CG Board Class 10 Hindi Solutions Chapter 2.3अपनी – अपनी बीमारी
पाठ से –
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प्रश्न 1. ‘बीमारी’ शब्द को लेखक ने किन-किन संदर्भों में प्रयोग किया है? उत्तर – प्रस्तुत शिर्षक के माध्यम से लेखक ने समृद्धिशाली लोगों पर तीखा प्रहार करते हुए कहा है कि जो की भी बीमारी समाज में व्याप्त हो रही है वह सामाजिक ही नहीं अपितु राजनितिक भी है। अर्थात् सम्पूर्ण समाज में लोभ, महत्वकांक्षा अपेक्षा आदि प्राणघातक बीमारियों ने घर कर रखा है। जिसमें सम्पूर्ण मानव जाति लिप्त होने की कगार पर है।
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प्रश्न 2. पाठ में दिया गया शोक समाचार – “बड़ी प्रसन्नता की बात है… से क्यों शुरू हुआ है?” अपना तर्क दीजिये I उत्तर- लेखक ने अपनी व्यंग्यात्मक शैली के माध्यम से समाज के उन सभी समृद्धशाली लोगों पर तीखा प्रहार किया है। प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि यदि साधारण व्यक्ति पर टैक्स लगे तो प्रसन्नता की बात होगी। लेखक ने टैक्स चोरी करने वालों पर व्यंग्य करते हुए कहा है कि सम्पन्न व्यक्ति भी अपार धन संपत्ति होने के बाद भी टैक्स देने में अनदेखी करता है। अर्थात टैक्स की चोरी में लिप्त है।
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प्रश्न 3. “गांधीजी विनोबा जैसों की जिन्दगी बरबाद कर गए” इस पंक्ति का आशय क्या है? लिखिए।
उत्तर- कवि समाज में फैली इन बीमारियों से ग्रसित समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति बनना चाहता है। कवि का मानना है कि सिद्धान्त, जीवन मूल्य, आदर्शवादिता इन गुणों के कारण ही ईमानदार लोगों को दुःख और उपेक्षा उठाना पड़ता है। जिसके कारण आम लोगों का आज के मुश्किल समय में जीवन-यापन करना एक चुनौती पूर्ण कार्य बन गया है।
Page No.: 39 प्रश्न 4. टैक्स को ‘बीमारी’ के रूप में देखने का क्या आशय है? उत्तर- लेखक धनाढ्य लोगों को देख ईर्ष्या की भावना से ग्रसित हो उठते है। | वे कहते है कि धनि व्यक्ति धन होने के बावजूद भी टैक्स नहीं पटाना चाहता है I यहाँ लेखक साहित्यकारों की आर्थिक विपन्नता को लक्ष्य कर व्यंग्य कर रहे है। लेखक कहते है कि टैक्स पीड़ित को इस बीमारी से छुटकारा नहीं मिल सकता है। टैक्स बिमारी नहीं आवश्यकता है जिन पर टैक्स लगता है वह उनकी आय को भी प्रमाणित करता है I फिर टैक्स देने में क्या चोरी ? अत: टैक्स देने से इंकार नहीं होना चाहिए ।
Page No.: 39 प्रश्न 5. लेखक टैक्स की बीमारी को क्यों अपनाना चाहता है ? उत्तर- लेखक ने समाज के उन सभी समृद्धिशाली लोगों पर कटाक्ष करते हुए कहा है कि मैं भी टैक्स की बीमारी से ग्रसित हो, समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति बनना चाहता हूँ । उसका मानना है कि टैक्स के कारण ही उसका सामाजिक जीवन स्तर व आर्थिक स्तर ऊँचा होगा और उसका समाज में मान सम्मान भी बढ़ेगा |
पाठ से आगे-
Page No.: 39 प्रश्न 1. ‘सबका दुख अलग-अलग होता है, किस-किस तरह के दुख के अनुभव आपने किए हैं? उन्हें लिखिए। उत्तर – लेखक ने टैक्स की बीमारी को एक ऐसा रोग बताया है जिसका कोई इलाज नहीं | डॉक्टर के पास यदि टैक्स पीड़ित व्यक्ति को ले जायें डॉक्टर भी कोई दवा नहीं दे सकता है। लेखक कहते हैं कि कोई व्यक्ति अपनी आर्थिक विपन्नता से दुःखी है तो कोई टैक्स देने के कारण I कोई धन अभाव से दुखी है तो कोई वैभव – विलास की वस्तु से दुखी है। कोई व्यक्तिगत हानि, कोई व्यापार में हानि कोई बिजली बिल से तो, कोई महंगाई से व्यथित है। अर्थात दुख तो सबके अलग-अलग है पर दुःख का कारण लगभग एक समान है। अर्थात् दुःखी तो सभी है परन्तु उसका स्वरूप एक दूसरे से भिन्न है।
Page No.: 39 प्रश्न 2. अपने परिवार के सभी लोगों से उनके दुःख पूछिए और लिखिए। यह भी बताइए कि आप उनके लिए क्या कर सकते हैं कि उनके दुख दूर हों। उत्तर – हर व्यक्ति के परिवार का बुनियादी ढाँचा अलग अलग होता है। परिवार में भी हर व्यक्ति की कोई न कोई दुःख अवश्य है। कोई बेईमानी से तो कोई मँहगाई से तो कोई दूसरों की संपन्नता से तो कोई असाध्य रोग से दुखी है। अर्थात हर व्यक्ति का अपना अलग-अलग दुख है। किसी को रोजी- रोटी को लेकर चिंता है तो कोई बच्चों के भविष्य को ही लेकर दुखी है। सभी के दुखों को दूर करने हेतु उचित मार्गदर्शन, सहयोग तथा सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार की आवश्यकता है।
