Class 10 Hindi
Chapter 3.1
माटीवाली
पाठ से –
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प्रश्न 1. माटीवाली के बिना टिहरी शहर के कई घरों में चूल्हों तक का जलना क्यों मुश्किल हो जाता था? उत्तर- माटीवाली के बिना टिहरी शहर के कई घरों में चूल्हों तक का जलना मुश्किल है। अर्थात् माटीवाली जब माटाखान से मिट्टी लोकर आती है तो ही और चूल्हों को लिपने का काम करती हैI तभी घरों का चूल्हा जल पाता है I अन्यथा चूल्हों का जलना संभव नहीं हो पाता है I अर्थात् कोई भी अन्य व्यक्ति कार्य को नहीं कर सकता इसलिए माटीवाली के बिना टिहरी शहर में चूल्हा जलना संभव नहीं हो सकता है।
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प्रश्न 2. माटीवाली का कंटर किस प्रकार का था? उत्तर- माटीवाली ने अपना कंटर इस्तेमाल करने से पहले उसके ऊपरी ढ़क्कन को काटकर फेंक दिया था I ढ़क्कन न रहने पर कंटर के अन्दर मिट्टी भरने और फिर उसे खाली करने में आसानी रहती है। उसमें हमेशा लाल, चिकनी मिट्टी भरी रहती थी।
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प्रश्न 3. माटीवाली का एक रोटी छिपा देना उसकी किस मनःस्थिति की ओर संकेत करता है? उत्तर- माटीवाली का एक रोटी छिपा देना उसकी मनः वेदना की ओर संकेत कर रहा है। माटीवाली का पति बूढ़ा था। वह कोई काम नहीं कर सकता थाI वह अपने पति के लिए एक रोटी की चोरी करने को तैयार हो जाती है। एक रोटी की चोरी उसकी गरीबी, मजबूरी तथा विवशता को प्रकट करता है तथा उसके पति-प्रेम की मानसिकता का संकेत भी इसी कृति से पता चलता है।
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प्रश्न 4. घर की मालकिन ने पीतल के गिलासों को अभी तक संभालकर क्यों रखा था? उत्तर- घर की मालकिन ने पीतल के गिलासों को अभी तक संभालकर इसलिए रखा था क्योंकि वह उसके पुरखों की गाढ़ी कमाई से खरीदे गये बर्तन थे और वह उसे मिट्टी मोल नही बेचना चाहती थी । उसको वह अपने पुरखों की यादों के रुप में अपने पास ही रखना चाह रही थी क्योंकि उन्हें पूर्वजो की विरासत से विशेष लगाव था। इसलिए घर की मालकिन ने पीतल के गिलासों को अभी तक संभालकर रखा था I
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प्रश्न 5. माटीवाली और मालकिन के संवाद में व्यापारियों की कौन सी प्रवृत्ति का उल्लेख किया गया था? उत्तर- माटीवाली और मालकिन के संवाद में व्यापारियों की निम्न प्रवृत्ति का उल्लेख किया गया है। प्रस्तुत कथानक के माध्यम से लेखक ने व्यापारियों की व्यापारिक मानसिकता पर गहरा आघात किया है I व्यापारियों द्वारा पुरानी चीजो को कम दाम में खरीदकर उन्हें औने -पौने दामों में बेच कर ज्यादा लाभ कमाने की प्रवृति का पता चलता है।
माटीवाली एवं मालकिन के संवाद में गहरा ताल-मेल देखने को मिलता है। पुरानी वस्तुएँ जैसे बर्तन जिन्हें हम अनुपयोगी समझने लगते है उनका हमारे जीवन से तथा पूर्वजो से जो जुड़ाव है वह भी इसी के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है।
