CG Board Class 10 Hindi Solutions Chapter 7.1 मध्ययुगीन काव्य

 

Class 10 Hindi 

 Chapter 7.1

 मध्ययुगीन काव्य


अभ्यास-प्रश्न-

पाठ से-

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प्रश्न 1. अपने पदों में मीरा खुद को दासी कहती है? ऐसा कहने के पीछे क्या आशय है ? लिखिए।

उत्तर- मीरा स्वयं को कृष्ण दासी कहती है इसका आशय यह है कि मीरा ने अपने को कृष्‍ण में अर्पण कर दिया है। कृष्‍ण – मीरा से अलग नहीं हो सकते है। मीरा, कृष्‍ण जी की अनन्य भक्त है। मीरा कृष्‍ण को अपना पति-परमेश्वर मानती है। इसलिए वो खुद को उनकी दासी कहती है। वह अपना संपूर्ण जीवन कृष्‍ण की भक्ति में व्‍यतीत करना चाहती है। उनकी यह भक्ति पूर्ण रूप से श्री कृष्‍ण को समर्पित है। 

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प्रश्न 2. “गई कुमति, लई साधु की संगति” से कवि का क्या आशय है ? लिखिए। 

उत्तर- मीरा साधुओं की सत्‍संगति में जीवन का मार्ग ग्रहण कर लिया है अंतत: वैराग्‍य धारण कर लिया है अ‍र्थात् मीरा को अब सुमति आ गयी है। अब तक वे संसार के माया – मोह में फंसी थी। लेकिन जब उन्‍हें आत्‍मसात् हुआ तो उन्‍होेंने कृष्‍ण की भक्ति में स्‍वयं को तल्‍लीन कर लिया है। 

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प्रश्न 3. मीरा को जो अमोलक वस्तु मिली है उसके बारे में वे क्या-क्या बता रही है? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर- प्रस्‍तुत पंक्तियों में मीरा कह रही है कि उन्‍होंने कृष्‍ण के नाम का रत्‍न धन पा लिया है। उनके सत् गुरू ने उन्‍हें अपना कर उन पर कृपा की तथा इस नाम रूपी अमूल्‍य धन को सौंपा। मीरा ने इस संसार में सब कुछ खो कर इस जन्‍म-जन्‍म की पूंजी को पाया है। ये नाम रूपी धन ऐसा धन है जो खर्च करने से न कम होता है और न इसे कोई चोर लूट पाता है, इसमे तो दिनो-दिन सवा गुणा बढ़त हेाती रहती है। कहने का तात्‍पर्य यह है कि ईश्‍वर की शरण में आकर उन्‍हें अब किसी की सूध-बुध नहीं रही, उनका जीवन सार्थक हो गया है। 

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प्रश्न 4. राम रतन धन को जनम-जनम की पूँजी कहने का आशय क्या है ? लिखिए।

उत्तर- इस पद में कृष्‍ण की दीवानी मीराबाई कहती है कि मुझे राम रूपी बड़े – धन की प्राप्ति हुई है। मेरे सद्गुरू ने मुझ पर कृपा करके ऐसी अमूल्‍य वस्‍तु भेंट की है I उसे मैंने पूरे मन से अपना लिया है। उसे पाकर मुझे लगा मुझे ऐसी वस्‍तु प्राप्‍त हो गई है, जिसकी जन्‍म-जन्‍मान्‍तर से मुझे प्रतीक्षा थी। 

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प्रश्न 5. राणा ने मीरा बाई को विष का प्याला क्यों भेजा होगा और मीरा बाई उस विष को पीते हुए क्यों हँसी ? अपने विचार लिखिए।

उत्तर- मीराबाई द्वारा श्री कृष्‍ण भक्ति में पद की रचना करना और नाचना-गाना सामन्‍ती राज परिवार की परम्‍पारों के प्रतिकूल नहीं था। मीराबाई के पति ने और उनके पति के परिवार ने उन्‍हें विष देकर मारने की कोशिश की लेकिन वे असफल रहे अर्थात् श्री कृष्ण के प्रति उनके अन्‍यय प्रेम और भक्ति को देख कर लोग कहने लगे कि मीरा पागल हो गयी है, वही दूसरी ओर जो उनके रिश्तेदार है वे उन्‍हे कोषते है कि उन्‍होंने परिवार एवं कुल की मान मर्यादा और प्रतिष्ठा को दांव पर लगा दिया है। उनके इस व्‍यवहार से तंग आकर उनके पति ने उनके लिए विष का प्‍याला भेजा होगा। उसे पीते ही मीरा मृत्यु को प्राप्‍त हो जाये परन्‍तु ऐसा नहीं हुआ। 