Page No.: 39 प्रश्न 3. अक्सर लोग अपनी बुनियादी जरूरतों के रहते हुए भी और ज्यादा की चाह करते रहते हैं। पाठ में भी एक-दो ऐसे दुखी लोगों के उदाहरण दिए हुए हैं। आपके अपने अनुभव में भी कुछ उदाहरण होंगे। उनके बारे में लिखिए I उत्तर- कई बार लोग सिर्फ अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए कई गलत कार्यों में लिप्त हो जाते है I समाज में ऐसे लोगों की तो भरमार हैं जो मेहनत से ज्यादा फल की चाह रखते है I परन्तु वो नहीं जानते कि आवश्यकता से अधिक पाने की लालसा ही उनके दुख का कारण व नतीजा रही है। ऐसे लोगों की अधिकता के कारण ही समस्त समाज में ये दुःख व्याप्त हो रहा है। इसमें दूसरों की बेईमानी, कम आय, न्यूनतम् जीवन स्तर, और पर्याप्त सम्पन्नता न होना ही सबके दुख का कारण बनता जा रहा है। जीवन में असंतोष रहना ही उनके दुख का कारण बनता जा रहा है।
भाषा के बारे में-
Page No.: 39 प्रश्न 1. कई बार किसी बात को सीधे न कहकर कुछ इस अंदाज में प्रस्तुत किया जाता है कि अर्थ सीधे उस वाक्य में न होकर कहीं और होता है। जैसे इस पाठ में ही टैक्स के मारे मर रहे हैं;’ ‘बेइमानी की बीमारी से मर रहे हैं, वाक्य आए हैं। इनका अर्थ अगर सीधे शब्दों से लें तो अनर्थ हो सकता है। यहाँ मर रहे हैं का अर्थ मृत्यु न होकर दुखी व विचलित होना है। इस पाठ से ऐसे अंश ढूँढिए जिनके सामान्य अर्थ और समझे जाने वाले वाक्य अर्थ में अंतर है। उत्तर- सामान्य अर्थ तथा समझे जाने वाले वाक्य के अर्थ में अन्तर है –
वाक्य | वाक्य अर्थ |
1. टैक्स से मरना 2. कमबख्त बीमारी ही ऐसा है I 3. टुच्ची बीमारियां 4. गाँधी जी,विनोबा जी जैसो ने लोगों की जिन्दगी बरबाद कर दी। | 1. इसका शाब्दिक अर्थ है कि कोई अत्यधिक टैक्स देने के कारण मर रहा है तो कोई उसकी चोरी के कारण I अर्थात् लोभ, लालच और अतिशय ऐसी बीमारियाँ है जो समाज को भेदती जा रही है।टुच्ची बीमारियों से कवि का आशय तुच्छ बीमारियो से है I अर्थात् कोई हैजा, भुखमरी, कालरा आदि से मरता है तो कोई अवसाद और दिल की गंभीर बीमारी से I अर्थात् ईमानदारी , आदर्शवादिता आदि ऐसी बीमारियाँ है जिनके कारण एक ईमानदार रोज मरने को तैयार रहता है I |
Page No.: 39 प्रश्न 2. किसी अखबार से समाचार, विज्ञापन, शोक संदेश, लेख व संपादकीय की एक-एक कतरन निकालिए और उसे भाषा, वाक्य संरचना, शब्द चयन और अर्थ की दृष्टि से पढ़िए शिक्षक की मदद से उनके फर्क पहचानिए एवं अपने विश्लेषण को सारणी के रूप में प्रस्तुत कीजिए। उत्तर- यह कार्य विद्यार्थी गण स्वयं सम्पादित करे I
प्रयोजना कार्य-
Page No.: 40 प्रश्न 1. टैक्स क्या होता है ? यह क्यों लगाया जाता है? इसके निर्धारण के क्या आधार है एवं एक सामान्य व्यक्ति को किस – किस प्रकार के टैक्स अदा करने पड़ते हैं ? सामाजिक विज्ञान (अर्थशास्त्र ) के शिक्षक के सहयोग से इसके बारे में जानने – समझने का प्रयास करें I उत्तर – कर करदाता द्वारा दिया जाने वाला ऐसा अनिवार्य अंशदान है जो कि सामाजिक उद्देश्य जैसे- आय व संपत्ति की असमानता को कम करके उच्च रोजगार स्तर छात प्राप्त करने तथा आर्थिक स्थिरता व वृद्धि प्राप्त करने में सहायक होता है। कर एक ऐसा भुगतान के जो आवश्यक रूप से सरकार को उसके बनाए गए कानूनों के अनुसार दिया जाता है।
टैक्स निर्धारण के आधार – यदि करदाता द्वारा आय का विवरण धारा १३९(१) के अंतर्गत अथवा धारा १४२(1) के अंतर्गत दिये गये नोटिस के फलस्वरूप प्रस्तुत किया गया है वो कर – निर्धारण कर सकता है I
भारत में स्कूल बनवाना हो, सड़क बिजली की व्यवस्था , अस्पताल से सभी सार्वजनिक सुविधाएं एक व्यक्ति की नहीं होती इसका उपयोग सभी लोग करते है। इस सभी कार्यों को करवाना सरकार की जिम्मेदारी होती है। तथा इन कार्यों को करवाने के लिए सरकार धन अर्जित करने का एक तरीका अपनाती है। जिसे कर कहते हैं।
एक सामान्य व्यक्ति को को निम्नलिखित कर अदा करने पड़ते हैं।
(1) उत्पादन कर
(2) बिक्रीकर
(3) आयकर
(4) गुड्स एंड सर्विसेस टैक्स (GST)