CG Board Class 10 SST Solutions Chapter 9 Nazism in Germany between the two world wars and World War II

Class 10 SST Chapter 9 दो विश्व युद्धों के बीच जर्मनी में नाजीवाद और दूसरा विश्व युद्ध,Nazism in Germany between the two world wars and World War II

 

 Class 10 SST 

 Chapter 9

 दो विश्व युद्धों के बीच जर्मनी में नाजीवाद और दूसरा विश्व युद्ध Nazism in Germany between the two world wars and World War II

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प्रश्न 1. क्या आप भारतीय राजनैतिक व्यवस्था को एक उदारवादी व्यवस्था मानेंगे – अपना

कारण भी स्पष्ट करें। 

उत्तर- हाँ, भारतीय राजनीतिक व्यवस्था उदारवादी व्यवस्था है क्योंकि यहा वयस्क नागरिकों को निर्वाचन द्वारा अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार है यहाँ संविधान की सर्वोच्चता को स्वीकार किया गया है । तथा जो भी दल सत्ता में होते है व संविधान के अनुसार शासन संचालन करते है। सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी होती है और जनता को हर पाँच वर्ष में अपने प्रतिनिधि चुनने का अवसर दिया जाता है ।

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प्रश्न 2. भ्रष्टाचार उदारवादी व्यवस्था को किस प्रकार कमजोर करता है? 

उत्तर- उदारवादी संविधान बने और उनके अनुरूप सरकारें बनीं लेकिन व्यवहार में यह देखा गया कि उनमें भ्रष्टाचार के माध्यम से धनी वर्ग हावी रहते है। जिसके कारण उदारवादी व्यवस्था में भ्रष्टाचार फैलने लगता है और उदारवादी व्यवस्था अपने लोकतांत्रिक लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पाती है।

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प्रश्न 3. फासीवादी विचार को इनमें से किन तबकों ने समर्थन दिया होगा – मध्यम और छोटे किसान, संगठित मजदूर वर्ग, दुकानदार, बेरोजगार युवा ? 

उत्तर- मध्यम वर्ग और छोटे किसान, बेरोजगार युवा व दुकानदार ।

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प्रश्न 4. संगठित मजदूर आंदोलन के प्रति फासीवादियों का क्या रवैया था ?

उत्तर- फासीवादी किसी भी प्रकार के संगठित आंदोलन के विरुद्ध थे वे केवल एक दल एक व्यक्ति की सत्ता में विश्वास रखते थे और संगठित मजदूर आंदोलन को फासीवादी ध्वस्त करना चाहते थे ।

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प्रश्न 5. राष्ट्रवाद और अति राष्ट्रवाद में आप क्या फर्क देख पाते हैं?

उत्तर- राष्ट्रवाद – वे राष्ट्र के अंदर किसी प्रकार के द्वेष या संघर्ष जैसे वर्ग संघर्ष राजनीतिक दलों के बीच प्रतिस्पर्धा आदि को खत्म करना चाहते थे । वे राज्य के हाथ असीमित शक्ति देना चाहते थे ताकि वह ऐसे संघर्षों का हल अपनी ओर से तय करके सब पर थोपे ।

अतिराष्ट्रवादी – वे विश्व में अपने राष्ट्र का आधिपत्य स्थापित करना अति राष्ट्रवाद की भावना थी ।

प्रश्न 6. Page no.114

फासीवादी लोग देश के अंदर किस प्रकार एक मत विकसित करना चाहते थे बातचीत – और सबकी जरूरतों के लिए जगह बनाकर या अन्य तरीकों से?

