Class 10 SST Chapter 14 Democracy and functioning of political institutions in independent India

Class 10 SST Chapter 14 स्वतंत्र भारत में लोकतंत्र और राजनैतिक संस्थाओं की कार्यप्रणाली Democracy and functioning of political institutions in indep

 

Class 10 SST

 Chapter 14

 स्वतंत्र भारत में लोकतंत्र और राजनैतिक संस्थाओं की कार्यप्रणाली Democracy and functioning of political institutions in independent India


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प्रश्न 1.पहला आम चुनाव करवाने के लिए सरकार को क्या-क्या तैयारियां करनी पड़ी होगी? शिक्षक की सहायता से आपस में चर्चा करें।  

उत्तर- पहला आम चुनाव 1952 – भारत के नए संविधान के अनुसार पहले आम चुनाव आयोजित करना भारतीय लोकतंत्र की स्थिरता और सफलता के लिए महत्वपूर्ण चुनौती था।  हालांकि हमारा संविधान 1950 में ही लागू हो गया था लेकिन पहला आम चुनाव 1952 में सम्पन्न हुआ । लगभग 10 करोड़ लोगों को मतदान करना था इसके लिए बहुत सारी तैयारियों की जरूरत थी। भारत में पहली बार हर वयस्क महिला और पुरुष को चुनाव में मतदान करने का अधिकार मिला था । प्रथम आम चुनाव करवाने हेतु सरकार को निम्नलिखित तैयारियां करनी पड़ी होगी –

1. सबसे पहले सभी मतदाताओं की सूची तैयार करना था I 

2. मतदाताओं को चुनाव की प्रक्रिया समझाना और उन्हें मतदान के लिए तैयार करना था और सुदूर अंचलों में मतदान केन्द्र स्थापित करके चुनाव अधिकारियों को तैनात करना था I 

3. पहली बार वयस्क मताधिकार प्रणाली का इस्तेमाल करके देश के सभी नागरिकों को वोट देने का मौका मिला था I

4. सरकार ने सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों तक मतदान केंद्रों की व्यवस्था की।

5. मतदान के लिए मतपेटियां भी तैयार कराई गई I

6. देश में 85% लोग निरक्षर थे अतः: उन्हें चुनाव की सटीक जानकारी से अवगत कराया गया I

7. सभी उम्मीदवारों को चुनाव चिन्ह प्रदान एवं मतपत्र छपवाना I 

8. मतदाताओं को पंजीकृत करना I

9. सारे राज्यों की विधानसभा के चुनाव भी लोकसभा के साथ ही सम्पन्न कराना I

10. लगभग 2,24000 मतदान केंद्रों का निर्माण करना। करीब प्रत्येक 1000 व्यक्तियों पर एक मतदान केंद्र बनाया गया था I

11. 10 लाख अधिकारियों को चुनाव की प्रक्रिया में तैनात करना I

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प्रश्न 2.पहला आम चुनाव आज के चुनाव से किस तरह से अलग था  

उत्तर-  देश का पहला आम चुनाव और आज के चुनाव में निम्नलिखित  अंतर है  :

पहला आम चुनावआज के चुनाव
1.पहले आम चुनाव में किसी प्रकार से मशीनों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का उपयोग नहीं होता था |2. पहले भारत की अधिकांश जनसंख्या और अशिक्षित थी| 3. पहले आम चुनाव में जनता जागरूक और चुनाव प्रक्रिया से परिचित नहीं थी| 4. पहले आम चुनाव में लोकसभा तथा विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते थे |5. पहले आम चुनाव में पैसा और बल का प्रयोग नहीं होता था|6.पहला आम चुनाव बैलट पेपर के माध्यम से हुआ था |7. पहले मतदान की आयु 21 वर्ष थी |8. पहले आम चुनाव में चुनाव आयोग बहुत सक्रिय नहीं होता था |1.आज का आम चुनाव पूर्ण रूप से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का उपयोग होता है| 2.आज भारत की अधिकांश जनसंख्या शिक्षित है| 3. आज का मतदान चुनाव की पूरी प्रक्रिया को जनता जानता और समझता है| 4.जबकि आज चुनाव में लोकसभा तथा विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग होते हैं| 5. जबकि आज के आम चुनाव में पैसा और बल का प्रयोग बहुतायत देखने को मिलता है| 6. आज वोटिंग मशीनों का उपयोग होता है| 7. आज मतदान की आयु 18 वर्ष की है|8. आज के चुनाव में चुनाव आयोग की भूमिका बहुत सक्रिय और सख्त होती है |

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प्रश्न 3.किसी गाँव के सारे लोगों का किसी एक ही उम्मीदवार को वोट देना लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अनुसार सही है या गलत। चर्चा कीजिए ।

उत्तर: किसी भी लोकतांत्रिक देश का मतलब  यह नहीं होता है कि विभिन्न विचारधारा पथ के लोगों का एक साथ रहते हुए एक ऐसी सरकार का गठन करना जिसका मूल उद्देश्य देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत बनाना | सरकार के साथ साथ विपक्ष की भी एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है कि वह सरकार के कार्यों और नीतियों का सूक्ष्म अवलोकन करें और जहां भी सरकार का कोई भी कदम लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ हो उसका विरोध का होना आवश्यक है| इसलिए हम यह कह सकते है कि गाँव के सारे लोगों का एक ही उम्मीदवार या पार्टी को वोट देना लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अनुसार सही नहीं है| ऐसी घटनाओं से लोकतंत्र कमजोर होता है और देश तथा समाज निरंकुशता की  ओर अग्रसर हो जाता है |                                  

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प्रश्न 4.क्या आपके आसपास चुनावों के समय ऐसी घटनाएं होती है जैसी पहले चुनाव के वक्त हुई थी। चर्चा कीजिए । 

उत्तर- देश में पहला आम चुनाव सन 1952 में हुआ था तब से आज तक देश की चुनाव प्रक्रिया और स्वभाव में बहुत परिवर्तन हुए हैं इन्हें हम मुख्यतः तीन चरणों में विभाजित करते हैं- 

1.पहला चरण- पहले चरण का चुनाव अभाव और  भावनात्मक रूप से हुआ है इसमें लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया इन चुनावों में साधारण और अच्छे उम्मीदवार चुनकर आगे आए| 

2.दूसरा चरण- दूसरे चरण में भारतीय चुनाव में धनबल और बाहुबल का ज्यादा प्रयोग होने होने लगा तथा इसमें आपराधिक प्रवृत्ति के लोग भी हिस्सा लेने लगे और लोगों में भय और लालच के कारण  मतदाता भी प्रभावित होने लगा |

3.तीसरा चरण- इस चरण में हम यह कह सकते हैं कि मतदाताओं मीडिया अदालतों समाजसेवी संस्थाओं तथा निर्वाचन आयोग के सक्रियता के कारण जो बाहुबल तथा धनबल प्रभावी हो रहा था उस पर रोक लगाने में हम कुछ हद तक कामयाब रहे हैं तथा जातिगत आधार से ऊपर उठकर आज का मतदाता लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा हेतु मतदान कर रहा है| बहुत सी ऐसी घटनाएं हैं जो कि लगभग हर चुनाव में ही आसानी से देखने को मिल जाती हैं जैसे किसी व्यक्ति का मतदान सूची में नाम ना होना किसी मृतक व्यक्ति का नाम मतदान सूची में होना कहीं पर स्थानीय पार्टी के द्वारा मतदान के समय मतदाताओं को प्रलोभन देकर या डरा कर अपने पक्ष में मतदान हेतु मजबूर करना आदि जैसी घटनाएं चुनाव के समय में आसानी से देखने को मिल जाती हैं|

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प्रश्न 5.प्रथम लोकसभा चुनाव में गैर कांग्रेस दलों को कितना प्रतिशत वोट मिला? 

उत्तर– प्रथम लोक सभा में मतदाता सूची में से लगभग 46 % मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया जिसमें से कांग्रेस को 40 % वोट प्राप्त हुए और कांग्रेस अपने 74 %  सदस्यों को लोकसभा में भेजने में कामयाब रही | वहीं विपक्ष को तथा अन्य छोटी-छोटी पार्टियों को 64% वोट मिले किन्तु यह केवल 26 % ही अपने सदस्यों को लोकसभा भेजने में सफल हो सके| 

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प्रश्न 6.लोकसभा के कितने प्रतिशत सदस्य गैर कांग्रेस दलों के थे?

उत्तर- विपक्ष के केवल 26 % ही सदस्य प्रथम लोकसभा चुनाव में जनता द्वारा चुनकर लोकसभा में जाने में सफल हो सके |  

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प्रश्न 7.ऐसी कौन-सी परिस्थितियाँ रही होंगी जिनकी वजह से 1947 से 1967 तक भारत में एक दल का दबदबा रहा? 

