CG Board Class 10 Hindi Solutions Chapter 3.3 घीसा

 

 Class 10 Hindi Solutions 

Chapter 3.3

 घीसा


पाठ से –

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प्रश्न 1. पहली बार जब घीसा कक्षा में आया तब वह कैसा दिखाई पड़ता था? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए I

उत्तर- प्रस्तुत कथानक का मुख्य पात्र घीसा ही है। सुश्री महादेवी जी ने अपने इस पात्र का चित्रण बड़े ही मर्मस्पर्शी ढंग से किया है। घीसा जब पहली बार अपनी कक्षा में प्रवेश करता है तो, वह चित्रण भी दिल की छू जाने वाला है। पहली बार जब घीसा कक्षा के आया तो वह गठीला व पक्के रंग का सुडौल और मलिन मुख पर दो पीली व श्वेत आँखे, पतले होंठ, सिर पर छोटे – छोटे रूखे बाल, उभरी हुई हड्डियाँ, मटमैली हथेलियाँ तथा फटे और पुराने कपड़े से लबरेज उसकी आँखों में कौतूहल दिखाई देता था। उसका चेहरा और आँखों में बहुत कुछ सिखने की ललक दिखायी पड़ रही थी।

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प्रश्न 2. घीसा का नाम घीसा कैसे पड़ा?

उत्तर- धीसा की व्यथा बड़ी ही मर्मस्पर्शी है। उसके जन्म के पहल की उसके पिता का देहांत हो चुका था। घर में उसका देखभाल करने वाला उसकी माँ के सिवा और कोई न था। उसकी माँ एक मजदूर थी। जब वह उसे अपने पास लिटाकर काम में व्यस्त हो जाती तो वह अपने आप को घिसट घिसट कर चलाता था, इसलिए ही उसका नाम घीसा पड़ गया था I

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प्रश्न 3. घीसा कक्षा लगने के पूर्व क्या तैयारी करता था ?

उत्तर- घीसा शिक्षा के प्रति बड़ा ही सजग रहने लगा था वह कक्षा लगने से पहले अपना कुर्ता धोकर उसे साफ करता, फिर उसे पहनकर साफ-सुथरा होकर कक्षा में आने की तैयारी करता था I घीसा प्रत्येक शनिवार के दिन अपने छोटे – छोटे दुर्बल हाथो से उस पीतल के चबूतरे को गोबर- मिट्टी से लोत – पोत देता था और अपनी गुरु माँ, ‘महादेवी जी’ की शीतल पाटी को झाड़ू- पोंछकर उसे साफ कर यथास्थान सुनिश्चित कर देता था। पेड़ कोटर से काँच की दवात, टूटे निब और कलम निकाल कर उसे यथास्थान रख देता था। फिर इतवार को माँ के काम पर जाते ही एक गंदे, फटे कपड़े बंधी मोटी-रोटी और कुछ नमक या घोड़ा चबैना और गुड़ की डली बगल में दबाकर बह गंगाघाट पर आकर उनका रास्ता देखता था। और जैसे ही दूर से उनकी नौका को आते देखता, तो वह वीर के वेग से अपने साथियों को गुरु साहब के आने की खबर देता हुआ पेड़ के नीचे आ जाता | ‘महादेवी वर्मा’ द्वारा लिखित घीसा कहानी लेखिका के जीवन का संस्मरण है, जिसमें उन्होंने घीसा नामक एक गरीब बालक के विषय में वर्णन किया है। जो उनकी कक्षा में पढ़ने के लिए आता था।

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प्रश्न 4.बच्चे साफ-सफाई का पाठ पढ़ने के बाद अगली कक्षा में किस प्रकार तैयार होकर आए थे?