उत्तर- फासीवादी दल लोकतंत्र विरोधी थे। फासीवादी यह मानते थे कि लोकतंत्र, चुनाव, कानूनी प्रक्रिया नागरिक स्वतंत्रता व अधिकार राष्ट्र की समस्याओं के हल में बाधा है। और एक व्यक्ति तथा एक पार्टी का शासन और तानाशाही राष्ट्रहित के लिए आवश्यक है । फासीवाद लगातार जनता को आंदोलन की अवस्था में रहता है और वह नियंत्रित जन आंदोलन पर निर्भर होता है लोगों तक संदेश पहुँचाने तथा उनकी भावनाओं को भड़काने के लिए राज्य के मीडिया का जबरदस्त उपयोग किया जाता है वे राष्ट्रहित के लिए तानाशाही व्यवस्था को उपयुक्त मानते थे ।

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प्रश्न 7. फासीवादी दल लोकतंत्र की जगह क्या लाना चाहते थे?

उत्तर- फासीवादी दल लोकतंत्र के स्थान पर एक दलीय शासन व्यवस्था लाना चाहते थे क्योंकि वे अतिराष्ट्रवादी थे और यह जानते थे कि राष्ट्रहित ही एकमात्र सर्वोपरि हित है। फासीवादी दल चुनावी लोकतंत्र उदारवाद, कानून का राज, समानता का सिद्धांत, समाजवाद जैसी सब बातों के विरुद्ध था और साथ ही दूसरे देशों के विरुद्ध अतिराष्ट्रवादी भी था ।

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प्रश्न 8. महिलाओं के प्रति फासीवादियों के क्या विचार थे? 

उत्तर- फासीवाद महिलाओं को घर के अंदर सीमित रखना चाहते थे। उनका मानना था कि महिलाओं को बच्चे पैदा करके घर संभालना चाहिए और समाज में अपने से ऊँची हैसियत वालों का आदर करना चाहिए उनके आदेशों को बिना प्रश्न किए मानना चाहिए ।

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प्रश्न 9. एक लोकतंत्र में और फासीवादी तानाशाही में आप क्या – क्या फर्क देख पा रहे हैं? 

उत्तर- लोकतंत्र और फासीवादी तानाशाही में निम्न फर्क है –

लोकतंत्र सबकी सहमति पर आधारित व्यवस्था है जबकि फासीवादी तानाशाही में एक दल एवं विचारधारा की सत्ता होती है ।

2. लोकतंत्र में एक बहुमत दल का नेता होता है और फासीवादी तानाशाही में केवल एक दल का शासन रहता है ।

3. लोकतंत्र में जनता अपना नेता को चुनता है। फासीवादी तानाशाही में एक ही विचारधारा की सत्ता होती है।

4. लोकतंत्र में निर्णय आम सहमति में होते है । फासीवादी तानाशाही में निर्णय सर्वोच्च

सत्ताधारी ही करते है ।

5. लोकतंत्र में लोगों को अभिव्यक्ति की आजादी होती है। फासीवादी में लोगों को ऐसी कोई आजादी नहीं होती ।

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प्रश्न 10. मुसोलिनी और हिटलर की रैलियों के चित्रों में क्या समानता व अंतर दिख रहे हैं?

उत्तर- मुसोलिनी और हिटलर की रैलियों में निम्न समानता थी –

1. दोनों की रैलियों में विशाल जनसमुदाय उपस्थित है ।

2. दोनों ही रैलियों के नेतृत्व करने वाला लोकतंत्र विरोधी थे ।

3. हिटलर व मुसोलिनी दोनों की रैलियों से स्पष्ट है कि दोनों को व्यापक जन समर्थन प्राप्त था ।

4. दोनों ही रैलियों का उद्देश्य शक्ति का प्रदर्शन करना है।

असमानताएं –

1. हिटलर की रैली में विशाल जनसमूह अनुशासित और व्यवस्थित दिख रहा है ।

2. मुसोलिनी की रैली में जन समूह अपेक्षाकृत कम व्यवस्थित और अनुशासित दिख रहा है। 

3. हिटलर की रैली में हिटलर को स्पष्ट रूप से नही देखा जा रहा है। जबकि मुसोलिनी स्पष्ट रूप से दिख रहा है ।

4. मुसोलिनी की अपेक्षा हिटलर अधिक प्रभावी और शक्तिशाली वक्ता लग रहा है।

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प्रश्न 11. पिछले पाठ के आधार पर याद करें कि वर्साय संधि में ऐसी क्या बातें थीं जो जर्मनी के लोगों के आत्मसम्मान को चोट पहुंचाती होंगी?

