CG Board Class 10 Hindi Solutions Chapter 6.3 साध

 

 Class 10 Hindi

 Chapter 6.3

 साध


अभ्यास प्रश्न-

पाठ से-

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प्रश्न 1. कविता में किस प्रकार की सृष्टि रचने की मृदुल कल्पना की गई है?

उत्तर – प्रस्तुत कविता में कवयित्री ने शांति प्रिय जीवन की कल्पना की है कविता के माध्यम से कवयित्री यह कहना चाहती है कि वे संसार के कोलाहल से दूर नए संसार की रचना करने की कोमल कल्पना करती है। जहाँ शांति प्रिय जीवन व्यतीत किया जा सके। कवयित्री प्रकृति के समीप रहने की अभिलाषा लिए वह नदी तट पर निवास करने हेतु कुटिया का निर्माण करना चाहती है। जिससे उसके जीवन में कोई अवरोध अथवा बाधा न आये। 

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प्रश्न 2. कवयित्री को किस प्रकार का जीवन व्यतीत करने की चाहत है और क्यों?

उत्तर- कवयित्री कोलाहल से दूर शांतिप्रिय जीवन जीने की इच्छा रखती है अर्थात कवयित्री को संतोषप्रद जीवन जीने की चाहत है क्योंकि वह संसार में व्याप्त वैमनस्य और संघर्ष नहीं चाहती है। उन्हें अपने जीवन में जो भी प्राप्त है वह उसी में संतोषपूर्ण एवं शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहती है। वह किसी भी प्रकार की कटुता और व्याकुलता का भाव अपने मन में नहीं रखना चाहती है वह शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करें यही उनकी प्रबल इच्छा है।

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प्रश्न 3. कविता की पंक्ति “सरिता के नीरव प्रवाह-सा बढ़ता हो अपना जीवन ” का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- कवयित्री चाहती है कि उनका जीवन नदी के शांत प्रवाह सा चलता रहे। नदी की प्रत्येक लहर में अपनेपन की भावना व्यक्त होती रहे। वहाँ हम ऐसी सुन्दर रचनाओं की रचना करें जो लोगों में अमर प्राण भर दे। ये रचनाएं दशों दिशाओं को सुशोभित करें। कवयित्री कहती है कि हे प्राणपति! तुम कविता की व्याकुल तान बनो जो शांत वनों में गुँजती रहे और लोगों को सम्मोहित करती रहे, अर्थात इस पंक्ति का भाव यह है कि शांत निर्जन वन में जीवन नदी के जल की भांति शांत और गतिशील हो अर्थात जीवन शांत और सरस हो।

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प्रश्न 4. “रुचिर रचनाओं” से कवयित्री का क्या आशय है ?

उत्तर- रुचिर रचनाओं का तात्पर्य ऐसी रचनाओं से है जो लोगों में पुनः प्राण संचारित करें और दसों दिशाओं में उसकी आभा फैली हो। मैं उस कविता की प्राण बनूँ और तुम कविता की तान बनो । अर्थात कविता से निर्जनता दूर हो जाये और उसकी कोमलता लोगों को सम्मोहित करें। 

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प्रश्न 5. ” जीवन में निरालापन” कहकर कवयित्री ने क्या संकेत किया है ?

उत्तर- ”जीवन में निरालापन” प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवयित्री कहना चाहती है कि जिस प्रकार नदी की प्रत्येक लहर एक दूसरे से भिन्न होती है, वैसे ही रचनाएं हम यहाँ करें जो हमारे अंत: करण को आनंदित करने वाली तथा दसों दिशाओं को अनुरंजीत करने वाली हो। 

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प्रश्न 6. कविता के शीर्षक ‘साध’ से जीवन की जिन अभिलाषाओं का बोध होता है उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर- कविता के शीर्षक ‘साध’ से जीवन की जो अभिलाषाएँ व्यक्त की गई है वे इस प्रकार है – कवयित्री का मानना है कि यदि जीवन नए विचारों से अनुप्राणित हो, उसकी यह नवीनता, उर्वरता का कार्य करती हैं। हम अपने जीवन में प्राप्त अनुभवों से उसे संगीतमय व मधुर बना सकते हैं। यदि हम सार्थक प्रयास करें तो यह जीवन दूसरों के लिए भी काम आए और यही मनुष्य जीवन की पूर्णता है। संसार के इस सुनसान जंगल में हम अपने प्रयत्‍न से वह मधुर संगीत गुंजायमान करें कि सभी उससे आल्हादित हो जायें । 