उत्तर- प्रस्तुत कथानक घीसा में ‘महादेवी वर्मा’ जी ने बच्चों को साफ-सफाई का पाठ बड़े ही ध्यान से पढ़ाया और समझाया था, उसी का अनुसरण करते हुए बच्चे जैसे के तैसे सामने आकर खड़े हो गये थे I बच्चे साफ-सफाई का महत्व इस प्रकार समझेंगे यह शायद शिक्षिका को भी नहीं पता था। पाठ का ज्ञान होने के बाद जब बच्चे अगले दिन कक्षा में आते तो उन सभी को देखकर महादेवी जी हतप्रभ रह गयीं I उन सभी का चेहरा देखने लायक था। कुछ बच्चे गंगाज़ी में मुँह इस तरह धो कर आये थे कि मैल अनेक रेखाओं में विभक्त हो गया था ,कुछ के हाँथ-पाँव ऐसे घिसे थे कि शेष मलिन शरीर के साथ वे अलग जोड़े हुए से लग रहे थे । कुछ बच्चे मैले फटे कपडे घर पर ही छोड़कर ऐसे अस्थिपंजरमय रूप में आ गये थे, जिसमें जिसमें केवल उनके प्राण ही शेष रहने का आभास था।

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प्रश्न 5. घीसा को देखकर “आँखें ही नहीं मेरा रोम-रोम गीला हो गया” लेखिका ने ऐसा क्यों कहा?

उत्तर- प्रस्तुत कथानक में महादेवी जी बच्चों क साफ -सफाई का महत्व समझाती है I जिसके स्वरूप सभी बच्चे तो जैसे-तैसे आ गये पर घीसा गायब था। एक साथ सभी के अंदर यह कौतुहल विराजमान हो गया कि घीसा कहाँ है। घीसा ने शिक्षिका की बात को अपने दिल से लगा लिया था। वह उस समय वहाँ नहीं आया, पूछने पर ज्ञात हुआ कि घीसा माँ से कपड़ा धोने के लिए साबुन मांग रहा था, लेकिन उसकी माँ को मजदूरी के पैसे ही नहीं मिले थे। दुकानदार ने अनाज के बदले में साबुन नहीं दिया। पिछली रात ही उसकी माँ को पैसे मिले थे। अत: रात देर होने के कारण साबुन सुबह अभी-अभी लेकर लौटी है I इसलिए घीसा कपड़े धो रहा है क्योंकि उसकी शिक्षिका ने उसे नहा-धोकर, साफ-सुथरे कपडे पहन कर आने के लिए कहा था। अतः इसलिए घीसा नहाकर, कपड़े धोकर, गीला अंगोछा लपेटे और आधा भीगा कूर्ता पहने हुए किसी अपराधी के समान उनके सम्मुख आकर खड़ा हो गया। उसके इस रूप को देखकर लेखिका का मन द्रवित हो गया और उनकी आँखें ही नहीं अपितु रोम- रोम गिला हो गया। घीसा की गुरु भक्ति ने महादेवी जी के हृदय को अन्दर तक छू लिया था। वह उसके इस कार्य के कारण द्रवित हो उठी थीं।

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प्रश्न 6. लेखिका ने ईश्वर की तुलना बूढ़े आदमी से क्यों की है?

उत्तर- लेखिका ने ईश्वर की तुलना बूढ़े आदमी से इसलिए की है क्योंकि लेखिका घीसा को खरे सोने के समान समझती थी। उन्हें लगता था कि उस मलिन शरीर को बनाने वाला ईश्वर उस बूढ़े आदमी से अलग नहीं है जो सोने के मंदिर को कच्ची मिट्टी की दीवार में रखकर निश्चिंत हो जाता है। यह इसलिए उन्हें लगा होगा क्योकि घीसा गुरु साहब से झूठ बोलता , भगवान जी से झूठ बोलना समझता है I घीसा अपनी निर्धर व जर्जर – अवस्था मैं ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार ईश्वर ने अपनी मनुष्योचित मूल्यों की पूंजी किसी बालक में समाहित कर दी है I

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प्रश्न 7. महादेवी वर्मा अक्सर अपनी छुट्टियाँ कैसे बिताया करती थीं?