उत्तर- पिछले पाठ के आधार पर वर्साय की संधि में जर्मनी की अपमानजनक शर्तों का सामना करना पड़ा

1. युद्ध के हर्जाने की राशि का भुगतान

2. जर्मनी का पूर्वी और पश्चिम देशों के बीच बंटवारा ।

3. विश्व के सामने जर्मनी की प्रतिष्ठा का घटना ।

4. जर्मनी को कभी भी चर्चाओं में शामिल नहीं किया गया ।

5. इस संधि में जर्मनी और उसके सहयोगियों को बहुत हानि हुई । 

6. जर्मनी द्वारा फांस से छीना गया अल्सास और लॉरेन क्षेत्र को लौटाया जाना ।

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प्रश्न 12. हिटलर और नाज़ी पार्टी ने जर्मनी पर अपनी तानाशाही किस प्रकार स्थापित की 

होगी ?

उत्तर- 1933 में सत्ता प्राप्ति के बाद हिटलर ने लोकतांत्रिक संरचना और संस्थाओं को भंग करना शुरू कर दिया। फरवरी 1933 में संसद में लगी आग के लिए साम्यवादी को दोषी ठहराया गया था सभी साम्यवादी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। फरवरी 1933 को संसद में पारित अग्नि अध्यादेश के जरिये सभी नागरिकों के अधिकारों को निलंबित कर दिया गया जो कि नाजी शासन के अंत तक बना रहा मार्च 1933 में इनेबलिंग एक्ट संसद में पारित किया गया। इस कानून के द्वारा हिटलर ने संसदीय व्यवस्था को समाप्त कर केवल अध्यादेश के जरिये शासन चलाने का निरंकुश अधिकार प्राप्त कर लिया। नाजी पार्टी एवं उससे संबंधित संगठनों के अलावा सभी राजनीतिक पार्टियों एवं ट्रेड यूनियनों पर पाबंदियां लगा दी गई । अर्थव्यवस्था, मीडिया सेना तथा न्यायपालिका पर नाजी पार्टी अथवा राज्य का पूरा नियंत्रण स्थापित हो गया। संपूर्ण जर्मनी को नाजी विचारधारा के अनुरूप व्यवस्थित एवं नियंत्रित करने हेतु विशेष निगरानी एवं सुरक्षा दस्तों का गठन किया गया। अपराध नियंत्रण पुलिस, गेस्टोपो ( गुप्तकर पुलिस) एवं एस. डी. (सुरक्षा सेवा) जैसी नारी संस्थाओं को बेहिसाब संवैधानिक अधिकार प्रदान किये गये । संपूर्ण जर्मन समाज का निजीकरण किया गया था नाजी पार्टी के खिलाफ विचारधारा रखने वाले सभी समूहों को बलपूर्वक खत्म कर दिया गया।

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प्रश्न 13. 1933 से लेकर 1945 तक यूरोप के यहूदी बच्चों पर क्या बीती होगी, वे क्या महसूस कर रहे होंगे? इस पर कक्षा में चर्चा करें। आगे दी गई ‘होने का सूटकेस’ भी पढ़ें। 