मीरा ने श्री कृष्‍ण का नाम लेकर हंसते हुए उस विष के प्‍याले का पान कर लिया। उन्‍होंने श्री कृष्‍ण में स्‍वयं की सुध भी भुला दी है। उस अविनाशी से वे मिलने के लिए आतुर है। 

उन्‍हे जब राणा जी ने विष का प्‍याला भेजा तो मीरा उसे कृष्‍ण के चरणों का अमृत समझकर हंसते हुए पी गयी। श्री कृष्‍ण भगवान से मीरा की कृष्‍ण भक्ति का ही परिणाम था कि वह जहर भी उसके लिए अमृत हो गया। वह प्रभाव हीन विष को पीकर अमर हो गयी। 

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प्रश्न 6. “भाई रे ! ऐसा पंथ हमारा” कविता में दादू के पंथ के बारे में पद में क्या क्या बताया गया है ?

उत्तर- कवि निर्विकार भावों से मोक्ष प्राप्ति हेतु मानव को सहज सरल मार्ग अपनाने का संदेश देते हुए कहते है कि हे! बन्‍धु हम पंथों के वाद-विवाद से दूर है। हमारा रास्‍ता इस संसार में अत्‍यन्‍त निराला है। हमारा किसी से कोई भी मनोविकार नहीं है। बिना – किसी के प्रति मन में किसी भी प्रकार की दुभार्वना से मै सहर्ष उस रास्‍ते पर चलता हूं जो सीधे ईश्‍वर तक जाता है अ‍र्थात् सभी को सम दृष्टि से देखते हुए शाश्वत शान्ति एवं जन्‍म- मरणरूपी आवागमन से छूटकारा पाने का उपाय बतलाया गया है। निर्विकार भाव से वैरी विहीन रहने की प्रेरणा दी गयी है। जीवन में काम – क्रोध जैसे मनोविकारों को त्‍यागकर उस ईश्‍वर तक पहुंचने के लिए सहजता के मार्ग में चलने की बात कही गयी है। 

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प्रश्न 7. उपासना के सगुण और निर्गुण दोनों पक्षों को आपने कविताओं में पढ़ा है। आपके अनुसार दोनों में से कौन सा पक्ष अधिक सरल है? अपनी बातें तर्क सहित लिखिए।

उत्तर- उपासना भी सगुण एवं निगुर्ण दोनों पक्षों में हमारी दृष्‍टी में निगुर्ण पक्ष अधिक सरल है। ईश्‍वर निराकार है, प्रकृति के कण-कण में उसका वास है। उसे किसी एक स्‍वरूप में बॉंधने की कल्पना नहीं की जा सकती है। संपूर्ण सृष्टि की रचना उसी ने की है और वह सृष्टि के सम्‍पूर्ण कण-कण में विद्यमान है। मनुष्य के जीवन की, नश्वरता शाश्‍वत सत्‍य है ऐसे में एक दुर्लभ जीवन को पाकर वह मनोविकारों में पड़ कर उसे व्यर्थ ही गंवा रहा है। यदि जीवन के अन्तिम लक्ष्‍य मोक्ष को प्राप्‍त करना है तो मनुष्‍य को ईश्‍वर के बनाये हुए रास्‍ते पर ही चलना होगा और स्‍वयं को दुर्गणों से दूर रखना होगा। कवि ने भी इस बात का समर्थन किया है और मृग व कस्‍तूरी के प्रतीक के द्वारा जीवन में ईश्‍वर के महत्‍व को निर्धारित किया है। उदाहरण :- ”दादू सब घर में गोविन्‍द है, संग रहे हरि पास। कस्‍तूरी मृग में बसै, सूंघत डोले घास”।। 

