Class 10 Hindi
Chapter 4.3
छत्तीसगढ़ की लोककलाएँ
पाठ से –
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प्रश्न 1. मनुष्य का सम्पूर्ण चिंतन, दर्शन और राग विराग लोककला में सन्निहित क्यों है?
उत्तर- किसी भी देश, समाज या उसमें जन्मे मनुष्य की विचारधाराएँ अलग होती है I भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहाँ विभिन्न धर्म, जाति और समुदाय के लोग रहते है। यहाँ के लोग धरती को माता और स्वयं को उसका पुत्र अथवा संतान मानते है। इस रिश्ते के प्रेम ने उसे प्रकृति और उसकी संतान के साथ जोड दिया जिसके कारण यहाँ लोक रचना की धाराये प्रवाहित होने लगी। इसी प्रवाह के कारण लोक गीत, लोक कथा, लोक नाट्य, लोक नृत्य आदि विधाओं को जन्म दे दिया। मनुष्यों का संपूर्ण जीवन चिंतन, दर्शन, राग – विराग लोक कला में समाप्ति होने लगा है।
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प्रश्न 2. ‘तुरतुरिया’ नामक स्थान क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर- तुरतुरिया नामक स्थान पर महर्षि वाल्मिकी जी का आश्रम है जो रायपुर जिले में ही स्थित है I अयोध्या त्यागने के उपरान्त माता सीता का यहाँ रहना, लव- कुश का जन्म, उनकी शिक्षा – दिक्षा, लालन – पालन यहीं पर हुआ था। यहीं से कविता की धारा प्रस्फुटित हुयी थी। इसी स्थान पर लव-कुश ने अश्वमेघ के अश्वों को पकड़ा था। आदि शंकराचार्य के गुरू श्री गोविन्द पाद स्वामी इसी स्थान के रहने वाले थे। अत: इन्ही विशिष्ट कारणों से यह स्थान पूज्यनिय है।
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प्रश्न 3. छत्तीसगढ़ी लोक गीत को अन्य भारतीय लोक गीतों से अधिक विशिष्ट क्यों माना जाता है?
उत्तर- छत्तीसगढ़ी लोकगीत बड़े ही सुरीले होते है I जो उनकी संस्कृति को प्रदर्शित करते है I इसे अन्य भारतीय गीतों से अधिक विशिष्ट इसलिए माना जाता है क्योंकि इसमें धुनों की विविधता के दर्शन मिलते है I इनके गीत-संगीत यहाँ के कण-कण में विराजमान है। यहाँ का लगभग हर व्यक्ति सुरीला है ही। अतः यहाँ ददरिया, सुवा, भोजली, जवारा,बिहाव और भजन जैसी कई विधाएँ प्रचलित है। इसिलिए छत्तीसगढ़ी लोकगीतो को अन्य भारतीय लोक गीतों से अधिक विशिष्ट माना जाता है।
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प्रश्न 4. छत्तीसगढ़ी के प्रमुख लोक गीत गायकों के नाम लिखिए ।
उत्तर- छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोकगीत गायक है- लाला फूलचंद श्रीवास्तव, शेख हुसैन, प्रकाश देवांगन, शिवकुमार तिवारी, कोदूराम वर्मा, केदार यादव, नर्मदा वैष्णव, बैतल राम साहू, पंचराम मिरझा और भैयालाल हैड़ाउ इत्यादि यहाँ के प्रमुख लोकगीत गायक है जिन्होने इस समूचे विश्व में पहचान दिलाया है।
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प्रश्न 5. “नाचा विधा” को संक्षेप में समझाइए I
उत्तर – नांचा छत्तीसगढ़ का प्रमुख लोक नाट्य है I यह विद्या अत्यन्त ही सशक्त और लोकप्रिय विद्या है I इस विधा के अंतर्गत पुरुष, महिला के वेश में ‘परी’ बनकर गाते और नाचते है। दो-चार नाच के बाद गम्मत या प्रहसन होता है। जिसमें जोकर के अलावा कुछ अन्य पात्र प्रहसन पेश करते है I इनमें अत्यंत तीखा व्यंग्य होता है। परन्तु इसका समापन किसी अच्छे आदर्श को पेश करता है। बस्तर के अतिरिक्त छत्तीसगढ़ के अधिकांश भागों में नाचा का प्रचलन है I नाचा का उद्गम गम्मत से की माना जाता है। जो मराठा सैनिको के मनोरंजन का साधन था I गम्मत में स्त्रियों का अभिनय करने वाले नाच्या कहलाते है I अर्थात् नाच और गम्मत दोनों को मिलाकर ‘नाचा’ कहा जाता है I यह कार्यक्रम रात भर चलता है I और सुबह के साथ ख़त्म होता है I आज से 60 साल पहले बोड़रा, रिंगनी और खेली की नाचा पार्टी प्रसिद्ध मानी जाती थी। यह बाद में एक हो गई। लालूराम और मदनलाल दूसरे सशक्त कलाकार थे I स्व० मंदराजी दाऊ इस विद्या के सबसे बड़े कलाकार थे।
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प्रश्न 6. किन-किन लोक कलाओं को लोक नृत्य की श्रेणी में रखा जा सकता है?
