CG Board Class 10 Hindi Solutions Chapter 5.1 ये जिनगी फेर चमक जाए

 

Class 10 Hindi

 Chapter 5.1 

ये जिनगी फेर चमक जाए


अभ्यास-प्रश्न –

पाठ से –

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प्रश्न 1.”कोठी म धान छलक जाए, ये जिनगी फेर चमक जाए।” पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर- उपरोक्त पंक्तियों के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि हमारे मन रूपी कोठी (अनाज रखने का बड़ा पात्र) में उर्जात्मक, सकारात्मक और प्रगतिशील विचारों से भरा हो I इन्‍ही के माध्यम से हम अपने जीवन और समाज में प्रगति करें और सभी लोग खुशहाल हो जाएँ। 

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प्रश्न 2. “मुँह घुघुवा असन फुलोवौ झन” ऐसा क्यों कहा गया है ?

उत्तर- उपरोक्त पंक्ति में कवि का आशय है कि आप की प्रगति और खुशहाली में व्‍यर्थ की छोटी-छोटी समस्याएं आती है, जिसके कारण आप अपने लक्ष्य से भटक जाए ना जाएँ तथा इन छोटी-छोटी समस्याओं से थक हार कर उल्लू की तरह मुंह फूलाकर ना बैठे । 

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प्रश्न 3. सुंता (सुमति) से रहने से क्या लाभ होता है ? लिखिए ।

उत्तर- इस पंक्ति के माध्यम से कवि यह कहना चाह रहे हैं कि हमें अपने मन में कोई ऐसा अवरोध नहीं रखना चाहिए जिससे कि अच्छे विचार और सकारात्मकता हमारे मन में ना आए अर्थात व्यक्ति को अच्छे विचारों के साथ आनंद से रहना चाहिए। 

Page No. 100                                                                                                                           प्रश्न 4. बगिया में कोइली जैसा कुहकने के लिए क्यों कहा जा रहा है ?                           

  उत्तर– कवि के कहने के अनुसार जैसे कोयल हमेशा मधुर बोलती है उसी प्रकार मनुष्य को आनंद पूर्वक रहना चाहिए और अपने आसपास भी सबको खुश रखना चाहिए। क्योंकि जब तक आप स्वयं खुश और उत्साह से भरे नहीं रहेंगे तो दूसरे को कैसे खुशी दे सकते हैं । 

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प्रश्न 5. “गुँगुवावत मया भभक जाए” पंक्ति में खुलकर स्नेह प्रकट करने को कहा गया है।” इस कथन का क्या उद्देश्य है ?

उत्तर- इस पंक्ति का अर्थ यह है कि हमें जब भी किसी से मिलना चाहिए गर्मजोशी के के साथ मिलना चाहिए किसी भी प्रकार से मन में उस व्यक्ति के लिए कोई भी दुर्भावना नहीं होनी चाहिए I खुले हृदय और प्रेम से मिलने से संबंध प्रगाढ़ होते हैं। 

Page No. 100                                                                                                                       प्रश्न 6.पसीने की अमृत से तुलना क्यों की गई है? समझाइए ।                                                    उत्तर- पसीने की तुलना अमृत से इसलिए भी की गई है कि जब किसी को उसके परिश्रम और मेहनत से जो हासिल होता है वह उसके लिए किसी अमृत से कम नहीं होता I अपनी मेहनत से प्राप्त की गई सफलता या पारिश्रमिक में एक अलग ही सुकून होता है। 

पाठ से आगे-

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प्रश्न 1. “जाना है दुनिया ले सबला” पंक्ति का भाव-विस्तार कीजिये।

उत्तर कवि के अनुसार जिस भी प्राणी ने इस पृथ्वी पर जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है। यही अटल सत्य है इसलिए मनुष्य को अच्छे कर्म करना चाहिए क्योंकि आदमी के मृत्यु के बाद उसका कर्म ही उसे समाज में जीवित रखता हैं। 

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प्रश्न 2. “भुइँया के पीरा” से कवि का क्या आशय है ? अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिये।

उत्तर इस पंक्ति के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है कि हमें समाज में सरल और संवेदनशील व्यवहार करना चाहिए I अर्थात हमें अपने समाज, परिवार और प्रकृति की पीड़ा को समझते हुए उसका निवारण करना चाहिए। 

Page No. 100                                                                                                                       प्रश्न 3. “धरती के हीरा” से आप क्या समझते हैं? अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर – कवि यहां पर हीरा संबोधन से मनुष्यों को संबोधित कर रहा है। जो व्यक्ति संवेदनशील मेहनती और जिन्होंने अपने कर्म से इस धरती, समाज और प्रकृति का पोषण किया है। उन्हें ही कवि हीरा के संबोधन से व्यक्त कर रहा है।

