Class 10 Hindi
Chapter 6.1
जीवन का झरना
अभ्यास प्रश्न-
पाठ से-
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प्रश्न 1. कवि ने जीवन की समानता, झरने से किन-किन रूपों में की है ? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- कवि के अनुसार जिस प्रकार झरना पहाड़ों की दुर्गम चोटियों से निकलकर कठिन रास्तों को पार करता है कभी किसी घाटी से तो कभी पत्थरों पर चढ़ता है तो कभी पहाड़ो से गिरता है, झरना जंगल के पेड़ों से टकराता हुआ कभी समतल मैदान कभी ऊंची- नीची धरा पर बहता रहता है। उसी प्रकार जीवन है मनुष्य का जीवन भी संघर्षों से भरा होता है दुख, सुख, उठना गिरना हर मनुष्य के जीवन का क्रम है किंतु जैसे झरना लगातार गतिशील और चलायमान होती है उसी प्रकार जीवन भी निरंतर चलने का नाम है कवि के अनुसार अवरोधों और संघर्षों से कभी भी जीवन की गति और प्रगति रुकनी नही चाहिए क्योकिं ठहराव में जीवन नहीं है गति में ही जीवन है जिस दिन मनुष्य का जीवन रुक जाएगा उसकी मृत्यु हो जाएगी। अतः झरने से जीवन को गतिशील रहने की प्रेरणा कवि ने दिया है।
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प्रश्न 2. कविता में आई पंक्ति ‘सुख-दुःख’ के दोनों तीरों से’ कवि का क्या आशय है? मानव जीवन में इनका महत्व क्या है ?
उत्तर- कवि के अनुसार जिस प्रकार झरने के दोनों किनारों को कवि ने सुख और दुख की संज्ञा दिया है। उसी तरह मनुष्य का जीवन भी होता है मानव जीवन में एक तरफ जहां सुख से उसके जीवन में हर्ष उमंग और उत्साह का संचार होता है वहीं दूसरी तरफ कवि ने जीवन में आने वाले दुखों से मनुष्य को निराश और शिथिल न रहने को कहता है दुखों को हमें सकारात्मक दृष्टि से देखना चाहिए दुख हमारे जीवन में संघर्ष लाते हैं जिससे लड़कर हमें आत्मविश्वास और सफलता मिलती है सुख और दुख मानव जीवन को संतुलित बनाए रखते हैं सुख में निरंकुशता और दुख में ठहराव विनाश का कारण है अतः हमें सुख और दुख दोनों किनारों के साथ विवेकपूर्ण तरीके से अपने जीवन को गतिमान रखना चाहिए।
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प्रश्न 3. संपूर्ण कविता में ‘झरना’ मानव जीवन के विभिन्न भावबोधों से जुड़ता है, कैसे ? अपने विचार प्रस्तुत कीजिए ?
उत्तर- जिस प्रकार झरना अपनी निरंतरता और दृढ़ता के साथ अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है उसी प्रकार मनुष्य को अपने आचरण में दृढ़ता तथा गतिशीलता रखनी चाहिए जीवन भी तमाम बाधाओं अवरोधो का सामाना करते हुए मनुष्य को लगातार अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रत्यनशील और गतिमान बने रहना चाहिए संघर्ष और सकारात्मक व्यवहार से वह बड़ी-बड़ी बाधाओं को पार कर अपना जीवन सफल बनाएं ।
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प्रश्न 4. ‘बाधा के रोड़ों से लड़ता’ उक्त पंक्ति का आशय, जीवन को कैसे और कब-कब प्रभावित तथा प्रेरित करता है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- जिस प्रकार झरना अपने मार्ग में आने वाली बाधाओं और अवरोधो का सामना करते हुए निरंतर गतिमान बना रहता है और अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है। उसी प्रकार मनुष्य को अपने मार्ग में आने वाली बाधाओं का सामना करते हुए निरंतर आगे की तरफ बढ़ना चाहिए। बाधाओं से विचलित होकर अपने जीवन की गति में अवरोध नहीं उत्पन्न करना चाहिए। झरना हमें निरंतर गतिमान और लक्ष्य की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देता रहता है।
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प्रश्न 5. ‘जीवन का झरना’ कविता में मानव का मृत हो जाना क्यों और कब बताया गया है ?