उत्तर – महादेवी जी अक्सर अपनी छुट्टियाँ गंगा नदी के तट पर बसे झाँसी के खण्डहर में ही बिताया करती थीं। उनकी दार्शनिक दृष्टि मनोरंजन के स्थान पर प्रकृति का आनंद लेना चाहती थी। वे छुट्टी मिलते ही वहाँ आ जाती थी। वहाँ के लोग, वहाँ का वातावरण और प्राकृतिक सौन्दर्य उन्हें आत्मीय प्रतीत होता था।

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प्रश्न 8. भक्तिन कौन थी? महादेवी वर्मा को ऐसा क्यों लगता था कि वो (भक्तिन) अपने आपको उनकी अभिभाविका मानने लगी थी?

उत्तर- भक्तिन महादेवी जी की सेविका थी। चूँकि भक्तिन गरीब थी। उसके वास्तविक नाम के अर्थ और उसके जीवन के यथार्थ में विरोधाभास होने के कारण निर्धन भक्तिन सबको अपना असली नाम बता कर उपहास का पात्र नहीं बनना चाहती थी इसलिए वह अपना असली नाम छुपाती थी। वह लगभग दस वर्षों से उनके साथ ही रहती थी। उनके सुख-दुख की यही साथी थी। उनका पूरा ख्याल रखना और उनके बेवजह की हरकतों पर झुंझला भी जाती थी। इसलिए महादेवी जी को लगता था कि वह अपने आपको उनकी अभिभाविका मानने लगी थी I

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प्रश्न 9. घीसा ने अंत में गुरु साहिबा को क्या भेंट दी? यह भेंट सामग्री उसने कैसे जुटाई ? उत्तर- घीसा ने अन्त में गुरू साहिबा को तरबूज भेंट में दिया । उसने उस तरबूज को खरीदने के लिए अपने एक मात्र नये कुर्ते को बेंच दिया उसकी इस गुरु दक्षिणा से लेखिका भाव-विभोर हो उठी | जब वह अधखुला तरबूज महदेवी जी को अर्पण करने लाया तो महादेवी जी भाव-विहल और निश्चल हो गयीं। उन्हें लगा कि कभी किसी को इस प्रकार की गुरू दक्षिणा नहीं मिली होगी। आज तक जो भी गुरुदक्षिणा दी गयी इन सबसे यह गुरुदक्षिणा बहुत श्रेष्ठ है। संसार की सारी दक्षिणा इसके सामने फीकी लगती है।

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प्रश्न 10.महादेवी वर्मा को अन्य विद्यार्थियों की अपेक्षा घीसा ही क्यों याद रहा?

उत्तर- महादेवी वर्मा के लिए घीसा अन्य विध्यार्थियों की अपेक्षा भिन्न था। एक एकलव्य और आरुणी के समान ही गुरुभक्त था। इस मलिन सहमे से नन्हें विद्यार्थी की आँखों में न जाने कौन-सी जिज्ञासा भरी थीं, जो सिर्फ उन्हें ही देखा करता था। ऐसा लगता था कि मानों उनकी सारी विद्या बुद्धि को सीख लेना ही उसका एकमात्र लक्ष्य था। वह उन सबके बीच भी अकेला अपनी ओर महादेवी का ध्यान आकृष्ट करने में सफल रहता था। उनकी संवेदनाएं उसके प्रति विशेष स्थान रखती थी। उसका दिया हुआ गुरु -दक्षिणा उनके जीवन की अमूल्य गुरुदक्षिणा थी । जिसे वह विशेष स्थान देती थी। यही कारण था कि महादेवी जी को घीसा हमेशा याद रहा। 

