Class 10 Hindi
Chapter 4.1
अमर शहीद वीरनारायण सिंह
पाठ से –
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प्रश्न 1. वीर नारायण सिंह में कौन से मानवीय मूल्य दिखते हैं, जो उन्हें अद्वितीय सिद्ध करते हैं।
उत्तर- सादा जीवन विचार की उक्ति को चरितार्थ करते हुए वीर नारायण सिंह जी जीवन पर्यंत लोकहित के कार्यों में लिप्त रहे । वीर नारायण सिंह जी धर्म परायण, मृदुभाषी, मिलनसार और परोपकारी थे I उन्होंने अपने गुरुओं से धर्म और निति संबंधी शिक्षा ग्रहण की थीं। वो शस्त्र विद्या में भी बचपन से ही निपुण थे । उन्होने अपने पूर्वजो से प्राप्त मूल्यों को हमेंशा कायम रखा । अपने जमींदारी में भी उन्होंने तालाब खुदवाए, वृक्ष लगवाए और पंचायतों के माध्यम से जन-समस्याओं का समाधान किया। सोनाखान में उसकी इस परोपकारी प्रवृत्ति के तीन उदारण है- राजा सागर, रानी सागर और नंद सागर तालाब I वे स्वयं ही नंदसागर के आस – पास वृक्षारोपण कर उसे नंदनवन का स्वरूप प्रदान किया था। वें लोगों से मिलकर बात करके उनकी समस्याओं का समाधान निकालते थे I
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प्रश्न 2. वीर नारायण सिंह को अपने पूर्वजों से कौन से गुण प्राप्त हुए थे ?
उत्तर- वीर नारायण सिंह जी सच्चे देश भक्त थे I उन्होंने जीवन भर आदर्शो और नियम संयम का पालन किया | उन्हें अपने पूर्वजों से जो गुण मिले थे, उनका उन्होने जीवन भर पालन किया I वे हमेशा अन्याय और शोषण का विरोध करते थे और उन्होंने अपने पिता के संघर्षो में उनका साथ दिया I उनके अंदर अपने पूर्वज बिसई ठाकुर जैसी दृढ़ता थी, फत्ते नारायण जैसा धैर्य एवं साहस तथा पिता राजराय जैसा जन – नेतृत्व करने की अभूतपूर्व क्षमता थी, जो अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष में देखने को मिली। उनके इन्हीं गुणों के कारण आज की युवा पीढ़ी भी उन्हें अपना आदर्श मानती है।
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प्रश्न 3. जमींदार होने के बाद भी शहीद वीर नारायण सिंह की लोकप्रियता के क्या कारण थे?
उत्तर- जमींदार होने के बाद भी शहीदवीर नारायण सिंह जी बहुत सादा जीवन व्यतीत करते थे। वे एक सच्चे और सरल इंसान थे। उनका मकान कोई बड़ी हवेली, किला या महल नही था। बल्कि बाँस और मिट्टी से बना बड़ा ही साधारण सा मकान था। वे लोगों के बीच घूम – घूमकर उनकी समस्याओं का पता लगाते तथा उसका समाधान ढूंढते थे। वे आम जनता के बीच समरस होकर अपने क्षेत्र का दौरा करते और उनकी समस्याओं एवं कठिनाइयों का हल खोजते थे।
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प्रश्न 4. माखन व्यापारी के गोदाम से अनाज निकालने के पीछे जमींदार का क्या उद्देश्य था? उत्तर- छत्तीसगढ़ में सूखा व अकाल पड़ने के कारण यहां के लोगों की भूखे मरने की नौबत आ गई थी इसलिए उन्होने माखन व्यापारी के अनाज के गोदाम को खोल दिया और सब गरीब अनाज ले गये क्योंकि व्यापारी अनाज को गोदाम में इकट्ठा करके रखते है I और जनता अनाज के लिए दर- दर की ठोकरे खाती है I अत: जनता और किसानो की भलाई के लिए उन्होंने अनाज के गोदाम खोल दिये।
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प्रश्न 5. शहीद वीर नारायण सिंह निर्भीक, दृढ चरित्र और ईमानदार थे। यह किस घटना से पता चलता है? वीर नारायण सिंह की विद्रोह की रणनीति क्यों असफल हुई ?