उत्तर- हमारा देश कला और संस्कृति के क्षेत्र में विश्वभर में ख्याति पा चुका है। और आज भी विभिन्न कलाकारों ने अपनी प्रतिभा से भारत को गौरवन्तित किया है। सभी लोक गाथा, लोकगीत और लोकनाट्य में लोकनृत्य का थोड़ा अंश रहता ही है। परन्तु जिन लोक कलाओं को लोकनृत्य की श्रेणी में रखा जाता है उनमें पंथी,राऊत नाचा, गेड़ी नाच, डंडा नाच, देवरिन नाच और आदिवासी नृत्य प्रमुख है I
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प्रश्न 7. आदिवासी अंचलों में प्रसिद्ध नृत्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर- छत्तीसगढ़ की भूमि लोककलाओं का महासागर है I आदिवासी लोकनृत्य छत्तीसगढ़ का महत्वपूर्ण अंग है I यहाँ विभिन्न जनजातियों की अधिकता के कारण अनेक प्रकार के लोक नृत्य प्रचलित है। बस्तर में और ककसार, चेहरे, दीवाड़, माओ, डोली और डिढ़ोंग | सरगुजा में सेला, जशपुर में सकल, मानपुर में हुल्की, चोली और माँदरी देवभोग में ललिया ये सभी आदिवासी नृत्य किसी सामाजिक या धार्मिक परंपरा का निर्वाह करते हैं। अटारी नृत्य – बघेलखंड के भूमिया आदिवासीयों का प्रमुख नृत्य है I हुलकी नृत्य – मुरिया जनजाति के स्त्री-पुरुष द्वारा | ढाढल-नृत्य – कोरकू जनजाति में प्रचलित नृत्य है। राई नृत्य बुंदेलखंड में प्रचलित विवाह एवं बच्चे के जन्म पर किया जाने वाला नृत्य है। करमा ‘गोंड’ और देवार जाति का प्रमुख नृत्य है।
सभी आदिवासी नृत्य सामाजिक और धार्मिक परंपरा का निर्वाह करते है ।
पाठ से आगे-
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प्रश्न 1. महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित ग्रंथ का नाम लिखकर आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार आश्रमों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- महर्षि वाल्मिकी द्वारा रचित ग्रंथ का नाम “रामायण ” है। आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार आश्रम हैं – श्रृंगेरी मठ, गोवर्द्धन मठ, शारदा मठ, ज्योतिर्मठ है। श्रृंगेरी मठ भारत के दक्षिण में रामेश्वरम् में स्थित है।गोवर्द्धन मठ भारत उड़ीसा के पूरी में है I शारदामठ गुजरात के द्वारका धाम मे है I ज्योतिर्मठ उत्तराखण्ड के बद्रिकाश्रम में है I
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प्रश्न 2. शक्ति की आराधना “जँवारा” का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए ।
उत्तर – शक्ति की आराधना ही “जँवारा” है I सम्पूर्ण भारत के और विशेषतः मध्यप्रदेश के बुन्देलखण्ड अंचल में नवरात्रि के अवसर पर शक्ति की आराधना का पर्व – “जँवारा उत्सव ” मनाने की परंपरा है। यह उत्सव नवरात्रि के पहले दिन बैठकी से शुरू होता है I फिर नौ दिन तक चलता है। इसमें श्रद्धालु अपनी श्रद्धा के अनुसार घट- कलश की स्थापना करते है और जवारे बोते हैं। इस दौरान नौ दिन तक अखण्ड ज्योति जलाई जाती है I नवरात्रि के पर्व में गेहूँ के उगे हुए अंकुर के माध्यम से शक्ति रूपा प्रकृति पूरे गांव को बल देती है I गौरा गीत और जंवारा – गीत सुनने वालों पर भी कभी-कभी देवता चढ़ जाते है। महिलाओं पर यदि देवी आती है तो वे अपने केश खोलकर झूमने लगती है।