पाठ से आगे-

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प्रश्न 1.”संध्या के लाल सुनहली आभा वाले उड़ते हुए दुकूल पर रात्रि ने मानो छिपकर अंजन की मूठ चला दी थी।” इस पंक्ति में प्रकृति के जिस दृश्य का वर्णन किया गया है उसे अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक हिन्दी के अध्याय घीसा से लिया गया है। उक्त पंक्ति में महादेवी वर्मा जी नौका पर सवार होकर अपने गाँव की ओर जा रहीं थी। गांव के निकट आते-आते अंधेरा होने लगा था। सूर्यास्त होते ही आसमान में सूर्य की किरणें जैसे अपना तेज भूल शीतलता से युक्त हो जाती है। ऐसा प्रतीत होता है कि मानो वह अपनी सुनहरी चादर ओढ़े हुए हो। धीरे-धीरे रात्रि होने लगती है और अंधकार की वह संध्या बेला की स्वर्णिम आभा जैसे धीरे-धीरे लुप्त होने लगती है। यह सांयकाल का दृश्य अत्यंत ही मनोहारी प्रतीत होता है।

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प्रश्न 2. “यह कथा अनेक क्षेपकोमय विस्तार के साथ सुनाई तो गई थी मेरा मन फेरने के लिए और मन फिरा भी; परन्तु किसी सनातन नियम से कथावाचक की ओर न फिरकर कथा के नायकों की ओर फिर गया और इस प्रकार घीसा मेरे और अधिक निकट आ गया।” उपरोक्त पंक्तियों में लोगों की किस मनोवृत्ति व लेखिका के किस व्यक्तित्व की ओर संकेत किया गया है?

उत्तर – उपरोक्त पंक्तियों में लोगों की संकीर्ण विचारधारा व कुत्सित मनोवृति को दर्शाया गया है। समाज में जो वर्ग भेद की स्थिति थी उस आधार पर शोषित वर्ग के प्रति उपेक्षा और उस पर भी उस समय एक विधवा के स्वाभिमान को यह समय कहाँ तक सह सकता था। लेखिका की मनोवृत्ति सुधारवादी होने के कारण घीसा से उन्हें अधिक लगाव हो गया। लेखिका सरल हृदय होने के साथ-साथ एक सुलझी हुई शिक्षित महिला भी थी । उन पर इस बात का कोई प्रभाव नहीं पड़ा कि वह कुठित समाज का साथ देती | अतः उन्होने सब कुछ जानते हुए भी घीसा और उसकी माँ की संघर्ष स्वीकार किया। वह घीसा के उनके प्रति प्रेम से, गुरुभक्ति व उसके मनुष्योचित गुणों से अत्यधिक आकर्षित हुए बिना नहीं रह सकी।

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प्रश्न 3. अन्य बच्चों की माँ. बुआएँ तथा दादी-नानी उन्हें घीसा से दूर रहने की हिदायत क्यों देती थी? आज के संदर्भ में क्या ऐसा व्यवहार करना उचित है ? अपने विचार लिखिए। 

उत्तर- सांकीर्ण विचारधारा व कुंठित सोच के कारण समाज में भेद-भाव की स्थिति विद्धमान थी I घीसा का जन्म उसके पिता की मृत्यु के पश्चात् हुआ था। समाज का एक वर्ग उसे अभागा समझता था, जिसके परिणाम स्वरूप अन्य बच्चों को उससे दूर रहने की हिदायद दी जाती थी। छोटी जाति का होने के बाद भी घीसा के माता पिता बड़े ही स्वाभिमानी थे I वर्गभेद और विषयुक्त समाज की कोरी मानसिकता इस प्रकार के प्रहार को कहाँ सह सकती थी? अत: इसी कारण अन्य बच्चों को उससे दूर रहने की सीख दी जाती थी। आज के सन्दर्भ में ऐसी विचारधारा व व्यवहार अनुचित व अव्यवहारिक प्रतीत होता है। मानवीय मूल्यों को त्याग कर, मनुष्यों का ऐसा मजाक अत्यंत ही अशोभनीय है। प्रकृति में जन्म लेने वाला प्रत्येक प्राणी समता के सिद्धान्त को आत्मसात् करें, तभी एक स्वस्थ्य समाज की परिकल्पना की जा सकती है अन्यथा और कोई समाधान नहीं है।