उत्तर- शहीद वीर नारायण सिंह निर्भीक,दृढ चरित्र और ईमानदार थे I इसका जीवंत उदाहरण माखन व्यापारी के गोदाम को जमींदार द्वारा लुटे जाने वाली घटना से पता चलता है I देश की आजादी के लिए अपनी जान देने वालों में एक नाम छत्तीसगढ़ के शहीद वीर नारायण सिंह का भी आता है, जिन्होंने अंग्रेजों के समर्थक का गोदाम लूट सारा अनाज गरीबों में बंटवा दिया था। वे पांच सौ आदिवासियों की फौज बना अंग्रेजी सेना से भिड़ गए थे, जिसके बाद अंग्रेजों ने बीच चौराहे पर उन्हें तोप से उड़ा दिया था I उसकी ईमानदारी, निर्भीकता व चरित्र का इस बात से पता चलता है कि उन्होंने जो कुछ लिया था, उसके विषय में तुरंत ही डिप्टी कमिश्नर को लिख दिया था | पर अंग्रेजों ने षड्यंत्र कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
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प्रश्न 6. वीर नारायण सिंह की विद्रोह की रणनीति क्यों असफल हुई?
उत्तर- भारतीय इतिहास गवाह है कि अंग्रेजो नेअपनी कूटनीतिक चालों से यहाँ पर बहुत ही विद्धंश किया जिसका जीता -जागता प्रमाण शहीद वीर नारायण सिंह जी थे | वीर नारायण सिंह की विद्रोह की रणनीति अंग्रेजों की कूटनीति के कारण असफता हुई क्योंकि उन्होंने उनके आंदोलन को यहाँ के लोगों की ही मदद के कुचल दिया था। उनके विद्रोह की रणनीति को असफल बनाने में देवरी के जमींदार नारायण सिंह के काका जी का बहुत बड़ा योगदान था। उन्होंने अंग्रेज अधिकारी को सहायता पहुंचाकर सोना खान को नष्ट करवाया | देवरी के स्थानीय लोगों ने ही वीर नारायण सिंह की नीति को असफल किया !
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प्रश्न 7. छत्तीसगढ़ की जनता के बीच वीर नारायण सिंह की लोकप्रियता के कारण क्या हैं? उत्तर- शहीद वीर नारायण सिंह स्वाधिनता के लिए बलिदान देने वाले पहले वीर आदिवासी थे। उन्होने भूखी जनता को अनाज बाँटकर एक जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया था। जनता में क्रांति की लहर उन्होंने ही जगाई थी। पुनर्जागरण काल में उन्होंने राजनितिक एवं सामाजिक चेतना भी जगाई थी। उनकी वीर गाथा घरों में आज भी गायी जाती है। आजादी की लड़ाई में वे छत्तीसगढ़ के प्रेरणा स्रोत रहे हैं। उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया, इसलिए वे आज भी लोकप्रिय है I
पाठ से आगे-
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प्रश्न 1. अपने आस-पास के ऐसे लोगों की जानकारी एकत्र करें जो जनसेवा के कार्य में निस्वार्थ भाव से लगे रहते हैं?
उत्तर – हमारे क्षेत्र में अनेक ऐसे लोग है जो जनसेवा के कार्य में लगे रहते हैं। वे लोग शिक्षण संस्थाएं चलाते है, अनेक धर्मशालाएं एवं निःशुल्क स्वास्थ्य केन्द्र चलाते है। इसमें दूधाधारी मठ के मठाधीश, स्वामी विवेकानंद आश्रम के स्वामी, विभिन्न भाष एवं समुदाय के मंडल है जो निःस्वार्थ भाव से जनसेवा का कार्य करते है।
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प्रश्न 2. 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में वीर नारायण सिंह के अलावा छत्तीसगढ़ की माटी के और कौन-कौन से वीर सपूत शामिल थे जिन्होंने अपने प्राण न्योछावर किए? उनके बारे में जानकारी एकत्र कर उनकी जीवन-यात्रा पर साथियों के साथ समूह चर्चा करें?
उत्तर – 1857 की क्रांति और छत्तीसगढ़-
(1) सोनाखान का विद्रोह – वीर नारायण सिंह 1856 कसडोल के माखन बनिया के गोदाम को लूटा I(2) 24 अगस्त 1856 संबलपुर से गिरफ्तारी I(3) 27, 28 अगस्त 1857 को जेल से फरार I (4) लफ्निनेट स्मिथ अंग्रेजो के सहायक – कटंगी बड़गांव बिलाईगढ़ व देवरी I(5) 10 दिसंबर 1857 को मृत्युदण्ड I | रायपुर कासिपाही विद्रोह(1) हनुमान सिंह (बैसवाड़ा का राजपूत) (2) तीसरी बटालियन में मैग्जीन लश्कर पर कार्यरत I (3) 18 जनवरी 1858 सार्जेन्ट मेजर सिडवेल की हत्या I (4) 17 साथी गिरफ्तार 22 जनवरी 1858 को मृत्यदण्ड Iसंबलपुर का विद्रोह – (1) सुरेन्द्र साध (हजारी बाग जेल में कैद)(2) 1864 में असीरगढ़ के किले में कैद, 1884 में मृत्यु (5) उदयपुर का विद्रोह- कल्याण साध |
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प्रश्न 3. आदिवासी जीवन सरल, निर्भीक और प्रकृति के सबसे करीब है? इस संदर्भ में उनके गुणों के पाँच उदाहरण ढूँढकर लिखिए?