उत्तर- 1933 से 1945 तक यूरोप में नस्ल के आधार पर यहूदियों के साथ बहुत अत्याचार किये गये । उनकी संपत्ति जब्त कर उन्हें नौकरियों से निकाल दिया गया। माता पिता को उनके बच्चों से अलग कर यातना शिविरों में रखा गया, बाद में उन्हें मार डाला गया। इन सभी प्रक्रियाओं से बच्चों पर भारी मुसीबत टूट पड़ती थी। बच्चे अपने माँ – बाप परिवार व भाई बहनों से बिछड़ गये एक बार बिछड़ने के बाद वे फिर कभी अपने परिवार से नहीं मिल पाए। इससे बच्चो का पूरा जीवन पूरी तरह से प्रभावित हुआ है। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि एक बच्चे के अपने माँ बाप और परिवार के बिना जीवन कितना कष्टमय रहा होगा ।

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प्रश्न 14. नस्लवाद के विचार में ऐसा क्या था कि उसने जर्मन लोगों में दूसरे लोगों के प्रति इस कदर अमानवीय व्यवहार को उकसाया ? 

उत्तर- मध्यकाल से ही यूरोप के कई देशों में यहूदी विरोधी मानसिकता पायी जाती थी। लेकिन हिटलर के इस मानसिकता की यहूदी नस्ल ही खराब है और जर्मनी के सभी समस्याओं का कारण हैं । यहूदी विरोधी विचारों ने नाजी शासन के दौरान वीभत्स रूप धारण कर लिया। सितंबर 1935 में यहूदियों की नागरिकता समाप्त कर दी गई । यहूदियों एवं जर्मनी के बीच विवाह पर पाबंदी लगी एवं इसे अपराध घोषित कर दिया गया तथा उन पर अनेक प्रतिबंध लगाए यहूदियों की संपत्ति की जब्ती एवं बिक्री, सरकारी सेवा से निकालना, यहूदी व्यवसायों का बहिष्कार 9 – 10 नवंबर 1938 में एक भयानक सुनियोजित कार्यक्रम में पूरी जर्मनी के यहूदियों की संपत्ति घरों एवं प्रार्थना घर को तहस नहस कर दिया गया।

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प्रश्न 15. पहले और दूसरे विश्व युद्धों की तुलना करें और बताएं दोनों में जो हथियार उपयोग किए उनमें क्या अंतर था और दोनों से जो जान माल की हानि हुई इसमें क्या अन्तर था?

उत्तर- प्रथम विश्व युद्ध 1914 से 1918 तक लड़ा गया था द्वितीय विश्व युद्ध 1939 ई. से 1945 ई. तक लड़ा गया उन दोनो ही युद्ध में हथियारों के उपयोग एवं जान माल से संबंधित अन्तर निम्नलिखित थे-

1. प्रथम विश्व युद्ध में यद्यपि पनडुब्बियों, हवाई जहाजों टैंक आदि का प्रयोग और रासायनिक गैसों का प्रयोग भी हुआ था । प्रथम विश्व युद्ध की अधिकांश लड़ाईया आमने सामने लड़ी गई ।

2. प्रथम विश्व युद्ध में सबसे अधिक मशीनों एवं युद्धपोतों का प्रयोग हुआ था जिसका प्रयोग एक देश की सेना ने दूसरे देश की सेना के विरुद्ध किया था ।

जानमाल के नुकसान से संबंधित अंतर –

1. प्रथम विश्व युद्ध में जहां अधिकांश मारे जाने वाले लोग सैनिक थे द्वितीय विश्व युद्ध में आम लोग बड़ी मात्रा में मारे गये थे ।

2. प्रथम विश्व युद्ध में लगभग 90 लाख लोग मारे गये थेऔर उससे कहीं अधिक लोग घायल हुए थे।

3. द्वितीय विश्व युद्ध में 2 करोड़ 25 लाख सैनिक मारे गये थे और लगभग 5 करोड़ सामान्य नागरिक मारे गये थे। 2 करोड़ 50 लाख लोग अकेले हिरोशिमा और नागासाकी में ही मारे गये थे । केवल सोवियत संघ के ही 2 करोड़ से अधिक मारे गये थे ।