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प्रश्न 3. आशु कवित्व से आप क्या समझते हैं? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – ज्यादातर कवि पहले से रची रचना को सुनाते हैं। जब कोई कवि किसी अवसर के अनुसार उसी समय कविता बनाकर सुनाये उसे आशु कवित्व कहते हैं। और रची गयी रचना को आशुकविता कहते है। यह रचना छोटे – छोटे छन्दो में रची जाती है। इस कविता का प्रमुख उदाहरण ‘ददरिया’ है I
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प्रश्न 4. “सुआ (गीत)” नृत्य के समय टोकनी में भरे धान के ऊपर सुआ रखने का क्या अर्थ है?
उत्तर- “सुआ-गीत”, नृत्य के समय टोकनी में भरे धान के ऊपा सुआ रखने का अर्थ आत्मा का प्रतीक है। सुआ गीत में महिलाएँ बाँस की टोकरी में भरे धान के ऊपर सुआ अर्थात् तोते की प्रतिमा रखकर उसके चारों ओर गोल बनाकर नाचती गाती है I जिस तरह कबीर के “हंस” को आत्मा का प्रतीक माना गया है। ठीक उसी प्रकार छत्तीसगढ़ी लोकगीतों में ‘सुआ’ को आत्मा का प्रतीक माना गया है।
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प्रश्न 5. पद्मभूषण तीजनबाई को पंडवानी की “कापालिक शैली’ की गायिका कहा जाता है। इस शैली का आशय स्पष्ट करते हुए पंडवानी की अन्य शैलियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- पद्मभूषण तीजन बाई पंडवानी की कापालिक शैली की गायिका है | कापालिक शैली का अर्थ है तांत्रिको के अनुसार अभिव्यक्ति | तीजनबाई इसी अभिव्यक्ति की विधा का अनुसरण करती है I पण्डवाली की दो शैलियाँ है – वेदमती और कापालिका पद्मभूषण तीजन बाई पण्डवाली की कापालिक शैली की गायिका है। इस शैली में खड़े होकर अभिनय द्वारा कथा की भावपूर्ण अभिव्यक्ति की जाती है। पण्डवानी की अन्य शैली वेदमती है, इसमें घुटनों के बल बैठकर कथा की भावपूर्ण अभिव्यक्ति की जाती है। इस शैली की प्रमुख गायिका श्रीमती रितु वर्मा है।
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प्रश्न 6. हरियाली पर्व के समय कृषि उपकरणों की पूजा अर्चना करने एवं बैगा द्वारा दरवाजे पर नीम की उँगाल खोंचने का आशय क्या है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- छत्तीसगढ़ में हरियाली वर्ष के साथ त्यौहारों का क्रम प्रारंभ हो जाता है। सभी कृषि उपकरणों की पूजा करने का आशय है – कृषि फले-फूले और जनमानस में आनंद का संचार हो । वर्षा ऋतु आगमन के साथ ही यह पर्व मनाया जाता है | जिससे फसल अच्छी हो तथा दरवाजे पर नीम की डंठी खोंचने का आशय है कि बुरी नजरों के प्रभाव से बचा जा सके I
भाषा के बारे में-
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प्रश्न 1.निम्नलिखित श्रुति सम भिन्नार्थक शब्दों के अर्थ लिखिए –
कला काला
किला कीला
पवन पावन
आशु आँसू
विधा विद्या
देवार देव
प्रतिभा प्रतिमा
पंथी पंछी
हसा हँसा
गौरी गोरी
उत्तर- कला – हुनर प्रतिभा – बुद्धि
काला – श्याम रंग प्रतिमा – मूर्ति
किला – दुर्ग पंथी – राहगीर
कीला – खूँटी पंछी – पक्षी
पवन – हवा हंसा – जलपक्षी
पावन – पवित्र हँसा – हँसी
आशु – तुरंत गौरी – पार्वती देवी
आँसू – अश्रु गोरी – गौर वणी I
विधा – प्रकार देवार – एक जाति
विद्या – ज्ञान देवर – पति का भाई
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प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्द समूहों का प्रयोग पाठ में किन परिस्थितियों में किया गया है –
