CG Board Class 10 Science Solutions Chapter 12 विद्युत के चुंबकीय प्रभाव

CG Board Class 10 Science Solutions Chapter 12 विद्युत के चुंबकीय प्रभाव are given below for Hindi Medium Students.

 

Class 10 Science 

 Chapter 12 

विद्युत के चुंबकीय प्रभाव



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प्रश्न 1. चुंबकीय बल रेखाएँ क्या है?

उत्तर– चुंबकीय बल रेखाएं चुंबकीय सुई (या कम्पास सुई) के चलने का पथक वक्र रेखा है। जो चुंबक के उत्तरी ध्रुव से प्रारंभ हो कर दक्षिणी ध्रुव पर नष्ट (समाप्त) हो जाता है।ये वक्र रेखाएं ही चुंबकीय बल रेखाएं कहलाती है।


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प्रश्न 2. चुम्बकीय बल रेखाओं के गुण लिखिए I 

उत्तर – चुम्बकीय बल-रेखाओं के गुण – दो बल रेखाएं एक-दूसरे को कभी नहीं काटती है। – चुम्बकीय क्षेत्र जहाँ प्रबल होती है, वहाँ बल – रेखाएं पास-पास होती है। 

– एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र की बल रेखाएं परस्पर समान्तर एवं बराबर-बराबर दूरियों पर होती हैं।


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प्रश्न 1. सीधे धारावाही चालक तार में धारा के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की बल रेखाएँ खींचिए।

उत्तर- 

B = चुंबकीय बल रेखाएं

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प्रश्न 2. किसी चालक तार में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर धारा प्रवाहित हो रही है। तब इसके ठीक नीचे के किसी बिन्दु पर तथा इसके ठीक ऊपर के किसी बिन्दु पर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा क्या होगी? 

उत्तर- नीचे के बिंदु पर नीचे की ओर और ऊपर के बिंदु पर ऊपर की ओर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा होगी।


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प्रश्न 1. मेज के तल पर रखे तार के वृत्ताकार लूप पर विचार कीजिए। मान लीजिए इस लूप में वामावर्त दिशा में विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। इस पाश के भीतर तथा बाहर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात कीजिए ?

उत्तर- मेज के तल में पड़े तार के वृत्ताकार लूप में वामावर्त दिशा में विद्युत धारा प्रवाहित होने पर इस वृत्ताकार तार के लूप का प्रत्येक भाग वृत्ताकार तार के अंदर समान दिशा में चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ उत्पन्न करती हैं। इस प्रकार वृत्ताकार तार के लूप (पाश) के भीतर तथा बाहर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा समान होगी।


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प्रश्न 2. किसी दिए गए क्षेत्र में चुंबकीय क्षेत्र एक-समान है। इसे निरूपित करने के लिए आरेख खींचिए?

उत्तर- यदि चुंबकीय क्षेत्र एक समान हो तो इसे समान दूरी तथा समान लम्बाई की समान्तर रेखाओं से निरूपित किया जाता है।


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प्रश्न 1. क्रियाकलाप-5 में छड़ AB का विस्थापन ( घूमना ) किस प्रकार बदलेगा।

(a) यदि छड़ में धारा की मात्रा बढ़ा दें।

(b) यदि अन्य प्रबल नाल चुंबक लिया जाए।

(c) यदि छड़ की लंबाई कम कर दी जाए।

उत्तर- (i) तार से गुजरने वाली धारा चुंबकीय क्षेत्र के समानुपातिक होती है तार में धारा जितनी अधिक होगी, चुंबकीय क्षेत्र उतना ही मजबूत होगा । अत: विस्थापन में वृद्धि होगी ।

(ii) विस्थापन में वृद्धि होगी I [ क्योंकि चुंबकीय बल में वृद्धि होगी I ]

(iii) तार की लंबाई धारा के व्युत्क्रमानुपाती होती है धारावाही तार से बिंदु की दूरी जितनी अधिक होगी, उस बिंदु पर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र कमजोर होगा अतः विस्थापन में

कमी आयेगी I


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प्रश्न 1. विद्युत जनित्र क्या है? 

उत्तर – विद्युत जनित्र एक ऐसी युक्ति है जो यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने काम आती है। इसके लिये यह प्रायः माइकल फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत का प्रयोग करती है।

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प्रश्न 2. विद्युत जनित्र का सिद्धांत लिखिए। 

उत्तर- विद्युत जनित्र का मूल सिद्धांत – विद्युत जनित्र का सिद्धांत विद्युत चुम्बकीय प्रेरण की परिघटना पर आधारित है जिसके आधार पर जब किसी कुंडली के तल पर चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है तो उस कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा प्रवाहित होती है और इस प्रकार यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करने का कार्य करती है I

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प्रश्न 3. विभक्त वलय दिक् परिवर्तक क्या है?