उत्तर- गति ही जीवन है जिस प्रकार झरना यदि बहना बंद कर दे तो वह झरना नहीं रह जाएगा उसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। उसी प्रकार मानव जीवन होता है मनुष्य को सदैव गतिशील बने रहना चाहिए क्योंकि यदि जीवन में ठहराव आ जाएगा तो जीवन अपने मूल उद्देश्य से भटक जाएगा । गति में ही जीवन है।
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प्रश्न 6. कविता की उन पंक्तियों को लिखिए जो मानव मन को संघर्ष के लिए प्रेरित करती हैं ?
उत्तर- मानव मन को संघर्ष के लिए प्रेरित करने वाली निम्न पंक्तियां है-
1. सुख-दुख के दोनों तीरो से चल रहा मनमानी है।
2. धुन सिर्फ एक है चलने की।
3. बाधा के रोडो से लडता ।
4. तब यौन बढ़ता है आगे निर्झर बढ़ता ही जाता है।
5 रुक जायेगी यह गति जिस दिन। उस दिन मर जायेगा मानव, जग दुर्दिन की छड़ियाँ गिन-गिन।
6. निर्झर कहता है बढे चलो, तुम पीछे मत देखो मुड़कर।
पाठ से आगे-
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प्रश्न 1. उपर्युक्त कविता मन में आशा का संचार करती है और आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करती है । हमारे परिवेश की बहुत सी घटनाएँ हमारे मन में इसी प्रकार के भावों को जगाती हैं उनका संकलन कर उन पर चर्चा कीजिये ।
उत्तर- इस कविता में कवि द्वारा यह शिक्षा देने का प्रयत्न किया गया है कि मनुष्य का निरंतर अपना कर्म करते हुए प्रगति के मार्ग पर चलते रहना चाहिए यदि आदमी संघर्षों कठिनाइयों से हार कर बैठ जाएगा तो यह समय आगे निकल जाएगा और वह पीछे छूट जाएगा। इस कारण व्यक्ति को संकट में धैर्य और विवेक से काम लेते हुए उसका सामना करना चाहिए और सदैव भी झेरने सा गतिशील बने रहना चाहिए।
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प्रश्न 2. उपर्युक्त कविता में निर्झर, यौवन आदि प्रतीकों के द्वारा सदैव गतिशील रहने का संदेश दिया गया है। कविता से उन प्रतीकों का चुनाव कीजिए जो इसके विपरीत भाव को प्रकट करते हैं।
उत्तर – लहरें उठती है, गिरती है,
नाविक तट पर पहुंचता है।
तब यौवन बढ़ता है आगे,
निर्झर बढ़ता ही जाता है
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प्रश्न 3. सुख और दुःख के मनोभावों से बंधा हुआ जीवन आगे बढ़ता है, हमारे परिवेश में इन भावों की अनुभूति हमें होती है। ये भाव हमारे व्यक्तित्व के विकास को कैसे प्रभावित करते हैं? अपने विचारों को तर्क सहित रखिये।
उत्तर- सुख और दुख भाव जीवन के अभिन्न अंग है व्यक्ति के ऊपर यदि को संकट दुख या चुनौती आती है तो उसे उनका सामना करना चाहिए। संकटो और चुनौतियों से आत्मबल प्राप्त होता है। बाधाओं को पार करने से आत्मविश्वास मिलता है। वही आदमी को सुख के समय धैर्य और विवेक से काम करना चाहिए क्योंकि दोनों की परिस्थिति में मानव अपना विवेक और बुद्धि छोड़ देते हैं इसीलिए कवि के अनुसार जीवन में सुख-दुख का होना मानवीय मूल्यों की स्थापना करता है।