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प्रश्न 7. “तुम कविता के प्राण बनो, मैं उन प्राणों की आकुल तान।

 निर्जन वन को मुखरित करदे प्रिय! अपना सम्मोहन गान।

 उपर्युक्त काव्य पंक्तियों का भाव अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर- संदर्भ – प्रस्‍तुत पद्यांश ”सुभद्रा कुमारी चौहान” द्वारा रचित ‘साध’ कविता से लिया गया है।

प्रसंग – प्रस्‍तुत पंक्ति के माध्‍यम से कवयित्री कहती है कि हम अपने अनुभवों से जीवन को सरल और सुगम बना सकते हैं। 

व्‍याख्‍या – कवयित्री का मानना है कि यदि जीवन नव विचारों, से अनुप्राणित हो उसकी यह नवीनता उर्वरता का कार्य करती है। हम अपने जीवन में प्राप्‍त अनुभवों से उसे संगीतमय व मधुर बना सकते हैं। यदि हम सार्थक प्रयास करें तो यह जीवन दूसरों के लिए भी काम आये और यही मनुष्‍य जीवन की पूर्णता है। संसार के इस सुनसान जंगल में हम अपने प्रयत्‍न से वह मधुर संगीत गुंजायमान करें कि सभी उससे आल्हादित हो। अर्थात् इस कविता से निर्जन वन भी आनंदित हो जाए एवं गान से सम्मोहित हो जाए। 

पाठ से आगे-

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प्रश्न 1. हम अपने जीवन को कैसा बनाना चाहते हैं और आस – पास के लोगों तथा प्रकृति से हमें कैसे सहयोग मिलता है ? आपस में चर्चा कर लिखिए ।

उत्तर- प्रकृति मनुष्य के लिए जितना जरूरी है उतना ही आस – पास और समाज के लोग भी। हर व्यक्ति अपने जीवन को आदर्श पूर्ण बनाना चाहते हैं इसके लिए आस -पास के लोग हमारी सहायता करें या न करें परन्तु प्रकृति हमारे साथ होगी I हम उसके अनुरूप अपना जीवन व्यतीत कर सकते है I प्रकृति वातावरण का एक हिस्सा है जो हमारे आसपास है। मनुष्य का पूरा जीवन इस प्रकृति के ऊपर निर्भर है । हमारे जीवन की अत्यंत उपयोगी और मूल्यवान चीजें प्रकृति ने हमें प्रदान की हैं। मनुष्य को प्रकृति से बहुत सारी संसाधने मिलती हैं । प्रकृति ने मनुष्य को बहुत कुछ दिया है लेकिन वो उसका दुरुपयोग करने लगा है I उसने अपने लाभ के लिए ग्रीन हाउस प्रभाव, पर्यावरण प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग जैसे कई विनाशकारी कार्यों को अपनाया है। नए-नए आविष्कारों की वजह से प्रकृति पर बहुत खराब असर पड़ता है। अगर इस पृथ्वी पर प्रकृति न हो, तो जीवन जीना मुश्किल हो जाएगा |  

 इसलिए हमें आज से ही प्रकृति के महत्व को समझना होगा और हमें प्रकृति से सेवा भाव भी सीखना होगा जो हमें सिर्फ जीवन देती है बदले में हमसे कुछ नही चाहती। जिस प्रकार नदी विषम परिस्थितियों में भी अपनी दिशा नहीं बदलती ठीक वैसे ही हमारा जीवन भी होना चाहिए कि चाहे कैसे भी उतार- चढ़ाव आए हमें अपने मन में संतोष, शांति एवं आनंद का अनुभव करते हुए ऐसा कार्य करना चाहिए जिससे हमारा नाम विश्व के स्मृति पटल पर अच्छाई के लिए जाना जाये । 