उत्तर- (1) उनका जीवन सादा- सरल होता है I
(2) धर्म परायणता उसमें अधिक होती है।
(3) जीवन में समरसता बनी रहती है।
(4) अपनी भूमि व्यवस्था के प्रति जागरूक रहते हैं।
(5) राजनीतिक हस्तक्षेप से दूर रहते हैं।
(6) अपनी संस्कृति की मर्यादा में रहते हैं।
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प्रश्न 4. “अटूट बल से बड़ा कोई हथियार नहीं होता” इसे आपने अपने जीवन में कई बार महसूस किया होगा I अपने जीवन के उन प्रसंगों को लिखकर कक्षा में सुनाइए?
उत्तर- मनोबल का अर्थ है- किसी समूह के सदस्यों की उस संगठन या उसके लक्ष्य के प्रति आस्था की दृढ़ता ।
मनोबल सीधे कार्य – निष्पादन को प्रभावित करता है। व्यक्ति चाहे स्वतंत्र रूप से कार्य करे या संगठन में रहकर सामूहिक प्रयास करें मनोबल एक निर्णायक भूमिका
निभाने वाला तत्व सिद्ध होता है। मनोबल व्यक्ति की आंतरिक मानसिक शक्ति तथा आत्मविश्वास का पर्याय है। मनोबल का शब्दकोशीय अर्थ है, किसी विशिष्ट समय में व्यक्ति या समूह द्वारा प्रदर्शित आत्मविश्वास ; उत्साह तथा दृढ़ता इत्यादि की मात्रा |
करोना काल के दौरान मेरे पिताजी दुबई में फंस गये थे। उनका परिवार अर्थात् हम सब रायपुर में थे। पिताजी बिल्कुल अकेले पड़ गये थे परन्तु उनके कुछ साथी भी वहीं रहते थे। सभी लोग मिलकर एक ही घर में रहने लगे और एक- दूसरे की मदद से सभी खुश और स्वस्थ्य जीवन जीने लगे I वे सब लोग आपस में एक – दूसरे का ख्याल रखते और एक दूसरे के परिवार को भी ढ़ाढ़स बंधाते रहते जिसके कारण से मुश्किल भरे दिन आसानी से बीत गये अब पिताजी हमारे साथ है परन्तु जब वो, उन दिनों को याद करते हैं तो सिहर उठते हैं। वे कहते है कि ऐसी मुश्किल परिस्थिति को सिर्फ उच्च मनोबल के कारण ही हराया जा सका है I
भाषा के बारे में-
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प्रश्न 1. (क) उन पर मुकदमा चलाया गया।
(ख) स्मिथ ने देवरी के जमींदार को हथियार की तरह उपयोग किया।
पाठ से लिए गए इन दोनों वाक्यों में फर्क यह है कि ‘क’ एक कर्मक वाक्य है अर्थात् इस प्रकार के वाक्य में क्रिया पर ‘क्या’ प्रश्न का जवाब ‘निर्जीव संज्ञा’ (मुकदमा) के रूप में प्राप्त होता है। जैसे- क्या चलाया गया? उत्तर- मुकदमा चलाया गया।
जबकि ‘ख’ वाक्य द्विकर्मक वाक्य है। देवरी के ‘जमींदार’ और ‘हथियार इस वाक्य में दो कर्मों का प्रयोग हुआ है। एक कर्म अर्थात निर्जीव संज्ञा (हथियार) और दूसरा कर्म अर्थात किसको / किसे के उत्तर में सजीव संज्ञा (जमींदार) का प्रयोग हुआ है।
आप इसी प्रकार के पाँच-पाँच वाक्यों की रचना कीजिए ।