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प्रश्न 4. कविता में यह साफ झलकता है कि झरना पहाड़ के अंतर (भीतर/अंदर) फूट कर विभिन्न बाधाओं से लड़ते हुए आगे बढ़ता है। मानव जीवन भी ऐसा ही होता है या इससे अलग ? अपने विचार तर्क सहित रखिए।
उत्तर- इस कविता में कवि ने जैसे झरने की जीवन यात्रा का वर्णन किया है उसी प्रकार मानव का भी जीवन होता है। मनुष्य के जीवन में जो अनेक प्रकार की समस्याएं, उतार-चढ़ाव आते हैं और संघर्ष के पथ पर मनुष्य को अटल और अडिग रहना चाहिए। कवि झरने को यात्रा के माध्यम से हमें यह शिक्षा देने का प्रयास करते हैं कि जीवन के पथ पर सदैव आगे बढ़ना चाहिए हमें अपने जीवन के संघर्ष और कठिनाइयों को परीक्षा के रूप में लेकर इसमें सफलता प्राप्त करके अपने जीवन को सफल और खुशहाल बनाना चाहिए।
भाषा के बारे में-
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प्रश्न 1. निर्झर, गिरि, तीर, अंचल आदि शब्द कविता में प्रयुक्त हुए हैं जो मूलतः संस्कृत भाषा से सीधे-सीधे प्रयोग में आ गये हैं पाठ में आये इस प्रकार के कुछ और शब्दों को ढूंढकर उनसे वाक्य बनाइए।
उत्तर- मूलत: संस्कृत भाषा से पाठ में आये शब्द निम्न है-
वन, नाविक, यौवन, मानव, दुर्दिन
निम्न शब्दो का वाक्य प्रयोग विद्यार्थी स्वयं करें।
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प्रश्न 2. निर्झर में गति है, यौवन है , वह आगे बढ़ता जाता है ।
धुन सिर्फ एक है, चलने की अपनी मस्ती में गाता है ।
कविता की इन पंक्तियों में निर्झर का मानवीकरण किया गया है । प्रकृति के उपकरणों में मानवीय चेतना का आरोपण मानवीकरण की पहचान है , जैसे – निर्झर में गति , यौवन , उसका आगे बढ़ना , मस्ती में गाना । हिन्दी साहित्य में इसे एक अलंकार माना गया है । मानवीकरण अलंकार के कुछ अन्य उदाहरण अन्य कविताओं से ढूँढ कर लिखिए ।
उत्तर – 1. सरल काव्य – सा सुन्दर जीवन हम सांनद बिताते हो।
तरू-दल की शीतल छाया में चल समीर – सा गाते हो।
2. इधर-उधर रीवा के पेड़
कांटेदार कुरूप खडे है।
3. बीच में अलसी हठीली
देह की पतली, कमर की लचीली
नीले फूले फूल को सिर पर चढा कर
कह रही है, जो छुए यह
दू हृदय का दान उसको।
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प्रश्न 3 कविता में आए इन शब्दों का प्रयोग करते हुए आप भी एक कविता लिखिए – यौवन , मदमाता , कूल – किनारा , जीवन , गिरि , पर्वत , भूतल , गति , करुणा , मस्ती , मानव , झरना, पछताना , अंचल , बहना आदि ।
उत्तर- यह जीवन क्या है? मस्ती ही इसका पानी है। सुख – दुख के दोनों तीरों से चल रहा राह मनमानी है।
कब फूटा गिरी के अंतर से? किस अंचल से उतरा नीचे?किस घाटी से वह कर आया समतल में अपने को खींचे?
निर्झर में गति है, जीवन है, यह आगे बढ़ता जाता है। धुन एक सिर्फ हैं चलनें की, अपनी मस्ती में गाता है।
बाधा के रोड़ो से लडता, वन के पेड़ो से टकराता,बढ़ता चट्टानों पर चढ़ता है आगे, निर्झर बढ़ता ही जाता ।
निर्झर कहता है बढ़े चलो। देखो मत पीछे मुड़ कर । यौवन कहता है, बढ़े चलो। सोचो मत होगा क्या चल कर ?