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प्रश्न 6. कहानी के अंत में लोग अपने घरों को छोड़कर क्यों जाने लगे थे? उत्तर- कहानी के अंत में लोग अपने घरों को छोड़कर इसलिए जाने लगे थे क्योंकि टिहरी बाँध की दो सुरंगे बन्द होने के कारण शहर में जलभराव की स्थिति पैदा होन लगी थी। पूरा शहर भगदड़ की चपेट में था। सभी लोग अपने-अपने घरो को छोड़कर अपने तथा अपने प्रिय, जनो के साथ शहर से दूर जाने लगे थे।
पाठ से आगे-
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(क) बाँध, सड़क व अन्य सरकारी निर्माण कार्य होने पर स्थानीय लोगों को किस-किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है? चर्चा करके लिखिए। उत्तर- बाँध कार्य अन्य सरकारी निर्माण कार्य होने पर स्थानीय लोगों की खेती की जमीन रहने का स्थान सभी रोजगार सब छिनता जा रहा था, विशेष कर स्थानीय लोगो को इसका भयावह असर गरीबों, लाचारों तथा निसहाय लोगों पर पड़ता ही है। इस ज्वलंत समस्या के कारण विस्थापितो का जीवन चिन्ता, मर्म और लाचारी में व्यतीत होता है। किसी भी नये स्थान पर कोई नया कार्य करने के लिए बहुत से प्रमाण-पत्रो आवश्यकता पड़ती है। जो कि विस्थापितों के पास नहीं होते I प्रस्तुत कहानी में माटी वाली एक ऐसे ही वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है। ऐसी स्थिति में जो भी विस्थापित है उसके सामने रोजी- रोटी की समस्या काल के समान मुखरित हो उठती है I ऐसे तमाम प्रश्नों का जवाब ढूँढना विस्थापितो के लिए आवश्यक हो जाता है।
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(ख) इस प्रकार के विकास कार्यों के क्या-क्या फायदे होते हैं? अपने विचार लिखिए। उत्तर- लेखक ने “माटी वाली” कहानी के माध्यम से समस्या से उत्पन्न हुयी मर्म स्पर्शी पीड़ा को व्यक्त किया है I जो गरीब एवं गरीबी की संवेदना को दर्शाता है। पति की अचानक मृत्यु के पश्चात उसका जीवन शमशान की तरह हो जाता है। अतः इस प्रकार के कार्यों से लोगों का स्थानीय रोजगार प्राप्त होता है तथा बाँध कार्यों से पानी एवं सिंचाई की समस्या भी दूर हो जाती है अर्थात् बाँध के निर्माण से गाँव का विकास होता है। बाँध के कारण ही बाढ़ पर अंकुश लगायी जा सकती है। यदि सरकारी निर्माण का कार्य अपने ही क्षेत्र में चल रहे हो तो वहाँ के लोगों को रोजगार भी मिलता है। और पूरे गाँव का स्वरूप भी बदल जाता है। भूमि स्थापन की समस्या को दूर करने के लिए उन्हें नयी जगह पर भूमि या मुआवजा प्रशासन द्वारा प्रदान किया जाता है।
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प्रश्न 2. पहले के जमाने में मिट्टी का उपयोग किन-किन कामों में होता था तथा वर्तमान समय में इसका उपयोगआप कहाँ-कहाँ देखते हैं ? अंतर बताते हुए लिखिए । उत्तर- पहले के जमाने में मिट्टी ही जीवनदायनी थी। मिट्टी से घर बनाना, दीवार और घर आँगन की लिपाई-पोताई मिट्टी से की जाती है। मिट्टी से तमाम बर्तन बनाये जाते थे तथा प्राचीन समय में अनाज के भंडारण के लिए पात्र भी मिट्टी के बने होते थे।
जिस ढेरी कहा जाता थाI परन्तु वर्तमान समय में खेती करने, गमले व घड़े बनाने, मूर्तियाँ बनाने , इमारतों के निर्माण कार्य आदि में मिट्टियों का प्रयोग बहुतायत मात्रा में हो रहा है I वर्तमान समय में घरो में अन्दर जो मिट्टी का प्रयोग होता था वह लगभग समाप्त हो गया है।