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प्रश्न 16. क्या आपने अकाल के बारे में सुना है? अकाल में लोग किस तरह जीते हैं, अपने बुजुर्गों से पता करके कक्षा में चर्चा करें। 

उत्तर- हाँ, हमने अकाल के बारे में सुना है अकाल किसी भी प्रकार का हो जन जीवन पर उसका असर बहुत बुरा होता है । भारतीय कृषि मानसून पर निर्भर हो जब सिंचाई और भंडारण की सुविधा देश में नहीं थी उस समय इस वर्ष मानसून धोखा देता था उसी वर्ष अकाल पड़ जाता था । अकाल में फसलें खराब होने से अनाज की कीमतों में भारी वृद्धि हो जाती है जिसका सबसे अधिक असर गरीबों और किसानों पर पड़ा है। हमने अपने बुजुर्गों से 1943 के बंगाल के अकाल के बारे में सुना जब व्यापारी और उद्योगपतियों ने ऊँचे दाम पर अनाज बेचकर मुनाफा कमाया अंग्रेजों ने इस पर कोई हस्तक्षेप या नियंत्रण नहीं किया। कीमतों की भारी वृद्धि से आम जन जीवन अभावग्रस्त होकर करने को बाध्य हो गया।

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प्रश्न 17.युद्ध का किसानों और व्यापारियों पर अलग प्रभाव पड़ा – और इसके क्या कारणहैं?

उत्तर- युद्ध के दौरान पड़ने वाले अकालों के कारण किसान बर्बाद हो गये, क्योकि अकाल के कारण उनकी फसलें खराब हो गई फसलें खराब होने से उनकी आय के साधन समाप्त हो गये । जबकि व्यापारियों को युद्ध के कारण बड़े पैमाने पर मुनाफा कमाने का मौका मिल गया। क्योंकि व्यापारी मौके का फायदा उठाकर व्यापारियों ने अनाज के गोदाम में रख कर जमाखोरी करके मालामाल हो रहे थे । अनाज उत्पादन की कमी के कारण व्यापारी ऊँची कीमत पर अनाज बेचकर अधिक मुनाफा कमा रहे थे । अतः व्यापारियों ने युद्ध की वजह से बढ़ी मांग के कारण खूब मुनाफा कमाया और धनी हो गये ।

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प्रश्न 18. 1945 में जर्मनी विभाजित हुआ। पता करें कि क्या वह आज भी विभाजित है?

उत्तर-  सन् 1945 में विभाजित जर्मनी आज भी जर्मनी के नाम से जाना जाता है | विभाजन का प्रभाव आज भी है।

अभ्यास:-

प्रश्न 1. इनमें से गलत वाक्यों को छांटें और उन्हें सुधार कर लिखें :-

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प्रश्न क. द्वितीय विश्व युद्ध ब्रिटेन की महत्वाकांक्षा के कारण हुआ । 

उत्तर- नहीं, द्वितीय विश्व युद्ध जर्मन की महत्वाकांक्षा के कारण हुआ ।  

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प्रश्न ख. 1945 में राष्ट्र संघ की स्थापना हुई ।

उत्तर- नहीं, 1945 में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई ।

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प्रश्न ग. फासीवादी बहुदलीय व्यवस्था के विरोधी थे।

उत्तर- हाँ, फासीवादी बहुदलीय व्यवस्था के विरोधी थे ।

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प्रश्न घ. संगठित मजदूर फासीवादी आंदोलन के सबसे बड़े समर्थक थे।

उत्तर- नहीं फासीवादी संगठित मजदूर आंदोलन के विरोधी थे ।

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प्रश्न ड. द्वितीय विश्व युद्ध में जापान ने ब्रिटेन का समर्थन किया।

उत्तर- नहीं, द्वितीय विश्व युद्ध में जापान ने ब्रिटेन के विरुद्ध युद्ध किया ।

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प्रश्न 2. सही विकल्प चुनकर रिक्त स्थान भरें।