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प्रश्न 8. निम्नलिखित पंक्तियों का भाव, सौंदर्य स्पष्ट कीजिये- 

करता है रे सोई चीन्हौ, जिन वै रोध करै रे कोइ ।

जैसे आरसी मंजन कीजै, राम- रहीम देही तन धोइ ।

उत्तर- कवि कहते हैं कि उस ईश्वर को पहचानो उसका विरोध मत करो, जिस प्रकार दर्पण सबको अपना मुखड़ा दिखलाता है उसी प्रकार ईश्वर भी सभी मतावलम्बियों का मन साफ करता है। 

पाठ से आगे-

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प्रश्न 1. क्या आपको कोई ऐसी वस्तु मिली है जिससे आपको बेहद खुशी महसूस हुई हो उसके बारे में बताइए।

उत्तर- प्रत्‍येक व्‍यक्ति के जीवन में कुछ न कुछ ऐसा जरूर होता है जिसे प्राप्‍त करने के बाद वह बेहद खुशी महसूस करता है निश्चित ही हमारे जीवन में भी ऐसी कोई वस्‍तु जरूर है जिसे हम पाकर अपने आपकों प्रसन्‍न महसूस करते हैं।

हॉं! मेरे जीवन में भी कुछ ऐसी रचनाएं है जो प्राचीन कवियों ने लिखि है उसे पढ़कर मन शान्ति एवं प्रसन्नता महसूस करता है। 

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प्रश्न 2. कभी – कभी लोग अपने जीवन मूल्यों , आदर्शों और त्याग के कारण ज्यादा अमूल्य वस्तुओं को छोड़कर साधारण वस्तुओं का चयन करते हैं आपके अनुभव में भी ऐसी घटनाएँ होंगी जब आपने ऐसा कुछ होते देखा – पढ़ा अथवा सुना हो । एक या दो उदाहरण लिखिए। 

उत्तर- कभी-कभी लोग साधारण वस्तुओं का चयन करते हैं, अपने आदर्श और जीवन मूल्यों को बनाये रखने के लिए। मेरे जीवन काल में मैने पूर्व राष्ट्रपति स्व. डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम और हमारे पूर्व प्रधान मंत्री स्‍वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी को जागते हुए स्‍वप्‍न देखते हुए देखा है और उसे पूर्ण करने की इच्‍छा शक्ति प्राप्त की है। ये दोनों ही महान विभूतियां मेरे जीवन की आदर्श रही है जिनके पद चिन्हों पर चल कर मैं अवश्य ही श्रेष्‍ठता को प्राप्‍त करूंगी। 

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प्रश्न 3. क्या आज भी हमारे समाज में महिलाओं के साथ भेदभाव होता है ? तर्क देकर अपनी बात को पुष्ट कीजिए।

उत्तर- भारत एक पुरूष प्रधान देश है। हमारे समाज में आज भी पुरूषों को अपेक्षाकृत नारी से उच्‍च स्‍थान प्राप्‍त है अर्थात् हमारे समाज में आज भी महिलाओं के साथ भेद-भाव का व्‍यवहार किया जाता है। कुंठित समाज में पुरुष वर्ग स्‍वयं से उच्‍च पद पर आसीन महिला वर्ग को सहन नहीं कर पाता। परिवार में भी थोड़ी बहुत असामान्यताएं आज भी देखने को मिलती है। कन्‍या भ्रूण हत्‍या में सर्वाधिक उच्‍च प्रतिशत धनाढय वर्गो का ही है फिर भेद-भाव समाप्‍त हो यह कैसे संभव है। यही हमारे समाज की विडम्‍बना है। जो सम्‍पूर्ण विश्‍व में दृष्टि गोचर है। 

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प्रश्न 4. आज भी हमारे देश में जाति और संप्रदाय के नाम पर झगड़े होते हैं । आपके अनुसार इसके क्या कारण है ? इन कारणों का समाधान किस तरह से किया जा सकता है ? विचार कर लिखिए ।