मिट्टी से मनुष्यों का यह दुराव उनके जीवन शैली में भी दिखलायी पड़ता है। मिट्टी के मूल्य को बिसारना कई सामाजिक समस्या को जन्म दे रहा है I वर्तमान परिस्थिति में प्राचीन मुल्यों का ह्रास भी सामान्तया दूसरा एक कारण हो सकता है।
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प्रश्न 3. बाँध बन जाने के बाद माटीवाली का शेष जीवन कैसे बीता होगा? कल्पना करके लिखिए। उत्तर- प्रस्तुत कहानी विस्थापित समाज की समस्या को दर्शाती है तथा समस्या से उत्पन्न मर्म स्पर्शी पीड़ा को व्यक्त करती है I बांध बन जाने के बाद माटी वाली का शेष जीवन चुनौतियों से घिरा
और अत्यंत संघर्षमय रहा I बाँध बनने के कारण मिट्टी मिलना बन्द हो गया जो उस माटी वाले के जीवन को तार- तार कर गया I वह अन्य रोजगार के साधन को ढूँढ़ती हुई अपने आगे की जीवन को व्यतीत करने लगी। न ही उसका जीवन समाप्त हो रहा था और न ही संघर्ष। पुनर्वास अधिकारियों को सरकारी पुनर्वास के लिए कागजी प्रमाण-पत्र भी आवश्यकता थी किन्तु माटीवाली तो अनपढ़ एवं लाचार थी वह इन सभी सरकारी कार्यो से अनभिज्ञ भी थी I माटाखान की जिस मिट्टी पर वह अपना अधिकार समझती थी उसका भी कागजी प्रमाण उसके पास नहीं था ऐसे में पुनर्वास की समस्या काल के समान उसके सामने मुखरित थी। दूसरी समस्या शहर के लोगों में शहर छोड़ जाने से उसकी आजीविका का एक मात्र साधन भी छिन सा गया था इस प्रकार उसका जीवन संघर्षों एवं अभावों का टीला बनता जा रहा था I
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प्रश्न 4. माटीवाली की तरह और भी कई लोग हैं जिनके पास रहने के लिए अपनी जगह नहीं होती और न ही पेट भरने के लिए पर्याप्त भोजन। ऐसे लोगों के लिए सरकार को क्या-क्या उपाय करने चाहिए, शिक्षक से चर्चा करके लिखिए। उत्तर- प्रस्तुत कथानक के माध्यम से लेखक कहता है कि जिनके पास रहने के लिए अपनी जगह नहीं होती और न पेट भरने के लिए पर्याप्त भोजन ऐसे लोगों के लिए सरकार के निम्नलिखित योजनाएं बनायी है –
(1) विस्थापितों की समस्या को समझकर उनके पुनर्वास के लिए सहानुभूति पूर्वक विचार करना । (2) सरकारी पुनर्वास अथवा अर्ध सरकारी पुनर्वास के लिए कागजी प्रमाणों की आवश्यकता पर विचार करना उनके स्वास्थ्य, भोजन, पेयजल की समुचित व्यवस्था करना, गरीब बच्चों के स्वास्थ्य व टीकाकरण तथा शिक्षा दीक्षा की भी समुचित व्यवस्था करना सरकारी कार्यों में सम्मलित है। (3) पेट भरने के लिए उन्हें न्यूनतम दर पर अनाज और निर्धारित दर पर रोजगार का अवसर प्रदान करना यह सब कार्य भी सरकार की कार्य प्रणाली में सम्मलित है। (4) गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों को गैस चूल्हा भी न्यूनतम मूल्य पर देने की योजना प्रारंभ की गयी है। (5) गरीब जनता के स्वास्थ्य के लिए सभी अस्पतालों में सरकार द्वारा बनाया गया आयुष्मान कार्ड भी संचालित किया जा रहा है। आदि ऐसी बहुत सी योजनाएं सरकार द्वारा चलायी जा रही है I