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प्रश्न 2. जीवन के प्रति अपने मन में उठने वाली लहर या कल्पनाओं के बारे में विचार करते हुए उन्हें लिखिए ।

उत्तर- प्रत्येक व्यक्ति के मन में अपने जीवन के प्रति विभिन्न प्रकार की लहरें उठती है। अनेक कल्पनायें मनुष्य अपने जीवन के बारे में करता है। कभी शांत जीवन की कामना रहती है, कभी जीवन में प्रगति की इच्छा उत्पन्न होती है। कभी जीवन आसान लगता है कभी महान बनने की कामना होती है मन सदैव चंचल एवं गतिशील बनकर कल्पनायें करता ही रहता है। 

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प्रश्न 3. आपके आस – पास ऐसे लोग होंगे जो अभावों में रहते हुए भी दूसरों का सहयोग करने को सदैव तत्पर होते हैं , ऐसे लोगों के बारे में साथियों से चर्चा कर उनके भावों को लिखें । 

उत्तर – अगर हम अच्छी तरह से अपने आस-पास की प्रकृति को देखें तो हमें यह दिखाई होगा कि प्र‌कृति के हर एक कण में परोप‌कार है I वह इस दुनिया के हर एक जीव-जन्तु पर अपने परोपकार का कार्य जारी रखती है I जैसे की पेड़ो से हमें फल-फूल मिलते है, स्वशन करने योग्य प्राणवायु हमें इन्ही पेड़ो से प्राप्त होती है I साथ ही ये हमें कड़ी धूप से भी सुरक्षित रखते है। नदियाँ हमें और लगभग सभी जीव जंतुओं को पीने योग्य पानी प्रदान करती है, तथा सूर्य से आने वाली किरणें पृथ्वी पर पेड़-पौधों और सभी जीवों को ऊर्जा प्रदान करती हैं। यहाँ तक की पशु पक्षियों में भी परोपकार की भावना विद्यमान है। जैसे गायें, भैंसे और बकरियां हमें दूध और गोबर देती है। जिनके उर्वरक से हमारी जमीन उपजाऊ बन जाती है । यही हमारी भारतीय संस्कृति है I  हमारे घर के पास एक मंजू चाची जी है जिनको मैंने हमेशा ही सड़क पर पड़े या रहने वाले जानवरों की मदद करते हुए देखा है I उन्होंने कोरोना काल में अपने मात्र एक पुत्र को खो दिया परन्तु वह उसके मृत्यु से विचलित न होते हुए दूसरों की मदद के लिए अग्रसर रहने लगी। वो अभाव में रहने के बावजूद उन जानवरों की हमेशा मदद करती है। उनकी आवारा पशुओं के प्रति प्रेम को देखकर मालूम होता है कि ईश्वर हर समय और हर जगह नहीं आ सकता इसलिए उसने कुछ ऐसे प्रतिनिधियों को अपने कार्य के लिए चुना होगा। मंजू चाची जी किसी नौकरी में नहीं है परन्तु जो भी उनकी छोटी आमदनी है वो उसका दो तिहाई हिस्सा उन जानवरों की सेवा में खर्च कर देती है। उनके जीवन और कार्य को देख कर हमें भी प्रेरणा मिलती है। वो सुबह – सुबह लगभग 450 पशुओं का भोजन सड़क पर बैठे जानवरों को खिलाती है। सड़क के कुत्ते, गायें, भैंसे और बकरियाँ उन्हें इस कदर पहचानते हैं कि उनकी गाड़ी की आवाज सुनते ही वे अपनी खुशियाँ जाहिर करने लगते है। उनके इस प्रेरणादायी कार्य से हमें ऊर्जा मिलती है। यदि किसी ने उन्हें फोन कर के बताया कि किसी जानवर की तबियत खराब है और वह सड़क पर कराह रहा है तो त्वरित गति से वहाँ पहुँच कर उसे उचित चिकित्सा प्रदान करती है। उनके इस प्रेरणादायी कार्य की चर्चा पूरे शहर में हैं I उनके सहयोग और जानवरों के प्रति सेवा भाव ने हम सब को प्रभावित किया है I हमारी नजरों में वो ही एक सच्ची देशभक्त है I जो दूसरों के सहयोग के लिए सदैव तत्पर रहती है। उनके इस कार्य को हम सब का सादर नमन है।