उत्तर- भारत को15 अगस्त सन्  1947  में आजादी प्राप्त हुई और भारतीय संविधान 26 जनवरी 1950 को लागु हुआ उस समय भारतीय लोकतंत्र अपने बाल्यकाल में था उस समय कांग्रेस ही ऐसी एक मात्र पार्टी थी जो की देश की स्वतंत्रता से पहले से ही इसे व्यापक जन समर्थन प्राप्त था और भी अन्य पार्टियां थी लेकिन वह भी आजादी के पहले एक ही लक्ष्य पर कार्यरत थी| चूँकि कांग्रेस पार्टी पुरानी पार्टी थी और इसमें अच्छे नेता तथा इसमें नेतृत्व प्रदान करने की प्रबल शक्ति थी और आजादी के संघर्ष में कांग्रेस का बड़ा योगदान था| साथ ही तत्कालिन बड़े नेताओ तथा महात्मा गाँधी जी का कांग्रेस को सहयोग और समर्थन प्राप्त था जिसके कारण ही एक दल (कांग्रेस) का प्रभाव उस समय देखने को मिलता था |

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प्रश्न 8.आपके विचार में लोकतंत्र में बहुदलीय प्रणाली का क्या महत्व है?

उत्तर- हमारे देश में बहुदलीय लोकतंत्र प्रणाली है | जैसा की हम जानते है आजादी के बाद 1952, 1957 और 1962 तक कांग्रेस का ही देश के सभी भागों में प्रभुत्व था | किन्तु धीरे धीरे दूसरे

राजनैतिक दलों  नें अपने आप को मजबूत करना शुरू कर दिया और कुछ ही दशकों में कांग्रेस को हर क्षेत्र में कड़ी टक्कर का  सामना करना पड़ा | यह हमारे संविधान में जिस लोकतांत्रिक व्यवस्था की संकल्पना की थी यह उस तरफ बढ़ने का महत्वपूर्ण  पड़ाव था| यह भारतीय लोकतंत्र की व्यवस्था है की 20 -25 वर्ष तक एक ही दल की सरकार  होने के बावजूद यहां  बहुदलीय व्यवस्था पनप पाई| बहुदलीय  व्यवस्था के होने से देश तथा समाज को विकल्पों  की अधिकता तथा भिन्नता प्राप्त होती है | यदि कोई व्यक्ति किसी एक या दो दल की विचारधारा या कार्य से संतुष्ट नहीं है तो वह अन्य विकल्पों का चयन अन्य दलों के रूप में कर सकता है | जिसके कारण हमारे लोकतंत्र के मूल्य नीतियां ढृढ  होती है | बहुदलीय व्यवस्था लोकतंत्र की मजबूती तथा परिपक्वता का  द्योतक  है |

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प्रश्न 9.स्वतंत्रता के समय माना गया था कि ज़मींदारी प्रथा का खात्मा सामाजिक बदलाव का एक महत्वपूर्ण कदम होगा। इससे समाज में क्या-क्या बदलाव हुए? 

उत्तर- अंग्रेजो के शासन काल से देश के अधिकांश भाग में जमींदारी प्रथा थी| हर क्षेत्र में उन्हें अलग अलग नामों से जाना जाता था| जैसे जमींदार, मालगुजार , गोटिया , जागीरदार आदि | देश में स्वतंत्रता आंदोलन के साथ – साथ किसानों का भी आंदोलन चल रहा था| जिसका प्रमुख उद्देश्य था की कृषि क्षेत्रों में सुधार के साथ – साथ जमींदारी प्रथा से मुक्ति पाना | जब देश स्वतंत्र हुआ उसके बाद सन 1956 तक देश के अधिकांश भागों से जमींदारी प्रथा को समाप्त किया गया | और जो वास्तव में किसान थे और खेती करते थे ऐसे लगभग 200 लाख लोगों को जमीनों का वितरण किया गया |  आज किसान स्वतंत्र होकर कृषि करता है वह स्वम की भूमि पर स्वम के लिए अनाज का उत्पादन करता है | जमींदारी प्रथा में किसानो को जमीदारो के अन्य बेगारी के कार्य भी करने  पड़ते थे | आज भी जमीदारो का जमींन पर से अधिकार पूर्ण रूप से समाप्त नहीं हुआ है | वो कई हथकण्डे अपना कर जमींन को अभी भी अपने कब्जे में रखने में सफल हैं| गरीब किसान और भूमिहीन आज जमीनों से वंचित हो इस क्षेत्र में और सुधार और सक्रियता की आवयश्कता है | जिससे समाज के हर गरीब भूमिहीन किसान के साथ  न्याय हो सके | 

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प्रश्न 10.अगर ये कानून पारित नहीं होते तो भारत में महिलाओं की स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ता? जातिवाद को तोड़ने में अन्तर्जातीय विवाहों की क्या भूमिका हो सकती है? क्या इस कानून से जाति व्यवस्था पर कोई प्रभाव पड़ा है? 

उत्तर- पहली बार हिन्दू कोड  बिल सन 1951 में संसद ने पेश हुआ | किंतु विरोध की वजह से यह पारित नहीं हो सका | जिसके कारण  डॉ. अम्बेडकर ने अपना त्यागपत्र दे दिया | बाद में हिन्दू कोड बिल को चार भागो में बाट कर कई एक्ट बनाये गए | जैसे – हिन्दू मैरिज  एक्ट 1955 , हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 . हिन्दू दत्तक ग्रहण अधिनियम आदि |    यदि यह कानून पास नहीं होते तो आज महिलाओ की स्थित अत्यंत दयनीय होती | उन्हें वोट देने का अधिकार, सम्पति में पुत्रो के सामान अधिकार, समाज में पुरुषो के सामान अधिकार, पढ़ने का अधिकार और अपनी स्वतंत्रता तथा मौलिक अधिकार नहीं प्राप्त होते| भारतीय समाज में महिलाओ की स्तिथ अत्यंत ही दयनीय होती | जातिवाद राष्ट्रीय एकता के लिए घातक सिध्द हुआ है | क्योंकी व्यक्ति जातिवाद की भावना से प्रेरित होकर अपनी जातिय हितो को ही सर्वोपरि मानकर राष्ट्रीय हितो की उपेक्षा कर देता है | जिससे समाज में तनाव उत्पन्न होता है और राष्ट्रीय एकता को आघात पहुँचता है | अन्तरजातीय विवाह, जातीय प्रथा को कमजोर करने का एक सफल हथियार हो सकता है | इस कदम से आप समाज में कुरीतियों के बंधन  से मुक्त हो सकते है | और अन्तर्जातीयो में  विवाह से समाज की एकता को बल मिलेगा साथ ही यह वैज्ञानिक रूप से भी श्रेष्ठ माना गया है | किन्तु आज भी हम जातीय बंधनों में जकड़े हुए है और अभी भी इस क्षेत्र में जागरूकता की आवश्यकता है | 

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प्रश्न 11.क्या आपको लगता है कि आपके परिवार की संपत्ति में भाई व बहनों को समान हिस्से मिलनी चाहिए? 

उत्तर- भारत में एक व्यक्ति केवल और केवल अपने पिता की पैतृक संपत्ति या उनके द्वारा खुद कमाई हुई संपत्ति में अपना अधिकार प्राप्त करने के योग्य हो सकता है | किन्तु यदि वह पिता चाहे तो वह अपनी खुद की कमाई हुई संपत्ति से अपने पुत्र को वंचित कर सकता है, लेकिन वह अपनी पैतृक संपत्ति से अपने पुत्र को वंचित नहीं कर सकता है | यदि कोई व्यक्ति भाई की खुद कमाई हुई संपत्ति में अपने हिस्से का दावा करता है तो निश्चित ही वह अपना समय व्यर्थ कर रहा है क्योकि कोई भी व्यक्ति अपने भाई की खुद  कमाई हुई संपत्ति में अपने अधिकार का  दावा नहीं कर सकता है| जब तक की उस व्यक्ति के पास उसके भाई के द्वारा बनाई हुई कोई वसीयत न हो या उसके भाई ने वह संपत्ति उस व्यक्ति को किसी प्रकार के उपहार में न दी हो | 

हाँ निश्चित रूप से परिवार की संपत्ति  में भाई – बहनो को समान हिस्सा मिलना चाहिए क्योंकि परिवार में बेटा और बेटी एक समान है और समाज में दोनों का एक समान महत्व है| कोई भी परिवार महिला और पुरुष दोनों के समान योगदान से आगे बढ़ता है , इस कारण परिवार की संपत्ति में भाई – बहन का समान हिस्सा होना चाहिए 

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प्रश्न 12.कल्पना कीजिए अगर भाषाई राज्य नहीं बनाए गए होते तो भारत का राजनैतिक मानचित्र कैसा होता? 

