सोच सकते हैं?
उत्तर- जर्मनी ने अपना औद्योगीकरण बड़ी तेजी से किया था लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी को भारी नुकसान हुआ था। क्योंकि प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी ने अमेरिका से बड़ी मात्रा में कर्ज लेकर अपना औद्योगीकरण जारी रखा वह अपने उत्पादन का निर्यात अमेरिका को करता था लेकिन अब अमेरिका ने जर्मनी से आयात बंद कर दिया तथा उधार देना भी बंद कर दिया । प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी को पहले ही नुकसान हुआ था जिसके कारण जर्मनी बहुत अधिक प्रभावित हुआ ।
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प्रश्न 28. आर्थिक विकास और लाभ कमाने के लिए विश्व बाजार में जुड़कर अन्य देशों से व्यापार करना आवश्यक है। लेकिन ऐसा करने पर वह देश दूसरे देशों के बाजार के उतार-चढ़ाव से बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। क्या विकास का कोई और रास्ता हो सकता है?
उत्तर- आर्थिक विकास और लाभ कमाने के लिए आर्थिक आत्मनिर्भर होनी चाहिए। समाजवादी सिद्धांतो के अनुसार सरकार की केन्द्रीय योजना के अनुरूप आर्थिक विकास किया जा सकता है। जिसमें बाजार के उतार- चढ़ाव का कोई दूरगामी असर नहीं पड़ता ।
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प्रश्न 29. सरकारी खर्च से बाज़ार में सामानों के लिए माँग किस तरह बढ़ सकती थी?
उत्तर- सरकारी खर्च से बाजार में मांग बढ़ने के निम्नलिखित कारण हो सकते है –
1. उचित मूल्य पर सामान की बिक्री।
2. मजदूरों को उचित व समय पर मजदूरी दिया जाना चाहिए ।
3. सरकारी खर्च के कारण उद्योगपतियों के चंगुल से मुक्ति होना ।
4. सभी वर्गों को समान लाभ प्राप्त होना चाहिए ।
5. शोषण एवं मूल्य वृद्धि के लिए सरकार को नीति एवं कानून बनाना चाहिए।
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प्रश्न 30. अपने आसपास क्या आपने इस तरह की कोई लोक कल्याणकारी योजना देखी है? अगर हाँ, तो कक्षा में उसके बारे में बताएँ ।
उत्तर- मंदी के दौर में राज्य को लोक कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च करना चाहिए और सबके लिए रोजगार उपलब्ध कराना चाहिए। जिससे राज्य सभी नागरिकों को एक अच्छे जीवन का आश्वासन दे। इससे लोगों की बाजार में चीजें खरीदने की क्षमता बढ़ेगी और मांग मजबूत होगी इस प्रकार राज्य द्वारा उत्पन्न मांग से आर्थिक स्थिति सुधारने के अवसर बढ़ेंगे। सरकारी खर्च से ऐसे कार्य संपन्न किये जाते है। जिससे गरीब लोगों की आय बढ़ती है जिससे सामान की मांग बढ़ती है
उदाहरण के लिए भारत सरकार रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत ग्रामीण क्षेत्र में कम से कम 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराती है।
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प्रश्न 31. कई अर्थशास्त्री यह मानते हैं कि सरकारी मदद के कारण लोग सरकार पर निर्भर हो जाएँगे और स्वयं प्रयास नहीं करेंगे, अतः सरकार को लोक कल्याण के कामों में नहीं पड़ना चाहिए। क्या आपको यह ठीक लगता है?