उत्तर – एक कर्मक क्रिया → जिस वाक्य में एक मुख्य कर्म व क्रिया होती है, वह एक कर्मक क्रिया कहलाती है। उदाहरण- (1) राधा गाना गा रही है।
(2) राम खाना खायेगा ।
(3) राज पत्र लिखता है।
(4) सुमन फूल तोड़ती है।
(5) सीमा कपड़े सिलती है।
द्विकर्मक क्रिया → वह क्रिया जिसके साथ दो कर्म आते हैं, द्विकर्मक क्रिया कहलाती है I
(1) माँ ने पुत्र को आम दिया ।
(2) माँ पुत्री को दूध पिला रही है।
(3) राम ने मोहन से कार ली।
(4) हमने भिखारी को भिक्षा दिया ।
(5) किसान खेत में फसल लगाता है I
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प्रश्न 2. मनः + बल = मनोबल तमः गुण = तमोगुण
मनः + भाव = मनोभाव तपः वन = तपोवन
अधः + भाग = अधोभाग रजः गुण = रजोगुण
वयः + वृद्ध = वयोवृद्ध मनः अनुकूल मनोनुकूल
उदाहरण से स्पष्ट है कि विसर्ग (:) से पूर्व ‘अ’ हो और विसर्ग (:) के पश्चात ‘अ’, या किसी वर्ग का तीसरा, चौथा, या पाँचवाँ वर्ण या य, र, ल, व, ह में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ‘ओ’ हो जाता है। इसी प्रकार के अन्य उदाहरण खोजकर उनका संधि विच्छेद कीजिए ।
उत्तर – मनः + योग मनोयोग
मन: + रथ मनोरथ
अधः + रचना अधोरचना
सतः + गुण सतोगुण
तपः + बल तपोबल
मन: + रथ मनोरथ
यश: + ज्ञान यशोगान
तप:+ वन तपोवन
सरः + वर सरोवर
योग्यता विस्तार –
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प्रश्न 1. छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता संग्राम के कौन – कौन से स्थान विद्रोह के मुख्य केंद्र थे ? उन स्थानों का नाम लिखकर नेतृत्वकर्ता का नाम लिखिए I
उत्तर- स्वतंत्र आन्दोलन में छत्तीसगढ़ के आम लोगों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है जिसमें कुछ प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और उनके क्षेत्र निम्न लिखित है I
नेतृत्व कर्ता के नाम स्थान
1. वीर नारायण सिंह (1795 – 1857 ई.) सोनाखान
2. वीर सुरेन्द्र साय (1809 – 1884 ई.) सम्बलपुर रियासत, बिलासपुर कालाहांडी
3. वीर हनुमान सिंह (1857 विद्रोह ) रायपुर छावनी
4. प. सुन्दरलाल शर्मा (1881 – 1940) राजिम, रायपुर , धमतरी आदि
5. गुण्डाधुर (1910 ई.) बस्तर (आदिवासी विद्रोह)
6. प. वामन राव लाखे (1872 – 1948 ई.) रायपुर
7. घनश्याम सिंह गुप्त (1885 ई.) दुर्ग
8. ठाकुर छेदीलाल (1887 – 1956 ई.) अकलतरा, बिलासपुर
9. प. रत्नाकर झा (1898 – 1973 ई.) खैरागढ़ रियासत, दुर्ग
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प्रश्न 2. छत्तीसगढ़ के नक्शे में उन स्थानों को चिन्हित करें जो 1857 में आन्दोलन के केंद्र रहेI इस दौरान उन स्थानों पर हुई गतिविधियों की संक्षिप्त जानकारी भी दीजिए I
उत्तर-
सोनाखान विद्रोह –
- वर्ष – 1856 ई.