उत्तर- यदि भाषाई आधार पर राज्यों का गठन न होता तो भारत का मानचित्र बड़ा ही विचित्र हो जाता जिसका अनुमान करना ही कठिन है | संविधान सभा ने 1948 में भाषायी राज्य पर एस के दर के नेतृत्व में आयोग की नियुक्ति की |  दर आयोग ने इस समय इस माँग को उठाने के खिलाफ अपनी राय दी | क्योकि इससे राष्ट्रीय एकता को खतरा और प्रशासन को असुविधाजनक स्थिति का सामना करना पड़ सकता था | लेकिन देश के विभिन्न इलाको में भाषाई राज्य स्थापित करने के लिए विशेषकर महाराष्ट्र और आन्ध्रप्रदेश में व्यापक जन आंदोलन चलने लगे | 1952 में तेलुगुभाषी स्वतंत्रता सेनानी पोट्टी श्री रामुलु ने अलग आन्ध्र राज्य के समर्थन में आमरण अनशन शुरू कर दिया और लगातार 58 दिनों तक अपनी माँग पर डटे रहने के बाद उनकी मृत्यु हो गयी | इस घटना के बाद सरकार झुक गई और उसने अलग आंध्रप्रदेश की माँग को मान लिया | अक्टूबर 1953 में अलग आन्ध्रप्रदेश अस्तित्व  में आ गया | यदि भाषाई राज्य नहीं बनाए जाते तो राज्यो के

अन्दर भी कई विविधताएँ रहती | एक ही राज्य में कई भाषाओ को बोलने वाले रहते और उनमे संघर्ष की भावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता | लेकिन भाषायी राज्यों में इस स्थिति का हल निकाल लिया और प्रशासनिक दक्षता भी बढ़ा दी गई | 

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प्रश्न 13.क्या आप व्यक्तिगत रूप से भाषायी राज्य के विचार से सहमत हैं क्यों? साथियों के साथ चर्चा करके उनके विचारों का अंदाज़ा लगाइए ।

उत्तर- हाँ मै भाषाई राज्य से पूर्ण रूप से सहमत हूँ | क्योंकी भाषाई आधार पर राज्यों का निर्माण इस सकारात्मक विचार के कारण किया गया था की समान्यतः एक ही भाषा को बोलने वाले लोग एक राज्य में आ सकें | इससे लोगो में टकराव की संभावना कम हो जाती है, लोग संतुष्ट भी रहते है | तथा प्रशासनिक दक्षता में वृद्धि होती है | भारत में  भाषायी राज्य बनाने के सकारात्मक परिणाम हुए है| इससे लोकतंत्र और मजबूत हुआ है तथा क्षेत्रीय विकास  भी पहले से तेज हुआ है | इसलिए भाषाई आधार पर राज्य का निर्माण उचित है | क्योंकी विभिन्न भाषा बोलने वालो ने देश में अपने लिए एक सम्मानजनक जगह पाई और अपनी भाषा व संस्कृतियो को विकसित करने का मौक़ा पाया | 

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प्रश्न 14.क्या यह मुमकिन है कि किसी इलाके में सिर्फ एक ही भाषा के बोलने वाले लोग रहते हैं। अगर भाषाई अल्पसंख्यक हर जगह मौजूद होंगे तब क्या भाषाई राज्य में उनकी उपेक्षा नहीं होगी? 

उत्तर- भारत में भाषाई अल्पसंख्यकों के विकास के लिए संविधान द्वारा विशेष अधिकारी नियुक्त किये जाने का प्रावधान है | भारतीय संविधान द्वारा 1957 में विशेष अधिकार हेतु कार्यालय की स्थापना की गई| जिसे आयुक्त नाम दिया गया | आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है | आयुक्त का कार्य एवं उद्देश्य भाषायी अल्पसंख्यको के सुरक्षा एवं विकास संबंधी कार्यों का अनुसंधान एवं इन कार्यों का राष्ट्रपति को प्रतिवेदन देना है | इसका लक्ष्य भाषाई अल्पसंख्यकों को समाज के साथ समान अवसर प्रदान कर राष्ट्र की गतिशीलता में उनकी सहभागिता पुष्ट करना है | अतः यह संभव नहीं है की किसी भी इलाके में केवल एक ही भाषा बोलने वाले लोग रहते है| भाषायी अल्पसंख्यक होने से किसी भी राज में उनकी उपेक्षा नहीं होती ,क्योंकि संविधान में ऐसे प्रावधान रखे गये  है , जिससे किसी के साथ कई अन्याय या भेदभाव न हो सके |  

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प्रश्न 15.क्या भाषाई राज्य का विचार आदिवासी भाषाओं को नजरअंदाज नहीं करता है? इस बारे में आपकी क्या राय है? 

उत्तर- आदिवासी शब्द दो शब्दों “आदि “ और “ वासी “ से मिलकर बना है और इसका अर्थ मूलनिवासी होता है | भारत की जनसंख्या का 1.6% (10करोड़ ) जितना एक बड़ा हिस्सा आदिवासियों का है | पुरातन लेखो में आदिवासियों को आत्विका कहा गया है | महात्मा गाँधी जी ने आदिवासियों को गिरिजन कह कर पुकारा है|भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए “ अनुसूचित जनजाति “ पद का उपयोग किया गया है|भाषाई राज्यों के विचार से आदिवासी भाषाओं को नजरअंदाज नहीं कर सकते | भाषायी राज्य बनाने के बाद एक प्रशासनिक सुविधा का उद्देश्य रहता है भाषायी राज्य में भी विविध भाषाएं बोलने वाले लोग रहते है | सभी राज्यों में आदिवासी भाषाओं के संरक्षण प्रोत्साहन हेतु संविधान के प्रावधान के अनुसार उन्हें संरक्षण प्रदान किया जाता है| आदिवासी बहुल क्षेत्रों में विशेष कानून भी लागू किये गए है | ताकि आदिवासियों  की भाषा और संस्कृति को किसी प्रकार का नुकसान न हो| इस प्रकार भाषाई राज्यों में आदिवासी भाषाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता|आदिवासी भाषाओं के आधार पर भी भारत में कई राज्य बनाए गए है |  

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प्रश्न 16.2000 के बाद भारत में कई नए राज्य गठित हुए। वे किन आधारों पर बने शिक्षक की मदद से पता करें। 

उत्तर- वर्ष 2000 में उत्तराखंड , झारखंड और छत्तीसगढ़ अस्तित्व में आये तथा इसके बाद 2 जून 2014 को तेलंगाना 29 वां राज्य बना, जो आंध्र प्रदेश राज्य से अलग हो गया | इसका एक मात्र उद्देश्य प्रशासनिक सुविधा था | उत्तर प्रदेश  बड़ा राज्य था अतः यंहा भी प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से पर्वतीय क्षत्रो को अलग कर उत्तराखंड  राज्य बनाया गया था| मध्यप्रदेश के पूर्वी हिस्से को अलग करके छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना की गई| जिसका उद्देश्य भाषा के साथ – साथ क्षेत्रीय विकास एवं प्रशासनिक सुविधा के लिए राज्य बनाना था तेलंगाना का निर्माण उस क्षेत्र के लोगो की मांग एवं हिंसक आंदोलनो एवं  प्रशासनिक सुविधा के दृष्टिकोण से किया गया था |

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प्रश्न 17.क्या आपको लगता है कि राज्य का समाज में समानता और आर्थिक विकास के लिए हस्तक्षेप करना उचित है? इसका राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता? इस पर चर्चा करें।

उत्तर- हाँ यह तर्क शत-प्रतिशत सही है की राज्य का समाज में समानता और आर्थिक विकास के लिए हस्तक्षेप करना उचित होता है | अर्थात समाज में समानता और आर्थिक  विकास के लिए राज्यों का हस्तक्षेप करना अति आवश्यक है | बिना राज्य के हस्तक्षेप  के आर्थिक विषमता एवं संसाधनों का समान वितरण संभव ही नहीं है | यदि यह हस्तक्षेप न हो  तो, आर्थिक रूप से मजबूत व्यक्ति और भी धनी हो जायेगा और गरीब लोग और भी गरीब हो जायेंगे | राज्यों के हस्तक्षेप से राज्य आर्थिक विकास हेतु ऐसे क्षेत्रों में निवेश करता है , जिससे गरीब और आम लोगो को लाभ मिल सके और निवेश से होने वाला लाभ गरीबी दूर करने में और अधिक सहायक हो सके | समानता और आर्थिक  विकास राज्य के हस्तक्षेप से राजनैतिक  क्षेत्र में भी समानता की स्थापना होती है, बिना आर्थिक समानता के हम  राजनैतिक समानता भी कल्पना नहीं कर सकते है | इस प्रकार हम देख सकते है की स्वतंत्र भारत में शासन में न केवल एक लोकतांत्रिक और विकेन्द्री कृत राज्य का निर्माण किया बल्कि साथ – साथ सामाजिक बदलाव और आर्थिक विकास का बीड़ा भी उठाया |इन प्रयासों ने हमारे देश के  राजनैतिक तथा शासकीय ढांचो पर गहरा प्रभाव छोड़ा है|    

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प्रश्न 18.कांग्रेस के विभाजन के पीछे किस तरह के कारण जिम्मेदार रहे होंगे? चर्चा करें ।

उत्तर- आजादी के बाद के दौर  में कांग्रेस पार्टी में मतभेद बढ़ते गए | एक ओर  युवा नेता थे जो गरीबो के पक्ष में तीव्र कदम उठाना चाहते थे और उनका वामपंथी दलों  की तरफ झुकाव था | दूसरी ओर  संगठन  के पुराने नेता थे जो बीच के रास्ते पर चलना उचित समझते थे | इंदिरा गाँधी के इन कदमो का आम लोगो ने काफी हद तक समर्थन किया लेकिन कांग्रेस के अधिकांश बड़े नेता उससे खुश नहीं थे | अपने आप को एक स्वतंत्र नेता के रूप में स्थापित करने के लिए 1969 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी का श्रीमति  इंदिरा गाँधी ने विरोध किया तथा विपक्षी दलों के उम्मीदवार वी. वी. गिरी का समर्थन किया | उन्होंने कांग्रेस के नेतृत्व पर यह आरोप लगाया की वे सरकार की गरीबों के पक्ष में बनाई जाने वाली नीतियों को लागू करने के रास्ते  में रोड़े अटकाना चाहते है | बहुत से कांग्रेस विधायकों और सांसदों ने श्री वी. वी गिरी के पक्ष में मतदान किया और वे चुनाव जीत गए | इस घटना के बाद कांग्रेस की फूट वास्तविक विभाजन में बदल गई | इंदिरा गाँधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस तथा के. कामराज के नेतृत्व वाली कांग्रेस | इसी क्रम में इंदिरा गाँधी और उनकी पार्टी को 1971 के लोकसभा चुनाव तथा 1972 के विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनावों में गरीबी हटाओ के नारे की मदद से भारी जनसमर्थन मिला | कामराज कांग्रेस को उस तरह का जनसमर्थन  प्राप्त नहीं हुआ और इंदिरा गाँधी कांग्रेस की कांग्रेस पार्टी के रूप में स्थापित हुई | 