उत्तर- नहीं मै इस बात से सहमत नहीं हूँ कि सरकार को लोक कल्याण के कामों में नहीं पड़ना चाहिए। इसके विपरीत में यह मान्यता है कि सरकार को लोक कल्याण के लिए ऐसे कार्य करना चाहिए जिससे समाज में गरीब व्यक्ति या सामान्य व्यक्ति भी निजी खर्च से प्राप्त नहीं कर सकते I जैसे स्कूल व कॉलेज अस्पताल नहीं खोलेगी तो क्या सभी लोग शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधा प्राप्त कर पाएंगे। सड़के अस्पताल शिक्षा आदि ऐसी मूलभूत सुविधाएँ है जो सरकारी मदद के कारण ही आम लोगों को मिल रही है अतः सरकार को लोक कल्याणकारी कार्य अवश्य करना चाहिए ।
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प्रश्न 32. क्या आपको लगता है युद्ध करना एक आर्थिक जरूरत थी?
उत्तर- नहीं युद्ध करना आर्थिक जरूरत नहीं, बल्कि आर्थिक अपव्यय और आर्थिक बोझ को बढ़ाने वाला है जो देश युद्ध करता है उसे अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा है। उसे अपने संसाधन एवं बजट का बहुत बड़ा हिस्सा युद्ध में खर्च करना पड़ता है । यदि युद्ध न हो तो वही संसाधन और धन मूलभूत सुविधाओं, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन आदि पर खर्च किया जाता है। जिससे देश व नागरिकों का विकास होता है। किसी देश के लिए युद्ध करना आर्थिक जरूरत नही है।आज देश की सबस बड़ी जरूरत शिक्षा, भोजन, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं की आपूर्तिहै।
अभ्यास:-
प्रश्न 01. इन प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दें :-
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प्रश्न क. तुर्की में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष शासन किसने स्थापित किया?
उत्तर- तुर्की में मुस्तफा कमाल अतातुर्क के नेतृत्व में 29 अक्टूबर 1923 को लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष शासन की स्थापना हुई ।
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प्रश्न ख. रूस में किसानों की दास्तां कब और किसने समाप्त किया?
उत्तर- रूस में जार ने 1861 ई. में किसानों की दासता को समाप्त किया ।
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प्रश्न ग. रूस में औद्योगीकरण की पहल किसने की ?
उत्तर- 1880 के बाद रूसी शासक आधुनिक उद्योगों के महत्व को समझने लगे क्योंकि अपनी सेना के लिए आधुनिक हथियार व रेल मार्ग चाहते थे जो बड़े कारखानों में ही बनते थे अतः जारशाही राज्य ने रूस में उद्योग को लगाने की पहल की।
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प्रश्न घ. 1905 में स्थापित डूमा में किन लोगों का बोलबाला था ?
उत्तर- रूस में भी चुनी हुई संसद जिसे डूमा कहा गया की स्थापना हुई लेकिन चुनाव एक जटिल अप्रत्यक्ष तरीके से होता था ताकि डूमा अधिकतर संपत्ति वाले ही पहुंचे ।
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प्रश्न च. 1917 में रूस के किसानों, मजदूरों व सैनिकों की क्या प्रमुख मांगें थीं?
उत्तर- 1917 में रूस के किसानों, मजदूरों और सैनिक जमीन रोटी और शांति की मांग कर रहे थे|
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प्रश्न ज. लेनिन का जमीन संबंधित ऐलान में क्या कहा गया ?