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प्रश्न 5. ऐसा क्यों होता जा रहा है कि आजकल पीतल, काँसे, एल्यूमिनियम के बर्तनों की बजाय घरों में ज्यादातर काँच, चीनी मिट्टी, मेलामाईन और प्लास्टिक से बने बर्तनों का इस्तेमाल होने लगा है? स्वास्थ्य, पर्यावरण एवं रोजगार आदि की दृष्टि से इसके नुकसान व फायदों पर अपने विचार लिखिए। उत्तर- समय के साथ-साथ मनुष्य की रूचियों ने अपना स्वरूप बदल लिया है। समय का पहिया हमेशा ही घूमता रहता है I फैशन के इस दौर में स्वास्थ्य, पर्यावरण और रोजगार बहुत ही प्रभावित हुए हैं। समय के इस बदले दौर में हमारी जीवन शैली को बड़ा ही प्रभावित किया है। जिसका कुछ नुकसान तो कुछ फायदा भी देखा जा सकता है। निम्नलिखित बिन्दुओ के आधार पर उसके फायदे और नुकसान दोनों पर ही विचार किया जा सकता है।
1- स्वास्थ्य – समय ने हमारे जीवन को तेजी से बदला है। बदलते परिवेश में हम लाभदायक चीजों को छोड़कर हानिकारक वस्तुओं का चलन सिर्फ दिखावे की दृष्टिकोण से करने लगे है। हम यह भूलते जा रहे हैं कि हमारे पूर्वजों ने हमें पीतल, काँसे, एल्युमिनियम के बर्तनों को हमें विरासत के रूप में दिया था, परन्तु हमने तो उन बर्तनों का सम्पूर्ण स्वरुप ही बदल दिया I अब हम प्लास्टिक मेलामाइन, चीनी मिट्टी, काँच आदि धातुओं से बने सामग्री और बर्तनों का इस्तेमाल करने लगे है जो कि स्वास्थ्य की दृष्टि से बिल्कुल भी ठीक नही है। इन धातुओं से बने बर्तनों में हानिकारक तत्वों के पाये जाने के कारण ही हम नई-नई बिमारियों को न्योता दे रहे है I प्रयोग की सहजता के कारण लोग इसका अतिशय प्रयोग कर रहे हैं।
2- पर्यावरण – बदलते समय ने हमें यह भी भुला दिया है कि हम लगातार अपने कुकृत से पर्यावरण का दोहन करते जा रहे है I प्लास्टिक का अपघटन हो पाना असंभव है अतः हमें इसके इस्तेमाल को कम करना चाहिए परन्तु हम सब जानते हुए भी अपने दायित्वों को निभाने में अरुचि दिखा रहे है। पर्यावरण को यदि उचित समय पर नहीं बचाया गया तो उसके गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं। प्लास्टिक के बढ़ते प्रयोग ने हमें काल के गाल पर लाकर खड़ा कर दिया है I इसके अतिशय प्रयोग के कारण हमें कैंसर, चर्मरोग, आँखों की बीमारी आदि कई गंभीर बीमारियों के सम्मुख पहुंचा दिया है। कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2), मीथेन, नाइट्रोजन ( N2) इत्यादि की मात्रा का असंतुलन, स्वास्थ्य व पर्यावरण दोनों की ही दृष्टि से हानिकरक सिद्ध हो रहा है।
3- रोजगार- बढ़ती मँहगाई और बेरोजगारी भी हमारे सामने एक ज्वलन्त समस्या बनकर खड़ी है। हम रोजगार की दृष्टि से देखे तो इससे लोगों को रोजगार के अवसर तो उपलब्ध हो रहे है परन्तु इनके प्रयोग से हम स्वास्थ्य को खोते जा रहे है I आज के बदलते परिवेश में प्लास्टिक के अतिशय इस्तेमाल के कारण बहुत सी फैक्ट्रियों में काम कर रहे नवयुवक रोजगार तो पा रहे हैं परन्तु स्वास्थ्य को खोते जा रहे है I
यदि इन वस्तुओं का निर्माण आवश्यक ही है तो कुछ निर्धारित मापदण्ड का होना अति आवश्यक है जो स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों को ही हानि न पहुंचाए ।
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प्रश्न 6. ‘मृण शिल्प कला’ अर्थात मिट्टी से कलाकृतियाँ बनाना-