Page No. 100                                                                                                                 

प्रश्न 4. मेहनतकश को दुनिया क्यों पसंद करती है ?                                                      

 उत्तर – परिश्रम ही सफलता का मूल मंत्र है। बिना परिश्रम के कुछ भी संभव नहीं है। आज हम दुनिया का जो स्वरूप देख रहे हैं, इसमें बहुत से लोगों ने अपना खून – पसीना बहाया है। मेहनत करके हम अपना, अपने परिवार तथा समाज का भला कर सकते हैं, इसलिए मेहनतकश लोगों को यह दुनिया पसंद करती है।

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प्रश्न 5. “काबर अगास ला नापत हौ” पंक्ति के माध्यम से कवि क्या कहना चाहते हैं ?                     उत्तर – इस पंक्ति का तात्पर्य यह है कि जो कार्य संभव ना हो उसके लिए हमें व्यर्थ में श्रम नहीं करना चाहिए I जो भी संसाधन हमारे पास उपलब्ध हो उसका ही उपयोग और उपभोग हमें विवेक पूर्ण तरह से कर के अपने आवश्यकता की पूर्ति करना चाहिए I उस वस्तु या लक्ष्य के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए जो कि हमारी पहुंच से दूर हो।

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प्रश्न 6. “जिनगी भर हे रोना धोना” आप इस कथन से सहमत या असहमत होने का तर्क प्रस्तुत कीजिये।

उत्तर- समस्या प्रत्येक मनुष्य के जीवन में आती – जाती रहती है। हमें उसके लिए रोना – धोना नहीं चाहिए। मनुष्य एक कर्तव्य शील प्राणी है और वह कर्म के बल पर अपने भाग्य को बदल सकता है, इसलिए मानव को कर्म करते हुए इन सब व्यर्थ चिंताओं पर ध्यान नहीं देना चाहिए।

भाषा के बारे में-

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  प्रश्न 1. पाठ में आए हुए छत्तीसगढ़ी की विभक्तियों एवं संबंध सूचक अव्ययों को छाँटकर लिखिए एवं उनका हिंदी में भाषांतर कीजिए 

उदाहरण- मं – में कस – जैसा 

उत्तर- 

(i) मं – में 

(ii) अस – के समान 

(iii) हे – हैं 

(iv) असन – समान 

(v) कस – जैसा 

(vi) ले – से 

(vii) ल – को आद‍ि – 

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  प्रश्न 2. “चंदा अस मन सुरुज कस तन” में कौन-सा अलंकार है ? पहचान कर उसकी परिभाषा लिखिए।

उत्तर- इस पंक्ति में सूरज और चांद की उपमा दी गई है । इसलिए यह उपमा अलंकार है। 

परिभाषा :– जो शब्द किसी व्यक्ति, प्राणी के गुण, धर्म, स्वभाव और उसकी शोभा की समानता या तुलना करते हैं उसे उपमा अलंकार कहते हैं।

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  प्रश्न 3. मैली चादर ओढ़ के कैसे द्वार तिहारे आऊँ ।

 हे पावन परमेश्वर मेरे मन ही मन शरमाऊँ ।।

उपरोक्त भजन की पंक्तियों में मनुष्य इस संसार में आकर छल, प्रपंच, काम-क्रोध, लोभ, मोह में फँसकर अपनी काया के कलुषित होने से जनित आत्म अपराध बोध के भाव से है । वह इस मैली काया के साथ ईश्वर के मंदिर में प्रवेश करने से स्वयं ही शर्मिंदा हो रहा है। इस तरह के भाव प्रायः शांत रस के अन्तर्गत देखे जा सकते हैं। कविता ‘ये जिनगी फेर चमक जाए’ में भी जीवन के प्रति असारता / निःसारता के भाव विद्यमान है।

क. कविता पढ़कर उन पंक्तियों को चुनकर लिखिए जिसमें ये भाव देखे जा सकते हैं ।

उत्तर- (1) जाना है दुनिया से सबला,

 काबर करथस जादू-टोना I 

 (2) भुईया के पीरा ल समझौ धरती के हीरा ल समझौ 

 काबर अगास ल नापत हौ, मीरा के पीरा ल समझौ 

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ख. इस कविता के अतिरिक्त शांत रस की अन्य कविताओं को भी ढूँढ़ कर लिखिए ।