क. …………. इटली का फासीवादी तानाशाह था। (हिटलर, स्टालिन, मुसोलिनी) 

ख. हिटलर ने 1933 में ……… कानून द्वारा सभी नागरिक अधिकारों को निलंबित कर दिया। (अग्नि अध्यादेश, यहूदी अध्यादेश, अधिकार अध्यादेश)

ग. जर्मनी की सेना को पहली बार …………. में हार का सामना करना पड़ा।(बर्लिन, स्तालिनग्राद, सिंगापुर)

घ. जर्मनी, इटली और ………… मिलकर धुरी देश कहलाए। (जापान, फ्रांस, रूस)

ड. यहूदियों के लिए 1948 में ……….. देश की स्थापना हुई। (जापान, फ्रांस, इजराइल )

उत्तर- 1 . मुसोलिनी  , 2 . अग्नि अध्यादेश , 3 . स्तालिनग्राद , 4 . जापान , 5 . इस्राइल 

प्रश्न 3. इन प्रश्नों का संक्षेप में उत्तर दें :-

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प्रश्न क. यूरोप में प्रथम विश्व युद्ध के बाद छोटी संपत्ति वाले लोगों की क्या दशा थी ?

उत्तर- प्रथम विश्व युद्ध के बाद आर्थिक मंदी के कारण छोटी संपत्ति वाले लोग सबसे अधिक प्रभावित थे। किसानों की जमीन नीलाम हो रही थी, छोटी दुकाने व कारोबार बंद हो रहे थे और बेरोजगारी बढ़ रही थी । छोटी संपत्ति वाला वर्ग उदारवाद व साम्यवाद दोनो का विरोध कर रहा था।

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प्रश्न ख. हिटलर ने जर्मन लोगों को क्या क्या आश्वासन दिए ?

उत्तर- हिटलर ने जर्मनी लोगों को आश्वासन दिये कि वह एक शक्तिशाली राष्ट्र की स्थापना वर्साय संधि में हुई नाइंसाफी के प्रतिशोध और जर्मन समाज को खोई हुई प्रतिष्ठा वापस दिलाने, बेरोजगारी की समस्या का समाधान तथा जर्मनी को विदेशी प्रभाव से मुक्त करवाने का आश्वासन दिया।

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प्रश्न ग. जर्मनी ने पोलैंड के लोगों से विजय के बाद कैसा व्यवहार किया ? 

उत्तर- जर्मनी ने पोलैंड के लोगों से विजय के बाद अमानवीय व्यवहार किया वहां से अधिकतर यहूदी बुद्धिजीवी अभिजात्य के वर्गों के लोगो, शिक्षा इत्यादि को चुन – चुन कर मार डाला गया । किसानों को उनके गांव से निकलकर शिविरों में रखा गया था उसको दासों की तरह बेचा गया।

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प्रश्न घ. 1943 में बंगाल के अकाल का क्या कारण था ?

उत्तर- बंगाल अकाल का सबसे भयानक प्रभाव 1943 में सामने आया जिसमें तीस हजार से अधिक लोग भुखमरी एवं महामारी के कारण मरे । यह अनाज उत्पादन की कमी के कारण नहीं हुआ बल्कि सेना के लिए सरकार द्वारा अनाज खरीदी से उत्पन्न हुआ । यहीं 1942 में बंगाल में अकाल का कारण था ।

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प्रश्न ड़. जापान ने किस परिस्थिति में आत्मसमर्पण किया?