उत्तर- लेनिन जमीन संबंधी ऐलान में भू स्वामियों की जमीन का राष्ट्रीयकरण और किसानों को जमीन वितरण का निर्णय किया गया था। हर गाँव के गरीब किसानों की समितियों को वहाँ के भू स्वामियों की जमीन को आपस में बांटने का अधिकार दिया गया ।
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प्रश्न 02. रूस में 1861 से 1940 के बीच किसानों की स्थिति में क्या-क्या परिवर्तन आए ? उत्तर- सन् 1861 तक रूस में कृषक को अर्धदास के रूप में रखा गया था किसान जमीन से बंधे थे और वे बिना भूस्वामियों की आज्ञा के दूसरे काम – धंधे नहीं कर सकते थे या गाँव छोड़कर नहीं जा सकते थें जब भूस्वामी अपनी जमीन किसी को बेचता था या देता था तब जमीन के साथ किसानों को भी हस्तांतरित करता था। 1861 ई में जार की एक घोषणा के बाद किसानों को इस प्रथा से मुक्ति तो मिली मगर तब भी जमीन भू-स्वामियों के पास ही थी और किसानों को यह जमीन ऊँचे किराये पर मिलती थी । जार की पहल पर भू स्वामियों ने कुछ जमीन किसानों को दी मगर उसके लिए किसानों का बहुत बड़ी रकम चुकानी पड़ी शासन की ओर से यह रकम भू-स्वामियों को चुकाई गई और किसानों को इसे किश्तों में पटाना था। जब तक वे इसे पटा नहीं देते उन्हें गांव छोड़कर जाने की अनुमति नहीं थी । सन् 1917 ई. तक कई पीढ़ियों बीतने पर भी किसान यह ऋण चुकाते रहे कुल मिलाकर 1861 के सुधारों से भू-स्वामी ही लाभान्वित हुए और किसान कानून रूप से आजाद तो हुए मगर आर्थिक रूप से और बुरे हालातों में फँस गये। कई किसान उद्योगों में मजदूरी करने शहरों में चले गए और कई किसान जार की सेना में भर्ती हो गये। अक्टूबर क्रांति (1917) के बाद लेनिन ने जमीन संबंधी ऐलान किया जिसमें भू-स्वामियों की जमीन का राष्ट्रीयकरण और किसानों को जमीन वितरण का ऐलान किया। 1932-34 के बीच भीषण अकाल पड़ा और लाखों लोग भुखमरी के कारण मरे लेकिन 1936 तक कृषि सामूहीकरण पूरा हुआ और रूस में निजी खेती लगभग समाप्त हो गई 1937 के बाद कृषि का तेजी से विकास हुआ और औद्योगीकरण का फायदा उठाते हुए अपनी उत्पादकता को तेजी से बढ़ा सका ।
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प्रश्न 03. डूमा एक सफल लोकतांत्रिक संसद क्यों नहीं बन पाई इसके कारणों का विश्लेषण कीजिए ।
उत्तर- जार ने 1905 ई. की घटनाओं के बाद राजनीतिक सुधारों की घोषणा की जिससे रूस में चुनी हुई संसद डूमा की स्थापना हुई । लेकिन यह संसद एक लोकतांत्रिक संस्था नही बन पाई इसके कारण निम्नलिखित थे-
1. लोकतांत्रिक निर्वाचन पद्धति का अभाव- डूमा के प्रतिनिधियों का निर्वाचन लोकतांत्रिक तरीके से वयस्क मताधिकार से नहीं होता था चुनाव एक जटिल प्रक्रिया और अप्रत्यक्ष तरीके से होता था । डूमा में अधिकतर संपत्ति वाले ही पहुंचे ।
2. जार का सर्वोच्च अधिकार- जार डूमा के किसी भी प्रस्ताव को ठुकरा सकता था अतः यह लोकतांत्रिक संस्था नही बन सकी ।
3. अधिवेशन – डूमा के अधिवेशन की कोई नियमित व्यवस्था नहीं थी । जार इसका अधिवेशन अपनी सुविधानुसार बुलाता था तथा अपनी सुविधा अनुसार स्थापित कर देता था।
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प्रश्न 04. रूस की क्रांतिकारी सरकार के प्रमुख कदम क्या – क्या थे?