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प्रश्न 4. गर्मी की छुट्टियाँ लगने पर प्रायः सबके मन में खुशी और दुःख के मिले-जुले भाव होते हैं, छुट्टियाँ होने पर आप एवं आपके साथी कैसा महसूस करते हैं? आपस में बातचीत करके लिखें।

उत्तर- विद्यार्थी यह कार्य स्वयं करें।

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प्रश्न 5. निम्नांकित पंक्तियों में निहित भाव को स्पष्ट करें-

(क) “तब मैंने जाना कि जीवन का खरा सोना छिपाने के लिए उस मलिन शरीर को बनाने वाला ईश्वर उस बूढ़े आदमी से भिन्न नहीं, जो अपने सोने की मोहर को कच्ची मिट्टी की दीवार में रखकर निश्चित हो जाता है।”

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से महादेवी जी यह बताने का प्रयास कर रही है कि हम सभी एक ईश्वर की संरचना है। परंतु ईश्वर अपनी कुछ विशेष रचनाओं को संसार में अलग- अलग भेजता है I यदि ईश्वर की अमूल्य कृति संसार में एक आदर्श बनकर उभरती है। जिस प्रकार एक वृद्ध अपने समस्त जीवन की पूंजी को संचित कर रखता है। यद्यपि रखने का स्थान भले ही इतना शक्तिशाली ना हो, फिर भी वह उसे रखकर संतुष्ट हो जाता है। उसे अपनी पूँजी बड़ी ही सुरक्षित लगने लगती है। उसी ईश्वर ने अपने सारे गुण इस मलिन काया वाले बालक में समाहित कर दिये थे I उस बालक की निश्चलता व व्यवहार कुशलता, उसकी कर्तव्य परायणता व गुरू भक्ति अन्यत्र नहीं दिखाई देती है I` 

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(ख) “जिनकी भूख जूठी पत्तल से बुझ सकती है, उनके लिए परोसा लगाने वाले पागल होते हैं।”

उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति अत्यंत ही मर्मस्पर्शी है। यह पंक्ति समाज के उस वर्ग को उजागर करती है I जो आर्थिक तंगी से जूझ रहा है। घीसा एक अत्यंत ही निर्धन बालक था। उसके पास पहनने को कपड़े भी नहीं थे परन्तु वह भी अपने माता-पिता की तरह ही स्वाभिमानी था। अपना कुर्ता बेचकर अपनी गुरु साहिबा के लिए उपहार स्वरूप तरबूज खरीदना उसकी स्वावलंबि मानसिकता को दृष्टिगोचर करता है I अन्य उपाय देख घीसा ने कुर्ते के बदले तरबूज लेना ही उचित समझा | घीसा के अंग पर वस्त्र न हो तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता। इस प्रकार की सोच समाज की कुंठित मानसिकता को दृष्टिगोचर करती है।

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प्रश्न 6. पाठ के आरंभ में पानी भरती महिलाओं का चित्रण और घीसा की देहयष्टि का इस प्रकार वर्णन किया गया है कि हमारे मन मस्तिष्क में तस्वीर साकार हो जाती है। लेखन शैली में इस विधा को रेखाचित्र के नाम से जाना जाता है। आप भी अपने सूक्ष्म अवलोकन के आधार पर किसी व्यक्ति, वस्तु अथवा दृश्य का चित्रण एक अनुच्छेद में कीजिए। 