उत्तर- मिश्र देशों ने 1945 में जर्मनी और इटली पर विजय प्राप्त कर ली थी अतः अमेरिका ने 1945 में बचे हुए धुरी देश जापान को मजबूर करने के लिए उसके दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए उसके तुरंत बाद जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया।

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प्रश्न 4. फासीवाद और लोकतांत्रिक उदारवाद में क्या-क्या अंतर है – विस्तार से समझाएं ।

उत्तर- फासीवाद और लोकतांत्रिक उदारवाद में निम्नलिखित अंतर है –

फासीवाद –

1. फासीवाद अति राष्ट्रवादी था ।

2. फासीवाद राज्य के हाथो असीमित शक्ति देना चाहता था ।

3. फासीवाद में शासकों का बनाया हुआ कानून ही चलता था ।

4. फासीवाद तानाशाही तथा एक व्यक्ति के शासन में विश्वास करते थे ।

5. एक व्यक्ति और एक दल के शासन में विश्वास ।

6. फासीवाद लोकतंत्र के विरोधी थे ।

लोकतांत्रिक उदारवाद – 1. लोकतांत्रिक उदारवाद सबको साथ लेकर चलने वाला था ।

2. लोकतांत्रिक उदारवाद शक्ति के विकेन्द्रीकरण विभाजन का समर्थन था ।

3. लोकतांत्रिक उदारवाद से सारा काम काज कानून के अनुरूप होता था ।

4. लोकतांत्रिक उदारवाद संवैधानिक शासन में विश्वास करता था । 

5. बहुदलीय व्यवस्था का समर्थन करते है ।

6. उदारवाद लोकतंत्र के समर्थक थे।

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प्रश्न 5. हिटलर जर्मन राज्य का विस्तार क्यों चाहता था ? 

उत्तर- हिटलर कहता था कि जर्मन लोगों को सांस लेने व पनपने के लिए जगह की जरूरत है जिसे हासिल करने के लिए पूर्वी यूरोप के लोगों का सफाया करके जमीन पर कब्जा करना होगा । उसका कहना था कि गैर जर्मन लोग कमतर मनुष्य है। जो गुलाम बनाने के ही लायक है इसी सिद्धांत के आधार पर वह अंततः  पूरे विश्व पर कब्जा करना चाहता था । हिटलर ने जर्मन लोगों को आश्वासन दिया कि जब वे दूसरे देशों पर कब्जा करेंगे तो उन देशों की संपदा का दोहन कर पाएंगे और इससे हर जमीन का जीवन स्तर बेहतर होगा जर्मन सैनिकों को यह बताया गया कि दूसरे देश के लोग कमतर मनुष्य है जो जर्मन नस्ल के आगे टिक नहीं पाएंगे और जल्दी ही हार जाएंगे ।

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प्रश्न 6. राष्ट्रवाद और अति-राष्ट्रवाद में क्या अन्तर है?

उत्तर- राष्ट्रवाद – 1. राष्ट्रवाद एक विश्वास पंथ या राजनैतिक विचारधारा है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने गृह राष्ट्र के साथ अपनी पहचान बनाता या लगाव व्यक्त करता है यह एक ऐसी अवधारणा है जिसमें राष्ट्र को सबसे अधिक प्राथमिकता दी जाती है ।

2. राष्ट्रवाद अपने देश के विकास पर जोर देता है।

3. राष्ट्रवाद अन्य राष्ट्रों की भावनाओं और सीमाओं का सम्मान करता है। 

4. राष्ट्रवाद से दूसरे देश के लोकतंत्र राजनीतिक दलों एवं संगठन का विकास होता है ।

5. राष्ट्रवाद से विश्व शांति का कोई खतरा नहीं है।

अति राष्ट्रवाद-

1. अति राष्ट्रवाद, राष्ट्रवाद का उग्र रूप है जिसमें एक देश के लोग अपने ही देश को सर्वोच्च बनाना चाहते है तथा दूसरे देशों में अपना विस्तार करना चाहते है ।

2. अति राष्ट्रवादी विश्व में अपने ही राष्ट्र का आधिपत्य स्थापित करना चाहते है। 

3. अति राष्ट्रवाद के अंतर्गत अति राष्ट्रवाद सैन्यवाद तथा युद्ध उम्मीद पर जोर देते है।

4. अति राष्ट्रवाद के अंतर्गत अतिराष्ट्रवादी हिंसा और बलपूर्वक अन्य राजनीतिक दलों संगठन आदि को ध्वस्त करने में विश्वास रखते है ।

5. अति राष्ट्रवाद विश्व शांति के लिए खतरा है।

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प्रश्न 7. आपके अनुसार जर्मनी के हारने के क्या कारण रहे होंगे?