उत्तर- रूस की क्रांति कारी सरकार के प्रमुख कदम निम्न थे –
1. मजदूरों को शिक्षा संबंधित सुविधाएँ दी गई ।
2. जागीरदारों की जागीरे छीन ली गई तथा संपूर्ण भूमि किसानों को सौंप दी गई ।
3. व्यापार तथा उपज के साधनों पर सरकारी नियंत्रण हो गया ।
4. काम का अधिकार संवैधानिक बन गया और रोजगार दिलाना राज्य का कर्तव्य बन गया।
5. शासन की सम्पूर्ण शक्ति श्रमिकों तथा किसानों की समितियों के हाथो मे आ गया ।
6. अर्थव्यवस्था के विकास के लिए आर्थिक निमोज का मार्ग अपनाया गया ।
7. कारखानों में मजदूरों की समितियों को कारखानों से संचालन की अनुमति दी गई।
सोवियत शासन ने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया कि सभी नगर वासियों के खाने के लिए रोटी और रहने के लिए आवास मिले ।
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प्रश्न 05. रूस में औद्योगीकरण के लिए किस प्रकार धन जुटाया गया ?
उत्तर- रूस में औद्योगीकरण के लिए निम्न प्रकार धन जुटाया गया –
1. विदेशी आयात को नियंत्रित करके धन की व्यवस्था की गई ।
2. किसानों पर अधिक से अधिक कर लगाया गया ताकि ज्यादा मात्रा में धन की प्राप्ति हो सके
3. मजदूरों के लिए रोजगार व वेतन संबंधी विभिन्न नये नियम बनाएगा ।
4. बैंक कारखाने और खदानों का राष्ट्रीयकरण किया गया ताकि उन पर शासन का नियंत्रण स्थापित हो सके ।
5. विदेशी विशेषज्ञों और निवेशकों की सहायता से विभिन्न प्रकार के नविन कारखाने की स्थापना करने का भी प्रयास किया गया I
6. स्वयं के स्रोतों से भी पूंजी इकट्ठा करने का प्रयास किया गया ।
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प्रश्न 06. रूस में 1905 से 1940 के बीच लोकतंत्र के विकास की समीक्षा कीजिए ।
उत्तर- रूस में 1905 से 1940 के बीच लोकतंत्र का कोई विकास नहीं हो पाया। 1905 से 1917 जार की सत्ता चलती रही जो कि एक निरंकुश राजा था चाहे उसने वहा के संसद डूमा को कई बार निर्वाचित किया। परन्तु वह लोकतांत्रिक नहीं था उसमें केवल संपत्ति धारा के ही संपत्ति द्वारा ही चुने जाते थे I 1917 में जार के विरुद्ध क्रांति हो गई थी बोल्शेविक सरकार की स्थापना हुई जो साम्यवादी थी लेनिन की सरकार स्थापित हुई परन्तु साम्यवादी सरकार में लोकतंत्र का कोई स्थान नहीं था। इसके बाद 1924 में लेनिन की मृत्यु के पश्चात स्टालिन ने सत्ता संभाली तथा वह साम्यवादी पार्टी और सोवियत रूस का सर्वशक्तिमान नेता बन गया उसके समय में वह सोवियत संघ की तानाशाही और तानाशाह बना रहा तथा लोकतंत्र का कोई विकास नहीं हो पाया।
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प्रश्न 07. आर्थिक मंदी के दौर में वस्तुओं की कीमतें क्यों घटीं ? इसका उद्योगों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर- आर्थिक मंदी के दौर में वस्तुओं की कीमत निम्न कारणों से घटी –
1. कच्चे माल की कमी हो गई थी।
2. उद्योगों में उत्पादन कम हो गया था ।
3. मजदूरों की वेतन वृद्धि रोक दिया गया था
4. शेयर बाजारों में गिरावट आ गई थी ।
5. बैंक का दिवाला निकल गया था ।
आर्थिक मंदी का उद्योगों पर निम्न प्रभाव पड़ा –
1. वस्तुओं की बिक्री दिन प्रतिदिन कम होती चली गई ।
2. समान के न बिक पाने के डर से उद्योगपतियों ने उद्योग उत्पादन कम कर दिया था ।
3. धीरे- धीरे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार भी कम हो गया था ।
4. मजदूरों की छंटनी की जाने लगी ।
5. धीरे – धीरे करके पूंजीवादी अर्थव्यवस्था से भी मोह भंग हो गयी थी ।
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प्रश्न 08. क्या मंदी का किसानों व मजदूरों पर एक जैसा प्रभाव पड़ा ?