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प्रश्न 19.आपके विचार में आपातकाल लगाया जाना उचित था या नहीं? शिक्षक की सहायता से चर्चा करें। 

उत्तर- 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था | तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की अनुच्छेद 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी | स्वतंत्र भारत  के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोक तांत्रिक काल था | आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई | इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियो को कैद कर लिया गया और  प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया गया | प्रधानमंत्री के बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर पुरुष नसबंदी अभियान चलाया गया | जयप्रकाश नारायण ने इसे भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि कथा था | विरोधी दलो और अधिकांश स्वतंत्र चिंतको का मानना था की इन परिस्थितियों में आपातकाल का लगाना भारतीय लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा था | जिस प्रकार से सनं 1977 के चुनाव में जनताने सरकार के विरूद्ध मत अभिव्यक्त किया उससे यह  स्पष्ट हो गया कि इस समय आयतकाल लगाना उचित नहीं था|

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प्रश्न 20.आपातकाल लगाए जाने का आम जीवन और विरोधी दलों पर क्या प्रभाव पड़ा ? 

उत्तर- आपातकाल केवल एक बार 1975 से 1977 तक लगाया गया था | इस आपातकाल के पीछे 1971 के बाद की अनेक परिस्थितियां जिम्मेदार थी | कुछ समस्याएं  दीर्घकालीन बदलाव के कारण थी | जैसे सरकार की बढ़ती शक्ति के साथ भ्रष्टाचार का बढ़ना आपतकाल लगाये जाने से आम जन जीवन प्रभावित हुआ| लोगो से अभिव्यक्ति की आजादी छीन ली गई | सरकारी मशीनरी को अत्यधिक अधिकार दे दिए गए जिससे आम लोगो की परेशानी बढ़ गई | रातो – रात देश के तमाम विपक्षी नेताओ को जेल में डाल दिया गया और अखबारों पर सरकार द्वारा स्वीकृत खबरों व विचारो के अलावा और  कुछ छापने पर प्रतिबंध लगा दिया गया | सरकार द्वारा संसद में अपने बहुमत का उपयोग करते हुए संविधान में कई संसोधन किए गए और अलोक तांत्रिक कानून बने गए| सरकार की नीतियों का विरोध करने या संगठन बनाने का अधिकार छीन लिए गए | आम लोगो को ऐसा अनुभव हो रहा था की वे लोकतंत्र  में नहीं बल्कि तानाशाही शासन व्यवस्था में रह रहे है | 

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प्रश्न 21.क्या आपको लगता है कि पंजाब और असम में जो आंदोलन हुए वे केवल क्षेत्रीय दलों की सरकार बनाने के उद्देश्य से या फिर कुछ अन्य व्यापक उद्देश्यों से हुई ?  

उत्तर– सन 1970 के दशक में जब राजनीति का विकेंद्रीकरण हो रहा था और केंद्र सरकार लगातार अपना आर्थिक हस्तक्षेप राज्यों के क्षेत्रों में बढ़ा रही थी और राज्य को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही थी तब राज्यों को तथा उनके नागरिकों को यह लगा कि केंद्र का यह हस्तक्षेप उनके अधिकारों और स्वतंत्रता में हस्तक्षेप कर रहा है और अपने विकास में अवरोध महसूस कर रहे थे तो कुछ राज्यों ने केंद्र की केंद्रीकरण नीतियों को संवैधानिक ढांचे के अंदर चुनौती दी गई लेकिन कुछ राज्यों की यह चुनौतियां अनियंत्रित होकर भारतीय लोकतंत्र और एकता को ही चुनौती दे दिया जिसमें इसका सहयोग देश विद्रोही ताकतों ने किया जिससे राज्यों का यह विरोध अपने मार्ग से भटक गया और यह केंद्रीकरण का विरोध ना होकर भारतीय संविधान और देश के विरुद्ध हो गया इस तरह यह आंदोलन अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में असफल रहा |

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प्रश्न 22.1950 के बाद भारत में सत्ता का केन्द्रीकरण क्यों हुआ होगा?

उत्तर- स्वतंत्रता के  बाद 1950 से 1970 तक जब भी आम चुनाव हुए केवल एक ही पार्टी 

( कांग्रेस ) को ही बहुमत प्राप्त हुआ | जिसके कारण आम लोग अपनी आकांक्षाओं के विकास में अवरोध महसूस कर रहे थे | और लगातार एक ही पार्टी को बहुमत मिलने से उस पार्टी के नेता भी जनता की आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतर पा रहे थे | एक ही पार्टी के लगातार विजय प्राप्त करने से वह ( कांग्रेस ) मजबूत होती गई और श्रीमती इंदिरा गांधी अधिक शक्तिशाली बनती जा रही थी| जिसके कारण लगातार सत्ता का केन्द्रीयकरण होता चला गया | और इसी केन्द्रीयकरण का अन्तिम परिणाम देश के समक्ष सन 1975 में आपातकाल के रूप में आया और देश की सभी संवैधानिक  शक्तियों का केन्द्रीकरण कर प्रधानमंत्री  में निहित कर दी गई | 

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प्रश्न 23.क्या आप राजीव गांधी के इस कथन से सहमत हैं कि गरीबों के लिए बनी योजनाओं का फायदा गरीबों तक नहीं पहुँचता था  

उत्तर- तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी ने कहा कि सरकारी योजनाओं का फायदा गरीब लोगों तक नहीं पहुंच पाता क्योंकि सरकार द्वारा आवंटित एक रुपया गरीबों तक पहुंचाते – पहुंचाते पंद्रह पैसे से भी कम हो जाता है | यह कथन तत्कालीन परिस्थितियों में सही थे क्योंकि उस समय केंद्र और राज्यों में हर जगह ही भ्रष्टाचार व्याप्त था | हर स्तर पर सरकारी पैसो का बन्दरबांट किया जाता था | जिसके कारण समाज के अंतिम व्यक्ति तक एक रुपया पहुचते – पहुचते केवल पन्द्रह पैसा ही पहुचता था| जिसके कारण सरकारी योजनाओं का लाभ वंचितों को नहीं पहुंच पाता था |  

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प्रश्न 24.क्या पंचायती राज के लागू होने से वास्तव में सत्ता का विकेन्द्रीकरण हुआ है और क्या गरीबों तक अधिक योजना का लाभ पहुँच रहा है?

उत्तर- पंचायती राज्य की कल्पना महात्मा गांधी ने की थी | पंचायती राज्य व्यवस्था लागू करने के दो मुख्य कारण थे | पहला – प्रत्येक व्यक्ति  का नीति निर्धारण में सक्रिय भागीदारी जिसके कारण सत्ता का विकेन्द्रीय कारण हो सके और समाज का प्रत्येक वर्ग और व्यक्ति अपने  आप को सत्ता से जुड़ा हुआ महसूस करे इससे  सत्ता का विकेन्द्रीकरण होगा  और ग्रामीण , तहसील , जिला , मंडल राज्य तथा केन्द्रीय स्तर पर अपनी आवश्यकताओं के आधार पर नीतियां तैयार की जाएगी और उनका सभी लाभ आवश्यक व्यक्तियों तक पहुंचेगा | सत्ता के विकेंद्रीकरण से सभी लोग जुड़ाव महसूस करेंगे | दूसरा यह कि भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करने में सहायता मिलेगी यदि ग्राम स्तर पर ग्राम समाज द्वारा कार्यों और योजनाओं का देख –  भाल और पैसों का वितरण किया जाएगा तो भ्रष्टाचार की संभावनाएं कम होगी और सभी हितग्राहियों को समान रूप से लाभ मिलेगा |    

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प्रश्न 25.1947 में कई विशेषज्ञों को लग रहा था कि भारत जैसे देश में सार्वभौमिक मताधिकार पर आधारित लोकतंत्र चल नहीं सकता है। पिछले 60 साल के इतिहास के आधार पर बताएँ कि क्या उनकी आशंका सही थी? वह किस हद तक सही या गलत थी? 