आँखे नम होना , केश खोलकर झूमना , देवता चढ़ना, परी बन के नाचना , वृत्ताकार स्थिति में नाचना
उत्तर – आँखे नम होना – जँवारा विसर्जन के समय सभी की आँखे नम हो जाती है I
केश खोलकर झूमना – नवरात्रि पूजा के दौरान जब महिलाओं पर देवी का वास होता है तो वो अपने केश खोल कर झुमने लगती है I
देवता चढ़ना- देवी प्रकोप से सभी डरते है I
परी बन के नाचना – नाचा में पुरुष का महिला बनकर नाचते है I उन्हें परी कहा जाता है I
वृत्ताकार स्थिति में नाचना – सुआ नाच में महिलाएँ गोल बनाकर नाचती है I
योग्यता विस्तार –
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प्रश्न 1. छत्तीसगढ़ के छत्तीस किलों (दुर्ग) के नाम ढूँढ़कर लिखिए।
उत्तर- छत्तीसगढ़ परिचय- रामायण काल से सत्रहवीं शताब्दी तक इस इलाके को कोसल या दक्षिण कोसल के तौर पर जाना जाता था। कलचुरी राजाओं ने 36 किले या कई गाँवों को मिलाकर गढ़ बनाए थे I बिलासपुर के पास स्थित शहर रतनपुर, कल्चुरी राजाओं के दौर में छतीसगढ़ की राजधानी हुआ करता था | शिवनाथ नदी के उत्तर में कल्चुरियों की रतनपुर शाखा के अंतर्गत 18 18 गढ़ और दक्षिण में रायपुर शाखा के अंतर्गत 18 गढ़ बनाए थे।
रतनपुर के 18 गढ़ रायपुर के 18 गढ़
(1) रतनपुर (365 गांव ) (1) रायपुर – (640 गाँव )
(2) उपरोड़ा (84 गांव ) (2) पाटन (152 गाँव )
(3) मारो (354 गांव ) (3) सिमगा (84 गाँव)
(4) विजयपुर (326 गांव) (4) सिंगारपुर (अज्ञात)
(5) खरौद (135 गाँव) (5) लवण (252 गाँव)
(6) कोटगढ़ (84 गांव) (6) अमेरा (84 गाँव )
(7) नवागढ़ (84 गांव) (7) दुर्ग (84 गांव )
(8) सोधी (84 गांव ) (8) सारधा (अज्ञात)
(9) मल्हारगढ़ (अज्ञात) (9) सिरसा (84 गांव)
(10) मुंगेली सहित पडरभट्ठा (324 गाँव) (10) मोहंदी (84 गांव)
(11) सेमरिया (84 गांव) (11) खल्लारी (84 गांव)
(12) मदनपुर (153 गांव)(चांपा) (12) सिरपुर (84 गांव)
(13) कोसगई (छुरी) (200 गाँव) (13) फिंगेश्वर (84 गांव)
(14) करकट्टी (600 गाँव) (14) सुवरमाल (84 गांव)
(15) लाफागढ़ (चैतुरगढ़) (200 गाँव) (15) राजिम (84 गांव)
(16) केंदा (84 गांव) (16) सिंघनगढ़ (84 गांव)
(17) यातिनगढ़ (84 गांव) (17) टेगनागढ़ (84 गांव)
(18) पेंड्रा (84 गांव) (18) अकलवाड़ा (84 गांव)
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प्रश्न 2. अपने अंचल के लोकगीत या लोक नृत्य का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- छत्तीसगढ़ अंचल के लोक गीत – छत्तीसगढ़ के गीत दिल को छू लेती है। यहाँ की संस्कृति में गीत एवं नृत्य का बहुत महत्व है। इसीलिए यहाँ के लोगों में सुरीलापन है। हर व्यक्ति थोड़ा बहुत गा ही लेता है I यहाँ के लोगों के सुर एवं ताल बड़े ही सधे हुए हैं। यहाँ के प्रमुख लोक गीत हैं – भोजली, पंडवानी, जस गीत, भरथरी -लोकगाथा, बॉस गीत, गऊरा – गऊरी गीत, सुआ गीत, छत्तीसगढ़ी प्रेमगीत, जन्मोत्सव गीत, देवार गीत करमा गीत, संस्कार के गीत |
छत्तीसगढ़ अंचल के लोक नृत्य – यहाँ के लोकनृत्य समस्त भारत में अपनी एक विशिष्ट पहचान रखते हैं। यहाँ के नृत्य और लोक कथाएँ आदि इसकी संस्कृति को महत्वपूर्ण बनाती है। मानव की प्राचीनतम संस्कृति यहाँ भित्ति चित्रो, नाट्यशालाओं, मंदिरों और लोक नृत्यों के रूप में भी विद्यमान है। यहाँ के प्रमुख लोक नृत्य है – पंथी नृत्य, ककसार नृत्य, मुरिया नृत्य, राउत नाचा, सुआ नृत्य, डंडा नृत्य, डोमकच नृत्य, गेड़ी नृत्य, कर्मा नृत्य, सरहुल नृत्य और माड़िया नृत्य, पण्डवानी नृत्य, दोरला नृत्य, कोल दहका नृत्य!