(क) आप अपने आसपास इस तरह की कलाकृतियाँ कहाँ-कहाँ देखते हैं? तथा ये भी पता कीजिए कि इस कला की क्या-क्या विशेषताएँ हैं? उत्तर- छत्तीसगढ़ कला और संस्कृति का एक अनूठा केन्द्र है यहाँ की मिट्टी ने कई ऐसे माटी के लाल दिये है जिन्होंने हमारे प्रदेश का नाम समूचे विश्व में लहराया है। कला और संस्कृति का यहाँ एक अनूठा संगम देखने को मिलता है। छत्तीसगढ़ में खैरागढ़, ललितपुर सरगुजा इत्यादि ऐसे क्षेत्र है जहाँ इसका अनूठा संगम देखने को मिल जाता है। समस्त संसार ने अभी के कुछ साल एक ऐसी त्रासदी को झेला है जिसकी पीड़ा ने हमें एक अदृश्य सूत्र में बांध दिया है I
छत्तीसगढ़ के बहुत से क्षेत्रों ने मिट्टी से बनी कलाकृतियाँ देश विदेश में देखने को मिल जाती है। घड़वा, झारा, घसिया जनजाति जो बस्तर की है उसने इस कला को साधा और शिखर तक पहुंचाने का कार्य किया है। छत्तीसगढ़ हांट और राज्योत्सव में मिट्टी की कलाकृतियाँ बहुतायत मात्रा में देखी जा सकती है। मिट्टी से बने बर्तन और अनेक कलाकृतियो का अनूठा संगम यहाँ की लोकसंस्कृति में देखने को मिलता है ।।
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(ख) आपके शहर, राज्य के कुछ ऐसे कलाकारों के नाम बताइए जिन्होंने मृणशिल्प कला के क्षेत्र में प्रदेश को पहचान दिलाई हो I
उत्तर- छत्तीसगढ़ अंचल लोककलाओ का गढ़ माना जाता है I छत्तीसगढ़ के शिल्प-कला ने राज्य के राजस्व में प्राथमिक हिस्सेदारी का योगदान दिया है। कारीगरों की निपुणता के माध्यम से पूरे विश्व भर में प्रसिद्धि भी पाने लगी है। सन1962 में सरोजनी नायडू ने उत्तर बस्तर के सिमरन बघेल का सम्मान किया था, जिन्होंने घड़वा कला को दुनिया में पहचान दिलाने का कार्य किया था। ये सभी ऐसे कलाकार है जो वृक्ष के बीज के समान है जो बाद में इस कला के क्षेत्र में एक बड़ी पहचान बनकर उभरे जिन्हें हम जयदेव बघेल के नाम से जानते है। घढ़वा, ढ़ोंकरा अथवा बेलमेटल कला यह मिट्टी धातु व मोम से बनती है I बघेल जी को इस कृति के लिए सन 1976 में म. प्र. राज्य से सम्मान मिला I सन 1977 में राष्ट्रीय पुरस्कार, सन् 1978 में मास्को प्रदर्शनी आयोजित कर इस कला को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने का कार्य किया | सन 1982 में इंदिरा गांधी ने इन्हें शिखर सम्मान से नवाजा I इन्हीं की शिष्या मीरा मुखर्जी एक अंन्तर्राष्ट्रीय कलाकार थीं। उन्होंने कोण्डागाँव में रहकर प्रशिक्षण प्राप्त किया I भारतीय मूल की अमेरिकी नागरिक अनंदिता दत्ता ने भी इस क्षेत्र में उल्लेखनिय कार्य किये है।
भाषा के बारे में-
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प्रश्न 1. ‘ई’, ‘इन’ और ‘आइन’ प्रत्ययों का इस्तेमाल प्रायः स्त्रीलिंग शब्द बनाने के लिए किया जाता है। निम्न उदाहरणों को समझते हुए तालिका में निम्न प्रत्ययों से बने अन्य शब्द लिखिए-
‘ई’ प्रत्यय ‘इन’ प्रत्यय ‘आइन’ प्रत्यय
उदा० लड़की मालकिन पंडिताइन उत्तर-
‘ प्रत्यय ‘ई शब्द
मछली , कमली , नकली, अगली , लकड़ी ,
सगड़ी , तगड़ी, पगड़ी I
प्रत्यय ‘इन’ शब्द
लुहारिन, पुजारिन, भिखारिन, मालिन, बाघिन, कहारिन,
नातिन , सुहागिन I
प्रत्यय ‘आइन’ शब्द
पण्डिताइन, ठकुराइन , लालाइन ,मिश्राइन, बनियाइन I