उत्तर-स्वतंत्रता के बाद 1947 और 1950 की स्थितियों को देखकर बहुत से लोगों के मन में यह लग रहा था कि लोकतंत्र का यह आधार एवं ढांचा ज्यादा दिन नहीं टिकेगा | क्योंकि उस समय हमारे देश में साक्षरता दर कम थी,गरीबी, आर्थिक असमानता,जाति प्रथा , इन सब कारणों से लगा की यंहा सार्वभौमिक मताधिकार सफल होना संभव नहीं है |लेकिन आज लगातार आजादी के 75 वर्ष पूर्ण हो जाने पर लोकतंत्र के विकास और लोक चुनावी प्रक्रिया के सफल क्रियान्वयन ने इन शंकाओं को निराधार सिद्ध कर दिया|आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा और सफल लोकतंत्र है| 

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प्रश्न 26.1947 में कई विशेषज्ञों को लगता था कि भारत में धर्म के आधार पर ही राष्ट्र बन सकता है। यहाँ धर्मनिरपेक्ष राज्य नहीं बन सकता है। पिछले 60 साल के इतिहास के आधार पर बताएँ कि क्या उनकी आशंका सही थी? वह किस हद तक सही या गलत थी? 

उत्तर-भारत में जिस प्रकार से भाषाई विविधता ,धार्मिक विविधता , क्षेत्रीय समस्याएं एवं आकांक्षाएं थी उन्हें देखकर कोई भी सहज ही संस्क्रित  हो जाता था कि भारत एक राष्ट्र के रूप में ज्यादा दिन नहीं चल सकता है और इसका राज्यों में बटवारा हो जायेगा  | भारत का पहला भाषाई राज्य आंध्र प्रदेश बना| 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश के आधार पर कई भाषाई राज्य बनाये गये | पिछले 75 वर्ष का इतिहास यह बताता है कि भले ही केंद्र में किसी दुसरे दल की सरकार हो किन्तु राज्य में अन्य दल की सरकार होते हुए भी केंद्र राज्य की आवश्यक और अधिकारों भी अवहेलना नहीं कर सकता है |  

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प्रश्न 27.1947 में कई विशेषज्ञों को लगता था कि भारत एक राष्ट्र के रूप में नहीं टिक सकता है। यह छोटे-छोटे राज्यों में बंट जाएगा या इसमें छोटे क्षेत्रों के हितों की उपेक्षा की जाएगी। पिछले 60 साल के इतिहास के आधार पर बताएँ कि क्या उनकी आशंका सही थी? वह किस हद तक सही या गलत थी? 

उत्तर- 1947 में कई विशेषज्ञों को लगता था कि भारत एक राष्ट्र के रूप में बंट  जायेगा |   इस आशंका के कई कारण थे , जैसे – भाषाई विविधता क्षेत्रीय आकांक्षाएं  तथा विविधताए | राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान कांग्रेस के नेताओं ने जनता को यह आश्वासन भी दिया था कि स्वतंत्रता के बाद भाषा के आधार पर राज्यों का निर्माण किया जायेगा |  लेकिन जिस प्रकार से भारत का धर्म के आधार पर विभाजन हुआ उसको देखते हुए कांग्रेस के नेता डर रहे थे कि भाषाई राज्य बनाने पर कही भारत कई टुकड़ो में न बंट जाये | अन्ततः 1953 में आंध्र प्रदेश पहला भाषाई राज्य बना |1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश के आधार पर भाषाई राज्य बनाए गए | उसके बाद प्रशासनिक एवं क्षेत्रीय विकास के उद्देश्य से कई छोटे राज्य बनाये गए | आज भारत में राज्यों की संख्या 29 हो गई है| पिछले 60 साल का इतिहास यह बताता है कि जब तक केंद्र में एक दल का शासन रहा तब तक(1990 के पहले तक) राज्यों  एवं छोटे क्षेत्रों की उपेक्षा जरूर हुई | लेकिन 1990 के बाद से क्षेत्रीय दलों का प्रभाव बढ़ा तथा केंद्र की सरकारों में उनकी सहभागिता बढ़ने से अब क्षेत्रीय विकास की उपेक्षा केंद्र नहीं कर सकते हैं | अभी स्थिति पहले जैसी नहीं है | अतः यह आशंका आंशिक रूप से सही कही जा सकती है ,लेकिन अब केंद्र क्षेत्रीय हितों की उपेक्षा नहीं कर सकता है |

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प्रश्न 28.1952 में कई लोगों का विश्वास था कि नए संविधान की मदद से भारत में सब लोगों के बीच समानता और भाईचारा स्थापित किया जा सकता है। पिछले 60 साल के इतिहास के आधार पर बताएँ कि उनका विश्वास किस हद तक सही या गलत था ? 

उत्तर- भारत में नए गणराज्य के संविधान का शुभारंभ होने जा रहा था | हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी धर्मनिरपेक्ष , लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को न्याय सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक विचार अभिव्यक्ति , विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता।  प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा ,उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता,और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा का संपूर्ण सम्मान करते है| भारत एक लोकतांत्रिक देश है जिसका अर्थ है की सर्वोच्च सत्ता लोगों के हाथ में है | लोकतंत्र शब्द का  प्रयोग राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक  लोकतंत्र के लिए प्रस्तावना रूप में प्रयोग किया जाता है |  सरकार के जिम्मेदार प्रतिनिधि , सार्वभौमिक  वयस्क , मताधिकार एक वोट एक मूल्य स्वतंत्र न्यायपालिका आदि भारतीय लोकतंत्र की विशेषता है | 1952 में कई लोगों को यह विश्वास था की नए संविधान की मदद से भारत में अब लोगो के बीच समानता और भाईचारा स्थापित किया जा सकता है | पिछले 70 साल के इतिहास के आधार पर यह बात आंशिक रूप से ही सही साबित हुई है क्योंकि संविधान द्वारा भारत में राजनीतिक समानता तो स्थापित कर दी गई लेकिन उस राजनीतिक समानता का उपयोग आर्थिक असमानता के कारण सभी लोग नहीं कर पाए | सरकार द्वारा ये प्रयास भी लगभग असफल ही रहे क्योंकि पूंजीवादी व्यवस्था के कारण कुछ लोगों के पास बहुत अधिक धन एवं सम्पति है ओर वे प्रभावशाली है ,  शेष जनता गरीब है जिसमे वह अपने अधिकारों से वंचित रह जाती है | अतः पिछले 60 सालो से देश में समानता ओर भाईचारा स्थापित हुआ है लेकिन यह पुर्णतः  सही नहीं है |  

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प्रश्न 29.1976 में कई लोगों को लगा कि भारत में नागरिक अधिकार नहीं बने रह सकते हैं और भारत में अधिनायक तंत्र या तानाशाही ही चल सकती है। क्या आपको लगता है कि यह विचार अनुभव के आधार पर खरा उतरा है?

उत्तर- 1976 में कई लोगों को यह लगा की भारत में नागरिक अधिकार नहीं बने रह सकते है ओर भारत में अधिनायक तंत्र या तानाशाही ही चल सकती है | ऐसे विचारों के प्रभाव में ही 1975 में भारत में आपातकाल लगाया गया था | और भारत में अधिनायकवादी सरकार दो वर्षों तक रही | लेकिन इन दो वर्षो के शासन के बाद जब देश में चुनाव हुए  तो पुरे देश ने उस सरकार को नकार दिया और लोकतांत्रिक सरकार के पक्ष में मतदान किया | उसके बाद अब तक के सभी चुनावों में जनता ने लोकतांत्रिक तरीके से काम करने वाली सरकारों का समर्थन किया और अधिनायकवादी तरीके अपनाने वाली सरकारों के विरुद्ध जनमत दिया | जिससे यह सिद्ध होता है की भारत में लोकतंत्र की जड़े बहुत मजबूत है | अनुभव के आधार पर यह विचार निर्मूल साबित हुआ है की भारत में नागरिक अधिकार नहीं बने रह सकते , और भारत में अधिनायक तंत्र या तानाशाही ही चल सकती है इसके विपरीत अनुभव यह बताते है की भारत में लोकतान्त्रिक सरकार ही चल सकती है | 

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प्रश्न 30.आपके मत में हमारे लोकतांत्रिक राजनीति के सामने आज क्या चुनौतियां हैं? 

उत्तर- चुनौती का मतलब , वैसी समस्या जो महत्वपूर्ण हो जिसे पार पाया जा सके और जिसके आगे बढ़ने के अवसर छुपे हुए  हो , चुनौती कहलाती है | जैसे हम किसी चुनौती को जीत लेते है तो हम आगे बढ़  पाते है | लोकतंत्र की मुख्य चुनौतियां निम्नलिखित है –  

1) आधार तैयार करने की चुनौती – अभी भी दुनिया के 25% हिस्से में लोकतंत्र नहीं है | ऐसे हिस्सों में लोकतंत्र की चुनौती है वहां आधार बनाने की | ऐसे देशों में जहां अलोकतान्त्रिक सरकारे है, वहां से तानाशाही को हटाना होगा और सरकार पर से सेना की नियंत्रण को दूर करना होगा उसके बाद एक स्वतंत्र राष्ट्र की स्थापना करना होगा | जहां लोकतांत्रिक सरकारे हों इसे समझने के लिए नेपाल का उदाहरण लिया जा सकता है| नेपाल में अभी हाल ही में राजतंत्र  का शासन हुआ करता  था | लोगों के वर्षो के आंदोलन के फलस्वरूप नेपाल में लोकतंत्र ने राजतंत्र को विस्थापित कर दिया | अभी नेपाल के लिए लोकतंत्र नया है इसलिए वहां लोकतंत्र का आधार बनाने की चुनौती है | 2) विस्तार की चुनौती – जिन देशों में लोकतंत्र वर्षों से मौजूद है वहां  लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती है | लोकतंत्र के विस्तार का मतलब होता है की देश के हर क्षेत्र में लोकतांत्रिक सरकार के मूलभूत सिद्धांत को लागू करना तथा लोकतंत्र के प्रभाव को समाज के हर वर्ग और देश की हर संस्था तक पहुचना | लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती के कई उदहारण हो सकते है| जैसे की स्थानीय स्वभासी निकायो को अधिक शक्ति प्रदान करना ,संघ के हर इकाई को संघवाद के प्रभाव में लाना , महिलाओ और अल्पसंख्को को मुख्य धारा से जोड़ना आदि |