उत्तर- विद्युत मोटर में विभक्त वलय दिक् परिवर्तक का कार्य करता है।यह परिपथ में विद्युत-धारा के प्रवाह को उत्क्रमित करने में सहायता देता है। विद्युत-धारा के उत्क्रमित होने पर दोनों भुजाओं पर आरोपित बलों की दिशाएँ भी उत्क्रमित हो जाती हैं।


अभ्यास प्रश्न :- 

प्रश्न 1. सही विकल्प चुनिए –

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1. चुंबकीय बल रेखाएँ निर्धारित करती हैं- 

(अ) चुंबकीय क्षेत्र की आकृति                   (ब) चुंबकीय क्षेत्र की दिशा (स) चुंबकीय क्षेत्र की परिमाण               (द) चुंबकीय क्षेत्र का परिमाण व दिशा।

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2. सीधे धारावाही चालकतार के नजदीक चुंबकीय क्षेत्र होता है –

(अ) चालक तार के समानांतर क्षेत्र रेखाएँ (ब) चालक तार के लंबवत क्षेत्र रेखाएँ                 (स) चालक तार के केन्द्र पर संकेन्द्री वृत्तीय रेखाएँ               (द) तार के प्रारंभ में त्रिज्यीय क्षेत्र रेखाएँ।

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3. परिनालिका के अंदर चुंबकीय क्षेत्र होता है-

(अ) सभी बिन्दुओं पर अलग-अलग               (ब) एक समान             (स) शून्य (द) इनमें से कोई नहीं।

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4. विद्युत् चुंबकीय प्रेरण की घटना है-

(अ) किसी वस्तु को आवेशित करना               (ब) किसी कुंडली को घुमाने की प्रक्रिया (स) किसी कुंडली में चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करना               (द) कुंडली में प्रेरित धारा उत्पन्न करना जब कुंडली और चुंबक में कोई एक गतिमान हो ।

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5. विद्युत धारा उत्पन्न करने का साधन है-

 (अ) जनित्र (स) धारामापी

 (ब) मोटर (द) अमीटर।

उत्तर- 1. (ब), 2. (स), 3. (ब), 4. (अ), 5. (अ)।


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प्रश्न 2. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए- 

(i) जो यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा में बदले वह ………… कहलाता है।

(ii) ………… विद्युत् ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलता है।

(iii) फ्लेमिंग के दाहिने हाथ के नियम से माध्यम से ………… की दिशा ज्ञात करते हैं।               

(iv) फ्लेमिंग के बायें हाथ के नियम से धारावाही चालक पर….. की दिशा ज्ञात करते हैं।           

(v) मैक्सवेल के दाहिने हाथ के नियम से …………की दिशा ज्ञात करते हैं।

उत्तर- (i) जनित्र, (ii) विद्युत् मोटर, (iii) प्रेरित धारा, (iv) गतिशील बल,(v) चुंबकीय क्षेत्र की दिशा।


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प्रश्न 3. विद्युत् चुंबकीय प्रेरण की घटना का प्रतिपादन किस वैज्ञानिक ने किया ? उत्तर- विद्युत चुंबकीय प्रेरण की घटना का प्रतिपादन “माइकल फैराडे’ ने की थी।


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प्रश्न 4. किसी धारावाही चालक में धारा भेजने पर उसके नजदीक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। इस घटना की पुष्टि सर्वप्रथम किस वैज्ञानिक ने की?           

उत्तर- किसी धारावाही चालक में धारा भेजने पर उसके नजदीक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है, इस घटना की पुष्टि सर्वप्रथम “एच. सी. ओरस्टेड ने की थी I


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प्रश्न 5. फ्लेमिंग के बाएं हाथ का नियम लिखिए।                 

उत्तर- चुंबकीय क्षेत्र में रखे धारावाही चालक पर बल की दिशा ज्ञात करने के लिए फ्लेमिंग ने बाएं हाथ का नियम दिया। इस नियम के अनुसार बाएं हाथ की तर्जनी, मध्यमा और अंगूठा को इस प्रकार फैलाइए कि ये तीनों एक- दूसरे के परस्पर लंबवत हो, यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा, मध्यमा धारा की दिशा को प्रदर्शित करे तो अंगूठा चालक पर लगने वाले बल की दिशा बतायेगा  