- स्थान – सोनाखान (बलौदाबाजार)
- नेतृत्वकर्ता – वीर नारायण सिंह
(सोनाखान के जमींदार थे, जो बिंझवार जनजाति के थे )
- कारण – अकाल पीड़ितो को अनाज उपलब्ध कराने के लिए वीरनारायण सिंह ने कसडोल के व्यापारी माखनलाल के गोदाम से अनाज लूटकर जनता में बांट दिया I
- घटना क्रम – 24 अक्टूबर 1856 में कैप्टन स्मिथ ने अनाज लूटने के आरोप में वीर नारायण सिंह को सम्बलपुर से गिरफ्तार कर रायपुर जेल में बंद कर दिया।
- परिणाम – 10 दिसंबर 1857 को वीर नारायण सिंह को रायपुर के जयस्तंभ चौक में चार्ल्स इलियट के फैसले के अनुसार फांसी दे दी गई। वीर नारायण सिंह छ.ग. स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम शहीद कहलाये।
सुरेन्द्र साय का विद्रोह / सम्बलपुर विद्रोह
- वर्ष – 1857
- स्थान – संबलपुर
- नेतृत्वकर्ता – सुरेन्द्र साय (संबलपुर के जमींदार)
सहयोगी – बलभद्र दाऊ (लखनपुर जमींदार), उदवंत साय (भाई), बलराम सिंह (चाचा)
- कारण – सम्बलपुर के चौहान राजा महाराज साय की मृत्यु बिना उत्तराधिकारी के हो गई। सुरेन्द्र साय का राजगद्दी पर वैध अधिकार बनता था किन्तु अंग्रेजों ने महराज साय की विधवा रानी मोहनकुमारी को गद्दी पर बैठा दिया I
- परिणाम – सुरेन्द्र साय को साथियों के साथ गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल में कैद किया गया।
- घटनाक्रम – 31 अक्टूबर 1857- हजारीबाग जेल से फरार ।
– 23 जनवरी 1864 – सुरेन्द्र साय को पुनः गिरफ्तार कर असीरगढ़ के किले में कैद कर लिया गया।
- मृत्यु – 28 फरवरी 1884 सुरेन्द्रसाय की असीरगढ़ के किले में मृत्यु हो गई।
- विशेष – इन्हें छत्तीसगढ़ का अंतिम शहीद माना जाता है।
उदयपुर का विद्रोह ( Udaipur Revolt)
- वर्ष – 1858
- स्थान – सरगुजा के उदयपुर (उदयपुर सरगुजा रियासत का एक करद राज्य था) क्षेत्र
- नेतृत्वकर्ता – कल्याण सिंह
- कारण – ब्रिटिश सरकार उदयपुर को अपने साम्राज्य में विलय करना चाह रही थी। जिसके कारण उदयपुर जागीर के नरेश कल्याण सिंह एवं उनके भाई शिवराज सिंह व धीरज सिंह ने अंग्रेजी राज्य के विरुद्ध विद्रोह किया था। इस विद्रोह के लिए इन्हें सुरेन्द्र साय ने प्रेरित किया था।
- घटनाक्रम – 1852 में ब्रिटिश कंपनी की सरकार ने यहां के शासक कल्याण सिंह और उसके दो भाइयों शिवराज सिंह और धीरज सिंह पर मानव वध का मनगढ़त आरोप लगाकर उन्हें रांची जेल में बंद कर दिया और उदयपुर का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर दिया गया। 1857 के विद्रोह के दौरान क्रांतिकारियों ने रांची पर कब्जा कर लिया, परिणामस्वरूप अंग्रेजो को मजबूरन रांची छोड़ना पड़ा। जिससे कैद कल्याण सिंह, शिवराज सिंह और धीरज सिंह जेल से भागकर उदयपुर आ गए और अपने खोये हुए क्षेत्र को पुनः प्राप्त कर लिये।
- परिणाम – 1859 में अंग्रेजों ने रायगढ़ रियासत के राजा देवनाथ सिंह के सहयोग से इस क्षेत्र में आक्रमण किया परिणामस्वरूप कल्याण सिंह और धीरज सिंह रणक्षेत्र में वीरगति को प्राप्त हुए तथा शिवराज सिंह को गिरफ्तार कर कालापानी की सजा देकर अण्डमान द्वीप भेज दिया गया।
सैन्य विद्रोह / रायपुर का सिपाही विद्रोह (Sepoy Revolt of Raipur)
- वर्ष – 1858
- स्थान – रायपुर
- नेतृत्वकर्ता – हनुमान सिंह (बैसवाडा के राजपूत)
- उपाधि – हनुमान सिंह को छत्तीसगढ़ का मंगल पांडे कहा जाता है।
- पद – हनुमान सिंह तीसरी बटालियन में मैग्जीन लश्कर पद पर कार्यरत थे।
- कारण – सार्जेन्ट मेजर सिडवेल की हत्या (18 जनवरी 1858)
- घटनाक्रम -18 जनवरी 1858 की संध्या 7 :30 बजे हनुमान सिंह ने तीसरी बटालियन / तुकड़ी के सार्जेन्ट मेजर सिडवेल के घर में घुसकर उसकी हत्या कर दी जिससे रायपुर विप्लव प्रारंभ हुआ। – 19 जनवरी 1958 को हनुमान सिंह के 17 साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया, किन्तु हनुमान सिह बच निकला ।
- परिणाम – 22 जनवरी 1858 की सुबह 17 सिपाहियों को सरेआम फांसी पर लटका दिया गया |