उत्तर- रेखा चित्र किसी व्यक्ति, वस्तु घटना या भाव का कम से कम शब्दों में मर्मस्पर्शी, भावपूर्ण एवं संजीव अंकन है I “ऐसा ही सुंदर चित्रण गरियाबंद जिले में, रायपुर से 85 किमी की दूरी पर कोसमपानी गांव में गायकबरी पठार पर स्थित है। एक छोटे से जंगल के खूबसूरत स्थलों के बीच स्थित जतमई मंदिर माता जतमई के लिए समर्पित है। यह मंदिर खूबसूरती से कई छोटे शिखरों और एक विशाल शिखर के साथ ग्रेनाइट के बाहर खुदी हुई है। छत्तीसगढ़ राज्य में यहाँ सबसे बड़ा झरना घटा रानी के रूप में स्थित है I यहाँ का वातावरण चारों तरफ से हरियाली से भरा है। वास्तव में एक विशाल जल राशि का गिरना, प्रपात का बनना और जल का बहना एक अद्‌भुत प्राकृतिक सौन्दर्य है।

भाषा के बारे में-

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प्रश्न 1. हमारे शरीर के विविध अंगों के नाम का प्रयोग, कुछ का स्त्रीलिंग में तो कुछ का पुल्लिंग में होता है यथा सिर, गला, हाथ आदि पुल्लिंग होते हैं तो आँखें, नाक, मूँछ स्त्रीलिंग में होती हैं। शरीर के सभी अंगों का निम्नांकित सारणी के अनुसार शिक्षक की मदद से वाक्यों में प्रयोग करते हुए उनके लिंगों का निर्धारण कीजिए इसमें आप अपने सहपाठियों या शिक्षक की भी मदद ले सकते हैं।

उत्तर- 

क्र.अंगो के नाम लिंगवाक्य
1. 2. 3.  4.  5. कानपेटजीभ माथा पैरपुल्लिंग पुल्लिंग स्त्रीलिंग पुल्लिंग पुल्लिंग कान सब कुछ सुनते है Iपेट में दर्द हो रहा है Iजीभ चटोरी होती है Iमाथा चौड़ा है Iपैर चलता है I

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प्रश्न 2. महादेवी जी ने घीसा नामक इस रेखाचित्र के वर्णन में विशेषण-विशेष्यों का बहुतायत से प्रयोग किया है। कक्षा में समूह में बँटकर पाठ के अलग-अलग हिस्सों / अनुच्छेदों में आए विशेषण एवं विशेष्यों की सूची में तैयार कीजिए। उन विशेषणों को अन्य उपयुक्त विशेष्यों के साथ भी जोड़ने का प्रयास कीजिए ।

उत्तर- अज्ञात – विशेषण

 ऊँची धोती – विशेष्य

 धुले -कुरते – विशेष्य

 निठल्ले लड़के – विशेषण

 कड़वा -तेल -विशेषण

 मलिन – विशेषण 

 रूखी जटा -विशेष्य

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प्रश्न 3. वाक्य संरचना करते समय यदि वाक्य में कर्त्ता के साथ ‘ने’ विभक्ति हो परन्तु कर्म के साथ ‘को’ विभक्ति न हो तो क्रिया, कर्म के अनुसार होगी। यथा- मैंने पुस्तक पढ़ी। मोहन ने रोटी खाई। सीता ने बताशा खाया। मीरा ने फल खाए ।

इस पाठ में भी ऐसे प्रयोग कई स्थल पर देखे जा सकते हैं, जैसे- दुकानदार ने अनाज लेकर साबुन दिया नहीं। सदा के समान आज भी मैं उसे न खोज पाया। रात्रि ने मानो छिपकर अंजन की मूठ चला दी थी । मैंने फिरकर चारों ओर जो आर्द्र दृष्टि डाली आप भी इस प्रकार के कुछ और वाक्यों का निर्माण कीजिए ।

उत्तर – (1) हमने आज भोजन ग्रहण नहीं किया।

 (2) तुम को तो शर्म आनी चाहिए।

 (3) कक्षा को साफ रखने में वह चतुर था I

 (4) कृति ने मनोविनोद के लिए एक चुटकुला सुनाया I 

 (5) कल रात को बहुत गर्मी थी |

 (6) आज कुछ लोगों ने मुझे बुलाया है I 

योग्यता विस्तार –

प्रश्न 1. गुरु दक्षिणा की परंपरा आज प्रचलन में नहीं है किंतु इससे संबंधित बहुत सारी कहानियाँ प्रचलित है जैसे एकलव्य की कथा, आरुणि की कथा आदि I अपने बड़ो से उन्हें सुनिए और लिखिए I