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 प्रश्न 6. विद्युत् मोटर का उपयोग किन-किन उपकरणों में किया जाता है ? किन्हीं तीन के नाम लिखिए। उत्तर- विद्युत मोटर एक ऐसा साधन है, जिसमें विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदला जाता है। इसका उपयोग विद्युत पंखों, प्रशीतकों, कपड़ा धुलाई मशीनों, कम्प्युटरों, मिक्सी आदि में किया जाता है।


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प्रश्न 7. चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करने के तीन तरीकों की सूची बनाइए।                 

उत्तर- (i) सीधे चालक तार से विद्युत धारा प्रवाहित होने के कारण चुम्बकीय क्षेत्र I

(ii) वृत्तीय धारावाही चालक के कारण चुम्बकीय क्षेत्र I

(iii) परिनालिका के कारण चुंबकीय क्षेत्र I


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प्रश्न 8. धारावाही परिनालिका चुंबक की भांति कैसे व्यवहार करती है ? क्या आप किसी छड़ चुम्बक की मदद से उसके उत्तरी ध्रुवों व दक्षिणी ध्रुवों का निर्धारण कर सकते हैं ? 

उत्तर- परिनालिका विद्युतरोधी तांबे की तार की अधिक फेरों वाली बेलनाकार आकृति की कुंडली होती है। नीचे दिया गया चित्र परिनालिका को दर्शाता है। जिसके दो सिरे कुंजी द्वारा बैटरी से जड़े होते हैं । जब विद्युत धारा परिनालिका में प्रवाहित की जाती है, तब उसके चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है। इस तरह धारावाही परिनालिका द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र छड़ चुम्बक द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र के समान है। अतः धारावाही परिनालिका एक छड़ (दण्ड) चुम्बक की भांति व्यवहार करती है। जिसका एक सिरा उत्तरी ध्रुव (N) तथा दूसरा सिरा दक्षिण ध्रुव (S) की भाँति व्यवहार करता है। परिनालिका के अंदर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं समांतर सरल रेखाओं के रूप में होती हैं जो यह बताता है कि परिनालिका के अंदर चुंबकीय क्षेत्र एक समान होता है।


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प्रश्न 9. चुंबक के तीन प्रमुख गुण लिखिए।               

उत्तर – (i) चुंबक को छोटे – छोटे भागों में विभाजित किया जाए तो प्रत्येक भाग स्वयं में एक पूर्ण चुंबक होता है।

(ii) चुंबक को स्वतंत्र रूप से लटकाने पर यह हमेशा उत्तर- दक्षिण दिशा में ठहरता है।

(iii) चुंबक के दो समान ध्रुव परस्पर एक दूसरे को प्रतिकर्षित करती है तथा असमान ध्रुव एक – दूसरे को आकर्षित करती है।


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प्रश्न 10. चुंबकीय बल रेखा क्या है ? उसके तीन प्रमुख गुण लिखिए। 

उत्तर- चुंबकीय क्षेत्र में चुंबकीय सुई को एक बिन्दु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में सुई की दिशा लगातार बदलती रहती है। जब इसको चुंबक के उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की ओर ले जाए तो एक वक्र पथ बनता है I यह वक्र पथ ही चुंबकीय बल रेखा कहलाता है।

 चुंबकीय बल रेखा

इसके तीन प्रमुख गुण निम्नलिखित है : – 

1. ये चुंबक के भीतर दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की ओर होती है I

2. बाह्य मार्ग में ये चुंबक के उत्तरी ध्रुवों से प्रारंभ होकर दक्षिणी ध्रुवों तक जाती है।

3. संपूर्णतः ये वह चक्र है। ये एक – दूसरे को कभी नहीं काटती है।


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प्रश्न 11. दो चुंबकीय बल रेखाएँ एक दूसरे को क्यों नहीं काटती हैं ? 

उत्तर – ये बल रेखाएँ एक – दूसरे को नहीं काटती, यदि वे ऐसा करती तो इसका अर्थ ये होगा कि उस बिंदु पर सुई दो दिशाओं की ओर संकेत करेगी, जो कि संभव नहीं है। 


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प्रश्न 12. विद्युत् मोटर का वर्णन निम्नांकित शीर्षकों के अंतर्गत कीजिए- 

(अ) नामांकित आरेख (ब) सिद्धांत (स) कार्यविधि । 

उत्तर- सिद्धांत- जब किसी आयताकार कुंडली को चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है और उसमें धारा प्रवाहित की जाती है तो कुंडली पर बल कार्य करता है। जो उसे लगातार घूमाता है। जब कुंडली घूमती है तो उससे संलग्न धुरी भी घूमती है। इस तरह मोटर को दी गई विद्युत ऊर्जा, घूर्णन की यांत्रिक ऊर्जा (गतिज ऊर्जा) में बदलती है I