3) लोकतंत्र की जड़े मजबूत करना – लोकतंत्र के विस्तार का एक और मतलब यह है की ऐसे फेसलो की संख्या कम से कम हो जिन्हें लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से परे हटकर लेना पड़े | आज भी हमारे देश में समाज में कई ऐसे वर्ग है जो मुख्यधारा से पूरी तरह से जुड़ नहीं पाए है | आज भी कुछ क्षेत्र ऐसे है जो भारत राष्ट्र की मुख्यधारा से कटे हुए  है | ये सभी चुनौतियां लोकतंत्र के विस्तार की चुनौती  के उदहारण है |

अभ्यास :- 

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प्रश्न 1: रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :-

1. स्वतंत्र भारत में प्रथम आम चुनाव……….. सम्पन्न हुआ।

2. 1952, 1957 और 1962 के लोकसभा चुनाव में……. दल को प्रचण्ड बहुमत प्राप्त हुआ।

3. ……में जमींदारी प्रथा समाप्त कर दी गई और कृषि भूमि का स्वामित्व कृषकों को दिया गया।

4. जातिवाद को शिथिल करने एवं महिलाओं का परिवार में सशक्तिकरण करने के लिए ……….. हिन्दू ……….. कोड बिल सर्वप्रथम………… ने संविधान सभा में प्रस्तुत किया।

5. राज्य पुनर्गठन के लिए अनशन सत्याग्रह..……….ने तेलुगू भाषा के लिए किया ।

6 भारत में राजभाषाओं की संख्या…………..है।

7. वैज्ञानिक तकनीक से कृषि और अनाज उत्पादन में वृद्धि को…….. क्रांति कहा गया।

8. राजा-महाराजाओं का अधिकार, पद व सुविधाओं की या विशेषाधिकारों की समाप्ति को ………. की समाप्ति कहा गया।

9. आंतरिक अशांति के कारण आपातकाल ……… से …….. तक रहा I

10. आतंकियों से स्वर्ण मंदिर को मुक्त कराने की कार्यवाही ऑपरेशन……… कहा गया I

उत्तर- 1 ) 1952 , 2 ) कांग्रेस , 3 ) 1956 , 4 ) हिन्दू , अंबेडकर 5 ) श्रीरामुलु , 6 ) हिंदी , 7 ) हरित , 8 ) अनुदान , 9 ) 1975 , 1977 , 10 ) 100 ब्लास्टर | 

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प्रश्न 2: बहु विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कर लिखिए:-

प्रश्न 1. “आबंटित रुपये में से 15 पैसे ही जनता तक पहुँचते हैं।” इस समस्या के समाधान के लिए राजीव गांधी सरकार ने किया –

1. पंचायती राज व्यवस्था को अनिवार्य किया।

2. पिछड़ा वर्ग के लिए 27% आरक्षण व्यवस्था की गई।

3. लोंगोवाल – राजीव समझौता किया।

4. बांग्लादेशी लोगों की नागरिकता समाप्ति व देश वापसी का समझौता ।

उत्तर :  पंचायती राज व्यवस्था को अनिवार्य किया।

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प्रश्न 2. पंजाब आंदोलन की मुख्य मांग नहीं थी –

1. संविधान संशोधन कर राज्यों के अधिकारों में वृद्धि ।

2. चण्डीगढ़ पंजाब में सम्मिलित हो, खालिस्तान की मांग ।

3. सिक्खों को भारतीय सेना में अधिक भर्ती की जाए।

4. भाखड़ा नांगल बांध से पंजाब को अधिक पानी दिया जाए।

उत्तर : . चण्डीगढ़ पंजाब में सम्मिलित हो, खालिस्तान की मांग ।

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प्रश्न 3. असम के आंदोलन की मुख्य मांग थी –

1. विदेशी नागरिकों (बांग्लादेश) को बाहर निकालना।

2. स्थानीय जन को रोजगार में प्राथमिकता ।

3. संसाधनों का उपयोग असम में उद्योग व रोजगार निर्माण में करना ।

4. भाषा के आधार पर असम का निर्माण । 

उत्तर :  भाषा के आधार पर असम का निर्माण । 

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प्रश्न 4. हिन्दी विरोधी आंदोलन की राजनीति कहाँ नहीं हुई?

1. महाराष्ट्र

2. तमिलनाडु

3. असम

4. आंध्र प्रदेश

उत्तर :  आंध्र प्रदेश

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प्रश्न 5. पंचशील की नीति में नहीं है –

1. अनाक्रमण

2. अहस्तक्षेप

3. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व

4. गुट निरपेक्षता

उत्तर : गुट निरपेक्षता

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प्रश्न 6. गुट निरपेक्ष आंदोलन का संस्थापक देश नहीं था – 

1. इंडोनेशिया

2. मिश्र

3. यूगोस्लाविया

4. चीन

उत्तर : चीन

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प्रश्न 7. योजना आयोग के माध्यम से भारत में स्थापित की गई अर्थव्यवस्था है –

1. समाजवादी अर्थव्यवस्था 

2 . मिश्रित अर्थव्यवस्था 

3. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था

4. मार्क्सवादी अर्थव्यवस्था

उत्तर :  मिश्रित अर्थव्यवस्था 

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प्रश्न 8. गुटनिरपेक्षता की नीति के बाद भी भारत का दृढ़ संबंध किस देश से बना ?

1. अमेरिका

3. चीन

2. सोवियत संघ

4. पाकिस्तान

उत्तर : सोवियत संघ

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प्रश्न 9. भारत के प्रथम लोकसभा चुनावों में निरक्षरता से उत्पन्न समस्या के समाधान में कौन-सा नवाचार किया गया?

1. प्रत्येक दल के लिए अलग पेटी रखी गई। 

2. प्रत्येक प्रत्याशी के लिए अलग चुनाव चिह्न और पेटी रखी गई।

3. जनता को मतदान करने का प्रशिक्षण दिया गया। 

4. जनता को साक्षर करने की व्यवस्था की गई।

उत्तर :  प्रत्येक प्रत्याशी के लिए अलग चुनाव चिह्न और पेटी रखी गई।

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प्रश्न 10. हिन्दू कोड बिल के विरोध का मुख्य कारण था –

1. हिन्दू धर्म व सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन की आशंका ।

2. स्त्री-पुरुष समानता की स्थापना ।

3. जातिवाद की व्यवस्था समाप्ति की आशंका ।

4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार ।

उत्तर-  हिन्दू धर्म व सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन की आशंका ।

प्रश्न 3. इन प्रश्नों के उत्तर लिखिए :-

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प्रश्न 1. डॉ. भीमराव अंबेडकर ने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र क्यों दिया?

उत्तर- पहले आम चुनाव से भी पहले संविधान सभा में हिन्दू समाज में महिलाओं के अधिकारों को स्थापित  करने जातिवाद को कमजोर करने तथा देश भर में हिंदुओं के परिवार और सम्पति संबंधित कानूनों को व्यवस्थित करने के उद्देश्य से एक व्यापक हिन्दू कोड बिल तैयार किया गया था | डॉ भीमराव आंबेडकर ने उसको तैयार करके संविधान सभा में पेश करने में अहम भूमिका निभाई थी | प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी इसके समर्थन में थे मगर रूढ़िवादी हिन्दुओं ने इसका कड़ा विरोध किया | अतः पहले आम चुनाव के बाद उसे उठाने का निर्णय हुआ | इससे दुखी होकर डॉ आंबेडकर ने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया था 

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प्रश्न 2. हिन्दू कोड बिल स्त्री-पुरुष समानता के कौन-कौन से अवसर देता है?