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प्रश्न 4. आपको किन – किन कवियों की कविताएँ अच्छी लगती हैं ? आपस में चर्चा कर उन कवियों की विशेषताओं को लिखिए । यह भी बताइए कि वे कविताएँ आपको क्यों अच्छी लगती हैं ?

उत्तर- हमें हरिवंश राय बच्चन, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुभद्रा कुमारी चौहान, गजानन माधव मुक्तिबोध जी की कविताएं अच्छी लगती है। इसका कारण- सुमित्रानंदन पंत जी की कविता में प्रकृति का मानवीकरण है। महादेवी जी के काव्य में रहस्यवाद की भावना है I सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की प्रगतिवादी कविता है । हरिवंश जी की कविता में आधुनिकता का बोध होता है I गजानन माधव मुक्तिबोध की कविताएं ‘नई कविता’ है जिनमें जीवन का संघर्ष छिपा हैं ।

भाषा के बारे में – 

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प्रश्न 1. विशेषण- संज्ञा अथवा सर्वनाम की विशेषता बताने वाले शब्दों को विशेषण कहते हैं तथा जिन संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्द की विशेषता बताई जाती है उसे विशेष्य कहते हैं । प्रस्तुत कविता में विशेषण और विशेष्य पदों का सघन प्रयोग कवयित्री द्वारा किया गया है , जैसे मृदुल कल्पना, नवीन सृष्टि, पर्ण कुटीर, सरल काव्य आदि । पाठ से अन्य विशेषण और विशेष्य को ढूँढ़ कर वाक्यों में प्रयोग कीजिए। 

त्तर – (1) शांत प्रांत – उस शांत प्रांत वातावरण में पक्षियों का कलरव मन को मोह लेता है I (2) सुंदर जीवन – सभी व्यक्ति सुन्दर जीवन की कल्पना करते हैं।

(3) शीतल छाया – बुजुर्गो का आशीर्वाद पेड़ की शीतल छाया की तरह होता है I

(4) चल – समीर – चल समीर में प्रवाह से, ग्रीष्म की प्रचण्डता से संतप्त मन, शांत हो जाता है I

(5) निर्जन वन – अपनों से बिछड़ कर जीवन निर्जन वन के समान हो जाता है। 

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प्रश्‍न 2. कुछ विशे‍षण शब्‍द क्रिया की विशेषता बताते हैं जैसे- ऊँची कूद , तेज चाल , धीमीगति आदि । क्रिया की विशेषता बताने वाले इन विशेषणों को क्रिया विशेषण कहते हैं । किसी अखबार या पत्रिका को पढ़िए और क्रिया विशेषणों को खोज कर लिखिए।  

उत्तर – क्रिया विशेषण – जिन शब्दों से क्रिया की विशेषता का बोध होता है उन्हें क्रिया विशेषण कहते है । उदाहरण – सहसा, तेज, सच, कदाचित, ठीक, ध्यानपूर्वक, हँसते हुए , तेजी से, फटाफट, धीरे, झूठ ।

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प्रश्‍न 3. कविता में दिए गए विशेष्य पदों में नए विशेषण या क्रिया विशेषण को जोडकर नए पदों का निर्माण किया जा सकता है । जैसे – मृदुल- कल्पना , निर्मल- छाया , सुरीली – तान , निष्काम – जीवन | कविता में प्रयुक्त कुछ अन्य विशेष्य नीचे दिए गए हैं । इनमें विशेषण या क्रियाविशेषण लगाकर नए पदों का निर्माण कीजिए । ( आक्षेप , कुटीर , काव्य , प्रवाह , रचनाएँ , वन , तान , प्रांत , विजन , नदी । )