उत्तर – (1) गुरु दक्षिणा – गुरु दक्षिणा गुरु के प्रति सम्मान व समर्पण भाव है। गुरु के प्रति सही दक्षिणा यही है, किं गुरु अब चाहता है कि तुम खुद ही गुरु बनो । मूलतः गुरु दक्षिणा का अर्थ शिष्य की परीक्षा के संदर्भ में भी लिया जाता है । गुरु दक्षिणा उस वक्त दी जाती है । या गुरु उस वक्त वस्तु दक्षिणा ग्रहण करता है जब शिष्य में संपूर्णता आ जाती है।

(2) एकलव्य की गुरु दक्षिणा – एकलव्य एक बहादुर बालक था। वह जंगल में रहता था। उसके पिता का नाम हिरण्यधनु था, जो उसे हमेशा आगे बढ़ने की सलाह देते थे एकलव्य को धनुष- बाण बहुत प्रिय था। लेकिन जंगल में धनुष और बाण न होने के कारण एक दिन घर धनुर्विद्या सीखने के उद्देश्य से गुरु द्रोणाचार्य के आश्रम आया ।

 एकलव्य गुरु द्रोणाचार्य के पास आकर बोला- “गुरुदेव मुझे धनुर्विद्या सिखाने की कृपा करें। तब गुरु द्रोणाचार्य के समक्ष धर्म संकट उत्पन्न हुआ क्योंकि उन्होंने भीष्म पितामह को वचन दे दिया था कि वे केवल राजकुमारों को ही शिक्षा देंगे और एकलव्य राजकुमार नहीं है अतः उसे धनुर्विद्या कैसे सिखाऊँ? अतः द्रोणाचार्य ने एकलव्य से कहा- मैं तुम्हें धनुर्विद्या नहीं सीखा सकूंगा। परन्तु एकलव्य घर से निश्चय करके निकला था कि यह केवल गुरु द्रोणाचार्य को ही अपना गुरु बनाएगा । अतः एकलव्य ने अरण्य में जाकर गुरु द्रोणाचार्य की मिट्टी की मूर्ति बनाई और मूर्ति की ओर एकटक देखकर ध्यान करके उससे प्रेरणा लेकर वह धनुर्विद्या सीखने लगा। मन की एकाग्रता तथा गुरुभक्ति के कारण उसे मूर्ति से प्रेरणा मिलने लगी और वह धनुर्विद्या में बहुत आगे बढ़ गया ।

 एक बार गुरु द्रोणाचार्य, पांडव एवं कौरव को लेकर धनुर्विद्या का प्रयोग करने अरण्य में आये। उनके साथ एक कुत्ता भी था, जो थोड़ा आगे निकल गया। कुत्ता वहीं पहुंचा जहां एकलव्य अपनी धनुर्विद्या का प्रयोग कर रहा था। एकलव्य के खुले बाल एवं फटे कपड़े देखकर कुत्ता भौंकने लगा। एकलव्य ने कुत्ते को लगे नहीं, चोट न पहुंचे और उसका भौंकना बंद हो जाये इस ढंग से सात बाण उसके मुंह में थमा दिये। कुत्ता वापस वहां गया, जहां गुरु द्रोणाचार्य के साथ पांडव और कौरव थे। तब अर्जुन ने कुत्ते को देखकर कहा- गुरुदेव यह विद्या तो मैं भी नहीं जानता । यह कैसे संभव हुआ? आपने तो कहा था बराबरी का दूसरा कोई धनुर्धारी नहीं होगा किन्तु ऐसी विद्या तो मुझे भी

कि मेरी बराबरी का दूसरा कोई धनुर्धारी नहीं होगा किन्तु ऐसी विद्या तो मुझे भी नहीं आती ।