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प्रश्न 3. गम्मत में हास्य व्यंग्य के माध्यम से संदेश दिया जाता है। आप अपने आस-पास के लोगों से पूछकर ऐसे किसी प्रसंग का वर्णन कीजिए।
उत्तर- गम्मत हास्य व्यंग की एक ऐसी विधा है जिसमें एक कलाकार जोकर या विदूषक के माध्यम से समाज की किसी ज्वलंत समस्या पर व्यंगात्मक एवं तीखा प्रहार करता है I जिससे समाज में हास्य के साथ-साथ एक सही संदेश विद्यमान हो। इस प्रस्तुति में अच्छे आदर्श एवं उचित शिक्षा विद्यमान होती है। भाषा एवं बोली इतनी सरल और व्यंगात्मक होती है। कि वो दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित तो करती है परंतु समाज के शिक्षित एवं अशिक्षित वर्ग को उचित संदेश भी प्रदान करती है। हमारे गांव में गम्मत के ही माध्यम से स्त्री शिक्षा की अनिवार्यता पर तीखा व्यंग्य प्रस्तुत किया गया था। जिसके बाद से ही मेरे गाँव तथा आस-पास के कई छोटे-छोटे गांवों में स्त्रियों की शिक्षा में अद्भुत सुधार देखने को प्राप्त हुआ था I
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प्रश्न 4. छत्तीसगढ़ी लोक कला को वैश्विक मंच पर स्थापित करने में हबीब तनवीर के समूह का बड़ा योगदान रहा है। उनकी प्रस्तुति के संबंध में अपने शिक्षक से पूछकर लिखिए। उत्तर- हबीब तनवीर सबसे लोकप्रिय भारतीय उर्दू हिंदी नाटककार, एक थिएटर निर्देशक, कार्य और अभिनेता थे। वें आगरा बाजार, गाँव नाम ससुराल, मोर नाम दामाद और चरणदास चोर जैसे नाटकों के लेखक थे। उर्दू और हिन्दी रंगमंच के एक अग्रणी, उन्हें सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ी आदिवासियों के साथ काम के लिए जाना जाता है I
01 सितंबर 1923 को उनका जन्म रायपुर, छत्तीसगढ़ में हाफिज अहमद खान के घर हुआ था, जो पेशावर से आये थे । उन्होंने लौरी म्युनिसिपल हाई स्कूल, रायपुर से मैट्रिक पास किया और बाद में अपना बी. ए. 1944 में मॉरिस कॉलेज, नागपुर से। इसके बाद उन्होंने एक वर्ष अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में एम० ए० किया। जीवन के आरंभ में उन्होंने अपने कलम नाम ताखलूस का उपयोग करके कविता लिखना शुरू किया। इसके तुरंत बाद उन्होने अपना नाम हबीब तनवीर मान लिया I हबीब तनवीर ने नाया थियेटर समूह की स्थापना की, जिसने छत्तीसगढ़ के मूल आदिवासी कलाकारों द्वारा लोक प्रर्दशनों का उपयोग करके नाटकों का निर्माण किया।
अपने जीवनकाल में उन्होंने कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीते, जिनमें 1969 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1979 में जवाहरलाल नेहरू फैलोशिप, 1903 में पद्मश्री और 2002 में पद्मभूषण तथा अन्य राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों के प्राप्तकर्ता थे I
तीन सप्ताह की लंबी बीमारी क बाद 8 जून 2009 को भोपाल में उनका निधन हो गया | छत्तीसगढ़ी लोककला को वैश्विक मंच पर स्थापित करने में हबीब तनवीर के समूह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके इस अभुतपूर्व योगदान को छत्तीसगढ़ी अंचल का सादर नमन !