नामांकित आरेख :- 

कार्यविधि:- विद्युत मोटर में तांबे की तारों की एक आयताकार कुंडली ABCD होती है। यह कुंडली प्रबल नाल चुंबक के अवतल बेलनाकार ध्रुव खण्डों के बीच इस प्रकार रखी जाती है, कि इसकी भुजाएँ AB तथा CD चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के लंबवत रहे। कुंडली के दोनों सिरें विभक्त वलय के दो अर्ध भाग X तथा Y से संयोजित होते हैं। इन अर्ध भागों के भीतरी सतह विद्युतरोधी होती है तथा धुरी से जुड़ी होती है। विभक्त वलय के सिरे क्रमश: दो स्थिर चालक ब्रशों P तथा Q से स्पर्श करते हैं I

विधि :- बैटरी से चलकर धारा ब्रश Q से होते हुए कुंडली ABCD में प्रवेश करती है, तथा चालक P से होते हुए बैटरी के दूसरे टर्मिनल पर वापस भी जाती है। कुंडली ABCD में धारा A से B, B से C, C से D की ओर बहती है। अत: AB व CD धारा परस्पर विपरीत दिशा में होती है। इसके कारण AB पर बल नीचे तथा CD पर ऊपर की ओर लगता है, तथा कुंडली वामावर्त घूर्णन करती है। आधे घूर्णन में Y का संपर्क ब्रश P से होता है। तथा X का संपर्क ब्रश Q से होता है। अत: कुंडली में विद्युत् धारा DCBA के अनुदिश प्रवाहित होता है। विद्युत धारा की दिशा बदलने पर CD तथा AB पर लगने वाले बलों की दिशा भी बदल जाती है। जिसके फलस्वरूप कुंडली तथा धुरी का निरंतर घूर्णन होता है।जिन मोटरों का उपयोग व्यावसायिक कार्यों में होता है, उनमें स्थायी चुंबक के बदले विद्युत् चुंबक का प्रयोग करते हैं। तथा कुंडली में फेरों की संख्या अधिक कर लेते हैं। कुंडली को नरम लोहे पर लपेटते हैं जिसे क्रोड कहते हैं। क्रोड तथा कुंडली दोनो मिलकर आर्मेचर कहलाते हैं, जिससे मोटर की शक्ति बढ़ जाती है।


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प्रश्न 13. विद्युत् जनित्र का वर्णन निम्नांकित शीर्षकों के अंतर्गत कीजिए- 

(अ) नामांकित आरेख (ब) सिद्धांत (स) कार्यविधि । 

उत्तर- विद्युत जनित्र या डायनेमो एक ऐसा उपकरण है जो यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है। 

(अ) सिद्धान्त :- यह विद्युत चुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर काम करता है। जब दो वलयों से जुड़ी धुरी को इस प्रकार घुमाया जाए कि कुंडली की भुजा AB ऊपर तथा CD भुजा नीचे की ओर हो, तो कुंडली चुंबकीय क्षेत्र में गति करती है तब कुंडली से गुजरने वाली बल रेखाओं की संख्या में परिवर्तन होता है, जिसके परिणाम स्वरूप कुण्डली में प्रेरित धारा प्रवाहित होने लगती है।

(ब) नामांकित आरेख :-

(स) कार्यविधि :- जब दो वलयों से जुड़ी धुरी को इस प्रकार घुमाया जाए कि कुंडली की भुजा AB ऊपर तथा CD भुजा नीचे की ओर हो, तो कुंडली चुंबकीय क्षेत्र में गति करती है तो कुंडली से गुजरने वाली बल रेखाओं की संख्या में परिवर्तन होता है I कुंडली में भुजा AB तथा CD में फ्लेमिंग के दाएं हाथ के नियम के अनुसार प्रेरित धारा बहेगी । प्रत्येक सिरे से संबंधित धारा संकलित होकर कुंडली में एक शक्तिशाली धारा का निर्माण करेगी | तब बाह्य परिपथ में, धारा ब्रश B1 से B2 की ओर बहेगी अर्थ घूर्णन के पश्चात भुजा CD ऊपर की ओर तथा भुजा AB नीचे की ओर होगी तब भुजाओं में प्रेरित विद्युत धारा DCBA के अनुदिश प्रवाहित होगी। इस प्रकार बाह्य परिपथ में धारा DCBA के अनुदिश B1 से B2 की ओर बहेगी । इस व्यवस्था के साथ धारा एक ही दिशा में बहती है इसे दिष्ट धारा जनित्र कहते है।