उत्तर- शांत रस –

(1) कोठी म धान छलक जाए, ये जिनगी फेर चमक जाये ।

(2) जिनगी भर हे रोना – धोना, लिखे कपाट लूना बोना ।

(3) हुरहा मन मिले झझक जाए, हँड़िया कस भात फदक जाए ।

(4) कोरा के लाल ललक जाए, बिसरे मन मया छलकाए ।

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 प्रश्न 4. पूर्व में आपने अभिधा और लक्षणा शक्ति को पढ़ा एवं जाना है। अब निम्न वाक्य को ध्यान से पढ़िये – “ सुबह के 8 बज गए हैं।”

इस वाक्य का प्रत्येक व्यक्ति के लिए भिन्न-भिन्न अर्थ होगा :-

जैसे- एक आदमी जो रात में पहरेदारी करता है उसकी छुट्टी के समय से है, कार्यालय जाने वाले व्यक्ति के लिए कार्यालय जाने की तैयारी से है, गृहिणी इसका अर्थ गृह कार्य से जोड़कर देखेगी, बच्चों के लिए इसका अर्थ विद्यालय जाने की तैयारी से है एवं पुजारी इसे पूजा – पाठ से जोड़कर देखेगा।

इस प्रकार जहाँ वाक्य तो साधारण होता है लेकिन उसका अर्थ प्रत्येक पाठक या श्रोता के लिए अलग-अलग या भिन्न-भिन्न होता है, इसे ही व्यंजना शक्ति कहते है एवं इससे उत्पन्न भाव को व्यग्यार्थ कहा जाता है।

उत्तर- व्यंजना शक्ति – व्यंजना का अर्थ है ‘प्रकाशित करना’ अर्थात जिस शब्द शक्ति के द्वारा मुख्यार्थ और लक्ष्यार्थ से भिन्न तीसरे अर्थ प्रकाशित हो उसे व्यंजना शब्द शक्ति कहते है 

उदाहरण (1) पानी गए न उबरे मोती मानस चून”

(2) एक मन मोहन तो बस के डजरियों मोहि, हिय में अनेक मन, मन मोहन बसायों न 

(3) घर गंगा में है।

(4) संध्या बेला हो गयी। 

(5) सूर्य अस्त हो गया।

योग्यता विस्तार – 

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प्रश्न 1. फसल कटाई के दौरान कृषक की दिनचर्या का वर्णन कीजिए। 

उत्तर- फसल कटाई के समय एक किसान की दिनचर्या, बहुत ही व्यस्त होती है। उसे सांस लेने की फुरसत भी नहीं होती है। किसान सुबह उठ कर खेत जाता है वहाँ वह फसलों की कटाई करता है फिर काटी हुई फसल के बड़े- बड़े गट्ठर बना कर उसे खलिहान जहाँ पर फसल रखी जाती है वहाँ लाता है। उसके बाद फसलों के गट्ठर खोल कर फसल की भिजाई करता है। उसमें से जो अनाज होते है, उसे अलग करता है I चूंकि अनाज में धूल मिट्टी के कण होते है तो उनका ओसावन करना पड़ता है I जिससे साफ अनाज एक तरफ और मिट्टी ककंड एक तरफ हो जाये I फिर अनाज को बोरे में भर कर किसान घर पहुंचाता है। उसके पश्चात घर में खाने का अनाज रख कर बाकी अनाज को उसे कृषि मंडी या बाजार ले जा कर विक्रय करना होता है। यह सब प्रक्रिया बहुत ही तीव्र गति से करना पड़ता है क्योंकि यदि वारिस या कोई अन्य प्राकृतिक आपदा आ जाए तो किसान की साल भर की मेहनत मिट्टी में मिल जायेगी । इसी कारण फसल कटाई के दौरान किसान की दिनचर्या बहुत ही व्यस्त होती है।

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प्रश्न 2. कृषि एवं कृषक जीवन से संबंधित कोई अन्य कविता का संकलन कीजिए 

उत्तर- भरे पेट जो सभी जनों का

 माटी में फसल उगाता है 

 भारत मां का लाल वहीं

 अपना किसान कहलाता है।

 आलस तनिक न तन में रहता

 भय न कभी भी मन में रहता 

 कोई भी विपदा आ जाय

 हंस कर वह सब कुछ हैं सहता

 वस रहे सदा परिवार सुखी

 जिसके संग उसका नाता है 

 भारत माँ का लाल वहीं 

 अपना किसान कहलाता है।

 कष्ट न देती धूप दिवस की 

 न अँधेरी रात डराती हैं, 

 डटा रहे हर समय खेत में 

 जब तक न फसल पक जाती है।

 सूरज के उठने से पहले 

वो पहुँच खेत में जाता है 

 भारत माँ का लाल बही 

 अपना किसान कहलाता है I

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प्रश्न 3. हिन्दी साहित्य में नौ रस माने गए हैं। यथा- शृंगार, हास्य, करूण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अद्भूत, शांत I यद्यपि प्राचीन रस सिद्धांत में वात्सल्य की गणना रसों के अन्तर्गत नहीं की गई है, किन्तु सूरदास के पश्चात् इसे भी रस माना गया। इस प्रकार अब रसों की संख्या बढ़कर दस हो गई है। शिक्षक की सहायता से सभी रसों के उदाहरणों को ढूँढकर पढ़िए एवं समझने का प्रयास कीजिए।