उत्तर- हा, मंदी का प्रभाव किसानो और मजदूरो पर एक जैसा पड़ा। मंदी के कारण किसानो की उपज की कीमत नही बढ़ती और मजदूरो का वेतन भी नहीं बढ़ा । मुनाफा पूँजीपतियों के पास ही एकत्र हो चुका था । जिससे लोगों की क्रय शक्ति समाप्त हो गई। उधोगपतियों ने मजदूरो की छटनी कर दी जिससे वे बेरोजगार हो गये। मजदूरो की बेरोजगारी के कारण कृषि उपज की मांग एक कीमत गिरने लगी। किसानो की कृषि लागत भी वसूल नही हो पाई और वे बर्बाद होने लगे। इस प्रकार मंदी किसान और मजदूरों पर बराबर प्रभाव डाला ।
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प्रश्न 09. अमेरिकी आर्थिक मंदी का पूरे विश्व पर प्रभाव क्यों पड़ा ?
उत्तर- उन दिनों अमेरिका विश्व का सबसे बड़ा व्यापारिक देश था । वह दुनिया का सबसे बड़ा निर्यात करने वाला देश था और ब्रिटेन के बाद सबसे बड़ा आयात करने वाला देश था। युद्ध से उभर रहे यूरोप का सबसे बड़ा कर्जदाता और निवेशक था फलस्वरूप पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था का ताना-बाना अमेरिका पर निर्भर था। अपने आर्थिक संकट के कारण अमेरिका ने जर्मनी ब्रिटेन आदि को उधार देना कम कर दिया। अपने कृषि और उद्योग को बचाने के लिए अमेरिका ने दूसरे देशों से आयात कम कर दिया। 1930 में देखते देखते अमेरिका का संकट पूरे विश्व पर छा गया विशेषकर उन सभी देशों पर जो आपस में व्यापार और निवेश से बंधे हुए थे ।
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प्रश्न 10. ब्रिटेन और अमेरिका में कल्याणकारी राज्य की क्या भूमिका बनी ?
उत्तर- आर्थिक मंदी के बाद यह विचारधारा पलवती हुई कि राज्य को लोक कल्याणकारी कार्यों पर खर्च करना चाहिए और सबके लिए रोजगार उपलब्ध कराना चाहिए। ब्रिटेन व अमेरिका ने इस दिशा में कदम उठाये। अमेरिका ने सामाजिक सुरक्षा योजनाओं जैसे बीमार लोगों के लिए स्वास्थ्य संबंधी और शिशु सुरक्षा संबंधी योजना बनाई । यह एक कल्याणकारी राज्य के अवधारणा पर आधारित थे इसमें राज्य सभी नागरिकों को एक अच्छे जीवन का आश्वासन दे और उनकी सभी मौलिक आवश्यकताओं जैसे अन्य आवास, स्वास्थ्य, बच्चों और वृद्धों की देखभाल तथा शिक्षा का ख्याल रखें। राज्य ने योग्य नागरिकों को रोजगार दिलाने का भार अपने ऊपर ले लिया इस प्रकार राज्य ने पूंजीवादी बाजार में हो रहे उतार चढ़ाव को कम करने का प्रयत्न किया सरकार ने इन कल्याणकारी कार्यों के लिए दाम ऊँचे करो से प्राप्त किए इसी प्रकार ब्रिटेन में भी सामाजिक सुरक्षा की योजना बनाई गई साथ ही नागरिकों के अच्छे जीवन के मौलिक आवश्यकताओं पर बल दिया गया द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बहुत से सरकार ने इस नीति पर प्रभाव दिया।