चलता है, केवल चलना है। जीवन चलता ही रहता है।रुक जाना है मर जाना ही, निर्झर यह झड़ कर कहता है ।
योग्यता विस्तार-
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प्रश्न 1. प्रकृति के द्वारा मानव जीवन के विविध भावों को अभिव्यक्त करने वाली कविताओं को खोज कर पढ़िए और साथियों से चर्चा कीजिए I
उत्तर- प्रकृति के द्वारा मानव जीवन के विविध भावों को अभिव्यक्त करने वाली कविताएँ
(1) काली घटा –
काली घटा छाई है।लेकर साथ अपने यह ढेर सारी खुशियाँ लायी हैं ठंडी ठंडी सी हवा यह बहती कहती चली आ रही है काली घटा छाई है Iकोई आज बरसों बाद खुश हुआ तो कोई आज खुशी से पकवान बना रहा I
(2) काँप उठी धरती माता की कोख-
कलयुग में अपराध का बढ़ा अब इतना प्रकोप आज फिर से काँप उठी देखो धरती माता की कोख समय समय पर प्रकृति देती रही कोई न कोई चोट लालच में इतना अँधा हुआ मान को नहीं रहा कोई खौफ !!
(3) मान लेना वसंत आ गया –
बागों में जब बहार आने लगे कोयल अपना गीत सुनाने लगे कलियों में निखार छाने लगे, भँवरे जब उन पर मंडराने लगे मान लेना वसंत आ गया……… रंग बसंती छा गया खेतों में फसल पकने लगे खेत खलिहान लहलहाने लगे डाली पे फूल मुस्कुराने लगे चारो और खुशबू फैलाने लगे मान लेना बसंत आ गया……… रंग बसंती छा गया !
(4) कहो तुम रूपसि कौन –
कहो, तुम रूपसि कोन ? व्योम में उतर रही चुपचाप छिपी निज छाया – छवि मे आप सुनहला फैला केश- कलाप मधुर मंथर, मृदु मौन I मूँद अधरों में मधपालाप, पलक में निमिष, पदों में चाप भाव – संकुल, बंकिम भू – चाप मौन, केवल तुम मौन
(5) आँचल –
आँचल तेरे नेह का सुखद सलोना सुंदर सा । तारों जैसे झिलमिल झिलमिल वो चाँद रात के अम्बर सा II तुम हो मे हूँ और एकाकी रात भली है। नीरवता में बोले पपीहा हौले हौले हवा चली है। मद्धम मद्धम साँसे क्यों है। बढ़ती दिल की धड़कन क्यो है II
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प्रश्न 2. जीवन में आशावादी भावों का संचार करने वाली अन्य कविताएँ खोजिए और अपने शिक्षक तथा मित्रों से चर्चा कीजिए I
उत्तर- जीवन में आशावादी भावों का संचार करने वाली कविताएं –
(1) क्या सिर्फ कागजात पूछोगे – आज धर्म पूछोगे, कल जात पूछोगे,कितने तरीक़ों से मेरी औकात पूछोगे । मैं हर बार कह दूंगा, यही वतन तो मेरा है घुमा फिरा के तुम भी तो वही बात पूछोगे ! सच थोड़े हीँ बदलेगा, पूछने के सलीकों से, थमा के कुरान या फिर जमा के लात पूछोगे | मेरी नीयत को तो तुम कपड़ो से समझते हो, लहू का रंग भी क्या अब मेरे हजरात पूछोगे |
(2) जीने का नया अंदाज –कोई अगर है परेशान मुझसे अब मैं परवाह नहीं करता जीता हूँ अपने अंदाज में परेशान बिना किये औरों को ।फर्क नहीं पड़ती अब मुझको गिले शिकवे शिकायत से जिंदगी मस्त गुजर रही है अब इस अंदाज में जीने से ।
(3) आजमाती है जिंदगी –रंग बिरंगे जिंदगी ख्वाबगाहों की सैर कराती कभी मीठे कभी कड़वे घुट पिलाती है जिदंगी पल पल मुझे आजमाती है जिंदगी इक ख्वाब के शिवा कुछ भी नहीं ये बताती है जिंदगी फिर भी मृग – तृषणा में हर पल भटकाती है, जिंदगी कभी रुलाती तो कभी मुस्कुराती है जिन्दगी पल-पल मुझे आजमाती जिंदगी कभी तो बहुत सरल कभी बहुत मुश्किल नजर आती है जिन्दगी I