द्रोणाचार्य ने आगे जाकर देखा तो यह हिरण्यधनु का पुत्र गुरुभक्त एकलव्य था । द्रोणाचार्य ने पूछा – बेटा ! यह विद्या कहां से सीखी तुमने ? एकलव्य- गुरुदेव आपकी ही कृपा से सीख रहा हूँ । परंतु द्रोणाचार्य ये वचन दे चुके थे कि अर्जुन के बराबरी का कोई भी दूसरा धनुर्धारी नहीं होगा ! किन्तु यह तो बहुत आगे निकल गया है, अब गुरु द्रोणाचार्य के लिए धर्म संकट खड़ा हो गया । 

 एकलव्य की अटूट श्रद्धा देखकर द्रोणाचार्य ने कहा- मेरी मूर्ति को सामने रखकर तुमने धनुर्विद्या तो सीख ली, किंतु मेरी गुरुदक्षिणा कौन देगा?

 एकलव्य ने कहा- गुरुदेव आप जो मांगे द्रोणाचार्य ने कहा- तुम्हें मुझे दाएं हाथ का अंगूठा गुरु दक्षिणा में देना होगा। एकलव्य ने पलभर भी विचार किए बिना अपने दांए हाथ का अंगूठा काटकर गुरुदेव के चरणों में अर्पण कर दिया। 

धन्य हैं एकलव्य जो गुरुमूर्ति से प्रेरणा पाकर धनुर्विद्या में सफल हुआ और गुरु दक्षिणा देकर दुनिया को अपने साहस, त्याग और समर्पण का परिचय दिया । आज भी ऐसे साहसी धनुर्धर एकलव्य को उसकी गुरुनिष्ठा और गुरु भक्ति के लिए याद किया जाता है ।

आरुणि की गुरुभक्ति – आरुणि महर्षि आयोदधोम्य का शिष्य था । गुरु के शिष्यों में तीन शिष्य बहुत प्रसिद्ध हुए। वे परम गुरु भक्त थे। उनमें से बालक आरुणि एक था। एक दिन बिन मौसम ही बादल आ गये और बरसने लगे तभी गुरुजी ने आकाश की ओर देखा और बोला लगता है कि वर्षा होगी । तभी देखते ही देखते मूसलाधार बारिश होने लगी I आश्रम से कुछ ही दूर पर गुरूजी के खेत थे I उन्होंने सोचा की वर्षा के कारण मेड़ टूट सकते है I और यदि मेड़ टूट गए तो धान के खेतों से पानी बह जायेगा और मिट्टी भी कट जाएगी I उन्होंने आरुणि को आदेश दिया कि बेटा आरुणि तुम खेत की ओर जाओं और ध्यान देना की कहीं खेत का मेड़ टूटकर पानी ना निकल जाये I गुरु का आदेश पाकर आरुणि खेत की ओर चल पड़ा I वहाँ उसने देखा की खेत की मेड़ टूट गयी है I और पानी बह रहा है I उसके लाख कोशिश के बाद भी पानी नहीं रुक रहा था तभी उसे ख्याल आया की वो ही क्यों ना मेंड़ बन जाये और उसने वैसा ही किया रात भर वह मेंड़ बन कर पानी को रोके रहा I अगले दिन सुबह जब वह आश्रम में नहीं दिखा तो गुरु जी ने उसके बारे में अन्य शिष्यों से पूछा I सबने कहा कि वह कल शाम खेत से लौटा ही नहीं I तभी कुछ लोगों से साथ गुरूजी खेत की ओर गये और देखा की आरुणी मेंड़ बन कर लेटा है I उसका पूरा बदन सर्द से अकड़ गया था I गुरूजी ने उसे उठाकर अपने गले से लगा लिया और कहा बेटा तुम सच्चे गुरु भक्त हो तुम्हे सब विद्याएँ अपने आप ही आ जाएगी I जगत में आरुणी की गुरुभक्ति सदा के लिए अमर हो गयी I 

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