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प्रश्न 5. आपके क्षेत्र में दीपावली पर्व किस तरह मनाया जाता है? इस पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर- हमारे क्षेत्र में दीपावली पर्व पांच दिनों तक मनाया जाता है। धनतेरस के दिन चावल के आटे का चौक पुर कर उस पर चावल के आटे के तेरह दिये उत्तर दिशा की ओर मुँह कर प्रदीप्त किये जाते है I नरक चौदस के दिन से राउत नाचा की तैयारी की जाती हैI अमावस के दिन लक्ष्मी देवी की पूजा की जाती है। घर- घर जाकर गाय के गले में मालायें (सोहई) बाँधी जाती हैं। दूसरे दिन अन्नकूट और गोवर्धन पूजा का आयोजन किया जाता है। सारे यादव समाज के लोग गोबर से पर्वत बनाकर पूजा करके धान का भोग चढ़ाते है। दूज के दिन भाई को तिलक कर आरती उतारकर लम्बे उम्र की कामना की जाती है।परन्तु कुछ ग्रामीण अंचलों में दीपावली त्यौहार की सूचना सगे-संबंधी और रिश्तेदारों को दिए जाते है और वे लोग गांव में गांव के त्यौहार मनाने आ जाते है I गाँव के कुछ लोगों ने बताया कि सबसे पहले सिरदार देव की पूजा अर्चना करते हैं, उसके बाद त्यौहार मनाते है I दीपावली पर्व भी एक सप्ताह पहले ही गांव में मनाया जाता है।
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प्रश्न 6. राउत नाचा में प्रयुक्त होने वाले कुछ दोहों का संकलन कीजिए।
उत्तर- राउत नाचा में प्रयुक्त होने वाले दोहे – छत्तीसगढ़ में लोकनृत्य राउत नाच जितना प्रसिद्ध है उतना ही प्रसिद्ध उसमें कहे जाने वाले दोहों का भी है I
किसी भी नृत्य में गीत जितना जरूरी होता है उतना ही राउत नाच के लिए दोहा जरूरी होता है I दोहा के इसी महत्व को ध्यान में रखकर आप सब के लिए प्रस्तुत है छत्तीसगढ़ी में कुछ दोहे-
(1) ये चित्रकूट के घाट में, भई संतन के भीड़ हो I
तुलसीदास चन्दन घिसय, अउ तिलक लेत रघुबीर हो!”
(2) अड़गा टूटे बड़गा टूटे, अउ बीच म भूरी गाय हो ।
उहां ले निकले नन्द कन्हैया, भागे भूत मसान हो ।
(3) हाट गेंव बाजार गेंव, उँहा ले लाएव लड्डू रे।
एक लाडू मार परेव, राम-राम साढू रे ॥
(4) कागा कोयली हुई झन भईया, अउ बइठे आमा के डार हो I
कोन कागा कोन कोयली, के बोली से पहचान हो।
(5) बाजत आवय बासुरी, अउ उड़त आवय धूल हो ।
नाचत आवय नन्द कन्हैया खोचे कमल के फूल हो II
(6) सबके लाठी रिंगी चिंगी, मोर लाठी फुसवा रे।
नवा नवा बाई लाएव, उहू ल लेगे मुसवा रे II
(7) भाई दुलारे बहिनी, अउ बहिनी दुलारे भाई।
मोला दुलारे मोर दाई दद, गोरस दूध पिलाए ||