उत्तर- जाति एवं संप्रदाय के नाम पर होने वाले झगड़ों का कारण निश्चित ही राजनीतिक प्रश्न है। यदि आरक्षण को समाप्त भी कर दिया जाये तो सम्पूर्ण देश का सर्वांगीण विकास से मतभेद खत्म हो सकता है। जब तक देश के नागरिक देश के हित के लिए कार्य नही करेंगें तब तक किसी भी देश या राष्‍ट्र का विकास संभव नहीं है। इस बदलाव की आंधी में युवाओ को बढ़-चढ़ कर देश के विकास का परचम लहराना होगा। जिससे सम्‍पूर्ण विश्‍व काे एक सशक्‍त संदेश प्राप्‍त हो सके। 

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प्रश्न 5. मध्यकाल के कवियों के बारे में कहा जाता है कि ये अशिक्षित या अल्पशिक्षित थे फिर भी उन्होंने अच्छे ग्रंथों और काव्यों की रचना की । वे ऐसा कैसे कर पाए होंगे ? अपने साथियों और शिक्षक से चर्चा करके लिखिए । 

उत्तर- मध्यकाल के कवियों ने जो भी रचना की वह उनकी स्वयं की अनुभूति थी स्‍वयं के अनुभव से लिखी हुई रचनाएं समय, समाज, स्‍थान सबके लिए सभी समय पर उपयुक्‍त होती है। विचार धाराएं पुरानी पड़ सकती है परन्‍तु मान्‍यताये कभी भी समाप्‍त नहीं होती है। 

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प्रश्न 6. वर्तमान समय में समाज का झुकाव भौतिक सौंदर्य के प्रति बढ़ता जा रहा है। इन परिस्थितियों में अध्यात्म के जरिए आंतरिक सौंदर्य की ओर उन्मुख होना (लौटना) आपकी समझ में कितना महत्व रखता है ? शिक्षक से चर्चा कीजिए और लिखिए।

उत्तर- वर्तमान परिस्थितियों में आध्यात्म के माध्‍यम से ही समाज में व्‍याप्‍त विषमताओं को समाप्त किया जा सकता है। भौमिकता की दौड़ में आध्‍यात्‍म का सहारा लेकर समाज का सर्वांगीण विकास भी किया जा सकता है। इस कार्य में युवावर्ग की सहजता, विकास का माध्‍यम बन सकती है। 

भाषा के बारे में –

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प्रश्न 1. पाठ में दी गई कविताओं में ऐसे शब्द आए हैं जिनका चलन आजकल नहीं है । उन्हें पहचान कर लिखिए । 

उत्‍तर – अप्रचलित शब्द – साजी सिंगार , कालब्याल , बछल , बसैयन , चैयन , कतहूँ , पख निरवैरी , पथि , आरसी ।

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प्रश्न 2 . पाठ में प्रयोग हुई भाषा आपके घर की भाषा से किस प्रकार भिन्न है ? इससे मिलते – जुलते शब्द आपकी भाषा में भी होंगे । उन्हें छाँट कर लिखिए ।

उत्‍तर- पाठ की भाषा में अनेक स्थानों की भाषा का प्रभाव है । हमारी भाषा छत्तीसगढ़ी स्थानीय है । लगभग ऊपर लिखे शब्द ही हमारी भाषा में कहीं – कहीं है ।

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प्रश्न 3 . अपने शिक्षक और सहायक पुस्तक की मदद लेकर इस बात पर चर्चा करें की गद्य और पद्य की भाषा में किस प्रकार का अंतर होता है ?

उत्‍तर- (i) गद्य की भाषा – गद्य की भाषा सीधी सरल प्रभावपूर्ण एवं मुहावरेदार है। 

(ii)पद्य की भाषा – पद्य की भाषा में काव्‍य का सौदर्य रस, छंद अलंकार, शब्‍द, गुण आदि का प्रयाेग है। 

प्रश्न 4. कविता में लय और गेयता लाने के लिए भाषा की स्वर ध्वनियों को लघु ( हस्व ) और गुरु (5 = दीर्घ) के अनुसार उपयोग किया जाता है । स्वरों के उच्चारण में लगने वाले समय को मात्रा कहा जाता है । इन स्वरों को ह्रस्व , दीर्घ और प्लुत इन तीन वर्गों में बाँटा गया है ।

 ह्रस्व स्वर जिन वर्णों के उच्चारण में एक मात्रा का समय लगता है उसे ह्रस्व स्वर (वर्ण) कहते हैं । यथा अ , इ , उ , ऋ , और अनुनासिक । 