उत्तर- यह बिल स्त्री – पुरुष समानता के निम्नलिखित अवसर प्रदान करता है 1)अगर परिवार के मुखिया की मृत्यु बिना वसीयत बनाए हो जाती है तो उसकी संपत्ति में से उसकी पत्नी और पुत्रियों को पुत्रों के बराबर हिस्से मिलेंगे|पहले केवल पुत्रों को ही संपत्ति मिलतीथी| 2)पति या पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह करना अवैध ठहराया गया | पहले यह केवल महिलाओं पर ही लागू था |

3)पति व पत्नी दोनों को विशेष परिस्थितियों में तलाक मांगने का समान अधिकार है |

4)अंतरजातीय विवाह को कानूनी मंजूरी |

5)किसी भी जाति के बच्चे को गोद लेना वैध | 

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प्रश्न 3. समान नागरिक संहिता किन आशंकाओं के कारण नहीं बनाया गया? नेहरू व अम्बेडकर के विचार स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर- समान नागरिक संहिता कई आशंकाओ के कारण नहीं बनाया गया |  इस कानून पर बहस के दौरान यह सवाल बार – बार उठा की इस तरह का कानून केवल हिंदुओं के लिए क्यों और सभी धर्मों के लिए क्यों नहीं है डॉ आंबेडकर और नेहरू का कहना था कि सभी धर्मों में सामाजिक  सुधार आंदोलन के समर्थक उतने प्रबल नहीं थे और विभाजन के बाद मुसलमान भारत में धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर चिंतित थे | ऐसे में उन पर यह नया कानून लागू करने से उनकी आशंकाओं को बल मिल सकता था | अतः समान नागरिक संहिता इन्ही आशंका के कारण नहीं बनाया गया |

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प्रश्न 4. भाषा के आधार पर ही प्रदेश पुनर्गठन क्यों किया गया? कारण लिखिए । 

उत्तर- आजादी के बाद भारत में बहुत तरह की समस्याएं थी जिसमे एक प्रमुख समस्या यह थी कि राज्यों का गठन कैसे हो ? चूंकि एक बार पूर्व में देश का बंटवारा धार्मिक आधार पर हो चुका था | इसलिए राज्यों के गठन को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुयी थी | इसी दौरान सन 1952 में तेलगूभाषी, स्वतंत्रता सेनानी प्रोपट्टी श्री रामूलू ने अलग आन्ध्र राज्य के समर्थन में आमरण अनशन शुरू कर दिया बाद में उनकी मृत्यु हो गयी अक्टूबर 1953 में आंध्र प्रदेश अस्तित्व में आया | ऐसे ही आन्दोलन देश के सभी क्षेत्रों में शुरू हो रहे थे | सरकार का विवश होकर एक राज्य पुनर्गठन आयोग बनाना पड़ा | आयोग ने अपनी सिफारिश 1955 में  दी | जिसे मोटे तौर पर  मान लिया गया और उसी आधार पर राज्यों के गठन की प्रकिया शुरू हुई | राज्यों के गठन का मूल आधार भाषायी ही रखा गया क्योंकि हर क्षेत्र के लोगो को यह लगना चाहिए की भारतीय लोकतंत्र में उनकी तथा उनके भाषा व क्षेत्र को सम्माजनक स्थान प्राप्त है | 

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प्रश्न 5. भाषा आधारित प्रदेश गठन से क्या-क्या सकारात्मक प्रभाव हुए ? 

उत्तर-राज्यों के गठन के लिए सरकार ने आयोग का गठन किया जिसे इस तरह की मांगों की समीक्षा करके अपनी सिफारिश सौंपनी थी | आयोग अपनी सिफारिशें 1955 में दी और उनको मोटे तौर पर मान लिया गया और उसके आधार पर राज्यों के गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई | अतः भारत के राज्यों को प्रादेशिक भाषाओं के आधार पर गठित किया गया | कांग्रेस के राष्ट्रवादी नेताओं की चिंताओं के विपरीत भाषाई आधार पर राज्य बनने से भारत का विघटन नहीं हुआ बल्कि राष्ट्रीय एकता को बल मिला क्योंकि विभिन्न भाषा बोलने वालो ने देश में अपने लिए एक सम्मानजनक जगह पाई और अपनी भाषा व  संस्कृतियों को विकसित करने का मौका पाया | भाषाई आधार पर राज्य बनने से प्रशासनिक दक्षता में वृद्धि हुई क्योंकि छोटे राज्यों में प्रशासन एवं सुव्यवस्था बनाना आसान हो गया | क्षेत्रीय आकांक्षाएं  संतुष्ट होने से क्षेत्रीय विकास तेजी से हुआ तथा स्थानीय लोगों को स्थायी संसाधनों के लाभ मिलने लगे | 

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प्रश्न 6.  योजनाबद्ध विकास के कारण सरकार की ताकत में वृद्धि कैसे हुई ? 

उत्तर- नए संविधान के लागू होने के दो महीने के भीतर ही योजना आयोग का गठन किया गया | जिसे भारत के आर्थिक विकास के लिए योजना बनाना था | पंडित जवाहरलाल नेहरू योजनाबद्ध  विकास के पक्षधर थे|वे जानते थे की केंद्र सरकार को आर्थिक विकास के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए |योजनाबद्ध विकास इस विचारधारा पर आधारित था कि  केंद्र सरकार को आर्थिक विकास के लिए ठोस कदम उठाने चाहिये | पंचवर्षीय योजना के माध्यम से विकास की प्रक्रिया में देश के सभी संसाधनों पर नियंत्रण एवं उनके वितरण की जिम्मेदारी केंद्र के पास रहती है , अतः योजना आयोग के माध्यम से केंद्र की ताकत का विकास हुआ तथा राज्यों के हितों की उपेक्षा की गई | समय – समय पर राज्यों के द्वारा केंद्र पर ये आरोप लगाए गए , इसके अलावा लंबे समय तक केंद्र एवं राज्यों में एक ही दल की सरकार होने के कारण भी केंद्र सरकार की ताकत में वृद्धि होती गई और उसने अपनी ताकत को बढ़ाने हेतु योजना आयोग को एक माध्यम बना लिया | 

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प्रश्न 7. प्रथम दो पंचवर्षीय योजनाओं के अनुसार भारत शासन की आर्थिक नीति एवं उद्देश्य क्या-क्या थे ?

उत्तर- योजना आयोग ने पंचवर्षीय योजनाओं का प्रस्ताव रखा और विकास के लिए एक मिश्रित अर्थव्यवस्था की नीव रखी | जिसमें शासकीय और निजी क्षेत्रों को साथ मिलकर कार्य  करना था | पहली पंचवर्षीय योजना (1951 – 1956 ) में कृषि के विकास पर जोर दिया गया और इसके लिए विशाल बन्धो व नहरों के निर्माण ग्रामीण स्तर पर सामुदायिक विकास कार्यक्रम पर ध्यान केंद्रित किया गया | 

दूसरी पंचवर्षीय योजना ( 1956- 1961) में यह माना गया की देश की प्रथम प्राथमिकता अधोगीकरण हो जिसमें शासन की विशेष भूमिका हो | भरी उद्योग जैसे – लोहा इस्पात , मशीन उत्पादन , उत्खनन , बिजली , रेलवे और परिवहन आदि का विकास शासन द्वारा हो | दूसरी तरफ मझोले तथा छोटे उद्योग में निजी क्षेत्र की भागीदारी स्वीकार की गई थी | योजनाकारों का मानना था की औधोगिक विकास से कृषि क्षेत्र में रोजगार का भार कम होगा , लोग शहरों में आकर कारखानों में काम करेंगे , औद्योगीकरण  के लिए जरुरी बुनियाद तो बनी मगर अपेक्षानुसार देश में गरीबी दूर नहीं हो पाई | इस कारण 1970 के दशक से देश में गरीबी उन्मूलन और रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए विशेष कार्यक्रम शुरू किये गये | 

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प्रश्न 8. संविधान निर्माण, प्रदेश पुनर्गठन, योजना आयोग व विदेश नीति के आधारों पर प्रथम प्रधानमंत्री की भूमिका व योगदान को स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर- पंडित जवाहरलाल नेहरू आंदोलन के अग्रणी नेता तथा देश के प्रधानमंत्री थे अतः निश्चित रूप से देश के आधारभूत ढांचे को विकसित करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी 

संविधान निर्माण – संविधान सभा के सदस्य रूप में पंडित जवाहरलाल नेहरू की मुख्य भूमिका थी संविधान सभा के तीसरे अधिवेशन में 13 दिसंबर 1946 को पंडित जवाहरलाल  नेहरू ने उद्देश्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया जो अंततः 26 नवम्बर 1949 को पारित हुआ |

प्रदेश पुनर्गठन – आजादी के बाद देश में विभिन्न राज्यों के गठन की माँग उठाने लगी जिसके निराकरण के लिय प्रधानमंत्री को विवशा होकर एक राज्य पुर्नगठन आयोग बनाना पड़ा | जिसे इस तरह की मांगों की समीक्षा करके अपनी सिफारिश सरकार को सोपानी थी|  आयोग ने अपनी सिफारिशों 1955 में की ओर उसे मोटे तोर पर मानकर उसी के आधार पर राज्यों के गठन की प्रकिया शुरू कर दी गयी |

योजना आयोग – पंडित जवाहरलाल नेहरू योजनाबद्ध विकास के पक्षधर थे | वे मानते थे की केंद्र सरकार के आर्थिक विकास के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए इसलिए उन्होंने योजना आयोग का गठन किया और पंचवर्षीय योजनाओं का प्रस्ताव रखा | इस  तरह उन्होंने एक मिश्रित अर्थव्यवस्था की नींव रखी जिसमें शासकीय और निजी क्षेत्र को साथ मिलकर काम करना था | विदेश नीति – भारत को आजादी बहुत ही विषम परिस्थितियों में मिली उससे कुछ समय पूर्व ही द्रितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ था | उस समय पूरी दुनिया सो राजनेतिक व सैन्य  गुटों में बट रही थी | जिसमे एक हिस्सा उसमें अधिकार के नेतृत्व में था और दूसरा सोवियत संघ के | चूँकि भारत किसी भी एक गुट के साथ जुड़कर अपने सावेधानिक मूल्यों ओर शान्ति के साथ समझोता नहीं कर सकता था अतः पंडित नेहरू ने कुछ देशो के साथ मिलकर इन दोनों गुटों से दूर रहने कि नीति बने ओर माँग भी इसी नीति पर अमल किया | जिसे हम आज गुटनिरपेक्ष देशो का समूह कह  सकते है |       

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प्रश्न 9. पं. जवाहरलाल नेहरू ने विदेश नीति के रूप में कौन-कौन से मुख्य सिद्धांत स्थापित किए?