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प्रश्न 2. पाठ में आए निम्न मुहावरों के अर्थ लिखते हुए अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
(क) दिल गवाही नहीं देता – ह्रदय का न मानना I
वाक्यों में प्रयोग – गलत कार्य करने की गवाही सच्चा ह्रदय नहीं देता I
(ख) मन मसोसकर रह जाना- खिसिया कर रह जाना अर्थात् खींझना I
वाक्यों में प्रयोग – लोभियों से भरे समाज में हम ईमानदार लोग हमेशा अपना मन मसोसकर रहते है I
(ग) कातर नजरों से देखना- दया भाव से देखना I
वाक्यों में प्रयोग – भीषण गर्मी में खाना बाँटते समय कुछ कुत्ते मुझे कातर नजरों से देख रहे थे I
(घ) चेहरा खिल उठना – खुश हो जाना I
वाक्यों में प्रयोग – परीक्षा परिणाम देखते ही आशा का चेहरा खिल उठा |
(ङ) दिमाग चकराने लगना- कुछ समझ न पाना I
वाक्यों में प्रयोग – गणित का पेपर देखते ही मेरा दिमाग चकराने लगा I
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प्रश्न 3. (क) निम्नांकित तीनों वाक्यों को ध्यान से पढ़िए-
(अ) मिट्टी से भरा एक कंटेनर I
(ब) उस काम को करनेवाली वह अकेली है।
(स) उसका प्रतिद्वन्द्वी कोई नहीं।
आप पाएँगे कि- इनके पढ़ने मात्र से ही इनका (प्रचलित) अर्थ आसानी से समझ में आता है। इसे शब्द की अभिधा शक्ति के नाम से जाना जाता है।
(ख) नीचे दिए गए इन वाक्यों को भी पढ़िए –
(अ) भूख तो अपने में एक साग होती है।
(ब) वह अपनी ‘माटी को छोड़कर जा चुका था।
(स) गरीब आदमी का ‘श्मशान’ नहीं उजड़ना चाहिए।
उपरोक्त तीनों वाक्यों में साग, माटी और श्मशान से तात्पर्य क्रमश: खाद्य सामग्री, पंचतत्व से बने शरीर और ‘घर’ से है। इस प्रकार इन वाक्यों को पढ़कर उनके अर्थ पर यदि हम विचार करें तो पाते हैं कि वाक्य के वाच्यार्थ या मुख्यार्थ से भिन्न अन्य अर्थ (लक्ष्यार्थ) प्रकट होते हैं। इसे ‘लक्षणा’ शक्ति के नाम से जाना जाता है।सहपाठियों के साथ बैठकर अभिधा और लक्षणा शक्ति के पाँच – पाँच वाक्यों को पाठ्यपुस्तक से ढूंढ़कर लिखिए एवं स्वयं भी रचना कीजिए I उत्तर – अभिधा शक्ति- जिसे पढ़ने मात्र से ही उसका अर्थ आसानी से समझ आ जाये इसे शब्द की अभिधा शक्ति के नाम से जाना जाता है। उदाहरण 1. मुश्किलों से भरा था उसका जीवन | 2 माटाखान तो मेरी रोजी है साहब I 3. घबराई हुई माटी वाली ने उसे छूकर देखा I 4. शहर में पानी भरने लगा है I 5. उसके जीवन का रास्ता बहुत कठिन था I लक्षणा शक्ति – वाच्यार्थ को न बताकर उससे संबंधित अन्य अर्थ का बोध कराने वाली शक्ति लक्षणा शब्द शक्ति कहलाती है। उदाहरण- 1. भूख मीठी की भोजन मीठा ? 2. वह तो साक्षात् दुर्गा का अवतार है I 3. काल का गाल देखने की आवश्यकता नहीं होती I 4. गरीबो के लिए सब दिन एक समान होते है I 5. वह बाधाओं के सामने हिमालय की तरह खड़ा रहा I
योग्यता विस्तार –
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प्रश्न 1. अपने आस – पास रहने वाले किसी ऐसे व्यक्ति अथवा कलाकार से मिलिए जो मिट्टी के बर्तन या मूर्तियां आदि बनाने का कार्य करता है I उसे साक्षात्कार करके निम्न बिन्दुओं के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए –
- ये लोग कच्ची सामग्री कहाँ से जुटाते हैं ?