दीर्घ स्वर – जिन वर्णों के उच्चारण में दो मात्राओं का समय लगता है उसे दीर्घ स्वर ( वर्ण ) कहते हैं । यथा – आ , ई , ऊ , ए , ऐ , ओ , औ ( अनुस्वार एवं संयुक्ताक्षर के पहले का वर्ण ) 

प्लुत स्वर – जिन वर्णों के उच्चारण में दो से अधिक मात्रा का समय लगता है उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं । वैदिक मंत्रों एवं संगीत में इन स्वरों का उपयोग किया जाता है । 

नीचे दो पंक्तियों में इन मात्राओं को गिनने का प्रयास किया गया है 

।। S । ।।S  SI ISI  = 16 मात्राएँ . 

अजहूँ न निकसे प्रान  कठोर 

||| IS ।।ऽ ।। S S I IS IS IISI = 17 , 11 = 28 मात्राएं

अवधि गई अजहूँ नहि आए , कतहुँ रहे चितचोर

इसी गणना के आधार पर छंद की पहचान की जाती है । यह 28 मात्रा वाला हरिगीतिका छंद है । इसी पदों में मात्राओं की गणना कीजिए और छंद का नाम शिक्षक से पता कीजिए । 

उत्तर- मीरा के पद – (1) पग घुंघरू बांध मीरा नाची है I 20 मैं तो मेरे नारायण की आपहि हो गई दासी है I 29 लोग कहे मीरा भई बावरी न्यात कहै कुलनासी है II 29

विष का प्याला राणाजी भेज्या पीवत मीरा हाँसी रे 31 मीरा के प्रभु गिरिधर नागर सहज मिले अविनासी रे I 29 

(2) बसो मोरे नैनन में नंदलाल I 16 मोहनी मूरति साँवरि सुरति नैना बने बिसाल I 26 अधर सुधारस मुखमे राजति, उर बैजंती माल II 26 छुद्र घंटिका कटि तट सोभित नूपुर सबद रसाल I 24 मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भगत बहल गोपाल I 28 

प्रस्तुत पदों में मात्राओं को लगाने के बाद पता चलता है, कि इन पदों में कोई भी चरण एक समान नहीं है I अतः प्रस्तुत मीरा के समस्त पद विषम मात्रिक छंद है I

योग्यता विस्तार-

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प्रश्न 1. छत्तीसगढ़ में भी कई महान संत हुए हैं I आप उनकी रचनाओं को संग्रहित कीजिए और मित्रों के साथ उन पर चर्चा कीजिए I

उत्तर- छत्तीसगढ़ के महान संत रचनाएँ

(क) संत गुरु घासीदास इनके सात वचन सतनाम पंथ के “सप्त 

  सिद्धांत” के रूप में प्रतिष्ठित है, सतनाम पंथ I

(ख) संत धनी धर्मदास साहब मेटो चूक हमारी,

 धनुष बान लिये डाढ़,

 मोरा पिया बसै कौन देस हो,

 जग ये दोऊ खेलत होरी,

 साहेब सतगुरु घर आया हो I

(ग) संत महाप्रभु वल्लभाचार्य यमुनाष्टक, बालबोध श्री कृष्णाश्रय, जलभेद 

 निरोध लक्षण , सेवाफल 

(घ) संत बलभद्र दास  बलभद्री व्याकरण, हनुमन्नाटक गोवर्धन 

 सतसई टीका, दूषण विचार 

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प्रश्न 3. कबीरदास जी की साखियों को ढूंढ कर पढ़िए व आपस में चर्चा कीजिए I

उत्तर – (1) जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान ।मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान II

(2) आवत गारी एक है, उलटत होई अनेक |कह कबीर नहीं उलटिए, वही एक की एक II

(3) माला तो कर में फिरै, जीभ फिरै मुख माहीं Iमनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहीं II (4) कबीर घास न नींदिये, जो पाऊँ तलि होई I उड़ि पड़ै जब आँखि मैं खरी दुहेली होई I।

(5) जग में बैरी कोई नहीं, जो मन सीतल होय Iया आपा को डारि दे, दया करै सब कोय II \

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