उत्तर- अंतरराष्ट्रीय समाज में एक देश के द्वारा अन्य  देशों के साथ संबंध स्थापित करने की नीति उसकी विदेश नीति कहलाती है प्रत्येक देश की विदेश नीति उसके आदर्शों , हितों और जरूरत के आधार पर तय होती है | भारत की विदेश नीति का विश्लेषण करने से पहले तत्कालीन परिस्थितियों का अवलोकन करना आवश्यक है | उस समय द्रितीय  विश्व युद्ध समाप्त हो चुका था और विश्व में खासकर  एशिया और अफ्रीका में ओपनिवेश  युग समाप्त हो रहा था | भारत का मानना था कि प्रत्येक देश एक दुसरे का सहयोग करें और प्रगति की ओर अग्रसर हो | किन्तु उसी समय विश्व के अधिकतर देश के राजनेतिक सैन्य गुट में बट रहे थे | जिसमें एक का नेतृत्व अमेरिका और दूसरे गुट का नेतृत्व सोवियत संघ (रूस ) कर रहे थे | चूँकि भारत का किसी भी गुट में सामिल होना उसके सविधानिक मूल्यों, हितो ओर सुरक्षा की द्रिष्टि से उचित नहीं था | तब उस समय तत्तकालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने एक तीसरा ही मार्ग चुना जो की गुट निरपेक्षता के सिधांत का समर्थन करता था इसके प्रमुख्य सदस्य उस समय मुगोस्लाविया , इदोनेशिया ओर मिस्र थे | इस गुट का मुख्य उददेश्य नव स्वतंत्र राष्ट्रों  को अमेरिका ओर रुसी गुटों से दूर रहकर अपनी स्वतंत्र विदेश नीति था विकास तथा द्रितीय विश्व को बहुधुर्वीय बनाना था | गुटनिरपेक्ष देशो ने यह नीति अपने की वे अन्तराष्ट्रीय मामलो में किसी भी विषय पर गुण – दोष के आधार पर अपना मत तय करेंगे | यह गुटनिरपेक्षता का सिध्दांत  आज भी प्रासंगिक है |   

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प्रश्न 10. आपको पंजाब आंदोलन और असम आंदोलनों में क्या समानताएँ और असमानताएँ दिखाई देती हैं?

उत्तर- पंजाब और असम के आंदोलनों में कई बिंदुओं पर समानता देखी गई | दोनों ही राज्यों के नागरिक स्वायत्त की मांग थी | दोनों ही राज्यों में वहां के मूल निवासियों को प्रतीत हो रहा था की उनके अधिकारों का हनन हो रहा है जिससे उनका विकास अवरुद्ध हो रहा है |पंजाब में दुसरे असं के आंदोलनों में प्रमुख अंतर निम्नलिखित बिंदुओं पर दिखाते है | 

1) पंजाब में दूसरे राज्यों के प्रवासियों को लेकर कोई समस्या नहीं थी जबकि असं में स्थानीय लोगों को लगता था कि दूसरे राज्यों से आने  वाले लोग उनके राज्यों में स्थानीय रोजगार , कलकारखानों  था चाय के बागानों में कार्यरत होने से उनके लिए रोजगार के अवसर  कम हो रहे है | 2) पंजाब के आंदोलन का नेतृत्व धार्मिक और राजनीतिक  संगठन शिरोमणि अकाली दल ने किया और असम के आंदोलन का नेतृत्व अखिल अन्य विद्यार्थी  संघ ( AASU ) ने किया था | पंजाब के आंदोलन में विदेशी ताकतों का सहयोग प्राप्त हुआ था जबकि असं का आंदोलन पूर्ण रूप से स्वदेशी ओर स्थानीय सहयोग पर आधारित था |

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प्रश्न 11. संविधान ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा का स्तर क्यों प्रदान नहीं किया? कारण बताइए ।

उत्तर- हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त करने के लिए बहुत पहले से ही असमंजस की स्थिति रही है | जब संविधान सभा का गठन हुआ तब उसमे भी हिंदी को राष्ट्रभाषा का स्तर प्रदान करने के लिए एक लम्बी बहस चली | जिसके उपरांत यह निर्णय किया गया की हिंदी  भारत के अधिक क्षेत्रों में बोलचाल की भाषा तो है किन्तु भारत के अधिकांश क्षेत्र जैसे दक्षिणी भारत में कई अन्य  भाषाओं का प्रभाव है | उस प्रकार कई भाषाए राष्ट्रभाषा की दावेदार मानी गई इसके हल के लिए उन  भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया और हिन्दी को राजकीय कार्य की भाषा मानकर राज्य भाषा का दर्जा दिया गया | 

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प्रश्न 12. इंदिरा गांधी के समय कांग्रेस का विभाजन क्यों हुआ?

उत्तर- सन 1970 के दशक में कांग्रेस के अंदर जो विद्रोह और असंतोष था वह अपने चरम पर पहुच गया | एक तरह कुछ कांग्रेसी जो की वामपंथी विचारधारा से प्रभावित थे उनका विचार गरीबों के लिए अति शीघ्र मदत पहुचने का या तथा दूसरी तरफ श्रीमती इंदिरा गांधी जो की कांग्रेस की शक्तिशाली नेता थी वहां से असंतुष्ट थी | 1969 में जब राष्ट्रपति का चुनाव हुआ तो अधिकांश कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं ने कांग्रेस के प्रत्याशी नीलम संजीव रेड्डी का विरोध किया | जिससे वे राष्ट्रपति का  चुनाव हार गये ओर श्री वी वी गिरि राष्ट्रपति निर्वाचित है  जो की विपक्ष के उम्मीदवार थे | इस चुनाव के बाद कांग्रेस में जो असंतुष्ट नेता थे वे अलग हो गये ओर यह फुट वास्तविक विभाजन का कारण रही | कांग्रेस के दो भाग हुई एक कांग्रेस इंदिरा (कांग्रेस ई ) ओर दूसरा के कामराज की नेहरू गयी कांग्रेस | 

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प्रश्न 13.आपातकाल क्या है?1975-77 के बीच आपातकाल में शासन ने क्या-क्या अलोकतांत्रिक कार्य किए?

उत्तर- भारतीय संविधान में यह प्रावधान है की यदि सरकार यह महसूस करे की देख में आंतरिक अशांति या विदेशी ताकतों के आक्रमण का खतरा है तो आपातकाल लागू किया जा सकता है | आपातकाल में संसद की शक्तियां सीमित हो जाती है लोकतांत्रिक तथा मौलिक अधिकारों की स्वतंत्रता पर अंकुश लग जाता है कानून व्यवस्था के नाम पर सरकार कोई भी कदम उठा सकती है |भारत में आपातकाल 1975 से 1977 तक लगाया गया था यह भारतीय लोकतंत्र में काले दिनों के रूप में जाना जाता है |आपातकाल के समय मीडिया पूर्ण रूप से सरकारी नियंत्रण में चला गया | देश में कानून व्यवस्था के नाम पर किसी भी व्यक्ति को कारावास में बंद कर दिया जाता था| संपूर्ण विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं को कानून उल्घं का आरोप लगा कर जेल में बंद कर दिया गया | अखबारों तथा अन्य  सूचना के माध्यमों पर सरकार द्वारा स्वीकृत समाचारों का ही प्रसार किया जाता था |सरकार द्वारा आपातकाल में संसद में अपना बहुमत का दुरुपयोग करते हुए संविधान में संशोधन और  लोकतांत्रिक कानून बनाए गए और उन्हें संसद से पारित कराया गया | सरकार के विरोध करना ही असंवैधानिक और आपराधिक कार्य घोषित कर दिया गया | विपक्ष तथा आम नागरिकों के सभी अधिकार या तो छीन  लिए गये था उस पर अंकुश लगा दिया गया था|

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प्रश्न 14. राजीव गांधी के प्रधानमंत्री कार्यकाल में क्षेत्रीय और स्थानीय आकांक्षाओं को ध्यान में रखकर क्या क्या कदम उठाए गए? 

उत्तर- राजीव गांधी का मत था की  सरकारी योजनाओं का फायदा गरीबों तक नहीं पहुंच पता है | उनका कहना था कि गरीबों को आवंटित रुपये में से केवल पंद्रह पैसे या उससे भी कम ही उन  तक पहुच पाते  है इस समस्या का एक हल निकल गया की सत्ता का ओर विकेन्द्रीकरण हो ताकि आम लोग जिनके लिए विकास कार्यक्रम बनाये जाते है | वे इसमें  सहभागी बने और इसकी रूपरेखा निर्धारित कर उसका स्वयं ही  लाभ उठा सके | इसके लिए 1986 में संविधान में संशोधन किया गया जिसमें पंचायती राज्य व्यवस्था को सभी राज्यों में अनिवार्य बनाया गया और उसमे संवैधानिक मान्यता दी गई | इस पंचायती राज्य से उपेक्षा थी कि सब का विकेन्द्रीकरण होगा विशेषकर गरीब और महिलाएं स्थानीय लोकतांत्रिक राजनीति में सक्रिय होगी जिससे उनका जीवन स्तर में सुधार होगा | 

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