उत्तर- हिन्दी साहित्य में नौ रस माने गये है I जैसे- श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अद्‌भूत तथा शांत रस I यद्यपि प्राचीन रस सिद्धान्त में वात्सल्य की गणना रसो के अंतर्गत नहीं की गई है। किन्तु सूरदास के पश्चात इसे भी रस माना गया है। इस प्रकार अब रसों की संख्या बढ़कर दस हो गई है। ये दसो रस निम्नलिखित हैं इन्हें उदाहरण के साथ समझते है। 

(1) श्रृंगार रस :- जहाँ स्त्री-पुरुष के प्रेम – भाव का वर्णन किया जाता है। वहाँ श्रृंगार रस होता

 है I उदाहरण→राम रूप निहारति जानकी, कंकन के नग की परछाहीं ।

(2) हास्य रस → जब किसी भी विचित्र वेशभूषा, हाव भाव देखकर या वर्णन सुनकर हंसी आती हो, वहाँ हास्य रस होता है। 

उदा- इस दौड़-धूप मे क्या रखा आराम करो, आराम करो ! 

आराम ज़िन्दगी की कुंजी, इससे न तपेदिक होती है।

(3) रौद्र रस → इसका स्थाई भाव क्रोध है। जब कोई अनुचित कार्य होता है I तब आश्रय के मन में रौद्र रस की उत्पत्ति होती है। 

उदा.- कहा कैकेयी ने सक्रोध दूर हो दूर अरे निर्बोध I

 सामने से हट, अधिक न बोल द्वि जिल्हे ! रस में विष मत घोल |

(4) भयानक रस→ इसका स्थाई भाव भय है। किसी वस्तु, व्यक्ति या घटना से भय उत्पन्न हो, वहां भयानक रस होता है।

उदा:- उधर गरजती सिंधु लहरियाँ, कुटिल काल के जालों सी।

 चली आ रही, फेन उगलती, फन फैलाये ब्यालो सी ।।

(5) वीर रस – इसका स्थाई भाव उत्साह है जहां कविता में व्यक्ति के उत्साह का वर्णन होता है। वहाँ वीर रस होता है I

उदा. बुंदेले हर बोलो के मुँह हमने सुनी कहानी थी 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।

(6) अद्भुत रस – इसका स्थाई भाव आश्चर्य होता है I किसी वस्तु या घटना को देखकर मन में आश्चर्य या विस्मय का जागृत होना अद्‌भुत रस होता है।

उदा- विन पग चले, सुने बिनु काना | 

 कर बिनु कर्म करै विधि नाना |

(7) करुण रस → इसका स्थाई भाव शोक होता है I जहाँ मृत्यु तुल्य कष्ट या वियोग का वर्णन होता है I वहां करुण रस होता है। 

उदा.- अभी तो मुकुट बंधा था भाय, 

 हुए कल ही हल्दी के हाय।

 हाय रुक गया यहीं संसार, 

 बना सिंदूर अंगार ॥

(8) वीभत्स रस → स्थायी भाव घृणा है। घृणा को उत्पन्न करने वाले दृश्यों का वर्णन होने पर वीभत्स रस होता है। 

उदा. – सिर पर बैठ्यो काग, औखी दोऊ खात निकारत।

 खीचही जीभहि सियार, अतिहिं आनन्द उर धारत ।।

(9) शांत रस → इसका स्थाई भाव वैराग्य होता है। जहाँ सांसारिक वस्तुओं से विरक्ति का वर्णन हो वहां शांत रस होता है I

उदा. – सुन मत भूद! सिखावन मेरो। 

 हरिपद विमुख लहो न काहु सुख मठ। 

 यह समुझ सवेरो।

(10) वात्सल्य रस→ बच्चो की चेष्टाओं या क्रीडाओं से माता पिता के ह्रदय नें जिस भाव की उत्पत्ति है I उसे वात्सल्य रस कहते है I

जैसे → कबहुँ ससि माँगत आरि करै, 

 कबहुँ प्रतिबिम्ब निहारि उरै I

 कबहुँ करताल बजाय कै नाचत, 

 मातृ सबै मन मोद भरै ॥v


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