उत्तर- हमारे अनुसार द्वितीय विश्व युद्ध में हारने का निम्न कारण रहे होंगे ।

1. हिटलर का तानाशाही रवैया- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ही अपनी सेना का प्रतिनिधित्व कर रहा था यद्यपि उसने अपनी सेना के जनरल नियुक्त किये थे किन्तु वह उनके द्वारा दिये गये सुझावों को पूर्णतः नकार देता था । हिटलर का यह तानाशाही रवैया विश्व युद्ध में उसकी हार का मुख्य कारण बना ।

2. कमजोर गुटो का चयन – द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने जापान हंगरी रोमानिया जैसे कमजोर देशों के साथ अपने गुट का निर्माण किया । जो उसकी हार का प्रमुख कारण बना।

3. मित्र गुट का निर्माण – द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन, अमेरिका व सोवियत संघ द्वारा आपस में मिलकर मिश्र गुट का निर्माण किया गया। जिसने आपस में मिलकर जर्मनी व उसके सहयोगियों को युद्ध में परास्त करने का प्रयास किया चूंकि यह गुट अत्यधिक शक्तिशाली था अतः यह भी जर्मनी के हार का मुख्य कारण बना।

4. सोवियत संघ पर आक्रमण – जर्मनी ने बिना सोचे समझे सोवियत संघ पर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आक्रमण कर दिया था सोवियत संघ के शक्तिशाली होने के कारण जर्मनी को इसके खिलाफ हार का सामना करना पड़ा था।

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प्रश्न 8. अगर जर्मनी युद्ध में जीत जाता तो दुनिया पर उसका क्या प्रभाव पड़ता ?

उत्तर- अगर जर्मनी युद्ध में जीत जाता तो यह लोकतंत्र के विस्तार के लिए सबसे बड़ा खतरा होता है । लोकतंत्र द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ही दुनिया में तेजी से लोकतंत्र का विकास हुआ । अगर जर्मनी इस युद्ध में जीत जाता तो फासीवाद ताकतों का वर्चस्व स्थापित होता और संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं का जन्म नहीं हो पाता और पूरा विश्व तानाशाही ताकतों के अधीन होता । जर्मनी की जीत के कारण लोकतंत्र का विस्तार अवरुद्ध हो जाता ।

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प्रश्न 9. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पांच देशों को विशेष अधिकार दिए गए। ऐसा क्यों किया गया? क्या यह उचित था अपने विचार लिखिए। उत्तर- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा, संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे शक्तिशाली अंग है। युद्ध के समाप्ति के बाद अक्टूबर 1945 में 50 देशों ने मिलकर संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की। उस समय पांच प्रमुख देशों को संयुक्त राष्ट्र संघ में विशेष स्थान दिया गया था संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, सोवियत रूस और चीन इन पांचों ही देशों को विशेषाधिकार वीटो दिया गया था ताकि कोई एक देश इस संस्था पर अपनी मनमानी न कर सके साथ ही शक्ति संतुलन बनाए रखने के उद्देश्य से यह व्यवस्था की गई थी उस समय जब संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देशों की संख्या केवल 50 थी यह व्यवस्था उचित थी । लेकिन अब जब सदस्य देशों की संख्या तीन गुना से अधिक हो चुकी तो विशेषाधिकार प्राप्त देशों की संख्या भी बढ़ाई जानी चाहिए I

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