उत्तर – सघन + आक्षेप = सघन आक्षेप 

 शांत + कुटीर = शांतकुटीर 

 अविरल + प्रवाह = अविरल प्रवाह 

 कठिन + काव्य = कठिन काव्य 

 अद्वितीय + रचनाएँ = अद्वितीय रचनाएँ

 सघन + वन = सघन वन 

 निर्जन + प्रांत = निर्जनप्रांत

 विजन + वन = विजन वन 

 शांत + नदी = शांत नदी 

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प्रश्‍न 4. विशेषण के कई भेद ( प्रकार ) होते हैं । शब्द अपने ‘विशेष्य’ के गुणों की विशेषता का बोध कराते हैं, गुणवाचक विशेषण कहलाते हैं । जैसे- अच्छा आदमी, लंबा लड़का, पीला फूल, खट्टा दही । अपने शिक्षक की सहायता से विशेषण के अन्य भेदों की पहचान कीजिए।

उत्तर – विशेषण – वे शब्द जो संज्ञा और सर्वनाम की विशेषता बताते है उन्हें विशेषण कहते है I

विशेषण के भेद – विशेषण के मुख्यतः आठ भेद होते है I

(1) गुणवाचक विशेषण 

(2) संख्यावाचक विशेषण 

(3) परिमाणवाचक विशेषण 

(4) सार्वनामिक विशेषण 

(5) व्यक्तिवाचक विशेषण 

(6) प्रश्नवाचक विशेषण

(7) तुलनाबोधक विशेषण 

(8) संबंधवाचक विशेषण

(1) गुणवाचक विशेषण – जो विशेषण हमें संज्ञा या सर्वनाम के रूप, रंग आदि का बोध कराते है I वे गुणवाचक विशेषण कहलाते है I जैसे – अच्छा आदमी, पीला फूल, खट्टी दही I(2) संख्यावाचक विशेषण – ऐसे शब्द जो संज्ञा या सर्वनाम की संख्या के बारे में बोध कराते हैं वे शब्द संख्यावाचक विशेषण कहलाते है। जैसे – चार केले, सात अजूबे, दो सौ विद्यार्थी ।(3) परिमाणवाचक विशेषण – जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की मात्रा के बारे में बताते हैं वे शब्द परिमाणवाचक विशेषण कहलाते हैं I जैसे- (i) मुझे थोड़ा भोजन खाना है I (ii) सब्जी में कुछ नमक कम है I (iii) मुझे एक किलो टमाटर दो I (iv) एक मीटर कपड़ा लाओ Iउदाहरण – थोड़ा, कुछ, एक किलो, एक मीटर आदि I

(4) सार्वनामिक विशेषण – जो सर्वनाम शब्द संज्ञा से पहले आये एवं विशेषण की तरह उस संज्ञा शब्द की विशेषता बताएं तो वे शब्द सार्वनामिक विशेषण कहलाते है I जैसे – (1) यह लड़का कक्षा के अव्वल आया ।  (2) सबसे उत्तम कौन है ? (3) यह लड़की वही है जो मर गयी थी I

(5) व्यक्तिवाचक विशेषण – जो विशेषण शब्द व्यक्तिवाचक संज्ञा की विशेषता प्रकट करते हैं और उसी से बनते हैं व्यक्तिवाचक विशेषण कहलाते हैं।  उदाहरण – (1) नागपुरी संतरे बहुत मीठे होते हैं। (2) बनारसी साड़ी अच्छी होती है I (3) मुझे भारतीय खाना बहुत पसंद है।

(6) संबंधवाचक विशेषण – जब विशेषण शब्दों का प्रयोग करके किसी एक वस्तु या व्यक्ति का संबंध दुसरी वस्तु या व्यक्ति के साथ बताया जाए, तो वह संबंधवाचक विशेषण कहलाता है। जैसे – (1) ज्वालामुखियों की भीतरी सतह ज्यादा गरम होती ।(2) यह अंदरूनी बातें है।