- कलाकृति / बर्तन बनाने से पूर्व मिट्टी तैयार करने की क्या प्रक्रिया अपनाते है ?
- एक कलाकृति तैयार करने की पूरी प्रक्रिया (बनाना , पकाना, रँगना इत्यादि) क्या – क्या होती है ?
- निर्मित सामग्री को वे कहाँ – कहाँ बेचते हैं ?
- इस व्यवसाय से प्राप्त आय, क्या उनके जीवन निर्वाह के लिए पर्याप्त है या नहीं ?
- उन्हें किस – किस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है ?
उत्तर – (i) कुम्हार लोग तालाब जो थोड़ा सूख जाता है तथा नदी के किनारों से मिट्टी एकत्र कर उससे बर्तन आदि का निर्माण करते है I
(ii) मिट्टी को पहले पीसकर उसका बारीक पाउडर बनाते है और पाउडर से कंकड़ , पत्थर निकाल कर उसमें पानी डालकर रौंदा जाता है I कुछ कुम्हार उसमें कॉटन या रुई मिलाकर सानते है इस प्रकार बर्तन बनाने के लिए मिट्टी तैयार किया जाता है I
(iii) कलाकृति तैयार करने के लिए निम्न प्रक्रियाओं को क्रमबद्ध तरीके से पूरा किया जाता है।
1. मिट्टी को नरम करके तैयार करना ।
2. मिट्टी को चाक पर रख कर उससे कलाकृति का निर्माण करना ।
3. बनी हुई कच्ची कलाकृति को धूप में सुखाना ।
4. सूखी हुई कलाकृति को आग में पकाना ।
5. पकी हुई कलाकृति पर रंगों द्वारा सजावट कर उन्हें सुखाकर तैयार किया जाता है।
(iv) तैयार मिट्टी की सामग्री कुछ तो लोकल स्तर पर बेचा जाता है। और जो बाकी बचे हुए कलाकृति को दुकानों या ऑर्डर पर बाहर भेज कर विक्रय किया जाता है ।
(v) कुम्हारों का व्यवसाय पारम्परिक रूप से त्योहारों के समय पर निर्भर करता है। त्योहार में उनकी आमदनी ठीक रहती है। परन्तु पूरे साल उनकी आमदनी उनके जीवन यापन के लिए पर्याप्त नहीं होती है। इस कारण उनका जीवन कठिनाई से व्यतीत होता है।
(vi) आज कुम्हारो का जीवन बहुत कठिनाइयों से गुजर रहा है । पहले तो उन्हें कच्चा माल (मिट्टी) का आसानी से उपलब्ध न होना तथा आज के आधुनिक समय में मिट्टी के बर्तनो और कलाकृतियों का स्थान प्लास्टिक और धातुओं ने ले लिया जिससे इनके आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और दिन प्रति दिन इनकी हालत दयनीय होती जा रही है।
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प्रश्न 2. गंगा नदी को “भागीरथी” कहे जाने के पीछे जो प्रचलित पौराणिक कथा है, उसे अपने शिक्षक या बड़ो से जानने का प्रयास कीजिए और लिखिए । उत्तर – पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्य वंश के राजा और भगवान श्री राम के पूर्वज भागीरथ के कठोर तप और त्याग के कारण ही गंगा नदी का धरती पर अवतरण हुआ था । पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा भगीरथ अपने पितरों का श्राद्ध और तर्पण करना चाहते थे किन्तु उसके लिए गंगा नदी के जल का होना आवश्यक था किन्तु उस समय गंगा नदी केवल स्वर्ग में ही बहती थी और उसे पृथ्वी पर लाने के लिए भगीरथ ने भगवान शिव, भगवान ब्रह्मा और विष्णु की कठोर तपस्या किया और उसके परिणाम स्वरुप गंगा जी का पृथ्वी पर अवतरण हुआ। गंगा नदी के आगमन की यहीं कथा प्रचलित है। इसके बाद गंगा जी को को भागीरथी नदी के नाम से भी जाना जाता है I