प्रत्यावर्ती धारा प्राप्त करने हेतु विभक्त वलय के स्थान पर सर्पी वलय का प्रयोग करते हैं। जिसके कारण AB भुजा का संबंध सदैव ब्रश B1 तथा CD भुजा का संबंध ब्रश B2 से बना रहता है। अत: जब धारा ABCD के अनुदिश बहती है तो बाह्य परिपथ में यह ब्रश B2 से B1 तथा जब DCBA के अनुदिश बहती है तो बाह्य परिपथ में B1 से B2 की दिशा में धारा बहती है। अतः प्रत्येक अर्धचक्र में घूर्णन के पश्चात क्रमिक रुप से इन भुजाओं के विद्युत धारा की दिशा बदल जाती है। ऐसी विद्युत धारा जो समान समय अंतराल के पश्चात अपनी दिशा में बदलाव कर लेती है उसे प्रत्यावर्ती धारा या AC कहते है I विद्युत उत्पन्न करने की इस युक्ति को प्रत्यावर्ती धारा जनित्र कहते हैं।


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प्रश्न 14. दो वृत्ताकार कुण्डली A तथा B एक – दूसरे के नजदीक रखी है। यदि कुंडली A में बहने वाली विद्युत धारा में परिवर्तन करें तो क्या कुण्डली B में कोई विद्युत धारा प्रेरित होगी कारण सहित लिखिए।

 उत्तर- दो वृत्ताकार कुंडली एक – दूसरे के नजदीक रखी है। यदि कुंडली A में बहने वाली विद्युत धारा में परिवर्तन करें तो कुंडली B में भी कुंडली A के जैसी विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है क्योंकि जब दो नजदीक रखे कुंडलियों में से एक कुंडली में प्रवाहित होने वाली धारा के मान को बदला जाए तो समीपवर्ती दूसरे कुंडली में बहने वाली धारा प्रभावित होती है। अर्थात कुंडली से गुजरने वाली बल रेखाओं की संख्या में परिवर्तन होता है। जिससे दूसरी कुंडली B में प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है।


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प्रश्न 15. कोई विद्युत रोधी ताँबे के तार की कुण्डली को किसी धारामापी से जोड़िए I क्या होगा यदि दंड चुंबक को- (अ) कुंडली में धकेला जाए ? (ब) कुंडली के भीतर स्थिर रखा जाए। (स) कुंडली के भीतर से बाहर खींचा जाए। 

उत्तर- (अ) यदि दंड चुंबक को कुंडली में धकेला जाए तब कुंडली में प्रेरित धारा उत्पन्न होती है I

(ब) यदि दंड चुंबक को कुंडली के भीतर स्थिर रखा जाता है तो विद्युत धारा प्रवाहित नहीं होती है, अत: धारामापी में कोई विक्षेप नहीं होता |

(स) यदि दंड चुंबक को कुंडली के भीतर से बाहर खींचा जाए तो विद्युत धारा उल्टी दिशा में बहती है तथा धारामापी में विक्षेप बायीं तरफ होता है|


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प्रश्न 16. किसी सीधे धारावाही चालक तार में चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को निर्धारित करने वाला नियम लिखिए। 

उत्तर- चालक तार में चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को निर्धारित करने वाला नियम “फ्लेमिंग के दायें हाथ का नियम” है।

इस नियम के अनुसार, दाहिना हाथ का अंगूठा, तर्जनी और मध्यमा को इस तरह फैलाएं कि ये एक-दूसरे से समकोण बनाएँ तब अंगूठा चालक के गति की दिशा, तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा तथा मध्यमा प्रेरित धारा की दिशा बताती है।


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प्रश्न 17. विद्युत चुंबक बनाइए I     

उत्तर- विद्युत चुंबक बनाने के लिए सर्वप्रथम हमें एक कील (लोहे), तांबे का तार एवं एक बैटरी की आवश्यकता होती है अब कील के ऊपर तांबे की तार को गोल लपेटा जाता है। तथा तांबे के तार के दोनों छोरों को बैटरी के धन और ऋण सिरों के साथ जोड़ा जाता है। तत्पश्चात उसमें विद्युत धारा प्रवाहित करते हैं। धारा प्रवाह करते ही कील चुंबकीय हो जाता है I तथा धारा प्रवाह रोकने पर पुन: वह अचुम्बकीय हो जाता है। ध्रुवों का परीक्षण करने पर ज्ञात होता है कि कील का वह सिरा जहाँ धारा की दिशा वामावर्त होती है N ध्रुव और दूसरा सिरा जहाँ धारा की दिशा दक्षिणावर्त हो S ध्रुव बनते हैं I

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