(7) तुलनाबोधक विशेषण – जैसा कि हम सभी जानते है विशेषण शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताते हैं। लेकिन कई बार दो वस्तुओं के गुण- दोष आदि की तुलना की जाती है I ऐसे शब्द तुलनाबोधक विशेषण कहलाते है I जैसे – (1) जीवन में शेर की भांति निडर होना चाहिए I (2) मिल्खा, बोल्ट से ज्यादा तेज भागता है I (3) सभी महासागरों में प्रशांत महासागर विशालतम हैI

(8) प्रश्नवाचक विशेषण – ऐसे शब्द जिनका संज्ञा या सर्वनाम में जानने लिए प्रयोग होता है जैसे कौन, क्या आदि वे शब्द प्रश्नवाचक कहता विशेषण कहलाते है I जैसे – (1) मेरे जाने के बाद कौन आया था ? (2) तुम किसके बारे में बात कर रहे हो।

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प्रश्‍न 5. साध कविता में कई विशेषण शब्द हैं । उन शब्दों को पहचानिए तथा विशेषण के भेदों के अनुरूप वर्गीकृत कीजिए। 

उत्तर – (1) मृदुल कल्पना – गुणवाचक विशेषण

(2) चल पंखों – गुणवाचक विशेषण 

(3) आकुल तान – गुणवाचक विशेषण 

(4) निर्जन वन – गुणवाचक विशेषण 

(5) सम्मोहन गान – गुणवाचक 

(6) शांत प्रान्त – सार्वनामिक 

(7) पर्ण – कुटीर – गुणवाचक 

(8) कुटिल आक्षेप – सार्वनामिक

(9) सुन्दर जीवन – सार्वनामिक 

(10) शीतल छाया – गुणवाचक विशेषण

(11) प्रत्येक लहर – संख्यावाचक विशेषण 

(12) कुछ रुखा – सूखा – परिमाणवाचक विशेषण 

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प्रश्‍न 6. कविता में , प्राण भरना अर्थात जीवंत करना , मुहावरे का प्रयोग हुआ है । प्राण शब्द से सम्बन्धित कुछ अन्य मुहावरे इस प्रकार हैं- प्राण सूखना = अत्यंत भयग्रस्त होना , प्राण पखेरू उड़ना = मृत होना, प्राणो की आहुति देना = बलिदान करना । ‘ प्राण ‘ शब्द से अन्य मुहावरे खोजकर उनका अर्थ लिखिए तथा वाक्यों में प्रयोग कीजिए ।

उत्तर – 1. प्राण लेना – मार डालना

वाक्‍य प्रयोग – शेर ने ही हिरन के प्राण ले लिये। 

2. प्राण देना – न्‍यौछावर होना

वाक्‍य प्रयोग – हमारे सैनिक देश के लिए अपने प्राण देने को तैयार रहते है। 

3. प्राणों के लाले पड़ना –प्राण संकट में होना I

वाक्‍य प्रयोग – करोना काल के दौरान बहुतों के प्राणों के लाले पड़ गये थे। 

4. प्राणप्रिय – जान से प्‍यारा 

वाक्‍य प्रयोग – हर बच्‍चा अपनी माँ का प्राणप्रिय होता है। 

योग्यता विस्तार- 

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प्रश्न 1 . कुछ कविताएँ प्रकृति के कोमल भावों को अभिव्यक्त करती हैं । कोमल भावों को प्रस्तुत करने वाली कविताओं को पुस्तकालय से ढूँढ़ कर साथियों के साथ वाचन कीजिए और शब्द , अर्थ , भाव , तुक आदि पर चर्चा कीजिए ।

उत्तर- हमने कुछ कविताओं का संकलन किया है। और उन कविताओं के भाव, अर्थ आदि पर चर्चा करते हैं जो निम्न है – 

(1) काली घटा छाई है लेकर साथ अपने यह ढ़ेर सारी खुशिया लाई हैठंडी – ठंडी सी हवा यह बहती कहती चली आ रही है। काली घटा छाई है। इस कविता में कवि वर्षा ऋतु के आगमन के भाव को दर्शाने का प्रयत्न कर रहा है । इसमें वर्षा ऋतु के शुरू होने पर गर्मी से राहत और मौसम खुशनुमा होने का वर्णन किया जा रहा है।

(2) ऐसा लग रहा है जैसे मन की कलियां खिल गई ऐसा आया है बसंत, लेकर फूलों की महक का जश्न धूप से प्यासे मेरे तन को बूंदों ने भी ऐसी अंगड़ाईउछल कूद रहा है मेरा तन मन लगता है मैं हूं एक दामन |

यह संसार है कितना सुन्दर लेकिन लोग नहीं है उतने अकलमंद, यही है एक निवेदन, मत करो प्रकृति का शोषण | इस कविता में कवि वसंत ऋतु के आगमन पर प्रकृति की अनुपम छटा का वर्णन करता है और साथ ही साथ मनुष्यों को यह सीख भी देने का प्रयास कर रहा है कि उसे प्रकृति को संरक्षित रखना चाहिए I प्रकृति का अनुचित दोहन मनुष्य और समस्त प्राणियों के लिए घातक सिद्ध होगा। इस कविता का भाव यह है कि इसमें प्राकृतिक सौंदर्य के वर्णन के साथ-साथ समाज को एक संदेश देने का प्रयास किया गया है।

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प्रश्न 2 . सुभद्रा कुमारी चौहान की अन्य कविताओं जैसे ‘कदंब का पेड़’ ‘मेरा नया बचपन’, मेरा जीवन, ‘खिलौनेवाला’ को खोज कर पढ़िए और उनके भाव लिखिए। 

उत्तर- कदंब का पेड़ – भाव – इस कविता में सुभद्रा जी ने एक बालक की मन की इच्छा को चित्रित किया है जो कन्हैया की तरह बनना और उनकी ही तरह कदम्ब के पेड़ पर खेलना चाहता है। यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे I तो वह बालक उस पर बैठ कर कन्हैया बनता धीरे-धीरे। अगर बालक की माँ उसके लिए 2 पैसे वाली बांसुरी ला देती तो वह भी आप कन्हैया बन जाता | प्रस्तुत कविता के माध्यम से कवयित्री बालक की मन की इच्छा को चित्रित करती हैं जो कन्हैया की तरह बनना और उनकी ही तरह कदम्ब के पेड़ पर खेलना चाहता है।

मेरा नया बचपन – भाव – यह एक भाव प्रधान रचना है। इस कविता का विषय ही बड़ा भावुकतामय है। “मेरा नया बचपन” कविता कविता सुभद्रा जी की एक मनमोहक रचना है। कवयित्री ने जीवन की सबसे अधिक प्रिय, बाल्यावस्था के भाव भीगे शब्द – चिन्हों से इसे सजाया है। कवयित्री को बार-बार अपने बचपन के दिनों की मधुर यादें आती रहती हैं। उसे लगता है कि बचपन के जाने के साथ उसके जीवन से सबसे बड़ी खुशी विदा हो गई है।

मेरा जीवन – भाव – मेरा जीवन कविता में कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने आशा का संदेश दिया है I मनुष्य को अपने जीवन में विपरीत परिस्थितियों में भी आशा का दामन नहीं छोड़ना चाहिए। उसे निराश होकर नहीं बैठना चाहिए । उसको अपने मन में उत्साह, उमंग, विश्वास, प्रेम और साहस के भाव बनाये रखने चाहिए। 

खिलौनेवाला – भाव – बालक अपनी माँ से कहता है कि आज फिर खिलौनेवाला तरह-तरह के खिलौने लेकर आया है I उसके पास पिंजरे में हरा हरा तोता, गेंद, मोटरगाड़ी, गुड़िया आदि खिलौने हैं। बालक माँ से कहता है कि उसके आदेश पर वह खिलौने हँसते- बोलते है। वह बोलता है कि माँ खिलौने तो हँसते हँसते जंगल को चला जाएगा। लेकिन बालक तुरंत चिंतित हो उठता है I वह कहता है कि हे माँ, मैं तुम्हारे बिना जंगल में कैसे रह पाऊँगा? वहां पर किससे रुठुंगा और कौन मुझे मनाएगा और गोद में बिठाकर चींजे देगा ?

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